पिछले भाग में आपने
पढ़ा कि हम दोनों गोदावरी नदी का उदगम बिन्दु स्थल देखने के उपराँत पैदल टहलते हुए त्रयम्बक
ज्योतिर्लिंग की ओर चले आये थे। जब हमने अपनी चप्पल जूता घर में जमा करा कर मन्दिर
के प्रांगण में प्रवेश किया तो सबसे पहला झटका हमें वहाँ की भीड़ देखकर लगा। इसके बाद
अगला झटका हमें दरवाजे पर खड़े मन्दिर के सेवकों की निष्पक्ष भावना देखकर हुआ। जब हमने
वहाँ पर मन्दिर दर्शन के लिये भक्तों की लम्बी घुमावदार लाइन देखी और हम भौचक्के से
वहाँ खड़े के खड़े रह गये तो हमें लम्बी लाईन के कारण अचम्भित खड़ा देख मन्दिर के सेवक
बोले, “क्या आप बिना लाईन के जल्दी दर्शन करना चाहे हैं? हमने पूछा आप इस सेवा के बदले
क्या फ़ीस लेते हो। तो उसने कहा था कि आपको 100 रुपये में हम बिना
लाईन के मन्दिर दर्शन करा लायेंगे। हमने उनकी बात नकारते हुए उस लम्बी लाईन में लगना
स्वीकार कर लाईन में लग गये।
लाईन में हमारे जैसे
सैंकड़ों लोग लगे हुए थे। इसलिये परेशानी वाली बात नहीं थी, मैं तो अपने जीवन की सबसे
लम्बी लाईन में सिर्फ़ एक जगह लगा हूँ, जी हाँ जिसने मेरी इस बात से अंदाजा लगाने का
सोचा होगा कि मैं त्रिरुपति बालाजी आंध्रप्रदेश में सन 2009 के दिसम्बर माह में सरकारी खर्चे की यात्रा के दौरान
एक दिन वहाँ के दर्शन करने के लिये भी लगाया था। उस यात्रा में मुझे अच्छी तरह याद
है कि पहले तो हमें एक बड़े से जेलनुमा हॉल में बन्द कर दिया गया था। जब हमारा जेल या
हॉल जो अच्छा लगे बोल लेना। हॉल भरने के बाद हमारी लाईन चीटियों की तरह रेंगती सी हुई
आगे बढ़ती जाती थी। हमें लगभग 5-6 घन्टे में जाकर उस
मन्दिर में मुख्य मूर्ति के दर्शन हुए थे। अरे-अरे एक बात यहाँ स्पष्ट कर देना सही
रहेगा कि वहाँ Tirupati Balaji में लगभग 25-30 फ़ुट से ही बालाजी के दर्शन किये जाते है। उस दिन
के बाद मेरे मन ने कहा जाट भाई सिर्फ़ मन्दिर के दर्शन कर लिया करो, मूर्ति पर तो ये
ठग भिखारी सॉरी पुजारी कब्जा जमा कर बैठे हुए है। अरे हाँ मैं आपको नाशिक से कहाँ त्रिरुपति
लेकर चला गया? चलिये फ़िर से अपनी 12 ज्योतिर्लिंग वाली
इस यात्रा पर चलते है।
रात में मन्दिर। |
लाईन की बात चल रही थी तो चलो फ़िर से लाइन में लग जाते है। हमें यहाँ पाइप की बनायी हुई टेड़ी-मेड़ी गलियाँ नुमा मार्ग के भँवर में काफ़ी देर तक घूमाया गया। इस भँवर में ऐसे फ़ँसे कि वहाँ से बाहर निकलने का मार्ग भी नहीं मिल सका। हम भी महाभारत के अभिमन्यु की तरह इस मन्दिर के चक्रव्यूह नुमा पाईप के जाल में उलझ कर रह गये थे बीच में कई बार मन हुआ कि जाट देवता भाग ले यहाँ से, लेकिन मेरे साथ एक भोले का सच्चा भक्त था जिसके कारण मैं चाहकर भी वहाँ से भाग नहीं सकता था। इस पाईप के भँवर मार्ग में हर दस कदम बाद एक बोर्ड़ हमारे सिर के ऊपर दिखायी देता जाता था। इन बोर्ड़ में किसी ना किसी की कहानी बतायी जाती थी जिससे उस मार्ग को पार करने में उस बोर्ड़ ने हमारे कष्ट हरण करने में काफ़ी मदद पहुँचायी थी। लगभग 30 मीटर लम्बाई का एक चक्कर इन पाईप का रहा होगा। ऐसे कुल बीस चक्कर हमें वहाँ उस भूल-भूलैया में काटने पड़े। इसी उल्टी-पुल्टे मार्ग में दो जगह सामान बेचने वाले लोग भी खड़े हुए थे। हमने उन सामान बेचने वालों को वहाँ देखकर अजीब महसूस किया था। जब यह पाईप वाला मार्ग समाप्त हुआ तो दिल को बड़ी ठन्ड़क मिली थी।
बस अब हम अन्दर जाने वाले है |
पाइप वाला मार्ग समाप्त होने के बाद हमें एक बार फ़िर एक बरामदे नुमा लाईन में लगना पड़ा। यहाँ भी लाईन उसी टुलक-टुलक वाली सटाईल में (स्टाइल में नहीं) ही चल रही थी। धीरे-धीरे हम भी आगे खिसकते जा रहे थे। आगे जाने पर हमें वहाँ उस मन्दिर के नन्दी के दर्शन हुए। यहाँ पर अंधे भक्त लोग दे दना पैसे लुटा रहे थे। मैं अंधा नहीं हूँ अत: मैं इस प्रकार फ़ालतू में रुपये बर्बाद नहीं किया करता। यहाँ विशाल ने नन्दी का फ़ोटो लेना चाहा तो एक लड़का जो उस समय उस नन्दी पर मिलने वाली भीख एकत्र करने में लगा हुआ था। उसने विशाल की ओर जोर से दहाड़ लगायी कि यहाँ मन्दिर में फ़ोटो लेना मना है। अगर उसे कुछ भीख दे दी जाती तो शायद उसकी दहाड़ बकरी की मिमियाट में बदल सकती थी। लेकिन हम उसकी बात अनसुनी कर वहाँ से आगे की ओर चलते रहे। आगे जाकर हमने मुख्य मन्दिर में प्रवेश किया।
लगना है लाईन में। |
जब मुख्य मन्दिर के दरवाजे में घुसने के लिये पहुँचे तो वहाँ जाकर काफ़ी देर खड़ा रहना पड़ा था। उस समय मन्दिर में या तो कोई वी आई पी VIP आया था या फ़िर आरती आदि हो रही थी। खैर कुछ देर बाद वहाँ से आगे चलने लगे तो दरवाजे के पास जाकर लोगों की धक्का मुक्की से बुरी हालत होती दिखायी दी। हम यहाँ भी लाईन में दीवार के साथ लगकर चलते रहे। आगे जाकर पाइप के सहारे मुख्य मन्दिर में पहुँचा दिया गया। विशाल साथ ही चल रहा था इसलिये अब क्या आयेगा? किधर जायेंगे? आदि बाते मुझे बताता जा रहा था। जब मुख्य शिवलिंग के सामने पहुँचे तो मन में भोलेनाथ को याद किया और साथ ही कह दिया कि भोलेनाथ अगर तुझमें हिम्मत है तो दुबारा यहाँ बुलाकर दिखा। मैं हर मन्दिर में जाकर यही बात उस मन्दिर के भगवान से दोहराता हूँ। बताया जाता है यहाँ के शिवलिंग में ब्रहमा विष्णु महेश तीनों की उपस्थित है।
जब हमने शिवलिंगे के दर्शन कर लिये तो वहाँ पर एक मोटे पेट वाला 100 किलो का भिखारी ( पुजारी ) बैठा हुआ दिखायी दे रहा था। विशाल के कहा संदीप भाई आप इसके पास जाकर बैठो मैंने कहा विशाल भाई इसकी शक्ल देखकर लग रहा है कि इसके पास बैठने से इसकी नीचता बोले तो कमीनापन पता लग जायेगा। चूंकि मुझे यह अच्छी तरह पता है कि इस प्रकार के पुजारी नुमा भिखारी मन्दिर में आने वाले भक्तों से रुपये ऐठने के चक्कर में लगे रहते है। जब मैं उसके पास बैठा तो उसे लगा कि वाह एक मोटा शिकार अपने आप मेरे पास आकर बैठ गया है। विशाल मेरे बराबर में बैठा था। उसने पहले तो मुझे आजमा चाहा कि मैं उसे कुछ भीख दूँगा या नहीं लेकिन जब उसकी पूरी तसल्ली हो गयी कि यह तो खोटी चवन्नी भी नहीं देने वाला तो उसने मुझे वहाँ से भगाने के लिये पानी में दूध मिले हुए जल से मेरे चेहरे पर छींटे मारने शुरु कर दिये। वो इतना कमीना था कि वह मेरी आँखों में पानी के छींटे मार रहा था। जब उसने कई बार पानी का वार कर लिया और मैं नहीं उठा तो वह गरज कर बोला यहाँ पुजारी के साथ जमकर बैठते हो तुम्हे पाप लगेगा आदि-आदि उल्टी-सीधी कई बाते करने लगा। विशाल मेरी और भिखारी बने पुजारी की बाते सुनकर मजे ले रहा था।
चल हाथ मिला। |
जब उस भिखारी का मूड़
पूरा खराब हो गया तो हमने वहाँ से चलने में ही अपनी भलाई समझी। क्योंकि मन्दिरों में
इन भिखारियों का कब्जा तो है ही इसलिये किसी भक्त की कोई शिकायत यहाँ नहीं सुनी जाती।
मैं भी इन भिखारियों की आदत से अच्छी तरह वाकिफ़ हूँ अत: मुझे इनसे कोई मतलब नहीं रखना
होता है। इसके बाद हम वहाँ से बाहर आये, बाहर आकर जूता घर से अपनी चप्पल लेकर कमरे
की ओर चलना ही शुरु किया था कि एक दुकान पर कुछ खाने का सामान दिखायी दिया। मैंने उसे
खाने के लिये ले लिया। उसका स्वाद ठीक-ठाक ही था इसके बाद विशाल ने वहाँ से घर ले जाने
के लिये कुछ मिठाई खाने के लिये लेनी चाही थी। मैं बाहर से कभी कुछ खरीद कर नहीं लाता
हूँ। वहाँ से ठहलते हुए हम अपने कमरे की ओर चले आये। मेरा और विशाल का कल का पूरा दिन
खाली बचा हुआ था। हमने औरंगाबाद जाने का विचार अभी तक पक्का नहीं किया लेकिन मेरी ट्रेन
कल रात 3 बजे की थी। और विशाल की ट्रेन कल रात 10 बजे की थी इसलिये कल का पूरा दिन हम कही भी घूमने
के लिय जा सकते थे। इसलिये कल का दिन हमने औरंगाबाद जानेके लिये बोल दिया। सुबह जल्दी
उठकर औरंगाबाद जाने की तैयारी करनी थी इसलिये रात में ज्यादा देर जागना उचित नहीं था।
इस यात्रा के सभी लेख के लिंक नीचे दी गयी सूची में दिये गये है।
बोम्बे से भीमाशंकर यात्रा विवरण
01. दिल्ली से दादर-नेरल तक ट्रेन यात्रा, उसके बाद खंड़स से सीढ़ी घाट होकर भीमाशंकर के लिये ट्रेकिंग।
02. खंड़स के आगे सीढ़ी घाट से भीमाशंकर के लिये घने जंगलों व नदियों के बीच से कठिन चढ़ाई शुरु।
03. भीमाशंकर ट्रेकिंग में सीढ़ीघाट का सबसे कठिन टुकड़े का चित्र सहित वर्णन।
01. दिल्ली से दादर-नेरल तक ट्रेन यात्रा, उसके बाद खंड़स से सीढ़ी घाट होकर भीमाशंकर के लिये ट्रेकिंग।
02. खंड़स के आगे सीढ़ी घाट से भीमाशंकर के लिये घने जंगलों व नदियों के बीच से कठिन चढ़ाई शुरु।
03. भीमाशंकर ट्रेकिंग में सीढ़ीघाट का सबसे कठिन टुकड़े का चित्र सहित वर्णन।
05. भीमाशंकर मन्दिर के सम्पूर्ण दर्शन।
नाशिक के त्रयम्बक में गोदावरी-अन्जनेरी पर्वत-त्रयम्बकेश्वर ज्योतिर्लिंग आदि क विवरण
06. नाशिक त्रयम्बक के पास अन्जनेरी पर्वत पर हनुमान जन्म स्थान की ट्रेकिंग।
07. हनुमान गुफ़ा देखकर ट्रेकिंग करते हुए वापसी व त्रयम्बक शहर में आगमन।
08. त्रयम्बक शहर में गजानन संस्थान व पहाड़ पर राम तीर्थ दर्शन।
09. गुरु गोरखनाथ गुफ़ा व गंगा गोदावरी उदगम स्थल की ट्रेकिंग।
10. सन्त ज्ञानेश्वर भाई/गुरु का समाधी मन्दिर स्थल व गोदावरी मन्दिर।
11. नाशिक शहर के पास त्रयम्बक में मुख्य ज्योतिर्लिंग के दर्शन
औरंगाबाद शहर के आसपास के स्थल।
12. घृष्शनेश्वर ज्योतिर्लिंग के दर्शन
13. अजंता-ऐलौरा गुफ़ा देखने की हसरत।
14. दौलताबाद किले में मैदानी भाग का भ्रमण।
15. दौलताबाद किले की पहाड़ी की जबरदस्त चढ़ाई।
16. दौलताबाद किले के शीर्ष से नाशिक होकर दिल्ली तक की यात्रा का समापन।
नाशिक के त्रयम्बक में गोदावरी-अन्जनेरी पर्वत-त्रयम्बकेश्वर ज्योतिर्लिंग आदि क विवरण
06. नाशिक त्रयम्बक के पास अन्जनेरी पर्वत पर हनुमान जन्म स्थान की ट्रेकिंग।
07. हनुमान गुफ़ा देखकर ट्रेकिंग करते हुए वापसी व त्रयम्बक शहर में आगमन।
08. त्रयम्बक शहर में गजानन संस्थान व पहाड़ पर राम तीर्थ दर्शन।
09. गुरु गोरखनाथ गुफ़ा व गंगा गोदावरी उदगम स्थल की ट्रेकिंग।
10. सन्त ज्ञानेश्वर भाई/गुरु का समाधी मन्दिर स्थल व गोदावरी मन्दिर।
11. नाशिक शहर के पास त्रयम्बक में मुख्य ज्योतिर्लिंग के दर्शन
औरंगाबाद शहर के आसपास के स्थल।
12. घृष्शनेश्वर ज्योतिर्लिंग के दर्शन
13. अजंता-ऐलौरा गुफ़ा देखने की हसरत।
14. दौलताबाद किले में मैदानी भाग का भ्रमण।
15. दौलताबाद किले की पहाड़ी की जबरदस्त चढ़ाई।
16. दौलताबाद किले के शीर्ष से नाशिक होकर दिल्ली तक की यात्रा का समापन।
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4 टिप्पणियां:
ओम नमः शिवाय, हर हर महादेव....
har har mahadev
हर हर महादेव..बहुत ही सुन्दर वर्णन..
संदीप भाई, सीढ़ी घाट से आपकी पोस्ट पढ़ते पढ़ते यहाँ त्र्यम्बकेश्वर मंदिर तक आ पहुंचा हूँ। आपने और विशाल राठौड़ ने जैसी खतरनाक यात्रा सम्पन्न की है, मेरे जैसे बन्दे के लिए तो उस बारे में सोचना भी गुस्ताख़ी ही होगी।
आप दोनों का सादर अभिनंदन!
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