गोवा यात्रा-17
करनजोल कैम्प में रात को कैम्प फ़ायर किया गया था, यहाँ कैम्प फ़ायर स्थल पर चारों और गोल घेरे में बैठने के लिये पत्थर रखे हुए थे। जिस पर बैठकर कई बन्दों/बन्दी ने अपने-अपने गायकी के हुनर का परिचय दिया था। अपने बसकी यह हुनर नहीं है। अपना हुनर, कैसा भी खतरनाक ट्रेक हो, कैसा भी लम्बी दूरी बाइक/कार से तय करना हो, यह कठिन से दिखने वाले कार्य मुझे बेहद आसान लगते है। पहाड़ की चढ़ाई पर जहाँ अधिकतर लोगों की हालात खराब होने लगती है, वही अपने मजे आने लगते है (किसी ने इसे कुछ ऐसे कहा है जहाँ तुम्हारा सफ़र समाप्त होता है वहाँ से अपना सफ़र शुरु होता है।) रात में एक विदेशी महिला की तबीयत खराब हुई थी। सुबह तक उसकी सेहत में सुधार तो हुआ था लेकिन अब चारों विदेशियों ने ट्रेकिंग बीच में छोड़कर पणजी जाने की तैयारी शुरु कर दी थी। इस कैम्प से पणजी वाला बेस कैम्प लगभग 70 किमी दूर था। इसके लिये उन्हें वहाँ तक पहुँचाने के लिये एक जीप मंगवाई गयी थी। जब तक जीप वहाँ आती तब तक हम भी नाश्ता करने के बाद लंच पैक कर आज की यात्रा पर चल दिये थे। लाल कमीज वाला विदेशी हमारे ग्रुप के कई लोगों के चिपकने की आदत से परेशान हो चुका था, जिस कारण वह किसी से बात नहीं करता था, लेकिन जब हम वहाँ से चलने लगे तो उसने गले मिलकर बाय-बाय की थी। मुझे लगा कि शायद खुशी से गले मिला होगा कि इन चिपकुओ से पीछा छूटा, इसकी खुशी मना रहा होगा
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यहाँ से विदेशी बाय-बाय कर देते है। |
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नदी पार करने के लिये बेहतरीन प्रबन्ध |
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हल्के भारी सभी इसे पार कर रहे थे। |
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एक बार में एक का सिद्धांत |
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बचपन हो या पचपन सब पार करेंगे। |
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सूर्य महाराज हटो बीच में से |
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अपनी टोली |
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वैसे इस पुल की जरुरत बरसात में होती है। अब पानी कम है। |
हम कैम्प से अपना लंच पैक कर चल पडे। लगभग आधा किमी जाने पर हमें एक और नदी का सामना करना पड़ा था। हम नदी पार करने के लिये स्थान तलाश कर ही रहे थे कि हमें उल्टे हाथ की ओर नदी पार करने का लकडी से बना हुआ पुल दिखायी दिया। हम उस पुल की ओर बढ चले। वैसे उस समय नदी में बहुत ज्यादा पानी तो नहीं था फ़िर भी सभी लोग इस पुल से ही नदी पार करने में लगे हुए थे। बरसात के मौसम में यह पुल बहुत महत्वपूर्ण हो जाता होगा। पुल पार करने के बाद हम फ़िर से उसी जीप वाली सड़क पर आ गये जहाँ हम चल रहे थे। आगे जाने पर इस मार्ग पर एक तिराहा दिखायी दिया, जहाँ पर हमें कुछ जानी पहचानी जगह लगी। रुक कर देखा तो याद आया कि अरे यह तो वही मोड़ है जहाँ से दो पहले दिन की ट्रेकिंग करते हुए गये थे। इस मार्ग पर हम वापिस जा रहे थे कि एक ऐसा पेड दिखायी दिया जिस पर लताओं ने ऊपर तक अपना शिकंजा पूरी तरह कसा हुआ था।
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मार्ग में एक पेड़ से लिपटी हुई लता/बेल |
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अरे हाँ, जाते समय भी तो यही से गये थे। |
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जंगल-जंगल बात चली है, |
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जंगल में मंगल मनाने का जुगाड़ है। |
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ये क्या? |
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कुदरती करिश्मा, |
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उल्टी सीधी हरकते नहीं छोडनी है। |
कुछ देर बाद हमें पीछे की ओर से एक जीप आती हुई दिखाई दी, जब यह जीप हमारे आगे से गुजरी तो उसमें से बाय-बाय की आवाज सुनकर हमने देखा कि अरे अपने विदेशी तो ये जा रहे है। थोडी देर बाद अपने कैम्प लीडर भी एक बाइक पर सवार होकर जाते हुए मिल गये थे। हम काफ़ी देर तक इसी जीप वाली सड़क पर चलते रहे। इसके बाद हमें एक तिराहे से इस वापसी वाले मार्ग को छोड़कर सीधे हाथ वाले जीप मार्ग पर चलने के बारे में बताया गया था। हम बहुत देर से जीप वाले मार्ग पर चले जा रहे थे। इस जीप वाले मार्ग पर चलने में मुझे मजा नहीं आ रहा था। एक जगह पर हमारे ग्रुप ने रुकर दोपहर का भोजन भी किया था। भोजन करने के दौरान वहाँ से साईकिल वाला ग्रुप जाता हुआ मिला था। शुक्र रहा कि चार किमी बाद यह जीप वाला मार्ग छोड़ कर हम लोग जंगल में पगड़न्डी की ओर मुड गये। मुझे अब जाकर कुछ सुकून मिला था।
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जीप मार्ग |
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दीमक का घर/अड़डा की बाम्बी, बताते है कि इनमें कोबरा कब्जा कर लेते है।???????? |
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चलो लंच का समय हो रहा है। |
इस जंगल में मुश्किल से तीन किमी ही चले होंगे कि हमें सड़कों पर दौड़ती हुई गाड़ियों की आवाजे आनी शुरु हो गयी थी। हम समझ गये कि अब कैम्प ज्यादा दूर नहीं है। यह कच्ची पगड़न्डी हमें कई बार ऊपर नीचे उतराई चढ़ाई पर ले जाती हुई, कैम्प के नजदीक ले आयी थी। जैसे ही कैम्प दिखाई दिया, हमें (अनिल, संजय, संदीप) को एक शरारत सूझी कि क्यों ना किट-किट काटने वाली बात फ़ैलायी जाये। जैसे ही सबने यह पुण्य विचार सुना तो तुरन्त दोनों ने हाँ कर दी, अब बारी थी अपनी शैतानी को अमल में कैसे लाये? ताकि सब लोग एक बार फ़िर से तेल व डिटॉल लगाना शुरु करे। हम अपनी तेज चलने की आदत से लाचार थे, इस कारण हम काफ़ी आगे आ गये थे। जैसे ही हमें अन्य साथियों के आने की आहट सुनायी दी, हम अपनी य़ोजना अनुसार उनकी तरफ़ तेजी से चलने लगे। जब उन्होंने हमारे वापिस आने का कारण पूछा तो हमने अपने हाथ पैर खुजलाने शुरु कर दिये। हम बोले कि लगता है कि आगे किट-किट नामक मच्छर/मक्खी है। हमें खुजली हो रही है। अब आप बता सकते हो बताईये कि इसके बाद अगले दस मिनट क्या हुआ होगा?
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यही है आज का व इस ट्रेकिंग का अन्तिम कैम्प |
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आसपास घूम आये। |
चूंकि यह कैम्प गोवा कर्नाटक हाईवे के एकदम सटा हुआ था इसलिये हमने मौका लगते ही आसपास सड़क पर कुछ दूर तक घूम आने की योजना बनायी। कमल अपने जुगाड़ में रहता था। बाकि थकावट के मारे हुए थे अब बचे हम, चल दिये नहा-धोकर, तीन चार किमी घूमने के लिये।
गोवा यात्रा के सभी लेख के लिंक नीचे क्रमवार दिये गये है। आप अपनी पसन्द वाले लिंक पर जाकर देख सकते है।
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5 टिप्पणियां:
बड़े चित्रों ने यात्रा को जीवंत कर दिया है.
वाह, हम भी कार्यक्रम बनाते हैं..शीघ्र ही..
सारी तस्वीरें शानदार हैं लेकिन जिस तस्वीर में सूर्य महाराज को हटने को कह रहे हो, उसमें गज़ब का इफ़ैक्ट है।
हमें भी ले चलना यार एक बार इस ट्रैकिंग पर।
बहुत बढ़िया...... इन्द्रधनुषी किरणों वाली फोटो कमाल की है.....
बहुत ही मजेदार यात्रा ...
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