गोवा यात्रा-16
रेलवे ट्रेक से एक तरफ़ हटते ही वन्य जीवन की शानदार घाटी नुमा ट्रेकिंग करते समय हमारा मन यहाँ से कही जाने को नहीं कर रहा था। नीचे तीसरे फ़ोटो मे आप एक मकान देख रहेहै। रेलवे लाईन इसके साथ ही है और इस मकान का अब प्रयोग भी नहीं किया जाता है क्योंकि इसकी उम्र सौ साल से भी ज्यादा हो गयी है। पहले कभी रेलवे वाले इसका उपयोग करते होगे अब उन्हे भी इसकी आवश्यकता नहीं है। अब यहाँ से ढ़लान में ट्रेकिंग करते हुए जाना था। यह ढ़लान हिमालय के ढ़लानों जैसी ही खतरनाक थी। मैं अपने साथियों को बता रहा था कि बरसात के मौसम में तो यहाँ पर आना मुसीबत को न्यौता देने से कम नहीं होता होगा। इसी ढ़लान पर हम उतरने लगे। आज की ट्रेकिंग में हमें पहाड़, रेल, सुनसान व घना जंगल और नदी पार की थी।
|
कैसा लगा यह फ़ोटो? |
|
नीचे जो मैदान दिख रहा है, वहाँ होकर जाना है। |
|
रेलवे का सौ वर्ष पुराना निर्माण |
|
उतरते जाओ |
|
रुकावट को कुर्सी बना लो |
|
तु छुपा है कहाँ |
हमारा नाम राजधानी एक्सप्रेस ऐसे ही थोडे ना पडा था, हम हर बार इसे साबित भी करते थे। गुजराती बडे वाला भाई, छोटा भाई, कमल अनिल, और मैं हम कुल पाँच जने वही बैठे रहे जबकि अन्य सभी वहाँ से नीचे चले गये। हमारे साथ तेज चलने वाली समस्या थी, इस कारण हम सभी के जाने के 10-12 मिनट बाद चलना शुरु करते थे और जल्द ही उनके पास पहुँच जाया करते थे। अबकी बार हमने कुछ ज्यादा देर से चलना शुरु किया क्योंकि हमें पता था कि खतरनाक ढ़लान पर ये लोग लाइन में उतर रहे है जिस कारण इनका दुगना समय लगना तय है। कमल भाई माँग-माँग कर अपना कोटा पूरा कर रहे थे, इस माँगने वाली हरकत पर मैंने कई बार टोका भी था लेकिन जब मैंने देखा कि बन्दा माँगने वाली बात को अपनी अच्छाई मान रहा है तो मैंने टोकना छोड दिया। घाटी में उतरने के बाद एक जगह रुकर दोपहर का लंच किया गया था। यहाँ से कैम्प लीड़र प्रभु जी हमें छोडकर वापिस कैम्प लौट जाने वाले थे। कैम्प यहाँ से मुश्किल से एक आध किमी ही होगा। जहाँ हमने लंच किया था उस स्थान का नाम किट-किट भगाने के लिये लगाने वाला डिटॉल लगाने के कारण डिटॉल पॉइन्ट रख दिया गया था।
|
मोबाइल से अच्छे फ़ोटो आये है। |
|
यू कौन सा वृक्ष है? |
सभी अपने पीने के लिये पानी ढोकर ला रहे थे। जिस कारण एक बोतल से फ़ालतू पानी लाकर कोई बोझ नहीं लाधना चाह रहा था। हमारे ग्रुप लीडर शाह ही ऐसे बन्दे थे जो दो लीटर पानी लाद रहे थे। उनकी मजबूरी थी क्योंकि उनकी पत्नी उनके साथ थी इसलिये उनके हिस्से का पानी भी शाह को ढ़ोना पड रहा था, यहाँ पर हमारे ग्रुप के बन्दे ने शाह की बोतल उठायी और उससे हाथ धोना शुरु कर दिय। जिस बात पर शाह की पत्नी ने उसे खूब सुनायी। जो बन्दा हाथ धो रहा था उसे हम रजनीकांत कह कर बुलाते थे। जहाँ पीने को पानी ना मिले वहाँ हाथ धोकर पानी बर्बाद किया जा रहा था। अरे हाँ याद आया कि यहाँ पर बोम्बे वाले संजय ने एक विदेशी महिला को हिन्दी में तेरी माँ की आँख बोलना सिखा दिया था। जब संजय ने मुझे कहा कि इस विदेशी महिला से पूछो कैसे हो, तो देखना वो क्या कहती है? मैंने पूछा तो पहले तो वो अटकी उसके बाद संजय ने याद दिलाया कि तेरी....... तब जाकर वह महिला बोली तेरी माँ की आँख, उसके इतना बोलते ही सबकी हँसी छूट गयी। हमने कहा क्यों संजय भाई, अगर इस महिला से किसी पुलिस वाले ने पूछ लिया कि कैसे हो? तो इसका जवाब तेरी माँ की आँख सुनकर पुलिस वाला इसे ठोके बिना नहीं मानेगा। खा पीकर सभी चलने लगे, हमारी बारी तो सबसे आखिर में चलने की आती थी, यहाँ पर कमल को कुछ ज्यादा जल्दी थी जिस कारण कमल अपनी बीयर पीने वाली सिप बोतल वही छोड़ आया था, पहले मैंने बोतल उठाकर अपने बैग में रखनी चाही लेकिन जैसे ही मेरे ध्यान आया कि अरे यह तो बीयर वाली बोतल है, मैंने वो बोतल वही फ़ैंक दी। सभी लोग वहाँ से अज चुके थे अब वहाँ पर सिर्फ़ तीन लोग बचे थे अनिल, संजय और मैं। संजय ने कमल की टोपी उठा ली, कमल अपनी टोपी भी वही छोड आया था।
|
हमारे यहाँ इसे साँप की छतरी कहते है। |
|
बेल है या लताओं का मेला |
बीच में एक जगह पर नीम्बू पानी बेचने वाला बैठा हुआ था, हमने कल भी इससे नीम्बू पानी पिया था, कल यह दूसरे मार्ग पर बैठा हुआ था आज यह नदी किनारे इस मार्ग पर बैठा हुआ था, हमने इसे कहा कि इस साल हमारे ग्रुप के साथ ही गोवा ट्रेकिंग यात्रा समाप्त हो जायेगी। अत: कल से मत बैठना। यहाँ नदी किनारे बोतल से हाथ धोने वाला बन्दा नदी से पानी भरता हुआ, मैंने उसे कुरेदा तो वह बोला कि मैंने तुमसे पानी माँगा था क्या जो तुम मुझसे सवाल कर रहे हो। शाम को कैम्प में पहुँचने तक उस हाथ धोने वाले बन्दे को अपनी गलती का अहसास हुआ और उसने अपने व्यवहार के लिये अपनी गलती मान ली। यहाँ पर लगता था कि ज्यादातर लोगों को गुस्सा आ रहा था, बोम्बे वाले संजय ने कमल को उसकी टोपी देकर कहा कि तुम्हारी बीयर वाली सिप संदीप भाई के पास है। जब मैंने कमल को कहा कि मैंने सिप (बीयर पीने का जुगाड़) उठायी तो जरुर दी लेकिन जैसे ही मुझे ध्यान आया कि अरे यह तो बीयर वाली बोतल है तो मैंने उसे वही फ़ैंक दिया था। अब कमल ने स्टाईल मारा कि जाने दो ऐसी बोतल को हजार रुपये की ही तो थी ऐसी कई बोतल में ऑफ़िर में भूल आता हूँ। वह बोतल हजार की हो या सौ की, कमल को उसका खोना बहुत खटक रहा था। क्योंकि शाम को कमल कैम्प में परेशान दिख रहा था। अब कमल को बीयर पीने का कुछ और तरीका तलाश करना था।
|
आ गया, आ गया, आज का कैम्प |
|
ये परदा हटा दो जरा मुखड़ा दिखा दो |
|
कैम्प फ़ायर स्थल |
यहाँ कमल व रजनीकांत के साथ हल्की नौक-झौक होने के बाद मैंने उनका साथ छोड दिया था। सबसे पीछे रहने से अच्छा था आगे रहना। इसलिये मैं अनिल और बडे वाला गुजराती भाई हम तीनों सबसे आगे चलते रहे। पीने वाले पीने के चक्कर में अटके रहते, परिवार वाले बीबी के चक्कर में बडे बैग वाले बैग के चक्कर में मोटे लोग वजन के चक्कर में, हम तीनों का कोई चक्कर नहीं था इसलिये हमने अपनी राजधानी वाली रफ़्तार पकड सबसे पहले कैम्प करन्जोल कैम्प पहुँच गये। करनजोल कैम्प ही वह स्थान बताया गया था जहाँ काटने वाला किट-किट मच्छर/मक्खी मिलने वाला था। घने व सुनसान जंगलों से होते हुए, हम कैम्प की ओर बढ़ते गये, जैसे ही हमें कैम्प का बैनर दिखायी दिया तो अपनी खुशी दुगनी हो गयी, कैम्प के ठीक पहले एक बार फ़िर हमें नदी पार करनी थी, नदी पार कर हम कैम्प में आ गये। यहाँ पर कैम्प लीडर ने हमारा स्वागत किया। कैम्प लीडर दिल्ली के रोहिणी के रहने वाले थे। वैसे बंगाली थे। हमने अपना सामान रखा और नहाने धोने नदी पर पहुँच गये, जहाँ हम घन्टा भर नहाते रहे, दाढ़ी बनायी, अपने कपडे धोकर सुखा भी दिये। तब कही जाकर बाकि साथी पहुंचे थे। रात में पता नहीं क्या हुआ कि विदेशी दोस्तों में से एक महिला की तबीयत खराब हो गयी। शायद नदी का बहता पानी पीने के कारण उसकी यह हालत हुई होगी। दिन में एक जगह नदी का बहता पानी बोतल में भरते समय मैं बोतल को काफ़ी ध्यान से देख रहा था कि तभी गुजराती ने पूछा क्या देख रहे हो? मैं कहा कि बैक्टीरिया तलाश कर रहा हूँ कि इस बोतल में है या नहीं। मेरी बैक्टीरिया वाली बात पर सभी लोग ठहाके लगाकर हँसे कि आपकी आँख तो माईक्रोस्कोप का भी काम कर लेती है।
|
जाट बैठ गया पानी में |
|
नहा धोकर मुन्ड़ा तैयार है। पीछे गुजाराती मोटा भाई बैठा है। |
|
कैम्प के पास में ही एक और कैम्प था जहाँ सब कुछ, मतलब सब कुछ मिलता है। |
आज के दिन हमने आखिरी के पाँच किमी की कठिन ट्रेकिंग को बिना रुके, बिना विश्राम किये तय किया था जिसका लाभ हमें नदी में नहाने का समय मिलना व कपडे धोने व सुखाने का समय मिलने के रुप में हो सका था। दिन में विदेशी ब्लॉगर मित्र को मैंने व अन्य दोस्तों ने मिलकर "मेरा जूता है जापानी ये पतलून इंगलिस्तानी, सिर पे टोपी रुसी लेकिन दिल हैफ़िर भी हिन्दुस्तानी" गीत की यह पक्तियाँ कंठस्थ याद करायी थी, जिसे वह बार-बार दोहराती भी जा रही थी। रात में उन्होंने इस गीत को सुनाकर सबकी वाह-वाह समेट ली थी।
अगले लेख में भी आपको यहाँ के जंगलों में भ्रमण कराया जायेगा।
गोवा यात्रा के सभी लेख के लिंक नीचे क्रमवार दिये गये है। आप अपनी पसन्द वाले लिंक पर जाकर देख सकते है।
.
.
.
.
6 टिप्पणियां:
वाह, आनन्दमयी यात्रा..
बहुत सुन्दर यातर, जंगल में मंगल, आपस में नोक झोंक, इसी में यात्रा का आनंद हैं...
आन्नदमयी यात्रा .....ऐसी ट्रेकिंग का एन्जॉय लेने की अभिलाषा है ...पर है रे बुढ़ापा ....हम भी इसे सांप की छतरी ही कहते है ..
बेचारे विदेशी को मां की आंख सिखा दिया। पिटेगा तो नहीं लेकिन हां, उसकी मजाक जरूर बनेगी।
जाट बैठ गया पानी में, अब नहाके ही निकलेगा:)
एक टिप्पणी भेजें