मशरुर जाने वाली बस ने पीर बिन्दली से 5-6 मिनट में ही हमें मशरुर पहुँचा दिया। मन्दिर से आधा किमी पहले बने बस सटैंड़ पर बस ने हमें उतार दिया था। इसके बाद बस वहाँ से मुड़कर वापिस चली गयी। हमने मन्दिर की ओर चलना शुरु कर दिया। कुछ दूर चलते ही सड़क ऊपर जाती हुई मुड़ जाती है। हमने समझा कि सड़क एक चक्कर लगाकर इस पहाड़ पर आयेगी। इसलिये हम सड़क छोड़कर सीधे पहाड़ पर चढ़ गये। पहाड़ पर चढ़्ते ही हमें एक गाँव जैसा माहौल दिखायी दिया। वहाँ कुछ लोग खेतों में कार्य कर रहे थे। हम दोनों उनके खेतों से होते हुए उनके गाँव में पहुँच गये। गाँव में जाकर एक आदमी से पता किया कि मन्दिर कहाँ है? उन्होंने कहा कि इन घरो के पीछे जो स्कूल है उसके पार करते ही मन्दिर है। मन्दिर के पास रहने वाले किसान जाट बिरादरी से सम्बन्ध रखते है। यहाँ आसपास बहुत ज्यादा आबादी तो नजर नहीं आ रही थी फ़िर इतनी कम आबादी के लिये स्कूल बनाना समझ नहीं आ रहा था। जैसे ही स्कूल पार किया तो शैल मन्दिर के अवशेष दिखायी देन लगे।
मन्दिर के बारे बताया गया कि यह प्राचीन मन्दिर कई हजार साल पुराना है। एक पहाड़ की चोटी को काटकर इस मन्दिर का निर्माण किया गया है। एक पूरे पहाड़ को काटकर मन्दिर बनाना भी कम अजूबा नहीं है। मन्दिर के अन्दर गर्भ गृह का निर्माण भी किया गया है। यह मन्दिर काफ़ी पहले आये भूकम्प में तहस-नहस हो चुका है अब तो इस मन्दिर के खण्ड़हर मात्र बचे हुए है। लेकिन जब कभी यह मन्दिर बना होगा बड़ा ही भव्य रहा होगा। हम मन्दिर के सामने एक पेड़ के नीचे छाँव में बैठे हुए थे। आसपास देखने पर भी हमें एक दो बन्दों से ज्यादा दिखायी नहीं दे रहे थे। मन्दिर देखने से पहल हमने चारो ओर एक चक्कर लगाने की योजना बनाई। जहां हम बैठे थे वहां से पहले हम स्कूल की ओर चले, स्कूल उस समय बन्द था इसलिये वहाँ कोई दिखाई भी नहीं दे रहा था। हमें वहाँ आम के कई पेड़ दिखायी दे रहे थे, जैसा कि इस यात्रा में अब तक हमने कई बार आम के स्वाद का जी भर आनन्द उठाया था इसलिये यहाँ भी हमें पेड़ के नीचे सैंकड़ों पके आम बिखरे मिले थे। तीन दिन से आम खाने को नहीं मिले थे। इसलिये पहले बैग से एक पन्नी निकाली गयी। पन्नी आम से फ़ुल भर दी गयी।
आम की पन्नी लेकर पानी के नल के पास पहुँचे वहाँ आम धोकर खाने के लिये एक पेड़ की छाँव में बैठ गये। जितने आम हम खा सकते थे उतने आम खाये गये लेकिन पन्नी में लाये गये आम हमारे लिये ज्यादा पड़ गये। बाकि के बचे आम हमने वही छोड़ दिये। दोपहर में भोजन करने की आवश्यकता पके हुये आमों ने समाप्त कर दी थी। आम खाने के बाद एक नल पर जाकर हाथ मुँह धोकर वापिस आये, अपने बैग उठाये और मशरुर के मन्दिर को देखने निकल पड़े। सबसे पहले मन्दिर को ऊपर से देखना चाहते थे इसलिये मन्दिर के बाये हाथ बनी सीढियाँ चढ़ कर ऊपर पहुँचे। ऊपर पहुँचने के बाद वहाँ पर अन्य निर्माण कार्य भी देखा। ऊपर से देखने पर हमें मन्दिर के बिखरे हुए खण्ड़हर भी ऐसे लग रहे थे जैसे यहाँ बिखरी सामग्री से किसी मन्दिर का निर्माण कार्य आरम्भ होना है। ऊपर आते समय हम शानदार सीढ़ियों से चढ़ते हुए आये थे। लेकिन नीचे जाने के लिये हमने हजारों साल बनी हुई जर्जर सीढियाँ आजमानी शुरु की, वैसे इन सीढियों पर कोई दर्शक ना पहुँच पाये इसके लिये वहाँ पत्थर लगाकर रास्ता अवरुद्ध किया गया था। हम ठहरे पूरे ऊँत खोपड़ी, ऐसे पत्थर भला हमारा मार्ग कैसे रोक सकते थे?
मन्दिर के ऊपर देखने पर आसपास का सीन भी बहुत सुन्दर दिखायी देता है। जब हम उन पुरानी जर्जर सीढियों से उतर कर नीचे आये तो तभी वहाँ पानी में किसी के गिरने की आवाज सुनायी दी। पानी का अच्छा खासा तालाब मन्दिर के ठीक सामने बनाया गया है। इस तालाब के एक कोने में मोटे-मोटे आम का बड़ा सा पेड़ है। हमने तालाब के किनारे जाकर देखा कि पानी में क्या गिरा है? हमे पानी में लहरे उठती हुई दिखायी दे रही थी। लेकिन कोई दिखायी नहीं दे रहा था। हम आश्चर्य चकित होकर पानी को देख रहे थे कि तभी आम के पेड़ से एक पका हुआ आम फ़िर से पानी में गिरा जिसने ठीक वैसी ही ध्वनि उत्पन्न की थी जैसे कुछ देर पहले हुई थी। तालाब किनारे वाले आम के पेड़ पर लगने वाले बड़े-बड़े आम तो तालाब में गिरकर नष्ट हो जाते होंगे। खैर हमने तालाब के किनारे वाली दीवार पर रखे हुए मन्दिर के अवशेष देखते हुए चलना जारी रखा। मन्दिर के सामने वाली तालाब की दीवार पर सैंकड़ो की संख्या में मन्दिर के पिलर, खम्बे, आदि के टूट हुए अवशेष रखे गये थे। दीवार के बाद हमने मन्दिर के बाहरी हिस्से को देखना आरम्भ किया।
मन्दिर की सभी दीवार देखने पर पता लगा कि मन्दिर की कोई सी भी दीवार सम्पूर्ण नहीं बच पायी है। जब कभी एक बड़े पहाड़ को काटकर इस मन्दिर का निर्माण कराया गया होगा तब देखने में यह मन्दिर बहुत ही वैभवशाली लगता होगा। मन्दिर की दीवारों आदि पर बची हुई नक्काशी देखने पर इस मन्दिर पर की गयी मेहनत दिखायी देती है। यहाँ शायद ही कोई टुकड़ा ऐसा होगा जिस पर नक्काशी किये बिना छोड़ा गया हो। सीधे हाथ की ओर एक गुफ़ा नुमा जगह दिखायी दी, अपुन ठहरे पूरे शैतान, तुरन्त जाकर अपनी धूनी जमायी और विपिन को फ़ोटो लेने के लिये कहा। यहाँ पर हमारे पास सिर्फ़ विपिन का कैमरा बचा हुआ था। मनु व विधान अपना कैमरा दिल्ली जाते समय ले कर चले गये थे। विपिन के कैमरे की सैटिंग में कही न कही कुछ ना कुछ तो गडबड़ है जिस कारण रंग के मामले में थोड़ा कमजोर पढ़ जाता है। आदमी गाय, फ़ल, फ़ूल, छिपकली, और बहुत सारे किस्म की नक्काशी यहां के पत्थरों पर की गयी है। यहाँ विपिन ने लगभग 150 फ़ोटो लिये थे उनमें से चुनकर आज के लेख के फ़ोटो लगाये गये है।
मन्दिर की बाहरी दीवार देखते हुए मन्दिर की छत पर पहुँचने का मार्ग तलाश कर लिया। वहाँ ऊपर दो बन्दे चढ़े हुए दिखायी दे रहे थे मन्दिर के मुख्य भवन के उल्टे हाथ ऊपर छत पर जाने के लिये सीढियाँ बनी हुई दिखायी देती है। यह सीढियाँ भले ही गिनती में थोड़ी सी ही है लेकिन इनमें से आधी सीढियाँ अंधेरे में है जिससे काफ़ी सावधानी से इनको पार कर ऊपर चढ़ना होता है। ऊपर जाकर मन्दिर का गुम्बद देखा जिसमें भूकम्प से हुआ नुक्सान साफ़ दिखायी देता है। थोड़ी देर ऊपर रुकने के बाद नीचे आये। नीचे आते ही मन्दिर की अन्दर प्रवेश किया। यहां रखी हुई राम चन्द्र परिवार की मूर्तियाँ देखकर बाहर चले आये। बाहर आकर एक बैल की क्षतिग्रस्त मूर्ति देखी। इसके बाद एक छिपकली जैसी आकृति देखी। छिपकली की दो तरह की नक्काशी देखकर दिमाग घूम गया कि यह यहां क्यों बनायी गयी है?
मन्दिर देखकर वापिस चलने की तैयारी होने लगी। तभी एक लड़का हमारे पास आया और बोला यह आप दोनों के टिकट है। अरे यहाँ आने का टिकट भी लगता है। यह तो हमें पता ही नहीं था, हमने 5-5 या 10-10 रुपये देकर टिकट प्राप्त किया। कुछ देर रुककर टिकट देने वाले लड़के के पिता से बातचीत करते रहे। मन्दिर में आये हमें दो घन्टे से ज्यादा हो चुके थे। टिकट वाले लड़के के पिता ने बताया कि यहाँ हर घन्टे में बस आती है, मशरुर आने वाली घन्टा बस का समय हो गया था। हमने आने वाली घन्टा बस पकड़कर आगे की यात्रा करने के लिये मशरुर को अलविदा कहा। बस स्टैंड़ पर गये कुछ मिनट ही हुए थे कि घन्टा बस आ गयी। हमें यहाँ से 7-8 किमी आगे नगरोटा सूरियाँ जाना था वहाँ से छोटी पहाड़ी रेल (जिसे नैरो गेज कहते है।) में बैठकर जोगिन्द्रनगर की ओर चलने का कार्यक्रम बनाया था। बस स्टैंड़ पर दुकान लगाने वाले एक बन्दे ने हमें बताया था कि जोगिन्द्रनगर से आने वाली ट्रेन एक सवा घन्टा बाद आयेगी। आप नगरोटा पहुँचो। (क्रमश:)
हिमाचल की इस बस व रेल यात्रा के सभी लेख के लिंक नीचे दिये गये है। सबसे नीचे स्कारपियो वाली यात्रा के लिंक दिये है।
हिमाचल की इस यात्रा के सभी लेख के लिंक नीचे दिये गये है।
01. मणिमहेश यात्रा की तैयारी और नैना देवी तक पहुँचने की विवरण।
02. नैना देवी मन्दिर के दर्शन और भाखड़ा नांगल डैम/बाँध के लिये प्रस्थान।
03. भाखड़ा नांगल बांध देखकर ज्वालामुखी मन्दिर पहुँचना।
04. माँ ज्वाला जी/ज्वाला मुखी के बारे में विस्तार से दर्शन व जानकारी।
05. ज्वाला जी मन्दिर कांगड़ा से ड़लहौजी तक सड़क पर बिखरे मिले पके-पके आम।
06. डलहौजी के पंजपुला ने दिल खुश कर दिया।
07. डलहौजी से आगे काला टोप एक सुन्दरतम प्राकृतिक हरियाली से भरपूर स्थल।
08. कालाटोप से वापसी में एक विशाल पेड़ पर सभी की धमाल चौकड़ी।
09. ड़लहौजी का खजियार उर्फ़ भारत का स्विटजरलैंड़ एक हरा-भरा विशाल मैदान
10. ड़लहौजी के मैदान में आकाश मार्ग से अवतरित होना। पैराग्लाईंडिंग करना।
11. ड़लहौजी से चम्बा होते हुए भरमौर-हड़सर तक की यात्रा का विवरण।
12. हड़सर से धन्छो तक मणिमहेश की कठिन ट्रेकिंग।
13. धन्छो से भैरों घाटी तक की जानलेवा ट्रेकिंग।
14. गौरीकुन्ड़ के पवित्र कुन्ड़ के दर्शन।
15. मणिमहेश पर्वत व पवित्र झील में के दर्शन व झील के मस्त पानी में स्नान।
16. मणिमहेश से सुन्दरासी तक की वापसी यात्रा।
17. सुन्दरासी - धन्छो - हड़सर - भरमौर तक की यात्रा।
18. भरमौर की 84 मन्दिर समूह के दर्शन के साथ मणिमहेश की यात्रा का समापन।
19. चम्बा का चौगान देखने व विवाद के बाद आगे की यात्रा बस से।
02. नैना देवी मन्दिर के दर्शन और भाखड़ा नांगल डैम/बाँध के लिये प्रस्थान।
03. भाखड़ा नांगल बांध देखकर ज्वालामुखी मन्दिर पहुँचना।
04. माँ ज्वाला जी/ज्वाला मुखी के बारे में विस्तार से दर्शन व जानकारी।
05. ज्वाला जी मन्दिर कांगड़ा से ड़लहौजी तक सड़क पर बिखरे मिले पके-पके आम।
06. डलहौजी के पंजपुला ने दिल खुश कर दिया।
07. डलहौजी से आगे काला टोप एक सुन्दरतम प्राकृतिक हरियाली से भरपूर स्थल।
08. कालाटोप से वापसी में एक विशाल पेड़ पर सभी की धमाल चौकड़ी।
09. ड़लहौजी का खजियार उर्फ़ भारत का स्विटजरलैंड़ एक हरा-भरा विशाल मैदान
10. ड़लहौजी के मैदान में आकाश मार्ग से अवतरित होना। पैराग्लाईंडिंग करना।
11. ड़लहौजी से चम्बा होते हुए भरमौर-हड़सर तक की यात्रा का विवरण।
12. हड़सर से धन्छो तक मणिमहेश की कठिन ट्रेकिंग।
13. धन्छो से भैरों घाटी तक की जानलेवा ट्रेकिंग।
14. गौरीकुन्ड़ के पवित्र कुन्ड़ के दर्शन।
15. मणिमहेश पर्वत व पवित्र झील में के दर्शन व झील के मस्त पानी में स्नान।
16. मणिमहेश से सुन्दरासी तक की वापसी यात्रा।
17. सुन्दरासी - धन्छो - हड़सर - भरमौर तक की यात्रा।
18. भरमौर की 84 मन्दिर समूह के दर्शन के साथ मणिमहेश की यात्रा का समापन।
19. चम्बा का चौगान देखने व विवाद के बाद आगे की यात्रा बस से।
4 टिप्पणियां:
बहुत सुन्दर और अद्भुत, वाकई भारत के कोने कोने में ऐसे आश्चर्य बिखरे हुए हैं.. क्या बात है...जाट भाई मशरूर में भी मिल गए....
चट्टानों को उकेर कर बनाया स्थापत्य अचम्भित करता है।
बहुत सुन्दर और सार्थक प्रस्तुति!
साझा करने के लिए धन्यवाद!
बहुत ही सुन्दर और अद्भुत तस्वीरें संदीप भाई
हम जा नहीं पाते पर जब भी आपका ब्लॉग पढ़ते है ......मन तो ख़ुशी मिलती है और सभी जगह घूम भी आते है सुंदर तस्वीरों के साथ
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