बिजली महादेव-पाराशर झील-शिकारी देवी, यात्रा-04
लेखक -SANDEEP
PANWAR
इस यात्रा में आप हिमाचल के कुल्लू जिले स्थित बिजली महादेव व मंडी जिले में स्थित सुन्दर बुग्याल जिसे हम पाराशर झील की यात्रा कर चुके हो।
अब आपको मन्डी जिले की सबसे ऊँची चोटी शिकारी देवी
की ओर चल रहे है। इस यात्रा को आरम्भ से पढने के लिये यहाँ
क्लिक करना न भूले। इस लेख की यात्रा दिनांक 30-07-2016 को की गयी थी
Shikari Mata Devi
Higest peak of Mandi District शिकारी देवी, (शिकारी माता) मन्डी जिले की सबसे ऊँची चोटी
मंडी से शिकारी माता जाने वालों को पंडोह डैम पार नहीं करना
पडता है। डैम से ठीक पहले एक सडक ऊपर की ओर चढती है हमें इसी पर चढना है।
इस सडक पर अभी कुछ ही दूर गये थे कि यह
दो टुकडों में बँट गयी। यहाँ ना कोई बोर्ड, ना कोई बन्दा, अब किस सडक पर जाये?
घनघोर विकट स्थिति आ गयी।
यहाँ अनुभव काम आया। अनुभव बोले तो experience. दोनों सडक की स्थिति देखी। जो सडक
सीधी व ढलान में जा रही थी उसपर धूल ज्यादा थी। जाहिर सी बात है कि ये कोई छोटी
सडक है जिस पर कम ही वाहन चलते है। हम सीधे हाथ मुडने वाली सडक पर मुड गये। थोडा
आगे चलते ही दूरी बताने वाले बोर्ड पर एक आश्चर्य वाली जगह का नाम आया। नाम है
सवाल? गजब नाम है ना। पहली बार ऐसा नाम देखा है। पहेली, सहेली, आदि नाम तो सुने
थे। आज सवाल भी देख लिया।
आगे बढते रहे। धीरे-धीरे ऊँचाई वाली जगह पर पहुँच गये। एक जगह
एक मिठाई की दुकान पर बाल मिठाई दिखाई दी। अब तक चलते हुए बहुत देर हो चुकी थी।
गाडी लगातार चढाई पर थी। जैसे ही मिठाई लेने के लिये दरवाजा खोला तो ठन्डी हवा ने
शरीर की झुरझुरी बना दी। जितनी तेजी से बाल मिठाई लेने गये थे उससे दुगनी तेजी से
गाडी में घुसकर दरवाजा बन्द कर दिया। हम गाडी में हाफ पैंट व टी शर्ट में रहते थे।
आगे बढते रहे। बाल मिठाई पर हाथ साफ भी करते रहे। यहाँ कुछ टाफियाँ भी ली गयी थी।
आगे जाने पर कन्धा मोड
पर नेर-चौक, सुन्दर नगर, मन्डी से आने वाला मार्ग भी मिलता है। इस जगह का नाम
बनैशी है। कन्धा यहाँ का बडा गाँव है। यदि किसी को दिल्ली से आना हो तो उसे मन्डी
से बस में बैठना सही रहेगा।
यदि अपनी गाडी है तो सुन्दर नगर से थौडा आगे नेर-चौक आता है
यहाँ से सीधा हाथ देखोगे तो यह सडक दिखाई देगी। यहाँ से कुछ किमी मैदानी यात्रा के
बाद जब पहाड शुरु होते है तो आगे चलकर चैल-चौक आयेगा। चैल-चौक से सीधे हाथ जाओगे
तो कमरुनाग-रोहांडा-करसोग के लिये निकल जाओगे। हम करसोग इसी सडक से होकर गये थे।
चैल-चौक से शिकारी माता के लिये सीधे चलते जाना है। वापसी में हम इसी मार्ग से
दिल्ली आयेंगे।
अब फिर से कन्धा-पंडौह सडक पर लौट आते है। कंधा गाँव से आगे
इसकी बहिन कन्धी गाँव आता है। अब यही एकलौता मुख्य मार्ग है। इसी मार्ग पर सडक
किनारे उल्टे हाथ पांडव शिला के नाम से एक बडा सा पत्थर आता है। यह पत्थर एक
किनारे से अटका हुआ है। इस पत्थर को जोर लगाकर हिलाओ तो यह हिलना शुरु हो जाता है।
यहाँ से जंझैली ज्यादा दूर नहीं रह जाता है। इस शिला के सामने एक बडा सा घर है
जिसमें दुकाने भी बनी हुई है। सडक किनारे बोर्ड भी लगा हुआ है।
इस सडक व घाटी का
अंतिम बडा गाँव जंझैली है। जंझैली बाजार पहुँचकर खाने के लिये खीरा, केले व आम
लिये और आगे बढ गये। जहाँ कही गाडी रोकेंगे वहाँ इनका काम तमाम करना है। पहले जब
जंझैली से आगे सडक नहीं बनी थी। तब जंझैली से शिकारी माता तक ट्रैकिंग होती थी। आज
तो शिकारी माता से सिर्फ आधा किमी पहले तक छोटी गाडी चली जाती है।
जंझैली तक मौसम ठीक था। जैसे ही आगे बढे, कल की तरह बारिश
आरम्भ हो गयी। जंझैली से पहले रायगढ आता है। आजकल रायगढ तक जंझैली वाली बडी बस आती
है। अभी रायगढ 4 किमी
दूरी पर है। बारिश में आराम-आराम से आगे बढ रहे थे। एक जगह जाकर राकेश भाई ने गाडी
रोक दी। मैं आगे बैठा हुआ था। आगे पूरी सडक पर पानी ही पानी था। सडक भी काली वाली
नहीं थी। कच्ची सडक थी जिसपर केवल पत्थर डाले हुए थे।
मैं गाडी से बाहर निकला। राकेश का छाता लिया और सडक की स्थिति
जाँचने निकल पडा। करीब तीन सौ मीटर आगे समस्या पकड आयी। बरसात में बहकर पेडों की
टहनियाँ व पत्ते नाली में जम गये थे जिससे पानी नाली की जगह सडक पर आ गया था। पहले
नाली का अवरोध हटाया। नाली अपनी लाइन में दौड पडी। कुछ देर में ही सडक बिन पानी
दिखाई देने लगी।
लौटकर गाडी के पास आया। अब बता भाई! अरे जाट भाई! पानी कहाँ
गया? पी गया सारे कू। चल, अब आँख मत फाड! पहले बताओ पानी कहाँ गया। कही नहीं भाई,
नाली बन्द थी वापिस उसी में भाग गया। सब
खिलखिलाकर हँस पडे।
रायगढ तक कोई समस्या न आयी। यहाँ कुछ कैम्पिंग सुविधा जैसा
वातावरण बनता दिख रहा है। आगे चलकर यह बढिया पिकनिक स्थल बनेगा। खराब मौसम को
देखते हुए कोई गाडी वहाँ नहीं थी। हम आगे बढने लगे। अब तक तो कच्ची सडक पर पत्थर
भी पडे थे। अब एकदम कच्ची सडक थी। इसपर जैसे-तैसे करके दो किमी गाडी चली गयी।
एक जगह दो-तीन छोटी गाडी पहले ही किनारे खडी थी। बरसात रुक
चुकी है। चलो आगे चलकर देखते है। आगे बढे तो गाडी स्लिप मारने लगी। तीन सौ मीटर
वापिस लेकर आये और किनारे लगा दिया। अपना पोंछू व छाता लेकर शिकारी माता के दर्शन
करने चल दिये। समय देखा दोपहर के तीन बजने वाले है। एक घंटे में आसानी से मन्दिर
पहुँच गये। थोडी सी 666 सीढियाँ चढकर मन्दिर पहुँच गये। इस
मन्दिर की ऊँचाई 2850 मीटर बतायी जाती है। मेरे पास कोई यंत्र
नहीं था। जिससे मैं नाप लेता। आज तो मेरे पास ऊँचाई मापने वाला मोबाइल ऐप है जो
आफलाइन काम करता है। यह लगभग दो-तीन मीटर के आसपास तक सही गणना कर देता है।
अब मन्दिर के बारे में चन्द जानकारी, मन्दिर पर कोई छत नहीं
बनाई गयी है। कहते है ढेरों कोशिश हो चुकी है। सब नाकाम हो गयी। यहाँ जमकर
बर्फबारी होती है। बीते साल, चार पर्यटक यहाँ बर्फ में अटक कर अपना काम तमाम करवा
चुके है।
शिकारी माता, नाम के पीछे एक कहानी पता लगी कि इस इलाके में
लोग शिकार करने आते थे। आज भी यह पूरा इलाका शिकारी वन्यजीव अभ्यारण के अन्तर्गत
आता है। घनघोर जंगल में यह मन्दिर सबसे ऊँची चोटी पर बना है। लोग यहाँ शिकार खेलने
आते रहे है। शिकार वाला जंगल धीरे-धीरे शिकारी माता के नाम से प्रसिद्ध हो गया।
इसके नाम के पीछे अजब कहानी है कहते है पांडव यहाँ वनवास के
दौरान शिकार खेलने आये थे। उन्हे यहाँ कोई हिरण दिखा। उन्होंने पीछा किया लेकिन
हिरण को न पकड सके। फिर सपने में या किसी अन्य तरीके से पांडवों को पता लगा कि वो
हिरण कोई साधारण हिरण नहीं था। इस इलाके की देवी ही हिरण रुप में भ्रमण कर रही थी।
पांडवों को एक मूर्ति मिली जिसकी स्थापना इस पर्वत की चोटी पर कर दी। इस कारण इसका
नामकरण शिकारी माता हो गया।
जैसा पहले बताया था कि यह मन्दिर इस जिले की सबसे ऊँची चोटी पर
बना है यहाँ से चारों ओर का नजारा बेहद दिलकश दिखता है। एक बात और यहाँ से कमरुनाग
मन्दिर व झील तक पहाडों के ऊपर-ऊपर ही एक पैदल ट्रैकिंग मार्ग जाता है। जिसमें
सिर्फ उतराई ही उतराई है। यह मार्ग आगे कमरुनाग होकर रोहांडा सुन्दर नगर से करसोग
जाने वाली सडक पर मिल जाता है। कमरुनाग और रोहांडा मैंने देखा हुआ है। याद है कि नहीं, पांगी में
बाइक के पंगे के बाद बाइक से ही रोहांडा कमरुनाग होकर दिल्ली गये थे।
यहाँ रहने-ठहरने के लिये कोई समस्या नहीं है। आराम से
रहने-खाने का जुगाड मिल जाता है। बस ध्यान रखिये कि कोई मेला आदि ना हो। सुना है
साल में एक बार आसपास के सभी लोकल देवता शिकारी माता के यहाँ हाजिरी बजाने आते है।
वो मेला कब लगता है वो ध्यान नहीं आ रहा है।
जय शिकारी माता। अब वापसी करते है। पहले तो 666
सीढियाँ सावधानी से उतरनी है। सीढियाँ
शुरु करते ही भाईयों को चाय की तलब उठ गयी। पहले चाय पीने दो। चाय पी ली गयी तो दो
भाई बोले, मैगी भी खानी है। खाओ भाई। कोनो टैंशन ना है। अब तो दिल्ली ही जाना है।
पूरी रात अपनी है। कल का दिन भी रविवार है। वो भी अपना है। सीढियाँ उतर कर नीचे
आये। घंटे भर से पहले ही गाडी के पास आ गये।
अंधेरा होने में ज्यादा समय नहीं है। गाडी में बैठकर वापसी की
यात्रा आरम्भ कर दी। कच्चे मार्ग पर चढना मुश्किल है तो गाडी उतारना भी कठिन है। धीरे-धीरे
कच्चे मार्ग से पार निकले। अंधेरा छाने लगा है। रायगढ को अंधेरे में अलविदा कही।
जंझैली पहुँचने से पहले चारों ओर घनघोर अंधेरा हो गया। कंधा-कंधी, नेर चौक, चैल
चौक होते हुए चलते रहे। रात के 11 बजे दिल्ली मनाली हाईवे पर पहुँच गये।
आज दिन भर में लगभग 250 किमी गाडी चल चुकी है।
पहले खाना खाते है। फिर आगे की सोचेंगे। 150
रु थाली के हिसाब से शाही भोजन किया।
ढाबे वाले के यहाँ वोल्वो बसे ही रुक रही थी। ढाबे वाला बोला, रात को रुकना है
क्या? राकेश बोला हाँ रुकने की इच्छा है। होटल वाले को बताया कि हम 1000
से ज्यादा नहीं देने वाले। उसने किसी से
बात कर 1000 में एक होटल बताया। उससे हाँ बोल दी। जहाँ रात को रुकना था वो
जगह सुन्दर नगर की दिशा में एक पैट्रोल पम्प के साथ लगी थी।
कमरों की कीमत पहले ही तय हो गयी थी। कमरे देखे। साफ सुथरे थे।
AC भी
चालू थे। तुरन्त सामान उतारा और नहाते ही सो गये। रात का 1
बजने वाला था। सुबह 6
बजे आँखे खुली। सवा 7
बजे तक तैयार होकर बाहर आये। नहा तो रात
ही लिये थे। ढाबे वाले को पैसे नहीं दिये थे। पैसे पैट्रोल पम्प वाले को देने है।
चलो भाई ये लो अपने 1000 रुपये। पैसे देकर मुडने ही वाले थे कि
पैट्रोल पम्प वाला बोला, “1000 रु और दो”। वो किसलिये? आपके दो कमरे
थे। एक कमरे का हजार रुपये। हमारी बात केवल 1000 में तय हुई है। आप उस बन्दे को बुलाओ।
10-15 मिनट बाद रात वाला बन्दा आया। वो बोला
मैंने दो कमरे की बात नहीं की थी। हमने क्या कहा था कि यदि 1000
रुपये में हमारे सोने का जुगाड होता हो
तो बताओ नहीं तो हम दिल्ली जा रहे है। खैर एक घंटा खराब हुआ। हमने एक हजार दे दिये
थे। उसके अलावा एक पैसा न दिया। हमारे पास पूरा दिन पडा था। यदि वो हमारा दिन खराब
करता तो उसका भी होता।
इस घटना से एक सबक मिला कि यदि कही ऐसे तीसरी जगह कमरा लेना
पडे तो पहले ही पता कर ले। हो सके तो यह बोल दे कि किराया बताओ भाई। अभी चुकाना है।
सुबह तो चार बजे निकल जायेंगे। इससे लाभ यह होगा कि बाद में फालतू का सिरदर्द नहीं
होगा। चलो दोस्तों एक बार हमारा काला बिच्छु उर्फ स्कारपियो धडधडाती हुई दिल्ली की
ओर दौड पडी।
आज मुरथल के परांठे खाने तय हुए थे। इसलिये दिल्ली तक सिर्फ
नाश्ता किया था। मुरथल पहुँचकर यहाँ के मशहूर पराँठे खाने के लिये अन्दर गये।
अमरीक सुखदेव के परांठे का बहुत नाम
सुना था। ऐसे परांठे घर पर आसानी से बनाये जा सकते है। परांठे थोडा हैवी थे। उनके
साथ मक्खन अलग से रखा हुआ था यही उसकी विशेषता थी। परांठे तेल या घी में नहीं तले
हुए थे। परांठे खाकर शाम चार बजे दिल्ली पहुँच चुके थे।
राकेश ने मुझे उसी मुकरबा चौक पर उतार दिया जहाँ से मुझे
बैठाया था। मैंने अपना मोबाइल राकेश की गाडी में चार्जिंग पर लगाया था जो वही लगा
रह गया। याद आया जब वे आगे निकल चुके थे। मुझे राकेश का नम्बर याद नहीं था। नम्बर
मोबाइल में था। अब किसी और के फोन से भी बात नहीं हो सकती थी। कुछ नहीं हो सकता
था। घर पहुँच कर दूसरे मोबाइल से राकेश को फोन किया कि भाई फोन बन्द कर रख लेना।
नहीं तो लोगों को सैलरी के जवाब देते रहना कि कब आयेगी? एक सप्ताह बाद राकेश भाई
ने अपने यहाँ काम करने वाले लडके के हाथों फोन भिजवा दिया।
(2016 में की तीन यात्रा बाकि है
एक मथुरा-भरतपुर- डीग दूसरी
मध्यप्रदॆश की पचमढी, तीसरी अरुणाचल प्रदेश की तवांग यात्रा
2017 तो पूरा बाकि है
केदार कांठा का ट्रैक, दयारा बुग्याल का
ट्रैक, चूडधार ट्रैक, रेणुका
झील और तुंगनाथ व कार्तिक स्वामी का ट्रैक,
देखिये किसकी कब बारी आती
है।
13 टिप्पणियां:
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल सोमवार (16-10-2017) को
"नन्हें दीप जलायें हम" (चर्चा अंक 2759)
पर भी होगी।
--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
Seems like a peaceful place and a very impressive narrative. Danyavad
ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन, ८६ वीं जयंती पर डॉ॰ कलाम साहब को ब्लॉग बुलेटिन का सलाम “ , मे आप की पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
जब किसी जगह का नाम सवाल है तो किसी जगह का नाम जवाब भी जरूर होगा, शुभकामनाएं आपको कि अगली किसी यात्राा में आपको जवाब नामक जगह भी दिख जाए। शिकारी देवी माता मंदिर के नामकरण की गजब जानकारी दी आपने। सीढि़यां चढ़ने में भले ही दम फूलता है पर उतरने में मजा बहुत आता है पर घुटनों में दर्द हो जाता है। मतलब कमरा देने वाले की इतनी हिम्मत हो गई कि वो देवता को लूटने चला था, पर देवता जी तो हर जगह घूमे हैं उसे क्या पता कि किससे पला पड़ा। पहले तो आप तुंगनाथ और कार्तिक स्वामी की यात्रा का विवरण लिखिए उसके बाद दूसरा।
जय शिकारी माता की,,, मजा आया पढ़कर,, कमरो वाली बात आपने सही लिखी यह सबके लिए सबक है की पहले ही ठोक बजा कर देख लेना चाहिए। परांठो का स्वाद कई दफा हमने भी चखा,, स्वाद अच्छा होता है लेकिन सुबह सुबह के परांठो की बात ही कुछ अलग होती है,, यह यात्रा बेहद सुंदर व रोमांच भरी रही।
अमरीक सुखदेव के परांठे वाकई लाजवाब होते हैं जी।
मार्च में कई गयी आगरा यात्रा के दौरान इनका स्वाद चखा था
शिकारी माता नाम तो पहली बार सुना है ....पर मजा आया आलेख पढ़कर... मक्खन के साथ मुरथल के परांठे खा आये आखिर
जय शिकारी देवी माता
पांगी का पंगा कैसे भूल सकते है
शानदार यात्रा विवरण
2016 बाकी है, 2017 पूरा बाकी है. काम-धाम से घूमने के लिए समय निकालना, फिर उसको लिखने के लिए समय निकलना...आसान नही है इतना. लेकिन आप लिख ही लेंगे, अभी तक का रेकॉर्ड तो यही दर्शाता है.
2016 बाकी है, 2017 पूरा बाकी है. काम-धाम से घूमने के लिए समय निकालना, फिर उसको लिखने के लिए समय निकलना...आसान नही है इतना. लेकिन आप लिख ही लेंगे, अभी तक का रेकॉर्ड तो यही दर्शाता है.
बेहद सुंदर व रोमांच भरी यात्रा .जय शिकारी देवी .
BHAI JI LEKH PAD KE YAADE TAZA HO GAYI HAI ...GAJAB YATRA VARTANT GURUDEV
Beautiful place..Thanks for the informative post.. :)
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