भरमौर का चौरासी मन्दिर देखने के बाद चम्बा के लिये प्रस्थान कर दिया गया। भरमौर से मात्र दो-तीन किमी की पद यात्रा करने पर भरमाणी माता का मन्दिर भी है बाइक वाले तो उसे भी देख आये थे, गाड़ी होने व थकावट के कारण हमने भरमाणी मन्दिर देखने की योजना छोड़ देनी पड़ी। अगर थके ना होते तो भरमाणी तक जरुर जाते। हमारे साथ तीन धुरन्धर ऐसे थे जिनके बारे में यह अनुमान नहीं लग रहा था कि यह पहाड़ों में आये ही क्यों थे? गाड़ी वाले ज्यादातर गाड़ी के अन्दर ही बैठे रहने में खुश रहते थे। गाड़ी वालों की आपसी बातचीत से यह शंका होने लगी कि कही यह चम्बा से ही वापसी तो नहीं भाग जायेंगे। चलिये पहले चम्बा चलते है वहाँ रात को ठहरना ही है तब कुछ सोच-विचार किया जायेगा कि अगली मंजिल कौन सी होगी? असली घुमक्कड़ वही है जो पहले से तय मंजिल को भी हालात देखते हुए तुरन्त बदल ड़ालने में देरी ना करे। चम्बा से काफ़ी पहले एक पुल पार करना पड़ता है जहां पहाड़ से आयी एक नदी ने पहाड़ को बहुत घिसा हुआ था। कुछ मिनट यहाँ रुककर इस कुदरत के करिश्में को देखा गया। इसके बाद उसी मार्ग पर चलते हुए आगे आने वाली सुरंग पार कर चम्बा में उसी मार्ग से प्रवेश किया जिस मार्ग से यहाँ हड़्सर तक आये थे। भरमौर से चम्बा आते-जाते समय एक जगह से मणिमहेश पर्वत की चोटी दिखायी देती है। जाते समय तो चोटी दिखायी दी थी वापिस आते समय देखने की फ़ुर्सत ही नहीं हुई।
भरमौर से राख-चम्बा की ओर जाते समय यह नजारा आता है। |
चम्बा पहुँचते ही गाड़ी को एक जगह खड़ी कर कमरे देखने के लिये चल दिये। यहाँ कमरा देखने के लिये दो टोली बनायी गयी, पहली संदीप व विपिन की, दूसरी मनु व मराठों की। जहाँ हम खड़े थे वहाँ से बस अड़ड़ा सामने ही दिख रहा था इसलिये तय हुआ कि संदीप व विपिन आगे की ओर जायेंगे, मनु व मराठे पीछे की ओर कमरे देखने जायेंगे। हम बस अड़ड़ा पार कर आगे चलते रहे, आगे जाकर एक सरकारी होटल दिखायी दिया, उसके स्वागत कक्ष से कमरे के बारे में पता किया लेकिन वहाँ जगह खाली ना होने के कारण आगे बढ़ गये। इसी होटल के सामने से यहाँ चम्बा का मशहूर चौगान शुरु हो जाता है। शाम का समय हो रहा था। इसलिये पहले इस चौगान के फ़ोटो लिये गये। यह चौगान एकदम हरा भरा मैदान है जिसमें खेलने के लिये बहुत जगह बची हुई है। चौगान से आगे जाने पर एक गेस्ट हाऊस दिखायी दिया। यह गेस्ट हाऊस पहली मंजिल पर बना हुआ है। यहाँ पर मात्र 60 रुपये प्रति पलंग की दर पर पलंग उपलब्ध थे। हमने जब कहा कि हम 12 बन्दे है तो गेस्ट हाऊस वाले ने कहा कि मेरे पास तो 10 डोरमेट्री ही उपलब्ध है उसमें से सिर्फ़ 6 ही खाली है, कमरे के बारे में उन्होंने बताया कि हमारे पास सिर्फ़ एक ही कमरा है। आज वह कमरा भी खाली नहीं है।
वहाँ से हमें बताया गया कि इसी लाईन में कुछ अन्य गेस्ट हाऊस है जहाँ आपको जगह मिल जायेगी। हमने अधिक दूर ना जाते हुए, वापसी चलते हुए कमरे देखने की कोशिश की। वापसी में चलते हुए हमारी नजर वहाँ की टेक्सी यूनियन के स्टेंड़ पर गयी। हमारी गाड़ी वालों के व्यवहार से पक्का लग रहा था कि वे कल सीधे दिल्ली ही जायेंगे। मुझे अभी कई दिन दिल्ली नहीं जाना था, यहाँ आते समय हमने साच पास पार करने की सोची थी। गाड़ी वाले भागने लगे तो क्या हुआ लोकल जीप आदि तो उपलब्ध ही है। जब हमने टेक्सी वालों से साच पास पारकर पांगी घाटी की ओर चलने की बात की तो उन्होंने हमें बताया कि साच पास का मार्ग दर्रे से 15 किमी पहले से ही बहुत खराब हालत में है। छोटी गाड़ी ओ किसी भी सूरत में वहाँ तक पहुँच नहीं पा रही है। जीप आदि जरुर वहाँ पहुँच पाती है लेकिन उसके लिये पूरी गाड़ी बुकिंग करके ले जानी पड़ेगी। पूरी गाड़ी की बात की तो उसने 5500 रुपये उदयपुर तक ही बता दिये थे। कहाँ तो हम मात्र 3000 रुपये में पूरी यात्रा करने की सोच रहे थे अब कहाँ एक दिन के लिये ही 6000 रुपये देने की बात हो रही थी।
मेरे और विपिन के अलावा कोई अन्य साच पास जाने के लिये तैयार नहीं होने वाला था। हमने कमरा देखने की बात छोड़कर पहले साच पास पार करने की जानकारी लेने के लिये बस अड़ड़े पहुँचे बस अडड़े के अन्दर बने सूचना केन्द्र से साच पास या उसके नजदीक तक किसी गाँव तक जाने के लिये बस की जानकारी ली। बस वालों ने बताया कि हमारे यहाँ से दिन में सिर्फ़ एक बस ही सुबह 3 बजे बजे साच पास की ओर जाती है। जहाँ यह बस छोड़ती है वहाँ से साच पास 40-45 किमी बाकि रह जाता है। जहाँ यह बस छोड़ेगी वहाँ से फ़िर जीप के भरोसे रहना पडेगा। एक बस वाले ने कहा कि यहाँ बस अड़ड़े के बाहर ही सुबह 5 बजे जीप वाले पांगी जाने के लिये खड़े होते है। लेकिन उन जीप में एक समस्या है कि वे पूरी सवारी होने पर या पूरा पैसा कोई और दे दे तो चलने के लिये तैयार हो जाते है। लेकिन उनकी सीटिंग या पैसा कम रह जाये तो वे चलने को तैयार नहीं होते है। मेरी और विपिन की खोपड़ी कहने लगी कि बस बहुत हुआ साच पास, साच पास अब यहाँ से कमरा देखकर सोया जाये सुबह देखेंगे कि कहाँ जाना है?
हमने एक बार फ़िर कमरा देखना शुरु किया, बस अडड़े के सामने ही एक गली जाती है उसमें हमें सभी के सोने के लिये खुले बरामदे वाला डोरमेट्री मिल गया था। हमने कमरे वाले से कहा कि यदि हम 10 मिनट में वापिस नहीं आये तो फ़िर हम नहीं आयेंगे। हम सीधे गाड़ी के पास पहुँचे तो देखा कि गाड़ी से सारा सामान निकाल कर किसी होटल में ले जाया जा चुका है। आज भी उसी तरह गड़बड़ हो सकती थी जैसी गड़बड़ पहले दिन कमरा लेते समय हुई थी। हमारा बैग भी होटल में पहुँच चुका था। कमरे में पहुँचकर देखा तो कमरे काफ़ी अच्छी साफ़-सुथरे बनाये गये है। कमरे का किराया सुनकर बड़ा आश्चर्य हुआ था क्योंकि इसके बराबर में एक अन्य होट्ल वाला 800 रुपये प्रति कमरे के बता रहा था। यह होटल वाला हमसे 250 रुपये प्रति कमरे के ले रहा था। यहां हमने चार कमरे ले लिये थे। रात का खाना खाने के लिये बस अड़ड़े के सामने देखे गये कई होट्ल में खाने का विचार बनाया गया। सबसे पहले एक होटल तय हुआ उसमें एक साथ सभी के खाने के लिये जगह नहीं थी इसलिये गाड़ी वाली पार्टी गाड़ी पार्किंग में लगाने चली गयी।
खाना खाकर कमरे में पहुँच गये। खाना खाने के बाद कमरे में पड़े-पड़े क्या करते? इसलिये सड़क पर घूमने लगे कि तभी नाई की एक दुकान पर नजर गयी। यहाँ पर अपनी दाड़ी बनवाई गयी। नाई को हमने अपनी बातों में ऐसा घुमाया कि उसका सिर दर्द करने लगा। आखिरकार सभी कामों से निपटकर सोने के लिये कमरे पर पहुँच गये। गाडी वालों ने साफ़ कर दिया था कि वे कल दिल्ली जा रहे है। मैंने और विपिन ने उनका साथ छोडने की घोषणा कर दी। गाड़ी वाले सुबह 6 बजे से पहले निकलने वाले नहीं थे। हमने साढ़े 3 बजे का अलार्म लगा दिया था। सुबह बस अड़ड़े जायेंगे यदि वहाँ से साच पास के लिये जीप मिली तो साच पास जायेंगे, नहीं तो हिमाचल में ही तीन-चार दिन घूमते रहेंगे। सोने से पहले सबका हिसाब-किताब कर दिया गया था। किसी का किसी पर कोई रुपया/चवन्नी शेष नहीं बचा था। रात को होटल में पानी काफ़ी देर से आया था जिस कारण नहाने में भी देर हुई थी। अगले दिन सुबह चार बजे मैंने और विपिन ने होटल छोड़ दिया था। जैसे ही हम बस अड़ड़े पहुँचे तो (क्रमश:)
हिमाचल की इस यात्रा के सभी लेख के लिंक नीचे दिये गये है।
01. मणिमहेश यात्रा की तैयारी और नैना देवी तक पहुँचने की विवरण।
02. नैना देवी मन्दिर के दर्शन और भाखड़ा नांगल डैम/बाँध के लिये प्रस्थान।
03. भाखड़ा नांगल बांध देखकर ज्वालामुखी मन्दिर पहुँचना।
04. माँ ज्वाला जी/ज्वाला मुखी के बारे में विस्तार से दर्शन व जानकारी।
05. ज्वाला जी मन्दिर कांगड़ा से ड़लहौजी तक सड़क पर बिखरे मिले पके-पके आम।
06. डलहौजी के पंजपुला ने दिल खुश कर दिया।
07. डलहौजी से आगे काला टोप एक सुन्दरतम प्राकृतिक हरियाली से भरपूर स्थल।
08. कालाटोप से वापसी में एक विशाल पेड़ पर सभी की धमाल चौकड़ी।
09. ड़लहौजी का खजियार उर्फ़ भारत का स्विटजरलैंड़ एक हरा-भरा विशाल मैदान
10. ड़लहौजी के मैदान में आकाश मार्ग से अवतरित होना। पैराग्लाईंडिंग करना।
11. ड़लहौजी से चम्बा होते हुए भरमौर-हड़सर तक की यात्रा का विवरण।
12. हड़सर से धन्छो तक मणिमहेश की कठिन ट्रेकिंग।
13. धन्छो से भैरों घाटी तक की जानलेवा ट्रेकिंग।
14. गौरीकुन्ड़ के पवित्र कुन्ड़ के दर्शन।
15. मणिमहेश पर्वत व पवित्र झील में के दर्शन व झील के मस्त पानी में स्नान।
16. मणिमहेश से सुन्दरासी तक की वापसी यात्रा।
17. सुन्दरासी - धन्छो - हड़सर - भरमौर तक की यात्रा।
18. भरमौर की 84 मन्दिर समूह के दर्शन के साथ मणिमहेश की यात्रा का समापन।
19. चम्बा का चौगान देखने व विवाद के बाद आगे की यात्रा बस से।
02. नैना देवी मन्दिर के दर्शन और भाखड़ा नांगल डैम/बाँध के लिये प्रस्थान।
03. भाखड़ा नांगल बांध देखकर ज्वालामुखी मन्दिर पहुँचना।
04. माँ ज्वाला जी/ज्वाला मुखी के बारे में विस्तार से दर्शन व जानकारी।
05. ज्वाला जी मन्दिर कांगड़ा से ड़लहौजी तक सड़क पर बिखरे मिले पके-पके आम।
06. डलहौजी के पंजपुला ने दिल खुश कर दिया।
07. डलहौजी से आगे काला टोप एक सुन्दरतम प्राकृतिक हरियाली से भरपूर स्थल।
08. कालाटोप से वापसी में एक विशाल पेड़ पर सभी की धमाल चौकड़ी।
09. ड़लहौजी का खजियार उर्फ़ भारत का स्विटजरलैंड़ एक हरा-भरा विशाल मैदान
10. ड़लहौजी के मैदान में आकाश मार्ग से अवतरित होना। पैराग्लाईंडिंग करना।
11. ड़लहौजी से चम्बा होते हुए भरमौर-हड़सर तक की यात्रा का विवरण।
12. हड़सर से धन्छो तक मणिमहेश की कठिन ट्रेकिंग।
13. धन्छो से भैरों घाटी तक की जानलेवा ट्रेकिंग।
14. गौरीकुन्ड़ के पवित्र कुन्ड़ के दर्शन।
15. मणिमहेश पर्वत व पवित्र झील में के दर्शन व झील के मस्त पानी में स्नान।
16. मणिमहेश से सुन्दरासी तक की वापसी यात्रा।
17. सुन्दरासी - धन्छो - हड़सर - भरमौर तक की यात्रा।
18. भरमौर की 84 मन्दिर समूह के दर्शन के साथ मणिमहेश की यात्रा का समापन।
19. चम्बा का चौगान देखने व विवाद के बाद आगे की यात्रा बस से।
हिमाचल की इस बस व रेल यात्रा के सभी लेख के लिंक नीचे दिये गये है।
पानी का कारनामा |
चम्बा से भरमौर के बीच एक सुरंग |
चम्बा का एक मन्दिर |
चम्बा के चौगान का सहस्राब्दी द्धार |
चम्बा का चौगान |
चम्बा की रात में आसमान में तारे |
वाह |
तोड़ना नहीं, |
5 टिप्पणियां:
संदीप जी राम राम, सर जी फोटो पर कैप्शन लगा दिया करो कृपया...
होटल ढूढ़ना और मोलभाव करने का अपना आनन्द है, उसे भी पर्यटन के प्रमुख घटकों में शामिल कर लेना चाहिये।
अब देखते है कि चम्बा के बाद कहाँ ले चलते हो......
वाह जाटदेवता! यहां बैठे हो! चलो, हमें तो आपकी घुमक्कड़ी की रोमांचक यात्राओं का आनन्द लेने से मतलब है। घुमक्कड़ पर न मिलें तो यहां सही ! "तू जहां जहां चलेगा, मेरा साया साथ होगा !" :) आपके जीवट को, घुमक्कड़ी की अनवरत् लालसा को सलाम !
dhnayad itni achi jankari sajha krne k liye
pryatan sthalo ke rhsya aur unke baree m aur vistar se btaye
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