बिजली महादेव-पाराशर झील-शिकारी देवी यात्रा-02 लेखक -SANDEEP
PANWAR
इस यात्रा में आप हिमाचल के कुल्लू जिले स्थित बिजली महादेव के दर्शन कर चुके हो तो चलो अब हम चल रहे
है मंडी जिले में स्थित सुन्दर बुग्याल की ओर, जिसे हम
पाराशर झील के नाम से जानते है। पराशर झील के बाद आपको मन्डी जिले की सबसे ऊँची चोटी शिकारी देवी की यात्रा भी मिलेगी। इस
यात्रा को आरम्भ से पढने के लिये यहाँ क्लिक करना
न भूले। इस लेख की यात्रा दिनांक 28-07-2016 से आरम्भ की गयी थी
PARASHAR RISHI LAKE,
beautiful greenery mountain पाराशर ऋषि झील व सुन्दर बुग्याल में
भ्रमण।
यह यात्रा जुलाई 2016 के अन्तिम सप्ताह में अचानक की गयी थी।
जब घर से निकले थे तब न तो बिजली महादेव का कोई विचार था न पराशर झील का सोचा था।
लेकिन कहते है ना जहाँ चाह, वहाँ राह, जाना था जापान, पहुँच गये चीन।
यदि हम लोग दिल्ली की ओर से पाराशर आते तो मन्डी से ही आना
पडता। अब हम बिजली महादेव से आ रहे है तो मन्डी जाने की आवश्यकता नहीं है। कुल्लू
से जब मन्डी की ओर चलते है तो भुन्तर आता है। भुन्तर से कुछ किमी आगे बजौरा
(बाजुरा) आता है। यहाँ से हमने ब्यास नदी के साथ-साथ मन्डी जाने वाली सडक छोड दी।
बाजुरा से चलते ही ठीक-ठाक चढाई आरम्भ हो गयी। यह चढाई लगातार बनी रहती है। बिजली
महादेव से अब तक लगातार ढलान में चले आ रहे थे।
आसमान में काले घने बादल छाये हुए दिखाई देने लगे है। हमें यह
अनुमान नहीं है कि हमें इन बादलों के बीच से होकर ही जाना है। धीरे-धीरे हम उन
काले बादलों के बीच पहुँच गये। हम पहाड के बहुत ऊँचे छोर पर चल रहे थे सीधे हाथ
बेहद गहरी खाई दिखने लगी थी। बाहर की स्थिति का अंदाजा लगाने के थोडा सा शीशा खोला
तो सर्र से ठन्डी हवा अन्दर प्रवेश कर गयी। हम गाडी के अन्दर हाफ पैंट व बनियान टी
शर्ट में बैठे हुए थे। शीशा जितनी तेज खोला था उससे ज्यादा तेजी से बन्द कर दिया।
बारिश आरम्भ हो गयी। हम जितना आगे बढ रहे थे बारिश उतनी तेज
होती जा रही थी। स्कारपियो के वायपर तीव्र
गति से अपने कार्य पर वयस्त थे। वायपर को लौटने की फुर्सत नहीं हो रही थी उससे
पहले ही शीशा जल से तर-बतर हो जाता था। ऐसी जोरदार बारिश पहाड में मैंने बहुत कम
देखी है। एक बार बाइक यात्रा में देखी थी जब केदारनाथ से हम हरिद्वार की ओर लौट
रहे थे।
जोरदार बारिश लगभग आधा घंटा जारी रही। एक बाइक वाला उस तेज
बारिश में भी हमारे पीछे-पीछे बराबर साथ-साथ लगा रहा। बारिश को देखते हुए लग रहा
था कि आज अंधेरा होने से पहले पाराशर पहुँचना मुश्किल है। आबादी के नाम पर बीच में
इक्के-दुक्के घर वाले गाँव नजर आये। हमें उन गाँवों में कुछ काम नहीं था। हम
लगातार चलते रहे।
बाइक वाला एक गाँव में पहुँचकर रुक गया। शायद उसका घर या होटल
आ गया होगा। बाइक का नम्बर हिमाचल का ही था। अगर बाहर की बाइक होती तो यह माना जा
सकता था कि वह भी पाराशर झील देखने जा रहा है।
मंडी, कमांद, कटौला, कुल्लू रुट पर बस चलती है। मंडी से सीधे
पराशर झील तक सुबह 8 बजे एकमात्र बस चलती है। 11
बजे यह पाराशर पहुँचा देती है। दोपहर 1
बजे यह लौट जाती है। 4
बजे मंडी पहुँचा देती है। यदि बस से आना
हो तो यह समय ध्यान रखना। हो सके तो बस के समय से एक घंटा पहले पहुँचकर अपनी सीट
पर कब्जा जमा लेना।
पाराशर झील से कोई छ: सात किमी पहले घना जंगल समाप्त हो जाता
है। एक हरा भरा खुला मैदान आता है। हमें लगा कि पाराशर झील आने वाली है। यहाँ
पहुँचते-पहुँचते बारिश का जोश पूरी तरह ठन्डा पड चुका था। यहाँ कुछ निर्माण दिखाई
दे रहे थे। सभी सरकारी निर्माण थे। उनमें ताले लगे थे। एक भी प्राणी वहाँ ऐसा नहीं
दिखा जो बता सके कि पाराशर कितनी दूर है? सडक किनारे वाले बोर्ड भी गायब थे।
आपस में विचार विमर्श करते हुए आगे बढते रहे। धीरे-धीरे कुछ
किमी का जंगल पुन: पार करना पडा। इसके बाद अचानक से एकदम खुला बुग्याल घास का बडा
लम्बा विशाल पहाड दिखाई देने लगा। सडक किनारे सीधे हाथ ऊपर वन विभाग या PWD
का रेस्ट हाऊस भी दिखने लगा। एक मोड
मुडते ही हिमाचल पर्यटन विभाग का एक बडा रेस्ट हाऊस नीचे बाये हाथ दिखाई दिया। वन
विभाग वाला सीधे हाथ तो पर्यटन विभाग का उल्टे हाथ। है। दोनों ही आमने-सामने। बने
है। एक नीचे खाई की ओर है तो दूसरा पहाड की चढाई पर बना है। रहने को किसी में भी
मौका मिलना चाहिए। शाम होने वाली है।
दो बन्दे ऊपर की ओर, तो दो बन्दे नीचे की ओर पूछताछ करने चले
गये। थोडी देर में दोनों टीम वापिस आ गयी। दोनों टीम ने एक ही समाचार दिया कि बात
नहीं बनी। निराश हाथ लगी। कोई बात नहीं। मन्दिर तक चलते है। वहाँ कुछ न कुछ प्रबंध
हो जायेगा। कुछ न हुआ तो वापिस लौट जायेंगे। नीचे 20 किमी पहले एक होटल बना था वहाँ जाकर ठहर
जायेंगे। अभी नीचे पर्यटन विभाग वाले में तो जगह खाली नहीं थी। ऊपर वन विभाग वाले
में कोई दिखाई नहीं दिया था।
पहले पाराशर झील व मन्दिर पहुँचते है। लगभग आधा किमी चलने के
बाद एक पक्की पगडंडी ऊपर की ओर जाती दिखाई दी। यहाँ एक छोटा सा बोर्ड भी लगा हुआ
है जिस पर लिखा है कि मन्दिर की पैदल दूरी 300 मीटर है। चलो मन्दिर तो आ गया समझो।
पहले गाडी को सुरक्षित स्थान पर लगाते है। बारिश के कारण सडक किनारे सभी जगह बुरा
हाल था। आधा किमी आगे जाकर गाडी मोडने का स्थान मिल सका। यहाँ दो-तीन कारे भी खडी
थी।
एक कार से याद आया कि एक कार आखिरी के कुछ किमी तक कभी हमारे
आगे तो कभी हमारे पीछे चल रही थी। वह कार बारिश शुरु होने से पहले बडे जोश से
हमारे से आगे निकली थी। जब बारिश शुरु हो गयी तो वह कार हमसे पीछे हो गयी थी। जब
हम बीच में रुककर कमरे देखने के चक्कर में गये थे तो यह कार भी आ गयी थी। यह कार
सडक किनारे खडी थी। इसकी सवारियां पैदल ही मन्दिर की ओर बढ रही थी।
पैदल वाला पक्का रास्ता तो पीछे रह गया है ये लोग शार्टकट से
चढ रहे है। ऊपर से बादल वाली धुन्ध हटी तो देखा कि ऊपर एक-दो झोपडी जैसी दिख रही
है इसका अर्थ है कि वो पक्का वाला रास्ता भी यही आयेगा। हम गाडी लाक कर, उस शाटकट
से सीधे चढ गये। ऊपर पहुँचते ही पाराशर झील की पहली झलक दिखाई दी।
पाराशर झील के सडक वाली साइड कुछ आवास बने हुए है मन्दिर भी
सडक वाली साइड बना हुआ है। यहाँ कुछ टैंट भी लगे हुए है। मन्दिर पहुँचने के लिये
टैंट के आगे से होकर निकले तो लगे हाथ टैंट वाले से टैंट के रेट भी पता कर लिया।
टैंट वाले ने 250 रु प्रति सदस्य के हिसाब से किराया बताया। खाने के लिये पता
लगा कि सामने जो झोपडी है ना उसी में यहाँ का भोजनालय है। जिसमें शायद 60-70
रुपये में दाल-चावल मिल जायेंगे।
चलो पहले मन्दिर तक तो पहुँचे। नीचे ढलान पर
सावधानी से उतर कर मन्दिर पहुँचे।
मन्दिर के दर्शन भी हो गये। दर्शन कर बाहर आये। मन्दिर के प्रवेश द्वार के बाहर एक
दुकान नुमा काउंटर दिखाई दिया। उनसे पूछा कि क्या मन्दिर समिति की ओर से भी
यात्रियों के ठहरने का कोई प्रबंध है? मन्दिर वाली दुकान पर मौजूद बन्दे ने बताया
कि दो मिनट रुको। मैं किसी को बुलाता हूँ। रुक गये भाई, बुला ले जिसे बुलाना हो।
कुछ देर में एक अन्य व्यक्ति आया, उसने कहा आपके पास पहचान
पत्र है! हाँ है, सबके देखने है या एक दो के? उसने कहा कोई एक दिखा दो। उसे राकेश
भाई ने अपना आधार कार्ड दे दिया। उसने कहा ठीक है आपको एक रुम मिल जायेगा। आपको
मैट व कम्बल मन्दिर के पीछे से लेकर आने होंगे। मैट व कम्बल सुबह जमा कराने होंगे।
सुबह आपको आपका आधार कार्ड वापिस मिलेगा। ठीक है किराया भी बता दो।
उसने कहा, पहले आप कमरा देखकर आओ। तब किराया बताऊँगा। एक बन्दे
ने हमें कमरा दिखाया। ताजी लकडी का बना हुआ कमरा था। ताजी लकडियों की महक बहुत
भयंकर फैली हुई थी। लकडी की स्मैल इतनी तेज भी हो सकती है मैं नहीं जानता था। कमरे
का फर्श भी लकडी का ही था। मैंने नीचे बैठकर फर्श की दरार में से झांककर देखा कि
नीचे वाले कमरे में भी लकडियाँ भरी पडी है।
अब समझ आया कि इस बन्द कमरे में इतनी तेज गंध क्यों है। नीचे
बैठते ही लकडियों की गंध का प्रभाव भी सामान्य हो गया। सारी गंध छत में अटकी हुई
है इसलिये खडे होने पर ज्यादा महसूस हो रही है। सभी दो-तीन मिनट फर्श पर बैठ गये।
जो बन्दा कमरा दिखाने साथ आया था उसे बोल दिया। ठीक है आप जाओ।
हम अभी सलाह करके आते है। क्या करना है? निर्णय करो भाई, टैंट में रुकना है या
यहाँ लकडी के कमरे में ठहरना है। दो भाई बोले टैंट में रुकेंगे। तीन भाई बोले लकडी
के कमरे में रुकेंगे। मैं स्वयं लकडी के कमरे में रुकने का इच्छुक था। टैंट में
सोने में मुझे कभी राहत महसूस नहीं होती। टैंट व स्लीपिंग बैग मेरे लिये जेल है जो
मजबूरी में काटनी होती है। जब कमरा उपलब्ध है तो नहीं ठहरना टैंट में।
लकडी के कमरे में लकडी की तेज गंध का असर खडे रहने पर ज्यादा
है बैठने पर बहुत कम रह गया है लेटने पर तो और भी कम रह जायेगा। चलो फाइनल हुआ।
अपना-अपना सामान ले आते है। सामान अभी मन्दिर के प्रवेश द्वार पर ही रखा था।
मन्दिर समिति वाले को हाँ कह कर किराये की पर्ची काटने को बोली। उसने कमरे, कम्बल
व मैट मिलाकर 200 रु की पर्ची काटी।
केवल 200 रुपये! पंडित जी 200
रुपये एक बन्दे का या सभी का। उसने कहा
कि सभी का तो आश्चर्य हुआ। यहाँ ऐसी जगह एक बन्दे से 100
रुपये भी लिये जाये तो भी कम ही है।
रहने का प्रबंध हो गया तो खाने-पीने व बाथरुम की जानकारी के लिये बात की गयी।
दुकान वाले पुजारी ने कहा कि खाना तो आपको ऊपर वाली दुकान पर ही खाकर आना पडेगा और
रही बात शौचालय की तो मन्दिर परिसर की स्वच्छता व शुद्धता बनाये रखने के लिये झील
के आसपास कोई शौचालय नहीं बनाया गया है। शौचालय आपको 200
मीटर ऊपर ही मिलेगा। भोजनालय के पास
जाकर पता कर लेना। वही सरकारी शौचालय बना हुआ है। रात को सोने से पहले दोनों काम
करके सोना पडॆगा। मन्दिर परिसर के कारण यहाँ तो मनाही है।
अंधेरा होने लगा था। सबसे पहले अपना सामान कमरे में रखा, उसके
बाद ऊपर भोजन करने गये। दाल-चावल बने थे। ताजे नहीं थे। गर्म भी नहीं थे। पाराशर
के ठन्डे मौसम में गर्मा-गर्म चावल मिलते तो जी-सा-आ जाता। खैर भेट भरना था। अधूरे
मन से ठन्डे चावल खाने पडे।
भाई सुबह तो परांठे बना देगा! जब उसने कहा कि आटा खत्म है, कल
वाली बस से आयेगा। कल सुबह भी चावल ही बनेंगे तो सच्च्ची बताऊँ। मन में आया कि
खाली प्लेट उसके सिर पर दे मारुँ। पहाड की यही समस्या होती है कि यहाँ दुर्गम
स्थानों पर अपनी मन मर्जी की वस्तुएँ पर निर्भर नहीं रह सकते। जो मिल जाये हालात
अनुसार उसका पालन करना चाहिए। नखरे दिखाने है तो पहाडों में आना ही नहीं चाहिए।
खा-पीकर अपने मन्दिर वाले कमरे में लौट आये। थोडी देर गप-शप की
गयी। दो-दो कम्बल लेकर आये थे। सोचा था कि रात को ज्यादा ठन्ड लगेगी। लेकिन कमरे
में बन्द होने पर ठन्ड ने ज्यादा तंग न किया। बढिया गर्मायी आयी। अन्य चारों भाई
उधम मचाकर कब सोये नहीं पता? सुबह उजाला होने को था नीन्द खुली। सभी को उठाया। सभी
भाई फटाफट उठ गये। सुबह काफी ठन्ड थी। मेरी सदाबहार गर्म चददर को सुनील ने ओढ
लिया। मैंने अपनी विंड शीटर पहन ली। सबसे पहले दैनिक कार्य निपटाये।
उसके बाद झील के चारों ओर वाली पहाडी का ऊपर-ऊपर चक्कर लगाया।
पूरा चक्कर एक किमी से ज्यादा लम्बा हो गया। एक घंटा से ज्यादा समय लगा। फोटो भी
लेते रहे। पहाड के ऊपर से झील व झील में तैरता टहला नामक घास का गुच्छा बहुत
सुन्दर दिखाई देता है। इस झील का पानी कभी नहीं सूखता। झील के चारों ओर पहाड है।
बारिश का पानी झील में आकर इकट्ठा होता रहता है।
पुजारी से मन्दिर के बारे में कुछ बातचीत करने पर पता लगा कि
कितनी भी बारिश हो जाये। पानी कभी इतना ज्यादा नहीं हो पाता कि मन्दिर में प्रवेश
कर जाये। ज्यादा पानी पहाड में से रिस कर अपने आप गायब हो जाता है। यह झील
समुन्द्रतल से 2730 मीटर ऊँचाई पर है। पैगौडा शैली में बना मन्दिर बहुमंजिला है।
यहाँ वर्ष में एक बार जबरदस्त मेला सरानाहुली लगता है। इस मेले में कुछ वर्ष पहले
भेड-बकरी की बलि भी दी जाती थी। वो तो भला हो उच्च न्यायालय का, जिसने यह प्रथा
बन्द करवा दी है।
सुबह के 7 बज चुके है चलो नहाने की तैयारी करते
है। नहा-धोकर शिकारी देवी के लिये प्रस्थान भी करना है। सुबह की जोरदार ठन्ड देखते
हुए उम्मीद कम ही थी कि सभी नहा पायेंगे। सबसे पहले संदीप पवाँर को झील के पानी से
बाल्टी लेकर नहाने की शुरुआत करनी पडी। ठन्ड में नहाने की शुरुआत करना ऐसा लगता है
जैसे बलि का बकरा तैयार हो रहा हो! मेरे बाद राकेश, सुनील और अन्य दोनों भाई भी
नहाने को तैयार हो गये।
एक भाई ठन्डे पानी से ज्यादा डर रहा था। उसने अपने लिये आधी
बाल्टी गर्म पानी का जुगाड कर लिया। नहा-धोकर एक बार फिर मन्दिर में दर्शन किये। हाँ
एक बात रह गयी थी शाम को मन्दिर की आरती में भी शामिल हुए थे। मन्दिरों की आरती
में शामिल होना अच्छा अनुभव होता है।
कमरे से अपना सामाना लिया। पुजारी जी को कम्बल, मैट वापिस लौटा
दिया। अपना आधार कार्ड वापिस लिया। सबको प्रणाम कर शिकारी माता के लिये प्रस्थान
कर दिया। (शिकारी देवी माता की भयंकर
यात्रा, जहाँ स्कारपियो भी हिम्मत हार गयी। अगले लेख में)
इस यात्रा के सभी फोटो राकेश भाई के मोबाइल से लिये गये है। |
6 टिप्पणियां:
बहुत खूब लिखा है।
खूबसूरत बेहतरीन यात्रा वृत्तांत
स्लीपिंग बैग और टेंट में हमने एक बार ही रात गुजारी है केदारनाथ में मुझे तो बड़ा मजा आया था वहां। पहाड़ों में तो खाने के लाले भी पड़ जाते है और हम केदारनाथ में भूखे पेट ही सो गए थे। भाई जी आप तो ऐसे ही पुराने घुमक्कड़ हो। घर से बाहर निकलने का मतलब ही होता है सारी सुख-सुविधाओं का त्याग और जहां जैसो रहने और खाने को मिल जाए, उससे ही काम चलाना पड़ता है, जब सब कुछ अपनी मर्जी से ही तो घुमक्कड़ी कैसे। पूरे तरहे से नहीं तो कौआ स्नान भी बनता है। भाई जी आपने बहुत गलत किया वो ये कि एक भाई को आप लोगों ने जबरदस्ती नहा दिया। फोटो देखने से मन ही नहीं भर रहा। सभी फोटो मनोहारी हैं जी, मंदिर में आरती देखने को मिल जाए तो यात्रा की सारी थकान दूर।
पाराशर झील बहुत खूबसूरत दिखती है,, बर्फ के दौरान भी,,, आपको सस्ता ही कमरा मिल गया,, बाकी ठंडे पानी में नहाने का जिगरा आप रखते है यह हम जानते है ☺
बहुत बढ़िया जी।
आपके लेख पढने से ज्यादा खुशी हुई कि आपके लेख पर comment कर सका।
आपके लेख की तारीफ करने का अर्थ तो सूरज को दिया दिखाने के बराबर है, फिर भी मैं कहूंगा कि यह सर्वोत्तम है।
संदीप जी, मैंने कई हिंदी ट्रैवलर ब्लॉगर के ब्लॉग पढ़ें हैं वो सब भी अच्छा लिखते हैं मगर आपका देशी वाला अंदाज में लिखे हुए ब्लॉग की बात ही कुछ और है । आपके ब्लॉग पढ़ कर मेरे अंदर का भी घुमक्कड़ जाग गया है ।
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