बुधवार, 11 सितंबर 2013

Konark Sun Temple (Sexy Temple) कोणार्क का सूर्य मन्दिर या सेक्स मन्दिर

UJJAIN-JABALPUR-AMARKANTAK-PURI-CHILKA-27         SANDEEP PANWAR 
भगवान सूर्य को समर्पित कोणार्क का सूर्य मन्दिर देखने की प्रबल इच्छा बीते कई सालों से थी लेकिन भारत में इतने ज्यादा दर्शनीय स्थल है कि लगता है कि इस जीवन में सभी देखने मुमकिन नहीं हो पायेंगे? पुरी से कोणार्क के लिये सीधी बस हर आधे घन्टे पर मिलती रहती है। यदि किसी को भुवनेश्वर से कोणार्क का सूर्य मन्दिर देखने जाना हो तो उसे पुरी जाने की आवश्यकता ही नहीं है क्योंकि कोणार्क पुरी से लगभग 35 किमी हट कर बना हुआ है जब तक आप पुरी जाओगे तब तक कोणार्क पहुँच जाओगे, इस तरह पुरी से कोणार्क जाने वाला समय बच जाता है। मुझे चिल्का देखते हुए पुरी भी जाना था इसलिये मैं पहले चिल्का झील देखने गया उसके बाद पुरी लौटा था पुरी से बस पकड़ी और कोणार्क जा पहुँचा था। बसे कोणार्क मन्दिर से लगभग आधा किमी दूरी से होकर निकलती है। कोणार्क का बस स्टैन्ड़ तो मन्दिर से लगभग एक किमी दूरी पर बना हुआ है। जब मैं कोणार्क पहुँचा तो शाम के 5 बजने वाले थे। मन्दिर बन्द होने का समय शाम सूर्यास्त का था। लेकिन अंधेरा होने से कुछ दिखायी नहीं देने वाला था।


जिस चौराहे पर बस ने मुझे छोड़ा था वहाँ से सीधे हाथ वाला मार्ग बस अड़ड़े जाता है उल्टॆ हाथ वाला मन्दिर ले जाता है जबकि इस मार्ग पर सामान बेचने वालों ने कब्जा किया हुआ है। सीधा वाला मार्ग भुवनेश्वर के लिये चला जाता है। चूंकि मुझे रात्रि विश्राम के लिये कोणार्क मॆं रुकना ही था इसलिये मुझे मन्दिर जाने की कोई जल्दी भी नहीं थी। फ़िर भी सोचा कि चलो एक बार मन्दिर की बाहरी झलक तो देख ही आता हूँ। जिस सड़क पर मन्दिर जाने का मार्ग है यह सड़क बहुत चौड़ाई वाली है यहाँ आकर लगता है कि जैसे किसी VIP इलाके में आ गये हो। मन्दिर में प्रवेश करने वाले टिकट लेने वाली लाईन की जगह पहुँचा तो वहाँ टिकट देने वाले बन्दे ने बताया कि सिर्फ़ 5 मिनट बचे है फ़टाफ़ट चले जाओ। मुझे कौन सा जल्दी थी? मैंने टिकट लेकर वापसी का मार्ग पकड़ लिया। मन्दिर की पहली झलक तो देख ही ली थी।

अब रात्रि विश्राम हेतू एक कमरा देखना था। पहले सरकारी आवास तलाश किये लेकिन उनके दाम इतने मंहगे थे कि मेरी समझ से बाहर थे। सबसे पहले मन्दिर से कुछ दूर जाना था क्योंकि दर्शनीय स्थलों के जितना नजदीक विश्राम स्थल होंगे उतने महंगे मिलेंगे। अत: मन्दिर से कोई आधा किमी दूरी पर जाते ही मुझे दो तीन गेस्ट हाऊस दिखाये, इनमें डोरमेट्री तो मिल नहीं सकी, जबकि कमरे की कमी नहीं थी। जबकि मैं अकेला था जिससे मेरा काम केवल चारपाई से ही चल सकता था। दो जगह कमरे देखे लेकिन एक कमरा 300 रुपये का बोलता तो दूसरा किसी तरह 250 में मान गया। मैंने थोड़ी सी कोशिश भी की इससे भी कम पर मान जाये लेकिन वो बोला पहले आप एक आध किमी तक जाकर पता कर आओ अगर कोई इससे कम में कमरा दे देगा तो वही ठहर जाना। मैंने सोचा चलों, पहले कुछ दूर चल अन्य कमरे देख ही लिये जाये। लेकिन मुझे एक किमी तक भी इससे कम में कमरा नहीं मिल सका।

मैंने वापिस आकर वही 250 रुपये वाला कमरा रात्रि विश्राम के लिये ठहरा लिया। इस कमरे की मन्दिर से दूरी मुश्किल से 500-600 मीटर ही रही होगी। आज बिना स्नान किये लगातार दूसरा दिन बीत चुका था। वैसे तो मैं पेन्ड्रा रोड़ से सुबह नहाकर चला था लेकिन ट्रेन में व आज पूरा दिन चिल्का व कोणार्क की यात्रा करने में ही बीत गया था। कमरे में सामान पटक कर सबसे पहले स्नान करने के लिये घुस गया। कमरे की हालत कुल मिलाकर ठीक थी। अटैच चकाचक बाथरुम था इसलिये बाहर फ़टकने की जरुरत नहीं थी। नहाने के लिये साबुन भी कमरे वाले की दुकान पर ही मिल गया था। 5-5 वाले दो साबुन ले लिये थे। दो दिन से ना नहा पाने की कसर दो बार नहाकर निकाली। स्नान करने के बाद कमरे को ताला लगाकर बाहर आया।

कमरे वाले से भोजन के बारे में पता किया कि कौन सा भोजनालय बढिया खाना बनाता है? आसपास कई सारे भोजनालय थे। दुकान वाले ने बताया कि मन्दिर वाली दिशा में दूसरे वाला अच्छा भोजनालय है। मैंने रात्रि का भोजन किया भोजन एकदम स्वादिष्ट बना था। शायद 60-70 की थाली थी। जमकर खाया। इसके बाद कमरे में आकर मोबाइल चार्जिंग पर लगाया। रात में नीन्द कब आयी पता नहीं लगा। सुबह उठने से पहले या आधी रात किसी समय एक गड़बड़ हो गयी। जिस कमरे में मैं सोया था मच्छर से बचने के लिये प्रत्येक कमरे में मच्छरदानी लगायी गयी थी। लेकिन मच्छरदानी लगे होने के चक्कर में पंखे की हवा ठीक से नहीं लग पा रही थी। मैंने सोचा कि मच्छरदानी हटा दू, इसलिये खड़ा होकर मच्छरदानी हटाने लगा तो जिस ड़बल पलंग पर मैं खड़ा हुआ उस पलंग की पलाई इतनी हल्की थी कि मेरा भार सहन नहीं कर सकी। पलंग का आधा हिस्सा चर्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र धड़ाम-बड़ाम जैसी आवाज करता हुआ कमरे के फ़र्श से जा मिला।

अब मेरी हवा खराब कि बेटे कमरे वाला प्लाई के पैसे भी माँगेंगा। यह तो वो बात हो गयी जितना खर्चा विवाह में नहीं हुआ उससे ज्यादा तलाक में हो जायेगा। इतना कमरे का किराया नहीं है जितना पलाई का नुक्सान भरना पड़ेगा। मैंने सबसे पहले कमरे की लाईट बन्द की। कुछ देर चुपचाप बैठकर यह सुनने की कोशिश की थी कि किसी ने मेरे कमरे में पलंग टूटने की आवाज सुनी भी है कि नहीं, लेकिन जब 5-7 मिनट तक कोई  चूँ-चपट, सू-सा सुनाई नहीं दी तो मुझे बड़ी राहत मिली कि सब दूसरी दुनिया में पहुँचे हुए है। अच्छा हुआ कोई जागा हुआ नहीं था। इसके बाद मैं चुपचाप लेकिन सावधानी से मच्छरदानी हटाकर पंखे की हवा में सो गया। सुबह वैसे भी जल्दी उठने की आदत है अत: सुबह जल्दी उठकर कोणार्क वाले मन्दिर को देखने चल दिया। कमरे को ताला लगा कर गया ताकि मेरे बाद साफ़-सफ़ाई वाली/वाला टूटे पलंग को देखकर हंगामा ना मचा दे।

सबसे पहले मन्दिर दर्शन करने वाला मैं ही था। जब मैंने सुरक्षा कर्मी को टिकट दिखाया तो उन्होंने कहा आपको इतनी सुबह टिकट किसने दिया? मैंने कल शाम को ही ले लिया था। क्या मुझे जाने नहीं दोंगे, अरे नहीं आपके पास टिकट है हम कौन होते है? आपको रोकने वाले! चलिये मन्दिर के बारे में भी कुछ बाते हो जाये। सन 1238-64 के मध्य इस मन्दिर का निर्माण गंग वंश के राजा नरसिंह देव ने अपने विजय स्मारक के रुप में कराया था। इसे अंग्रेजी में ब्लैक पैगोड़ा भी कहा जाता है। यूनेस्को की विश्व धरोहर सूची में इसका स्थान है। कोणार्क के अलावा अल्मोड़ा के कटारमल में भी सूर्य मन्दिर है। उसका नाम कटारमल सूर्य मन्दिर है। वह मन्दिर कुमाऊँ का सबसे ऊँचा मन्दिर भी है। इस मन्दिर की बनावट ऐसी है कि दूर से देखने से लगता है जैसे सूर्य देव अपने 7 घोड़े पर सवार होकर जा रहे है।

अबुल फ़जल के अनुसार इस मन्दिर के निर्माण कराने में राज्य की बारह वर्षों की कमाई लगी थी। इस मन्दिर के आसपास पर्वत दूर तक भी नहीं है फ़िर यहाँ तक इतने बड़े पत्थर उस काल में कैसे लाये गये होंगे? सूर्य देव को स्थानीय लोगं बिरंचि-नारायण कहते थे/है। कोणार्क शब्द कोण व अर्क के मिलने से बना है। कोण आप जानते ही हो कि किनारे को कहते है, अर्क सूर्य को कहते है। मन्दिर की बनावट ऐसी है कि 12 जोड़ी चक्र, 7 घोड़े का दिव्य संगम वाला रथ इसमें दिखायी देता है। सूर्य मन्दिर अपनी कामुक/सैक्सी मुद्राओं वाली मूर्तियों के लिये भी प्रसिद्ध है। इस मन्दिर में रथ के पहिये का चित्र मैंने सबसे पहले वाला लगाया हुआ है। मन्दिर में तीन मण्ड़प थे अब सिर्फ़ एक ही बचा हुआ है। अंग्रेजों ने बचे हुए मन्ड़प में रेत व पत्थर भरवा कर बन्द करवा दिया था ताकि यह तीसरा व एकमात्र मण्ड़प भी गिर ना जाये। इस मन्दिर में सूर्य की तीन अवस्था बाल्यावस्था, युवावस्था, प्रौढ़ावस्था की मूर्तियाँ थी।

बताते है कि इस मन्दिर के शिखर पर चुम्बक वाला एक पत्थर लगा हुआ था। उस शिखर वाले चुम्बकीय पत्थर की शक्ति के कारण वहाँ से गुजरने वाले पानी के जहाज में लगे दिशा सूचक यंत्र सही दिशा नहीं बताते थे। इसलिये अपने जहाजों को बचाने के लिये उन्होंने मन्दिर का शिखर वाला चुम्बकीय पत्थर हटवा दिया। उस पत्थर के हटते ही मन्दिर की दीवारे भी ढ़ह गयी। मुस्लिम शासन के नियंत्रण में आने तक यहाँ पूजा-पाठ होता था लेकिन उसके बाद बन्द हो गया। चलिये मन्दिर के बारे में बहुत जानकारी मिल चुकी। अब जरा मन्दिर के दर्शन भी कर लीजिए। टिकट की जाँच करा कर अन्दर प्रवेश किया। अभी उजाला पूरी तरह नहीं हो पाया था जिससे मोबाइल में फ़ोटो अच्छे नहीं आ पा रहे थे। कुछ देर तक वही बैठा रहा। जब रोशनी फ़ोटो लेने लायक हुई तो मैंने अपना फ़ोटो लेने का कार्य आरम्भ किया।

इस मन्दिर में ढ़ेर सारी सेक्सी sexy statue मूर्तियाँ बनाई हुई है इनके बारे में इतना ही पता लग पाया था कि बौद्ध धर्म के आकर्षण में जनता ने सेक्स की ओर ध्यान देना कम कर दिया था जिससे जनसंख्या वृद्धि दर घटकर बहुत कम रह गयी थी। इसका इलाज यही था भक्ति में भटके हुए लोगों को फ़िर से सेक्स के जाल में उलझाने के लिये कामुक चित्र बनवाये जाये इसके लिये सूर्य मन्दिर को चुना गया। इस प्रकार की कामुक मूर्तियाँ मैंने खजुराहो के मन्दिर में भी देखी थी। खजुराहों के मन्दिर की स्थित सूर्य मन्दिर से तुलना करे तो हजार गुणा बेहतर है। जल्द ही खजुराहों के मन्दिर की कामुक मूर्तियाँ भी आपको दिखायी जायेगी। दुनिया में हमेशा से यही नियम सब पर भारी है यह कहावत ही सब कुछ साबित करने के लिये काफ़ी है कि "जिसकी लाठी उसकी भैंस" जिस समूह में ज्यादा ताकत होगी वही दूसरे पर राज करता आया है। आज भारत की जो बुरी हालत है उसका कारण भारत के लोगों का सेक्स के प्रति रुझान कम होना मुख्य है। आज के कथित स्थानीय लोग नोट व जायदाद बनाने में लगे हुए है, आने वाले कुछ सालों में जब दूसरा समुदाय तुमसे तुम्हारा जीवन सहित सब कुछ छीन लेगा तब क्या घन्टा बजाओगे? भारत में राजा अशोक के बौद्ध धर्म अपनाने से पहले किसी विदेशी की हिम्मत भारत पर हमला करने की नहीं थी। लेकिन उसके बाद हजार साल का इतिहास उठाकर देख लो।

कोणार्क के सूर्य मन्दिर के हर कोण से लिये गये फ़ोटो मैंने नीचे लगाये है। मन्दिर का इससे ज्यादा विवरण देना बेकार है बाकि कार्य नीचे के चित्र स्वयं बता ही रहे है। पहले आप नीचे के सभी चित्र देख ड़ालिये अगर कुछ कमी लगे तो बताये। मैं इस मन्दिर में कम से कम दो घन्टे तक रुका रहा। उसके बाद मैंने मन्दिर से बाहर आते ही समुन्द्र किनारे चलने का फ़ैसला किया। मैं सोच रहा था कि समुन्द्र किनारा नजदीक ही होगा लेकिन जब एक किमी जाने के बाद भी समुन्द्र दिखायी नहीं दिया तो मैंने एक बन्दे से पूछा कि समुन्द्र कहाँ से पास पड़ेगा? उसके बताये मार्ग से समुन्द्र जा पहुँचा। वहाँ कुछ देर बैठकर अपनी तसल्ली करने के बाद मैंने वहाँ से कमरे का रुख किया। कमरे का पलंग टूटा हुआ था अपना सामान पैक करने के बाद कमरे का ताला लगाया और मकान मालिक को दे आया।

अब कोणार्क में मेरे लिये कोई काम-धाम नहीं था इसलिये वहाँ से पुरी की ओर प्रस्थान कर दिया। सबसे पहले कोणार्क के बस अड़्ड़े पहुँचा जो कि मन्दिर से एक किमी दूरी पर है। पहले तो चौराहे से ही बस पकड़ने की कोशिश की लेकिन सभी बसे भरी हुई आ रही थी जिस कारण बस अड़ड़े से भी कई बसे छोड़कर एक बस मिली। लेकिन सीट उस बस में नहीं मिल सकी, गनीमत यह थी कि पुरी यहाँ से मात्र 35 किमी दूरी पर है जिस कारण मैंने सोचा था कि खड़े होकर ही पुरी तक की यात्रा कर लेते है। पुरी से आते समय भी इसी मार्ग से आया था अत: बताने लायक भी कुछ खास नहीं है। अब इस यात्रा की अंतिम मंजिल जगन्नाथ मन्दिर पुरी बाकि बचा है उसे दिखाकर दिल्ली प्रस्थान कर दिया जायेगा।

भुवनेश्वर-पुरी-चिल्का झील-कोणार्क की यात्रा के सभी लिंक नीचे दिये गये है।


मुख्य भवन


सुबह एकदम खाली मन्दिर मार्ग









चोर दवाजा, यहाँ से बिना टिकट वाले कूद कर आते है?














सूर्योदय







मन्दिर के चारों ओर हरियाली भरा बगीचा








मुख्य दरवाजा, जो मलबे से बन्द है।



सेक्सी मन्दिर के आगे सेक्सी जाट

9 टिप्‍पणियां:

Ritesh Gupta ने कहा…

बहुत बढ़िया यात्रा विवरण संदीप भाई..... आपकी इस यात्रा को पढ़कर और चित्र देखकर हमे भी अपनी कोणार्क की यात्रा याद हो आई.....|

Sachin tyagi ने कहा…

सन्दीप जी सूर्य मन्दिर के पोटो बडिया हे. and nice story

प्रवीण गुप्ता - PRAVEEN GUPTA ने कहा…

राम राम जी, बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति, बहुत खुबसूरत फोटो. ..धन्यवाद, वन्देमातरम...

Ajay Kumar ने कहा…

सँदीप भाई जी मजा आ गया, यात्रा का वर्णन पढने कम पलँग टूटने मे ज्यादा...... . . . . . . . .
चर्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र
धड़ाम-बड़ाम . . . . . . . . . . . जब से पढा है हसी रुक ही नही रही है।

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

वैज्ञानिक व बेजोड़ स्थापत्यकला।

अखिलेश आदर्शी ने कहा…

hame to aapne ghar baithe hi konark mandir ghooma diya thanks........................

Hari Shanker Rarhi ने कहा…

Sandep ji,
very nice description and photos. I am also planning to visit Konark and adjoining places. I will talk to you when my plans are ready to move.

मुकेश पाण्डेय चन्दन ने कहा…

जय हो

Satya ने कहा…

Maza aa gaya jee.

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