देहरादून-मालदेवता यात्रा-02 लेखक -SANDEEP
PANWAR
देहरादून की इस यात्रा में, अभी तक आप गंधक पानी में
स्नान करने की प्रसिद्ध जगह सहस्रधारा देख चुके
है। अब हम बूँद-बूँद जल टपकने के कारण मशहूर टपकेश्वर मंदिर
जा रहे है।
टपकेश्वर मंदिर के दर्शन उपरांत हमारी टीम देहरादून-सरकुंडा
देवी सडक मार्ग पर स्थित मालदेवता की ओर प्रस्थान करेगी। मालदेवता से आगे ट्रैकिंग
मार्ग में गंधक पानी के श्रोत में स्नान के बाद कुन्ड गाँव तक की भयंकर चढाई के सुख-दुख वाले पलों के
बारे में पढने के इच्छुक है तो इस यात्रा पर साथ बने रहिए।
इस लेख की यात्रा दिनांक 14-08-2016 को की गयी थी
TAPKESHWAR MAHADEV
TEMPLE & Maldevta Picnic Spot टपकेश्वर
महादेव मंदिर और मालदेवता शिवालय व पिकनिक स्थल
टपकेश्वर महादेव की जय |
दोस्तों, परेड ग्राउंड चौक से गुच्चू पानी (Guchhupani
/Robber’s Cave)
के लिये सीधी बस मिलती है। जो टपकेश्वर मंदिर से
करीब एक किमी दूर टपकेश्वर चौक से होकर निकलती है। यह चौक
बीरपुर रोड पर स्थित है। यह मंदिर ऐसी भीडभाड वाली जगह बना हुआ है कि यहाँ तक बडी
बस का आवागमन बडी समस्या बन सकती है इसलिये बडी बस इस मन्दिर की ओर नहीं आती है। आगे
की शेष एक किमी यात्रा हमें पैदल ही तय करनी होगी। टपकेश्वर चौराहे पर बस ने हमें
छोडा था। वहाँ से मंदिर तक पहुँचाने के लिये शेयरिंग व बुक आटो भी मिल रहे थे।
बारिश शुरु हो गयी थी। आटो वाला बोला कि सीट भरने पर ही
चलूँगा। हम दोनों के अलावा वहाँ बरसात में कोई और टपकेश्वर जाने वाला नहीं लग रहा
था। एक दो मिनट सोचने के बाद तय किया कि एक किमी ही तो है। पैदल चलते है। 10
मिनट में तो पैदल ही पहुँच जायेंगे।
देहरादून में आटो से थोडे बडे विक्रम भी चलते है। होते दोनों
ही तीन पहिया वाले है।
मेरे पास छतरी थी लेकिन तेज चलने के कारण छतरी निकाली ही नहीं
गयी। चौराहे से जिस सडक पर चलना आरम्भ हुए थे वहाँ से आधा किमी भी नहीं चले होंगे
कि एक बोर्ड ने सवधान किया कि अब हमें सीधे हाथ वाली सडक पर मुडना है। यह सडक एक
गलीनुमा ही है। जिस पर ट्रक भी आ गया तो बाइक वाले का बचना भी सम्भव नहीं होगा। इस
सडक पर हम करीब आधा किमी चले होंगे कि अचानक से सडक में तेज ढलान आरम्भ हो गयी।
सडक की ढलान ने हमारी पैदल गति में वृद्धि कर दी। यदि चढाई आ गयी होती तो हम साँस
फूलना शुरु हो जाता।
कुछ देर बाद उल्टे हाथ मंदिर का प्रवेश द्वार दिखाई दिया। मैं
सन 1993 में पहले भी यहाँ आ चुका हूँ। उन दिनों मैंने देहरादून के लगभग
सभी स्थान साईकिल से देख डाले थे। मामा जी के लडके की साईकिल मेरे बहुत काम आती
थी। साईकिल से ही मैंने लक्ष्मण सिद्ध, डाट गुफा मन्दिर, वन अनुसंधान केन्द्र, आदि
घूम लिये थे। वो साईकल न होती तो उस समय मैं इतना न घूम पाता। उस साईकिल यात्रा के
बाद यात्राओं की जो शुरुआत हुई तो आज तक निरन्तर जारी है।
सचिन जांगडा से सहस्रधारा से चलते ही फोन पर बात हो गयी थी।
सचिन भाई देहरादून में प्रवेश कर चुके थे। उन्हे कि आप बाइक पर गुगल मैप से
टपकेश्वर मंदिर देखो। वो आपको वहाँ पहुँचने का कोई शार्टकट मार्ग दिखायेगा। जांगडा
भाई अपने पडौसी विकास त्यागी के साथ बाइक पर पहले ही टपकेश्वर मन्दिर पहुँच चुके
थे। दो मिनट की मुलाकात के बाद पता लगा कि जांगडा भाई व उनके दोस्त तो हमसे पहले
ही टपकेश्वर मंदिर के दर्शन कर ऊपर आ चुके है।
मैं और संजय सिंह टपकेश्वर मन्दिर के दर्शन करने के लिये
प्रवेश द्वार से बनी मार्बल की सीढियों पर सावधानी से ग्रिल पकड कर उतरने लगे।
बारिश अभी जारी थी। बारिश के पानी के कारण मार्बल की सीढियाँ खतरनाक रुप से फिसलन
भरी हो गयी थी। सावधानी से उतरने के बावजूद एक दो बाद ऊई, अरे, उफ होते होते रह
गयी। शुक्र रहा कि हम दोनों में से कोई सा न फिसला।
सीढियों में कुछ भिखारी इस उम्मीद में, बारिश में भी जमे हुए
थे कि उन्हे हम जैसे कुछ देकर जायेंगे। मैं भिखारियों को भीख देकर उनके इस संगठित
रोजगार को कभी बढावा नहीं देता। भीख माँगना बहुत लोगों का रोजगार है। यह सिर्फ पेट
की आग बुझाने तक सीमित नहीं है। पेट की आग बुझाने के लिये एक दिन में ज्यादा से
ज्यादा सौ रुपये बहुत होते है लेकिन ऐसे अनुभवी लोग एक दिन में 500-700
रु आसानी से कमाने के बाद भी हटने को
तैयार नहीं होते। दूसरे शब्दों मेम कहे कि जिन्होंने इन्हे यहाँ बैठाया होता है उनके
डर से ये वहाँ डटे रहते है। समय-समय पर छापेमारी कर ऐसे लोगों पर कार्यवाही होती
रहनी चाहिए।
भिखारियों को सीढियों पर छोडकर आगे बढते है। अब भिखारियों के
साफ सुधरे अवतार बोले तो पुजारियों से मंदिर के अन्दर भी सामना करना है। पुजारियों
को जब तक दान रुपी भिक्षा नहीं मिलती है तब तक अधिकतर पुजारियों को आत्मिक
संतुष्टि नहीं मिलती है। मिले भी कैसे? आखिर उनके लिये पुजारी का पद सिर्फ एक
रोजगार ही है। जिस प्रकार हम अपना दैनिक जीवन यापन करने के लिये नौकरी आदि करते है।
ठीक उसी प्रकार पुजारी भी इसे नौकरी रुप में ही लेते है। घोडा घास से यारी करेगा
तो भूखा मरेगा ना। मंदिर के बाहर भिखारी व मंदिर के अन्दर पुजारी कई बार श्रद्धालुओं
का मन खराब कर देते है। मंदिरों की संस्थाओं को पुजारी बढिया वेतन पर रखने चाहिए
और घंटे के हिसाब से डयूटी बदलनी चाहिए।
हर चीज में अपवाद मिलते है। ऐसे ही पुजारी के रुप में भी अपवाद
स्वरुप बहुत कम भले मानुष ऐसे मिलते है जो तन-मन से भगवान को समर्पित होते है। ऐसे
समर्पित सभी पुजारी गण को मेरा दंडवत प्रणाम है। ऐसे ही भले लोगों के कारण दुनिया
में अच्छाई बची हुई है। हम मंदिर में जो कुछ भी चढाते है। कहने को तो वह भगवान को
चढाया जाता है लेकिन सही मायनों में देखा जाये पूजा-सामग्री तो यही रहकर, मनुष्यों
के ही काम आने वाली है। उस भगवान को हम मानव भला क्या दे सकते है? जिस भगवन के हाथों
में हमारे जीवन की डोर है। भगवान तो भाव का भूखा है।
लोग भगवान को भी रिश्वत रुपी चढावा अर्पण करते है। रिश्वत भी
देखिये कैसी-कैसी—भगवान मेरा ये काम कर देना, मैं सवा मनी चढाऊँगा, भगवान मेरी
नौकरी लगवा देना, मैं आपके दरबार में दंडवत करके पहुँच जाऊँगा। भगवान को कुछ
अंधभक्त तो जानवरों की बलि तक चढाते है। यदि इन बलि चढाने वालों को भगवान पर 1%
भी विश्वास है तो वो अपने शरीर के किसी
अंग की बलि चढा कर दिखाये। यदि मंदिर जाने वाला, हर मानव यह निश्चय कर ले कि मुझे
आज से कोई बुरा काम नहीं करना है। किसी का दिल नहीं दुखाना है तो न तो भगवान तंग
होगा और यह दुनिया ही स्वर्ग बन जायेगी।
लगता है यात्रा गलत दिशा में मुड जायेगी। आप कहोगे कि जाट बाबा
ने प्रवचन देने शुरु कर दिये है। अच्छा चलो, वापिस मंदिर की सीढियों पर लौट आते
है।
सीढियाँ उतरकर असन नदी (Asan River) किनारे पहुँचे। यह नदी मैंने नक्शे में
जाँची तो मालूम हुआ कि यह मसूरी से पहले जो भट्टा फाल आता है ना। यह उसी के पास से
आरम्भ होती है। शुरुआत में इसका नाम टोंस नदी है। बरसात के मौसम के कारण नदी में
बहुत पानी बह रहा था। बीस साल पहले जब मैं यहाँ आया था। तब अप्रैल का महीना था। उन
दिनों इसमें बहुत कम पानी था। नदी पार हनुमान जी की विशाल मूर्ति बना दी गयी है जो
पहले नहीं थी। जहाँ तक मुझे ध्यान है। इस नदी पर यह पुल भी नहीं बनाया गया है। यह
भी कुछ साल पहले ही बनाया गया है।
मन्दिर में दर्शन करने के लिये अन्दर प्रवेश किया। भोलेनाथ के
शिवलिंग व अन्य भगवानों के प्रतीक रुपी मूर्तियों को नमन करते हुए बाहर आ गये।
बाहर आकर एक बार फिर सावधानी से सीढियाँ चढते हुए ऊपर सडक तक आ पहुँचे।
सडक पर जांगडा व विकास भाई बारिश में हमारी प्रतीक्षा कर रहे
थे। सामने ही एक समौसे वाली दुकान दिखाई दी। सभी ने दो-दो समौसे सब्जी के साथ चट
कर दिये। जो बंधु चाय पीते थे। उन्होंने
चाय के गिलास और होठों को मीठे का अहसास होने दिया। दोपहर के एक बज रहे थे। अब यहाँ
से वापस देहरादून-राजपुर रोड स्थित घंटाघर की ओर चलने की बारी थी।
मेरठ से बाइक पर आ रहे अजय त्यागी जी भी देहरादून पहुँच गये
थे। आपस में फोन से सम्पर्क हो गया था। सभी ने कहा कि घंटा घर के पास MDDA
की पार्किंग के सामने BSNL
कार्यालय के गेट के सामने मिलो।
जांगडा भाई अपनी बाइक से निकल गये। हम दोनों उसी चौराहे पर एक
बार फिर पैदल आ गये। अबकी बार हम बस की जगह विक्रम (बडा आटो) से घंटा घर की ओर
निकल आये। जहाँ बस लम्बे रुट से घूम कर आयी थी। वही विक्रम वाला कैन्ट इलाके में
से शार्टकट लगाता हुआ थोडी देर में ही घंटा घर के पास चकराता रोड वाली साइड ले
आया। यहाँ से सामने ही घंटा घर दिख रहा था। आटो वाले ने कहा कि आगे आटो ले जाना
मना है आप सौ मीटर पैदल निकल जाओ।
जैसा कि तय हुआ था हम सभी MDDA की फ़्री पार्किंग में एकत्र हो गये।
जहाँ कुछ देर एक दूसरे से परिचय हुआ। एक ग्रुप फोटो हुआ। जो पहले वाले लेख में
सबसे पहले लगाया गया था। अब हमारे पास दो बाइक थी। पंत भाई की गाडी थी। सभी लोग
बाइक व गाडी में सवार होकर मालदेवता की ओर प्रस्थान कर गये।
यहाँ तय हुआ कि अब हम सीधे मालदेवता जायेंगे। मालदेवता मंदिर
के सामने अपनी गाडी व बाइक खडी करनी पडेगी। मालदेवता से आगे जो मार्ग है वो खतरनाक
मार्ग है। बरसात का मौसम न हो तो अपनी गाडी या बाइक से जाया जा सकता है। बरसात में
उस मार्ग में कही-कही तो दो-दो फुट तक पानी हो जाता है। ऊपर से नदी का तेज बहाव। ज्यादा
रिस्क लेना बेकार है। पता लगे कि यहाँ भी पांगी वाला पंगा न हो जाये।
नोट-मालदेवता उभरता हुआ पिकनिक स्थल है। यहाँ सुरकंडा देवी से आते समय, मैंने नदी किनारे टैंट आदि सभी सुविधा देखी थी। कुछ भले युवक-युवतियाँ नदी किनारे दिन के उजाले में बैठकर बीयर पीने में मग्न थे। लगता है पिकनिक स्थलों को ये लोग सिर्फ बीयर बार समझ कर ही आते है। ऐसा ही कुछ हाल ऋषिकेश से आगे का बना हुआ है। कोटद्वार जाओ तो वहाँ की नदियों किनारे भी यही साप्ताहिक व धार्मिक क्रिया देखने को मिलती है।
नोट-मालदेवता उभरता हुआ पिकनिक स्थल है। यहाँ सुरकंडा देवी से आते समय, मैंने नदी किनारे टैंट आदि सभी सुविधा देखी थी। कुछ भले युवक-युवतियाँ नदी किनारे दिन के उजाले में बैठकर बीयर पीने में मग्न थे। लगता है पिकनिक स्थलों को ये लोग सिर्फ बीयर बार समझ कर ही आते है। ऐसा ही कुछ हाल ऋषिकेश से आगे का बना हुआ है। कोटद्वार जाओ तो वहाँ की नदियों किनारे भी यही साप्ताहिक व धार्मिक क्रिया देखने को मिलती है।
मालदेवता जाते समय एक दुकान पर रुककर कुन्ड गाँव व सौंदणा गाँव
वाले दोस्तों के लिये एक-एक उपहार लिया। उपहार लेकर फिर आगे बढ चले। मालदेवता से पहले
एक चौक आता है। यहाँ तक का मार्ग देहरादून का रिंग रोड कहलाता है। इस जगह गाडी
रोककर डोभाल जी ने एक पिकअप गाडी वाले से बात की। वो गाडी वाला हमें मालदेवता से
आगे नदी वाले मार्ग से लेकर जायेगा। उसके पहिया बडे है। वह रोज उसी मार्ग से
आवागमन करता है अत: उसे अच्छी तरह पता है कि उस मार्ग से कैसे निकलना है?
गाडी वाला बोला आप मालदेवता चलो, मैं दस मिनट बाद आऊँगा। हम
मालदेवता पहुँच गये। मंदिर के ठीक सामने बरगद के विशाल वृक्ष के नीचे अपनी बाइक व
गाडी खडी कर दी। हमारी गाडियाँ यहाँ दो-तीन दिन खडी रहेगी। अंशुल जी के जान-पहचान
वाले कुछ दुकानदार है जिनकी दुकाने सामने ही है। उनके भरोसे गाडी यहाँ छोडकर जा
रहे है। अंशुल जी ने हम सबके खाने के लिये सब्जी आदि जरुरी सामान ले लिया। अजय
त्यागी से अपने साथ कुछ परांठे लेकर आये थे। दोपहर के ढाई बज रहे थे। उन परांठों
को सबने मिलकर मिनटों में चट कर दिया।
जैसे ही गाडी आयी तो देखा कि उसमें आगे तो सभी सीट फुल है।
पीछे ही तरफ बैठकर अपनी खतरनाक यात्रा आरम्भ की। दो किमी अच्छी सडक पर चलने के बाद
हमारी गाडी अचानक पत्थरों के उपर चलने लगी। अब गाडी में पकड कर बैठना पडा। आगे का
सफर कभी बडे-बडे पत्थर तो कभी पानी की धारा में से होकर बढते रहे। एक जगह जाकर ऐसा
लगा कि हम नदी के बीच से होकर निकल रहे है। वैसे वो नदी का किनारा ही था लेकिन
किनारे में भी बहुत पानी था। कम से कम डेढ फुट से ज्यादा पानी रहा होगा।
आधे घंटे की यात्रा में गाडी की पूरी जोर आजमाइश होती है। अचानक गाडी रुकती है। हम समझे कि आगे मार्ग बन्द है लेकिन पता लगा कि आज हमें यही उतरना है। अब यहाँ से आगे नदी पार करेंगे। गाडी से उतर कर देखा कि नदी पार करने की बात हो रही थी लेकिन नदी में इतना ज्यादा पानी व तेज बहाव है कि इसमें घुसते ही बहा ले जायेगी। क्या कहा? पुल! कही दूर-दूर तक दिखाई नहीं दे रहा है, तो इसे पार कैसे करेंगे? तभी नदी पार से एक बन्दा हवा में उडता हुआ हमारी ओर आता दिखाई दिया। हमें भी उडकर नदी पार करनी है।
इसे कहते है टोकरी व रस्सी से नदी पार करना। यहाँ एक बात और बतानी है कि नदी के इस छोर पर हम देहरादून जनपद में खडे है नदी का सामने वाला छोर टिहरी गढवाल जनपद में आता है। यानि हम हवा-हवा में जनपद बदल जायेंगे। तो चलो दोस्तो अब हवा-हवाई करते हुए दूसरे जनपद में चलते है।.....(शेष अगले भाग में)
आधे घंटे की यात्रा में गाडी की पूरी जोर आजमाइश होती है। अचानक गाडी रुकती है। हम समझे कि आगे मार्ग बन्द है लेकिन पता लगा कि आज हमें यही उतरना है। अब यहाँ से आगे नदी पार करेंगे। गाडी से उतर कर देखा कि नदी पार करने की बात हो रही थी लेकिन नदी में इतना ज्यादा पानी व तेज बहाव है कि इसमें घुसते ही बहा ले जायेगी। क्या कहा? पुल! कही दूर-दूर तक दिखाई नहीं दे रहा है, तो इसे पार कैसे करेंगे? तभी नदी पार से एक बन्दा हवा में उडता हुआ हमारी ओर आता दिखाई दिया। हमें भी उडकर नदी पार करनी है।
इसे कहते है टोकरी व रस्सी से नदी पार करना। यहाँ एक बात और बतानी है कि नदी के इस छोर पर हम देहरादून जनपद में खडे है नदी का सामने वाला छोर टिहरी गढवाल जनपद में आता है। यानि हम हवा-हवा में जनपद बदल जायेंगे। तो चलो दोस्तो अब हवा-हवाई करते हुए दूसरे जनपद में चलते है।.....(शेष अगले भाग में)
भयंकर फिसलन |
एक हनुमान, एक बिन बाल |
सम्भल कर रे बाबा, टकला फूट जायेगा |
अरे बाप रे, बहुत मुश्किल है इसपर लटकना तो |
अनुराग पन्त बरगद की लटों पर झूलते हुए |
माल देवता पर टीम |
खाओ पराँठे, आचार के साथ |
अब हमें हवा में उडकर नदी पार दूसरे जिले में पहुँचना है। |
5 टिप्पणियां:
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (03-10-2017) को "ब्लॉग की खातिर" (चर्चा अंक 2746) पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
"अब भिखारियों के साफ सुधरे अवतार बोले तो पुजारियों से मंदिर के अन्दर भी सामना करना है। "
"उस भगवान को हम मानव भला क्या दे सकते है? जिस भगवन के हाथों में हमारे जीवन की डोर है। भगवान तो भाव का भूखा है।
लोग भगवान को भी रिश्वत रुपी चढावा अर्पण करते है। रिश्वत भी देखिये कैसी-कैसी—भगवान मेरा ये काम कर देना, मैं सवा मनी चढाऊँगा, भगवान मेरी नौकरी लगवा देना, मैं आपके दरबार में दंडवत करके पहुँच जाऊँगा। भगवान को कुछ अंधभक्त तो जानवरों की बलि तक चढाते है। यदि इन बलि चढाने वालों को भगवान पर 1% भी विश्वास है तो वो अपने शरीर के किसी अंग की बलि चढा कर दिखाये। यदि मंदिर जाने वाला, हर मानव यह निश्चय कर ले कि मुझे आज से कोई बुरा काम नहीं करना है। किसी का दिल नहीं दुखाना है तो न तो भगवान तंग होगा और यह दुनिया ही स्वर्ग बन जायेगी।
लगता है यात्रा गलत दिशा में मुड जायेगी। आप कहोगे कि जाट बाबा ने प्रवचन देने शुरु कर दिये है। "
ये प्रवचन ही सबसे अच्छा लगा लेख में. हालाँकि मैं अभी इतना बेलाग लिख नहीं पाती हूँ. लगता है कि आपसे बाह्य यात्राओं के साथ-साथ दूसरी यात्रा के बारे में भी बहुत सिखने को मिलेगा
बढ़िया विवरण जाट भाई जी अब हवा हवाई पड़ते है
वाह बहुत बढि़या जी बरसात में मतलब की टपकती हुई बूंदों के बीच टपकेश्वर महादेव की यात्राा। जय हो, हर हर महादेव। वैसे आजकल भिखारियों और पुजारियों में ज्यादा अंतर नहीं रह गया है। भिखारी मंदिर के बाहर और पुजारी मंदिर के अंदर परेशान करते हैं लेकिन फिर भी क्या करें पुजारी लोगों अगर ऐसा न करें तो उनका भी परिवार है और उनके गुजारे के लिए धन तो चाहिए ही। कुछ कुछ पुजारी भले भी मिल जाते हैं कभी कभी। आपकी इस पोस्ट को पढ़ कर मुझे आज एक नई नदी असन के बारे में पता चला। ये बीयर पीने वाल सिलसिला हर जगह दिखता है। हमने तो चंद्रशिला के पास बीयर की बोतल देखी और उसकी फोटो भी लिया। एक तो पहाड़ी सड़क उपर से टूटी फूटी और हद तो इस बात की बरसात का मौसम परेशानी तो होनी ही थी और आपको भी हुई। बहुत अच्छा लगा पढ़कर। यात्राा करते रहिए और हम जैसे नए लोगों को नए जगहों से अवगत कराते रहिए।
बहुत सुंदर... टपकेश्वर महादेव मन्दिर तक मेरा अभी तक जाना नही हो पाया,,, मालदेवता जगह भी सुंदर दिख रही है।
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