बारिश का पानी या बर्फ इन खेतों में भरा हो तो असली सीढी दिखाई दे |
दोस्तों, इस लेख की यात्रा दिनांक 11-05-2014 को की गयी थी। वैसे तो इस लेख को लिखने का कोई मन नहीं
था क्योंकि यह मेरी पहली अधूरी यात्रा थी। अधूरी सूचना के आधार पर ही यह यात्रा करने
की कोशिश की गयी थी। अधूरी सूचना वाली बात को ही इस लेख को लिखने का कारण मान कर,
मैं यह लेख लिख रहा हूँ। आजकल सोशल मीडिया फेसबुक आदि पर कुछ लोग यात्राओं के बारे
में सूचना देते रहते है कि आज इस जगह का मार्ग बन्द हो गया है या खुल गया है। आज
इस धाम का कपाट खुल गया है। ऐसी ही एक सूचना को देख मैं घर से निकल पडा था। इस
यात्रा में मेरे साथ क्या-क्या बीती वही सब कुछ इस लेख में समाहित करने की कोशिश
की गयी है।
ऊखीमठ- मध्यमहेश्वर की अधूरी यात्रा की
कहानी UKHIMATH & Madhyamaheswar an Incomplete journey.
दिल्ली से गुप्तकाशी या ऊखीमठ तक कैसे
पहुँचे?
जैसा आपको ऊपर बताया ही जा चुका है कि फेसबुक पर किसी मान्यवर
ने मध्यमहेश्वर के कपाट खुलने की सूचना तस्वीर के साथ डाली थी। उन मान्यवर का नाम
मैं यहाँ बताना उचित नहीं समझ रहा हूँ। अत: उनका नाम न लिखते हुए, अपनी यात्रा की
कहानी पर आगे बढते है। मैं बहुत दिनों से मध्यमहेश्वर केदार धाम जाने की सोच रहा
था। कपाट खुलने की सूचना मिलते ही मैं अपना बैग सम्भाल, इस यात्रा के लिये निकल
पडा। दिल्ली से उत्तराखण्ड या हिमाचल जाने के लिये सबसे अच्छा साधन सरकारी बस या
अपना वाहन है। दिल्ली के कश्मीरी गेट बस अडडे से रात 8
बजे के आसपास पहाडों की लम्बी दूरी की
बसे चलना शुरु कर देती है।
मैं ठीक 7 बजे बस अडडे पहुँच कर, गुप्तकाशी जाने
वाली बस की प्रतीक्षा करने लगा। थोडी देर में बस अपने ठिकाने पर आकर खडी हो गयी।
यह बस दिल्ली से सीधे गुप्तकाशी तक जाती है। इस बस से केदारनाथ जाने वाले यात्रियों
को सीजन में बहुत लाभ होता है। जिन यात्रियों को इस बस के बारे में पता है। वे
इसमें दिल्ली से ही सवार हो जाते है। जिन्हे इस बस की जानकारी नहीं है। वे दिल्ली
से पहले हरिद्वार या ऋषिकेश जायेंगे। उसके बाद वहाँ से दूसरी बस में सवार होकर
गुप्तकाशी तक जाते है।
इन पहाडी बसों में टिकट मिलना मुश्किल काम नहीं है। बस का
परिचालक (कंडक्टर) बस के बाहर ही टिकट काटता है। परिचालक सबसे पहले दिल्ली से
आखिरी (जहाँ तक बस जायेगी) तक जाने वाली सवारियों की टिकट बनाता है। यदि आखिरी तक
जाने वाली सवारियों से सीट भर जाये तो आधी-अधूरी दूरी तय करने वाले को टिकट देने
से स्पष्ट मना कर दिया जाता है। ऐसा कम ही होता है कि दिल्ली से ही आखिरी तक सभी
सवारी मिल जाये। इसलिये अधिकतर मौकों पर सबसे पहले लम्बी दूरी की सवारियों को पहले
टिकट देने के बाद जो सीट बच जाती है उन्हे बीच में उतरने वाली सवारियों को टिकट दे
दिया जाता है।
गुप्तकाशी की जगह अगस्त्यमुनि तक बस मिल
पायी
आज जिस बस यात्रा की बात हो रही है, उस दिन सिर्फ तीन सवारियाँ
ही गुप्तकाशी की मिल पायी थी। इसलिये परिचालक ने बस को अगस्त्यमुनि तक कर दिया।
अगस्त्यमुनि तक जाने वाली 15-16 सवारियाँ थी। मुझे तो अगस्त्यमुनि से भी
आगे ऊखीमठ तक जाना था। वैसे यह बस यदि गुप्तकाशी तक चली भी जाती तो भी मुझे इस बस
से गुप्तकाशी से कुछ 11-12 किमी पहले कुन्ड उतर जाना था। चूंकि अब
बस सिर्फ अगस्त्यमुनि तक ही जायेगी तो मुझे अगस्त्यमुनि से ही दूसरी बस या जीप में
आगे की यात्रा करनी होगी।
दिल्ली से चलते समय बस की कई सीट खाली रह गयी थी। अभी चार धाम
यात्रा आरम्भ नहीं हुई है। इस कारण बसों में सीट खाली है यदि चार धाम यात्रा शुरु
हो गयी होती तो इस बस में दिल्ली से ही सारी सीट भर गयी होती। मुझे बस में खिडकी
वाली सीट लेने की बडी इच्छा रहती है। यहाँ भी खिडकी वाली सीट मिल गयी थी। बस ठीक 08:30
पर दिल्ली के कश्मीरी गेट बस अडडे से चल
पडी। गाजियाबाद, मेरठ, मुज्जफरनगर, रुडकी, हरिद्वार होते हुए बस सुबह 3
बजे ऋषिकेश बस अड्डे जा पहुँची।
ऋषिकेश पहुँचकर चालक बोला, यहाँ से बस 04:30
मिनट पर आगे प्रस्थान करेगी। तब तक जिस
किसी को फ्रेश आदि कार्य से निपटना हो। वह जरुरी काम कर ले। ऋषिकेश से आगे ऊपर के
पहाडों पर चढने के लिये सुबह 05:00 बजे के बाद ही वाहनों को आगे जाने दिया
जाता है। ऋषिकेश पार करते ही पुलिस चैक पोस्ट पर एक बैरियर है जिस पर रात 8
बजे से सुबह 5
बजे के बीच किसी भी प्रकार के वाहनों को
आगे नहीं जाने दिया जाता है। इसलिये हमारी बस भी ऋषिकेश बस अडडे पर चालकों की
अदला-बदली के लिये आकर खडी हुई है।
धीरे-धीरे एक डेढ घंटा कब बीत गया, पता ही न लगा। ठीक 5
बजे हमारी बस पुलिस चैक पोस्ट पार करने
वाली लाइन में खडी थी। यहाँ एक ध्यान देने वाली बात सामने आयी। पुलिस चैक पोस्ट पर
कुछ गाडियाँ समय से पहले ही आगे जाने दी जा रही थी। उनके पीछे क्या राज था यह तो
पुलिस वाले ही बता सकते थे। मुझे लगा कि हो सकता है पुलिस वाले कुछ दान-दक्षिणा
लेकर उन्हे आगे जाने दे रहे हो या हो सकता है वे आसपास के रहने वाले हो। कारण कोई
भी हो, नियम तो सब पर लागू होना चाहिए।
बैरियर खुलते ही सबसे पहले सरकारी बसों को आगे जाने दिया गया,
उसके बाद ट्रक आदि वाहन को जाने दिया जाता है। ऋषिकेश से चलने के बाद “तीन धारा”
नाम की जगह आती है जहाँ बस थोडी देर के लिये रुकती है, यहाँ यात्रीगण सुबह का
नाश्ता करके आगे बढते है। चढाई पर गाडी में सवार होते समय तली हुई खाने की चीजे
नहीं खानी चाहिए, तली वस्तुओं से उल्टी होने की प्रबल सम्भावना बन जाती है। मुझे
अपने काम की चीज खीरा लगी। मैंने एक खीरा ले लिया। थोडी देर में बस आगे बढ चली।
मैं बस में बैठा-बैठा खीरे का सवाद ले रहा था।
धीरे-धीरे हमारी बस देवप्रयाग (भागीरथी व अलकनन्दा का संगम)
में पहले भागीरथी को पार करती है कुछ आगे जाकर अलकनन्दा को पार करते हुए श्रीनगर
की ओर बढ रही थी। श्रीनगर पहुँचने के बाद हमारी बस कुछ देर विश्राम करती है। यहाँ
भी कुछ यात्री नाश्ते पानी की तलाश में बस से नीचे उतर कर घूम आते है। यहाँ मैंने
चार केले लिये। सुबह के नाश्ये के लिये इतना सामान बहुत है। थोडी देर बाद हमारी बस
अपनी मंजिल की ओर चल पडती है। रुद्रप्रयाग पहुँचते-पहुँचते बीते साल उत्तराखण्ड
में आयी दैवीय विपदा के सबूत दिखाई देने लगते है। रुद्रप्रयाग में अलकनन्दा को पार
करते हुए केदार नाथ वाले मार्ग की ओर बढने के साथ ही बीते वर्ष हुई तबाही के
भीक्षण निशान दिखाई देने लगते है। अगस्त्यमुनि पहुँचते-पहुँचते इतनी तबाही देखने
को मिलती रहती है कि उस काली रात के बारे में सोचकर ही शरीर में झुरझुरी सी उठ खडी
हुई। उस काली रात उत्तराखण्ड में गैर सरकारी आंकडों में करीब 20,000 लोग मारे गये थे।
अगस्त्यमुनि पहुँचते ही इस बस को अलविदा बोलना पडा। बस से उतरे
कुछ ही मिनट हुई थी कि एक जीप उखीमठ की ओर जाती हुई आ गयी। उस जीप में सिर्फ 4
सवारियाँ बैठी थी। जीप वाला और सवारियाँ
लेने के चक्कर में कुछ देर वही खडा रहा। थोडी देर में एक बन्दा आया। उसने जीप चालक
को कुछ सामान ऊखीमठ तक ले जाने की बात की। जीप वाला बोला दो सवारी की जगह में
तुम्हारा सामान आयेगा तो तुम्हे तीन सवारियाँ का किराया देना होगा। सामान वाला मान
गया। मैं पीछे वाली सीट पर ही बैठा हुआ था। उस यात्री के सामान के बाद वहाँ दूसरे
बन्दे के बैठने लायक जगह भी नहीं बची।
हमारी जीप ऊखीमठ की ओर बढने लगी। ऊखीमठ की ओर बढते समय, उस जगह
पहुँचे जहाँ बादल फटने की घटना हुई थी। जीप से बाहर झांकने पर बादल फटने के बाद
हुई भंयकर तबाही देखकर, मैं अन्दर तक हिल गया। बादल फटने में एक साथ कितना पानी
आया होगा कि जिसने एक अच्छे खासे पहाड में एक विशाल नहर खोद डाली थी। उस नहर के
बहाव में जो कुछ भी आता गया वो सब बहकर नदी में समाता चला गया। इस भयंकर लहर में
घरों को तो छोडिये, सडक का भी पता नहीं लग पा रहा था कि सडक कहाँ से कहाँ थी। पूरी
सडक ही गायब हो चुकी थी।
इस तबाही को देखते हुए
मैं ऊखीमठ जा पहुँचा। ऊखीमठ बाजार में इस जीप से उतर कर आगे रांसी तक जाने वाली
जीप में बैठ गया। मेरा ट्रेकिंग वाला बैग देखकर जीप चालक बोला भाई जी, कहाँ तक
जाओगे? मैंने कहा, “मुझे मध्यमहेश्वर जाना है। आपकी जीप कहाँ तक जायेगी?” जीप वाला
बोला, “लेकिन मध्यमहेश्वर के कपाट तो अभी खुले भी नहीं है। अबे तेरी, ये कैसे हुआ?
फेसबुक पर तो किसी ने फोटो के साथ बताया भी था कि कपाट खुल चुके है। अब कैसे होगा?
कपाट नहीं खुले तो क्या हुआ? मेरे पास स्लीपिंग बैग आदि सब सामान मौजूद है। ऊपर
कपाट खुलने की तैयारी तो चल ही रही होगी।
जीप वाला बोला, कुछ साल पहले मध्यमहेश्वर के मन्दिर में, कपाट
बन्द रहने वाले दिनों में चोरी हो गयी थी। उसके बाद कपाट बन्द वाले दिनों में किसी
को ऊपर नहीं जाने दिया जाता है। क्या कोई विशेष परमिशन आदि भी नहीं मिल सकती?
विशेष परमिशन तो SDM office से ही मिल सकती है। ये कहाँ है। SDM
office
उखीमठ में यहाँ से थोडा नीचे ही है। मैं जीप से उतर गया। पैदल चलता हुआ, SDM
office
पहुँच गया। आज रविवार था कार्यालय बन्द मिला। वहाँ एक कर्मचारी मिला उससे बातचीत
की, उसने बताया कि ऐसी कोई परमिशन नहीं दी जाती है। कपाट खुलने पर ही आगे जा सकते
हो, एक मौका है यदि आपके साथ कोई स्थानीय गाँव वासी ऊपर तक जाने को तैयार हो जाये
तो आप ऊपर तक होकर आ सकते हो।
अब जाट खोपडी खराब हो चुकी थी। गाँव वाले को साथ ले जाना भी
किसी महाभारत से कम नहीं था। चोरी के आरोप लगने के डर से गाँव वाले भी कपाट खुलने
से पहले जाने को तैयार हो जाये, ऐसा सम्भव नहीं लग रहा था। कपाट खुलने की जानकारी SDM
office से
मिल चुकी थी। छ: दिन बाद कपाट खुलने वाले है। तीन दिन बाद मध्यमहेश्वर की डोली ऊपर
के लिये प्रस्थान करेगी। चार दिन यहाँ रुककर समय बर्बाद किया जाये या कही और जाया
जाये? एक घंटा सोचने के बाद तय किया कि इस बार मध्यमहेश्वर केदार बाबा ने लगता है।
बुलावा नहीं भेजा है। अंगूर खट्टे है वाली बात हो गयी।
घुमक्कडी किस्मत से मिलती है। चलो वापिस चलने में ही भलाई है।
बुझे मन से पैदल चलता हुआ बाजार से एक किमी नीचे मुख्य सडक पर आ पहुँचा। समय देखा,
दोपहर के एक बज चुके थे। अब हरिद्वार या ऋषिकेश की सीधी बस या जीप मिलनी भी
मुश्किल थी। रात भर जागकर यहाँ तक पहुँचा ही था। यदि अभी वापिस लौट पडता हूँ तो आज
की रात भी जागकर ही काटनी ही पडेगी। लगातार दो रात जागना, अपने बस की बात नहीं थी।
तिराहे के पास एक लाल रंग की धर्मशाला (शायद काली कमली वालों
की रही होगी) में रात रुकने की बात की, उन्होंने कहा अभी तो दोपहर का समय है। हम
शाम को कमरा दे पायेगे। मैं वहाँ से लौट आया। तिराहे से ठीक पहले संतोष
यात्री विश्राम गृह
का एक बोर्ड लगा देखा था। वहाँ गया।
वहाँ एकमात्र कर्मचारी मौजूद था। उससे रात ठहरने की बात कर अपना सामान वहाँ रख
दिया। किराया शायद 200 रु लिया था। दोपहर का समय था भूख लगी
थी। पहाड में आकर मैगी या पराँठे से बढकर कोई जगह नहीं होती। मैगी बनवा खायी गयी।
रात का खाना उस कर्मचारी ने अपने साथ-साथ मेरे लिये भी बना दिया था।
संतोष यात्री विश्राम गृह वाले बन्दे ने मुझे बता दिया था कि
यहाँ उखीमठ/रांसी से एक बस सुबह 05:30 बजे सीधे ऋषिकेश के लिये जाती है जो
आपको तीन बजे तक ऋषिकेश छोड देगी। अगली सुबह मैं उसी बस में सवार होकर ऋषिकेश
पहुँचा। वहाँ से दिल्ली की बस में बैठ रात 10 बजे तक दिल्ली पहुँच चुका था। दोस्तों,
इस तरह मेरी यह अधूरी यात्रा एक सबक सिखाते हुए समाप्त हो गयी। आगे से पक्की
जानकारी लिये बिना किसी भी यात्रा पर नहीं जाऊँगा। अधूरी जानकारी से समय व धन
दोनों तो खराब होते ही है। सबसे ज्यादा मानसिक परेशानी होती है जो आज के समय सबसे
महत्वपूर्ण है। जो बन्दा आज की भागदौड भरी जिन्दगी में दिमाग से चुस्त है वो कही
मार नहीं खा सकता है। (समाप्त) (The end)
पूरे घर में मैं अकेला यात्री था |
यही रुका था |
गंजे पेड, उगती पत्तियाँ |
लाल वाली धर्मशाला |
खाली कमरा |
सोनी कैमरे के 50x जूम का कमाल, कई किमी के फासले से लिया गया चित्र |
केदार नाथ की डोली सामने वाले गांव से होकर ऊखीमठ आती है |
31 टिप्पणियां:
यात्रा अधूरी हो तो दिमाग़ ख़राब हो जाता है , और थोड़ी निराशा भी .. लेकिन एक और पहलू मदमहेश्वर जी का आज पता लगा .. वैसे गरबगृह में जाकर पूजन नहीं करने देते वहाँ के पंडित ... इसीलिए मन और निराश होता है
Dont worry कोई बात नहीं अगली बार सही !!
गुरुदेव !!
bhai ji aapki likhne ki sally se main bahut parbhavit hu ...... sach me pad ke lag raha tha ki aapki jagah main hi yatra kar yaha hu .... aaspass ki sab baato ki samelit karne se lekh badiya ho jata hai ye baat samjh me aayi ..... vese yatrayo ko leke aapka tym thora kharab chal raha hai kafi paresaniya aarahi hai yatra puri karne me ..... sayad bhole baba jayda naraz hai aapse ..... chalo mere sath iss baar aadi kaileash hi baba se mil aate hai .... aamane samne beth ke baat kar lenge ... batayo baba kya samasya hai
सही है घुम्मकड़ी किस्मत से मिलती है कभी कभी अधूरी जानकारी समय व धन दोनों के लिए दुख दायीं होता है आपके द्वारा लिखी हुई यात्रा विवरण से सीख मिलती है बिना पक्की जानकारी के यात्रा नही करनी इस बात की गांठ बांध ली
यात्रा विवरण बहुत ही बढ़िया सोनी उत्पाद की बात ही निराली है
शानदार संदीप भाई,समय कीमती है ....👌
शानदार संदीप भाई,समय कीमती है ....👌
आपने सबकों सतर्क किया ऐसी अधूरी जानकारी देने वालों से,ये सबसे जरूरी बात हैं। दुःख होता हैं जब यात्रायें ऐसे अधूरी रह जाती हैं। आशा है जल्द ही आपके साथ किसी शानदार यात्रा का मौका मिलेगा
इसबार अधूरी रह गई अगली बार पूरी हो जायेगी यात्रे
गजब हो गुरु जी शानदार लिखा है पहले से ही पता था कि अधूरी यात्रा व्रतांत पढ़ रहे है फिर भी मजा आया
👍
आपकी मध्यमेश्वर की पूरी वाली यात्रा भी पढ़ी है ( जिसमें आप एक दिन में ही रांसी गाँव से चलकर मधमहेश्वर दर्शन कर के वापस हो आते है ) अब आपकी मधमहेश्वर की अधूरी यात्रा भी पढ़ ली ऐसी धार्मिक यात्रा पर कपाट खुलने पर ही जाना ठीक रहता है
सुन्द्र वर्णन। भाई जी यात्राएं कब अधूरी होती है। कम से कम घुम्मक्कडों के लिए तो कुछ अधूरा नही होता। ऐसी यात्राओं से भी बहुत सीखने को मिलता है। ऐसे में हम तो लोकल लोगो से काफी जानकारी इकठा कर लेते है। ताकि आगे की यात्रायों में कुछ नया घूमने को मिल जाये। आपका बलकार सिंह
ये अधूरी कहाँ शिक्षाप्रद यात्रा कही जा सकती है क्योंके अंध विश्वास आपने जीवन एक सबक हासिल किया जो है ।
भाई जी रूद्रनाथ जी मे भी ऐसा ही है।
जय भोलेनाथ
ये अधूरी यात्रा भी नही रही😀😀😀
हमारे यहां इसे बस मे चढ्ढू खाना बोलते हैं😂😂😂
इस बार 18 म्ई को कपाट खुल रहे हैं।
पुजारियों के एकाधिकार का मामला जो ठहरा
Bhai ji zindagi har baar kuch naya hi sikhati hai ...kuch nya anubhav milta hai ...jo agli baar hume yaad rehta hai ...hamare saath bhi aisa hi hua ..ab jab hum rudrnath gye to hume pta nhi thi ki kal se bhagwan ke kapat band ho jaayene...jis date par hum gye usi din darshan the bus baba rudrnath ke ...
Bhai ji har yatra kuch sikhati hai ...nya anubhav milta hai
बहुत अच्छा व सुलझा हुआ लेखन कोई बनावटी तत्व इस लेखन में ना होने के कारण अधूरी यात्रा भी एक जीवंत यात्रा की तरह पढ़ने में रोचक थ्रिलर और आनंद दायक व खीरे का मज़ा शानदार लेखनी
जानदार घुमक्कड का एक और शानदार यात्रा विवरण। कोई नी संदीप जी, अगली बार सही।
शानदार लेख .....
संदीप जी आपने जो रुकने के लिए होटल आदि का जिक्र किया है|कैसे पंहुचा जाए इसका विस्तार से वर्णन काफी मददगार होता है आगे जाने वाले घुमाक्कर के लिए|हम सभी घुम्मकड़ को चाहिए इन सभी का जिक्र अपने यात्रा संसम्रण मे अवश्य करे |
koi nhi sandeep bhai aapne poore lekh likha h sirf tracking ko chod kr, ish bar 7 k sath chalengee.....
Shaandar lekh Sandeep Bhai
भले ही आपकी यात्रा पूर्ण नहीं हुई लेकिन बहुत लोगों को इससे सबक़ मिलेगा की वो बिना जाँच पड़ताल के यात्रा ना करें।
are sandipbhia .....aap ke is lekh ne to muje chinta me dal diya hai... darsal muje 16 may tak LEH pahuchna hai...jis liye 8/9 may ko ghr se nikalna hai..par yadi vaha jake pata chala ki rasta bandh hai...tab to aapki tarah meri bhi khopdi ghum jayegi...
यह जिन्दगी ना मिले दोबारा । क्या सोचते हो जाटदेवता। मुसाफिर का कोई सफ़र अधूरा नही होता ऐ ऐसा सफ़र रहा सभी को खास अनुभब दिए ।
सुन्दर वृतांत और चित्र
संदीप भाई राम राम। घर से आप एक विश्वास व एक नई उंमग लेकर चले थे। लेकिन मंजिल से पहले ही पता चला की गलत समय पर व गलत जानकारी ले कर आये है। तब उस समय बडा खराब महसुस हुआ होगा। लेकिन आपने बहुत दिन बाद लिखा यह हमारे लिए बहुत अच्छा हुआ आपके लेख पढना अच्छा लगता है आशा है की जल्द ही और लेख भी पढने को मिलेंगे।
The Himalayas are home to the hallowed shrines Kedarnath and Badrinath.
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लेखन शैली लाजवाब है आपकी
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