बुधवार, 27 फ़रवरी 2013

Somnath Temple's beach सोमनाथ मन्दिर के पास चौपाटी

गुजरात यात्रा-09
जूनागढ़ से सुबह 5 बजे वाली बस में सवार होकर हम चारों सोमनाथ के लिये चल दिये। बस पीछे कही और से आ रही थी इस कारण बस में बहुत भीड़ होने की वजह से हम चारों को सीट नहीं मिल पायी थी। प्रेम व रावत पहाड़ी को बस में घुसते ही सीट मिल गयी जिस कारण वे दोनों आराम से सोते हुए सोमनाथ तक पहुँच गये। अब बचे दो मैं और अनिल, हम दोनों ने खड़े-खड़े ही यह सफ़र पूरा किया था। अनिल पैदल यात्रा में काफ़ी थक गया था जिस कारण वह कुछ देर बस में बीच में आने-जाने वाले मार्ग में ही बैठ भी गया था। वेरावल बस अड़ड़े पर आकर जब बस रुकी तो अधिकतर सवारी बस से उतर गयी, हमने सोचा कि शायद सोमनाथ के लिये यही उतरना होता है। इसलिये पहले हमने बस कंडैक्टर से पता किया जब उसने कहा कि अरे सोमनाथ अभी कई किमी बाकि है और वहाँ जाने पर तो बस पूरी ही खाली हो जायेगी। कुछ देर बाद ही बस वहाँ से सोमनाथ के लिये चल पड़ी। यहाँ से आगे जाने पर सीधे हाथ समुन्द्र के दर्शन हो गये थे जिससे लगा कि बस अब सोमनाथ आने ही वाला है। सड़क किनारे एक बहुत बड़ा कब्रिस्तान दिखाई दिया। यहाँ से लगभग एक किमी आगे जाने के बाद आखिरकार सोमनाथ भी आ ही गया। सभी सवारियों के साथ हम भी सोमनाथ के बस अड़डे पर उतर गये। सुबह का सात बजे का समय हुआ था। सबसे पहले हमने मन्दिर की दिशा के बारे में पता किया। बस अड़डे से मन्दिर पश्चिम दिशा में मुश्किल से 100-150 मीटर की दूरी पर ही है। सोमनाथ आने के लिये सबसे नजदीकी रेलवे स्टेशन वेरावल Veraval Railway Station से Somanath लगभग 6 किमी दूरी पर है।

सवारी की जा रही है।

पहली बार समुन्द्र स्नान हो रहा है।



अपनी मस्ती भी जारी है।

अच्छा जी घोड़ी/घोडे की सवारी भी की जा रही है।

बस अड़्ड़े की ईमारत में ही एक दरवाजा सोमनाथ ज्योतिर्लिंग मन्दिर की ओर बना हुआ है। जहाँ से बस आती-जाती है वहाँ का चक्कर लगाने की कोई आवश्यकता नहीं है। हम इमारत के बीच में से निकल कर मन्दिर वाली सड़क पर आ गये। सामने ही सीधे हाथ पर मन्दिर दिखायी दे रहा था। हमने मन्दिर दर्शन करने से पहले रात में रुकने के लिये एक कमरा तलाश करना बेहतर समझा। कमरा जल्दी तलाश करने के दो कारण थे, पहला कि हम रात भर पहाड़ की 20000 बीस हजार सीढ़ियों की चढ़ाई व उतराई से थके हुए थे। दूसरा हम नहाना चाहते थे। कुछ लोग ऐसे भी होते है जो गर्मी में भी कई-कई दिन बिना नहाये रह लेते है। सर्दी में तो ऐसे आलसी लोग पूरे सप्ताह में शायद ही एक बार नहाते होंगे। पहले हमने एक होटल देखा जो बस अड़डे के बस घुसने वाली दिशा में था। होटल वाले ने बताया को चार बैड का कमरा 700 में मिलेगा। वैसे होटल का हिसाब-किताब देखते हुए कमरे का किराया कम ही लग रहा था। लेकिन चूंकि अभी सुबह-सुबह का समय था इसलिये हो सकता है कि शाम होते-होते कमरे का किराया हजार रुपये तक भी पहुँच जाये तो आश्चर्य नहीं होना चाहिए। कल महाशिवरात्रि है इसलिये शाम तक यहाँ पब्लिक की गर्दी/भीड़ बढ़ती जायेगी, उसके बाद होटल वाले मुँह माँगी कीमत वसूल करेंगे। हमें बताया गया कि अभी कमरा खाली हो रहा है, साफ़ सफ़ाई होने में एक घन्टा लग जायेगा, उसके बाद आप लोग आ जाईये। एक घन्टा नींद के मारे कहाँ बैठे रहते? इस कारण हम वहाँ से मन्दिर की ओर चल दिये। आसपास होटल व रेस्ट हाऊस देखते हुए हम मन्दिर की ओर चल रहे थे।

अरे जाट कितने खायेगा? और का नम्बर भी आन दियो।

नारियल की दुकान से समुन्द्र का नजारा

किनारे पर काफ़ी चहल पहल थी।

सुनहरी रेत\


JVC के नीचे से तो सोमनाथ दिख रहा है।

उल्टे हाथ पर मामा रेस्ट हाऊस का एक बोर्ड़ नजर आया। बोर्ड जरुर रेस्ट हाऊस का लगा था लेकिन वहाँ पर सिर्फ़ एक मंजिल का घर दिखाई दे रहा था। जहाँ यह बोर्ड दिख रहा था वहाँ पर एक साधु जैसा दिखायी देने वाला व्यक्ति बैठा हुआ था। मैंने मामा वाले बोर्ड़ के बारे में पूछा कि यह कहाँ है? मेरी बात सुनकर उस साधु जैसी वेश भूषा वाले व्यक्ति ने कहा कि मैं ही मामा हूँ बताईये कितने लोग और कितने समय के लिये कमरा चाहिए? हम चार लोग है और कल सुबह 6 बजे तक कमरा चाहिए, क्योंकि हम सुबह 5 बजे ही दर्शन कर वापिस चले जायेंगे, यहाँ के लिये आज का पूरा दिन तो हमारे पास ही है। मामा ने 300 रुपये कमरे के बताये, जब हमने कमरा देखा तो 300 में पूरे पैसे वसूल करने वाली सही लगी। इस कमरे में पलंग के स्थान पर जमीन पर गददे लगाये गये थे, हवा के लिये एक छत पर एक पंखा था। पीछे वाली दीवार पर एक बड़ी सी खिड़की थी, मोबाइल चार्ज करने के लिये कोई पलग नहीं था, इस कारण मोबाईल चार्ज करने के लिये हमें मामा के पास बैठना पड़ा क्योंकि सारे पलग उन्होंने वही लगाये हुए थे। हम ठहरे घुमक्कड़ प्राणी, पर्य़टक तो है नहीं कि ऐश के लिये आधुनिक महंगे होटल में जाकर रुके। अगर हम जैसे जीव महंगे होटलों में जाकर रुकने लगे तो हो ली साल में 9-10 बार घुमक्कड़ी भारी यात्राएँ।  महंगे होटल उन लोगों के लिये है जो साल में मुश्किल से एक-दो बार घर से बाहर निकलते है हमारा क्या हम जैसे घर पर टिकते ही कितने दिन है?  कमरे में सामान रख पहले तो चारों नहाये-धोये उसके बाद मैं और रावत मन्दिर में दर्शन करने चले गये। जबकि अनिल व प्रेम कमरे में घुसकर सो गये।

शाम का समय  है, दुकान लग चुकी है।

टूट पड़ो भूटटों/कुकड़ी पर

हम भी मन्दिर के दर्शन करने के बाद वापस आकर कमरे में सो गये। हम लगभग 5-6 घन्टे तक सोते रहे होंगे। जब हमारी आँखे खुली तो देखा कि दोपहर के तीन बजने वाले है। चारों उठकर समुन्द्र में नहाने के लिये चल दिये। नहाने से पहले नारियल पानी पीकर उसकी मलाई/गिरी खाई गयी। किसने कितनी खायी यह तो पता नहीं लेकिन मैंने चार नारियल की गिरी खाई थी। नारियल खा पीकर रावत और प्रेमसिंह ऊँट और घोड़े की सवारी करने लगे। इस मौके का फ़ायदा मैंने भी उठाया, मैंने भी ऊँट की सवारी की थी। इसके बाद हम चारों समुन्द्र में नहाने के लिये कूद पड़े। मेरे अलावा बाकि तीनों ने पहली बार समुन्द्र देखा था इसलिये उनका उत्साह देखने लायक था। हम लोग पूरे दो-ढ़ाई घन्टे तक समुन्द्र में नहाते रहे। जब नहा-नहा कर सबका मन भर गया तो अपने कपड़े पुन: धारण किये। नहाने से पहले तो सिर्फ़ नारियल पर हमला बोला था। लगता था कि नहाने के बाद हमारी भूख कुछ ज्यादा ही हो गयी थी। अबकी बार हमने वहाँ पर मिलने वाली लगभग सभी खाने की वस्तुएँ चख ड़ाली थी। सबसे पहले हमने एक भूट्टे वाले के यहाँ धावा बोला, भूट्टॆ चट कर भेल पूरी/सेव पूरी वाले के यहाँ हमला हुआ। सबसे बाद में अपना पसन्दीदा आइसक्रीम का स्वाद लिया गया था। जब हर तरह से मस्त हो लिये तो वहाँ से कमरे की ओर बढ़ चले। रात में सोने से पहले गुजरात/महाराष्ट्र का खास व्यंजन पाव+भाजी का पेट भर कर स्वाद लिया गया था।    

आप भी खाइये।

अन्त में अपना खास स्वाद

चौपाटी का बोर्ड़ भी है।
रात में लगभग 10 बजे तक हम चारों सो गये थे सुबह चार बजे उठकर नहाधोकर मन्दिर में सबसे पहले घुसने के लिये लाइन में लगना था कि नहीं, सुबह हमारा नम्बर लगभग 100 लोगों के बाद था, लेकिन ऊपर वाले की ऐसी माया हुई कि दर्शन तक पहुँचते पहुँचते हमारा नम्बर 10 या 11 हो चुका था।  कोई बेईमाना नहीं किया था। लेकिन ऐसा हुआ कैसे यह अगले लेख में देख लेना।


गुजरात यात्रा के सभी लेख के लिंक क्रमानुसार नीचे दिये गये है।

भाग-01 आओ गुजरात चले।
भाग-02 ओखा में भेंट/बेट द्धारका मन्दिर, श्री कृष्णा निवास स्थान
भाग-03 द्धारकाधीश का भारत के चार धाम वाला मन्दिर
भाग-04 राधा मन्दिर/ श्रीकृष्ण की अर्धांगिनी रुक्मिणी देवी का मन्दिर
भाग-05 नागेश्वर मन्दिर भारते के 12 ज्योतिर्लिंग में से एक
भाग-06 श्रीकृष्ण के दोस्त सुदामा का मन्दिर
भाग-07 पोरबन्दर गाँधी का जन्म स्थान।
भाग-08 जूनागढ़ का गिरनार पर्वत और उसकी 20000 सीढियों की चढ़ाई।
भाग-09 सोमनाथ मन्दिर के सामने खूबसूरत चौपाटी पर मौज मस्ती
भाग-10 सोमनाथ मन्दिर जो अंधविश्वास के चलते कई बार तहस-नहस हुआ।
भाग-11 सोमनाथ से पोरबन्दर, जामनगर, अहमदाबाद होते हुए दिल्ली तक यात्रा वर्णन
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5 टिप्‍पणियां:

Arti ने कहा…

I have been there when I was a small child!! It was not this crowded then I remember.
Lovely captures.

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

यहाँ पर खान पान और आनन्द बिखरा हुआ है।

प्रवीण गुप्ता - PRAVEEN GUPTA ने कहा…

भुट्टे, भेल पुरी, कुल्फी खाने का मज़ा, वो भी समुन्द्र किनारे, अलग ही आनंद हैं....वाह....

G.N.SHAW ने कहा…

अति सुन्दर |

दर्शन कौर धनोय ने कहा…

समुन्द्र देखकर मुंबई के बीच याद आ गये ..मुझे तो यहाँ बिलकुल भी मजा नहीं आता ..अब लूटे -पिटे सोमनाथ को देखना है ..

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