हर की दून जाने की इच्छा बहुत दिनों से मन में थी। दो महीने पहले श्रीखण्ड महादेव से वापस आते ही सोच लिया था कि बारिश समाप्त होते ही हर की दून के लिये कूच कर देना है, इसलिये मैंने ब्लॉग पर दिनांक भी कोई पक्की नहीं की थी। अहमदाबाद के रहने वाले धर्मेन्द्र सांगवान ने कई बार फ़ोन कर के पता किया कि जाट भाई हर की दून जा रहे हो या नहीं, उसे हर बार बताया कि अभी पहाडों में बारिश बन्द नहीं हुई है अत: कुछ समय बाद ही जाया जायेगा, लेकिन बन्दा परेशान कि आपका क्या, आप तो अपनी बाइक उठाओगे व चल दोगे लेकिन मुझे तो अहमदाबाद से दिल्ली तक आने में बीस घन्टे लग जायेंगे कुछ दिन पहले बता दोगे तो मैं अपना ट्रेन का आरक्षण करवा लूँगा नहीं तो बिना आरक्षण रेल से आने में तो ऐसी की तैसी हो जायेगी। मैंने कहा हाँ भाई बात तो तुम्हारी ठीक है चलो दशहरा वाले दिन दिल्ली से चलते है तब तक मौसम भी ठीक हो ही जायेगा। बन्दे ने फ़िर पूछा दिनांक तो पक्की है न, अरे भाई जब मैंने किसी जगह जाने की एक बार बोल दी तो फ़िर तो ऊपर वाला मेरी हर तरह से सहायता भी करता है, फ़िर किसी की मजाल की मेरी यात्रा को रोक-टोक सके, जय भोले नाथ, हर दम सबके साथ। इस यात्रा में दो बाइक सवारों का फ़ोन और आया था कि अगर आप(मैं) लोग एक दिन बाद चलो तो हम भी आपके साथ चलेंगे लेकिन मैंने कहा कि कोई बात नहीं आप लोग बाद में आओ, मुझे अपना कार्यक्रम नहीं बदलना है हाँ हो सकता है कि हम आपको पैदल मार्ग में टकरा जाये।
इस यात्रा का पहला फ़ोटो आपनी नीली परी का सडक के बीचोंबीच।
मैंने व धर्मेन्द्र ने तय किया कि अहमदाबाद से आने वाली ट्रेन सहारनपुर के पहले टपरी स्टेशन से बाई-पास होते हुए रूडकी हरिद्धार की ओर चली जाती है अत: तुम मुझे टपरी मिलना, जहाँ मैं तुम्हारी ट्रेन से पहले पहुँच जाऊँगा क्योंकि ट्रेन का समय वहाँ पर सुबह दस बजे का है जो कभी पहले तो पहुँच ही नहीं सकती है। अत: दशहरे वाले दिन अपुन ने तो सुबह अपने तय समय 5 बजे बाइक ऊठायी, बोल गुफ़ा वाले बाबा की जय लगायी और बाइक हर की दून की ओर भगायी। मार्ग वो ही चुना था जिस पर दो महीने पहले ही चकराता से घूम कर वापस आये थे। जब घर से चला तो तब तक अंधेरा ही था, अत: दिन निकला खेकडा के पास जाकर। ये सडक लोनी, खेकडा, बागपत, सोनीपत मोड, गुफ़ा वाले बाबा का मन्दिर, बडौत, बावली (मेरे मामा का गाँव, यहाँ पर जाते समय मैं पानी पीने के लिये कुछ मिनट रुका था), किशनपुर बिराल, थाना रमाला, होती हुई एलम गाँव तक तो सही हालत में है लेकिन एलम के बाद कांधला, शामली तक तो इतनी बुरी हालत में है कि बाइक, कार, बस, ट्रक में इस पर यात्रा करते समय सरकार को जी भर कर गाली दी जाती है। एलम से शामली कोई 20 किमी ही होगा लेकिन इसे पार करने में एक घन्टा लग जाता है। शामली शहर में घुसते ही सडक देख कर दिल खुश हो जाता है यहाँ से आगे थाना भवन नाम की जगह तक सडक नई बना दी गयी है बढिया सडक की यात्रा मात्र 20-25 किमी तक ही रही थाना भवन के बाद सहारनपुर शहर आने तक जो तो सडक की इतनी बुरी हालत है कि पूछो मत, ऐसा लगता है कि हम सडक नहीं पत्थरीले खेत में से होकर जा रहे हो। वो तो शुक्र रहा कि उस समय मैं बाइक पर अकेला था, किसी तरह साढे 9 बजे तक मैं सहारनपुर पहुँचा। सहारनपुर से टपरी तक जाने के लिये सहारनपुर में जिला अस्पताल के सामने से सीधे हाथ पर मार्ग देहरादून की ओर फ़्लाईओवर के ऊपर से होता हुआ चला जाता है लेकिन टपरी जाने के लिये इस फ़्लाईओवर पर चढने से तुरन्त पहले एक मार्ग सीधे हाथ पुल के साथ चला जाता है जो आगे 2 किमी जाकर रेलवे लाइन को पार करता हुआ, टपरी होता हुआ देवबन्द मुजफ़्फ़रनगर मेरठ की ओर चला जाता है। मैं पौने दस बजे तक टपरी स्टेशन पर आ गया था।
लो जी उत्तर प्रदेश की सीमा समाप्त व उतराखण्ड की शुरु।
वहाँ लगभग 40 मिनट बाद अहमदाबाद से आने वाली गाडी आयी। अब तक मैंने व धर्मेन्द्र सांगवान ने आपस में एक-दूसरे को देखा भी नहीं था, धर्मेन्द्र सांगवान ने कम से कम मुझे ब्लॉग पर तो देखा था जब सब सवारियाँ बाहर आ गयी तो मैंने धर्मेन्द्र सांगवान के मोबाइल पर काल की तो उसने कहा कि मैं तो स्टेशन से बाहर आकर खडा हूँ अब मैं भी स्टेशन से बाहर आया और बताया कि मैं स्टेशन से बाहर बस के पीछे खडा हूँ बन्दा बोला मैं भी बस के पीछे खडा हूँ, अब बस तो बस है कोई कुम्भ का मेला तो था नहीं जो मिल ना सके, उसे फ़िर कहा कि बस के पीछे मेरे अलावा कोई नहीं है मेरे हाथ में हेलमेट है सफ़ेद टी-शर्ट पहनी हुई है, बन्दा फ़िर बोला कि नहीं नजर आये, यहाँ एक बात बडी मजेदार थी धर्मेन्द्र सांगवान भी बस के पीछे था मैं भी बस के पीछे लेकिन बस एक नहीं दो थी मैं जिस बस के पीछे था वो बस पुलिस विभाग की थी, और धर्मेन्द्र जिस बस के पीछे था वो सवारी बस थी। जब मेरे मुँह से निकला कि मैं पुलिस वाली बस के पीछे हूँ तो बन्दा बोला कि यहाँ तो पुलिस की बस ही नहीं है, बात असलियत में यह थी कि धर्मेन्द्र स्टेशन परिसर से बाहर निकल गया था जबकि मैं स्टेशन परिसर के अन्दर ही था। जब ये बात साफ़ हुई तो दोनों का आमना-सामना हुआ और एक घन्टे से रुकी हुई यात्रा आगे की ओर चल पडी।
अहमदाबाद निवासी धर्मेन्द्र सांगवान अशोक के शिलालेख के ठीक सामने हाजिर है।
कुछ आगे जाकर रेलवे बाईपास पर वो ही ट्रेन जा रही थी जिस से धर्मेन्द्र आया था, मैंने बाइक रोकी अपने बैग से हैलमेट निकाला। धर्मेन्द्र को कहा कि बिना इसके मैं बाइक नहीं चलाऊँगा अत: धर्मेन्द्र ने उसे अपने सिर पर पहन लिया और अपना बैग मेरे बैग में ठूँस दिया, ठूँसना इसलिये कहा कि आसानी से नहीं आया था काफ़ी मेहनत करनी पडी थी। अब उसी जगह आये जहाँ से देहरादून जाने फ़्लाईओवर से मैं एक घन्टा पहले मुडा था, यहाँ फ़्लाईओवर पार करने पर बिल्कुल सीधे जाने पर मार्ग कुछ दूर जाने पर अपने आप उल्टे हाथ की ओर मुडता चला जाता है जो कि एक चौराहे पर जा पहुँचता है इस चौराहे से सीधे हाथ देहरादून उल्टे हाथ सहारनपुर स्टेशन व नाक की सीध शाकुम्बरी माता के मन्दिर, बेहट, हर्बटपुर, पौंटा साहिब, विकासनगर कालसी, चकराता, यमुनौत्री आदि जगहों के लिये चला जाता है। हम भी सीधे इसी मार्ग पर आगे चलते रहे कुछ आगे जाने पर ये मार्ग उसी मुख्य मार्ग में मिल गया जो सीधा सहारनपुर स्टेशन से विकासनगर जाता है, यहाँ तक तो मार्ग ठीक ही था, लेकिन इसके बाद लगातार 30 किमी तक जो दुर्गति इस मार्ग की हुई है उसे बताया नहीं जा सकता है सिर्फ़ भुगतभौगी बनकर पता लगाया जा सकता है। ये कबाडा सफ़र अभी आधा ही हुआ था कि एक जगह सरकारी नल देखकर रुक गये, बल्कि कहो कि धर्मेन्द्र को चाय की तलब लगी थी, हम दोनों ने अपने मुँह हाथ धोये, धर्मेन्द्र ने चाय पी व मार्ग की धूल व गडडे से बुरा हाल हो गया था। धर्मेन्द्र जो कि एक ट्रांस्पोर्टर है उसने बताया कि इस मार्ग की हालत इन रेत के भारी-भरकम ट्रकों के कारण हुई है जो कि इस मार्ग पर एक सीमा से अधिकतम भार लेकर चलने के कारण ये मार्ग अपने आप को नहीं संम्भाल पाया व टुकडे-टुकडे हो गया। वैसे धर्मेन्द्र की बात सही थी क्योंकि जिस जगह से ये ट्रक आ रहे थे वहाँ से आगे का मार्ग एकदम मस्त था। ये ट्रक हथिनीकुन्ड बैराज से आ रहे थे। जहाँ से इस सडक पर मिल रहे थे वही से सडक खराब थी। खराब किया सडक थी ही नहीं। दो महीने पहले से भी बुरी हालत हो गयी थी। बताते है कि अब ये सडक बनाने की मंजूरी हो गयी गई है अत: उम्मीद है जो शायद जल्द ही सुधर जाये।
ये है यमुना पुल के बोर्ड के नीचे।
दोपहर एक बजे तक हर्बटपुर आ गये थे, बिना रुके चलते रहे, हम सीधे कालसी जाकर रुके, कालसी (KALSI) वो ही जगह है जहाँ पर सम्राट अशोक का शिलालेख है जो 2200 साल पुराना है। सोचा कि जब यहाँ आये ही है तो धर्मेन्द्र को भी ये जगह दिखा दी जाये। जब ये जगह दिखायी तो धर्मेन्द्र बोला ये तो छोटी सी जगह है जो कि तुम्हारी उस पोस्ट में बहुत बडी दिखायी दे रही थी। इसे देख कर आगे चल दिये यमुनौत्री (YAMUNOTRI) की ओर चकराता (CHAKRATA) वाले मार्ग पर कुछ आगे जाने पर सीधे हाथ एक तंग सा मार्ग यमुनौत्री के लिये मुड जाता है जो कि बस किसी कामचलाऊ सडक की तरह ही था। आगे जाकर हमें एक पुल मिला जिस पर जाकर सीधे हाथ जाने वाला मार्ग विकासनगर जा रहा था और काफ़ी अच्छी सडक थी। वैसे ये अच्छी सडक सीधे हाथ आगे कुछ दूर जाने पर एक तिराहे पर मिल जाती है जहाँ से उल्टे हाथ जाने वाला मार्ग चकराता जाता है जो कि चकराता व कैम्पटी फ़ाल-मंसूरी को जोडता है। यहाँ से कोई 4-5 किमी जाने पर यमुना पुल आता है जो इस इलाके में बहुत प्रसिद्ध है। यहाँ फ़ोटो खींच कर आगे बढते रहे। पुल पार करने पर वो जगह आयी जहाँ से सीधे हाथ कैम्पटी फ़ाल-मंसूरी की ओर व उल्टे हाथ यमुनौत्री की ओर जाया जाता है। कोई तीन बजे के आसपास नैनगाँव नाम की जगह आयी। दोनों को भूख लगी थी एक दुकान पर समौसे व छोले खाये गये, लगे हाथ आइसक्रीम पर भी हाथ फ़ेर दिया गया। जबकि धर्मेन्द्र तो चाय पीने में ही मस्त था। जब यहाँ समौसे खा रहे थे तो तभी एक हिमाचल रोडवेज की सरकारी सवारी बस नजर आयी जो कि रोहडू से आ रही थी, व आगे हरिद्धार जा रही थी। सच हिमाचल रोडवेज वाले भी कमाल के है। खा पीकर आगे बढे कुछ समय बाद कोई पाँच बजे तक नौगाँव जा पहुँचे, यहाँ बिना रुके पुरोला के लिये चलते रहे, सिर्फ़ इतना पता किया कि पुरोला में पेट्रोल मिलता है कि नहीं, जो कि मिलता है। नौगाँव से पुरोला कोई बीस किमी दूर है हम शाम होने तक यहाँ आ गये थे। अब अंधेरा हो रहा था, अत: आगे का सफ़र कल के लिये छोड दिया, बाइक में पेट्रोल डलवाया। पुलिस चौकी के सामने/पास एक 200 वाला बढिया सा कमरा लिया। बराबर में एक ढाबे से खाना खाया व अपने कमरे में आकर पंखा चलाकर सो गये। सोने से पहले अपने-अपने घर पर फ़ोन किया व साथ-साथ ये भी बताया कि कल व आगे के दो-तीन दिन फ़ोन नहीं मिलेगा।
अगले भाग में मोरी, नेटवार, सांकुरी, तक सडक वाहन योग्य है, किसी तरह तालुका तक बाइक ले गये, पानी में घुस-घुस कर पेडों के ऊपर से उठा-उठा कर व आगे कि दे धमा-धम तीन दिन की पैदल यात्रा..............
इस यात्रा का आगे का सफ़र भाग 2 देखने के लिये यहाँ चटका लगाये
हर की दून बाइक यात्रा के सभी लेखों के लिंक नीचे दिये गये है।
भाग-01-दिल्ली से विकासनगर होते हुए पुरोला तक।
भाग-02-मोरी-सांकुरी तालुका होते हुए गंगाड़ तक।
भाग-03-ओसला-सीमा होते हुए हर की दून तक।
भाग-04-हर की दून के शानदार नजारे। व भालू का ड़र।
भाग-05-हर की दून से मस्त व टाँग तुडाऊ वापसी।
भाग-06-एशिया के सबसे लम्बा चीड़ के पेड़ की समाधी।
भाग-07-एशिया का सबसे मोटा देवदार का पेड़।
भाग-08-चकराता, देहरादून होते हुए दिल्ली तक की बाइक यात्रा।
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हर की दून बाइक यात्रा-
55 टिप्पणियां:
सफर के हर कदम में आनन्द।
दिल्ली-शामली-अहारनपुर वाली रोड वाकई बहुत बुरी हालत में है। बहनजी की नजरे-ईनायत इधर कम ही है।
रोचक यात्रा वृतांत ...घूमते रहिये ...!
सही है संजय भाई,
अब तो टैक्सी वाले भी इस मार्ग पर जाने में मना करने लगे है, बस में बैठो तो ऐसा लगता है कि आप झूला झूल रहे हो। प्रवीण जी सफ़र में तो बहुत आन्नद आया था, बस इस सडक की बात हटा दे तो?
सुन्दर प्रस्तुति |
बधाई स्वीकारें ||
हमने तो बात सीखी कि पुरोला में पेट्रोल मिलता है। वैसे जब मैं बाइक चलानी सीख लूंगा तब तक हर की दून तक टू लेन हाइवे बन जायेगा, पेट्रोल पम्प भी खुल जायेगा और हम आप जैसे पैर तोडू घुमक्कड स्वर्गारोहिणी का टारगेट बनाकर जाया करेंगे।
वाकई कमाल के हैं आप लोग
प्रणाम स्वीकार करें
बेहद रोचक वृतांत | मुझे सबसे अच्छा लगा कि अगले दो तीन दिन फ़ोन नहीं मिलेगा | यही मज़ा है यात्रा का :)
नीरज भाई, भूल जाओ अगले पचास साल की मैं गारंटी लेता हूँ वहाँ तक सडक ना बनने की, रही बात स्वर्गरिहिणी की वो तो हर की दून के सामने ही है मात्र दो किमी दूरी पर।
अन्तर भाई, कमाल के तो आप भी कम नहीं है आजकल आप थोडा कम घूम रहे है क्या हो गया है।
निशा जी, वहाँ तार वाला जमीनी फ़ोन व मोबाइल नहीं है। हाँ एक पहाडी गाँव में सेटलाइट फ़ोन जरुर मिल जाता है।
आनन्द ही आनन्द... यात्रा का खूब मजा लो..शुभकामनाए...
इंतजार है --हर की दून घाटी की तस्वीरों का ।
दराल साहब, आप तो बहुत पहले यहाँ हो आये थे, लेकिन लगता है कि आज भी ज्यादा कुछ नहीं बदला है।
आपकी तो बात ही अलग होती है .....रोचक और मजेदार ,बस यों ही घूमते रहिये
सफ़र है सुहाना इसे ही कहते हैं चलते रहो मेरे भाई बस चलते रहो |
आपका हर की दून का यह आधा सफ़र बड़ा रोमांचकारी लग रहा है,आगे का तो बहुत मज़ेदार होने वाला है !
सन्दीप भाई, यह तो मुझे पता नहीं कि हर की दून से स्वर्गारोहिणी कितना दूर है लेकिन इतना जरूर पता है कि हर की दून जहां ट्रेकरों के लिये है वही स्वर्गारोहिणी पर्वतारोहियों के लिये है।
आप और हम जैसे अकेले दुकेले आदमियों के बस की बात नहीं है स्वर्गारोहिणी चोटी पर चढना, भले ही हर की दून से दूरी दो किलोमीटर ही हो।
are sir saharanpur me aaye ho or hamse mile bina chale gaye ,,,,
sadak ki halat wakyi bahut hi khrab hai.
shayad des ki jansankhya itni nahi hai jitne ki is sadak par gadhe,,
jai hind jai bharat
साजन आवारा जी सहारनपुर तो आना-जाना लगा ही रहता है क्योंकि देहरादून में मेरे मामा व मौसी रहते है जिनके पास तो जाता ही रहता हूँ अबकी बार आपसे भी मिल कर जाऊँगा। लेकिन तब तक आप सडक की हालात ठीक करवा दीजिएगा।
नीरज भाई, स्वर्गारोहिणी हर की दून से सुबह जाकर शाम तक आराम से आना-जाना किया जा सकता है रात रुकने के लिये हर की दून में जगह मिल जाती है आगे उसके बारे में भी बताऊँगा।
संतोष जी सफ़र सच में बडा ही रोमांचकारी रहा वापसी तो कुछ ज्यादा ही उठापटक वाली रही।
संदीप भाई बावली मेरे भी मामा का गांव है. यात्रा का वर्णन हमेशा कि तरह रोचक है.
निरंतर यात्रा और निरंतर यात्रा विवरण. यही तो जीवन है संदीप जी. हम चल रहे हैं और पढ़ रहे हैं आपके माध्यम से.
संदीप जी मजा आ गया..... आगे कि यात्रा का इन्तजार है.....
बाकी मैंने भी घूमना शुरू कर दिया है .....और लिखना भी........
Sandeep Ji, very beautiful description of your journey. It's realy nice. But u have not told about the har ki doon, where it is situated. However your blog indicates that it is in the Utrakhand.
चन्द्रकांत दीक्षित भाई फ़िर तो आप और मैं मौसेरे भाई हुए क्यों ठीक है ना। मेरे मामा बावली में गाँव के बडे स्कूल व सिंडिकेट बैंक के पास है।
भूषण जी आपके ब्लॉग को खोलने में समस्या आ रही है, जब मैं आपके ब्लॉग पर जाता हूँ तो वहाँ मशीनरी सी घूमने लगती है आखिर क्या बात है।
फ़कीरा भाई आपने बहुत ही अच्छा किया जो ये नेक व दुनिया का सबसे बेहतरीन कार्य शुरु कर दिया है।
रमण चौधरी भाई, आप अगले लेख में हर की दून के पास ही चले जाओगे, फ़िर आपको ये शिकायत नहीं रहेगी। मेरा ब्लॉग लोनी, गाजियाबाद, उत्तर प्रदेश से
प्रिय संदीप जी आप के जज्बे का जबाब नहीं छवियाँ क्रिस्टल क्लिअर ..आनंद दाई हर का दून हर की पौड़ी सब घुमाया आप ने ..चर्चा मंच पर रविकर द्वारा आप को लाना और सुखद रहा ...जय माता दी
धन्यवाद सुंदर कृति
भ्रमर ५
बहुत ही रोचक यात्रा रही हैं आपकी ....संदीप जी ..........
माउन्ट आबू : पर्वतीय स्थल के मुख्य आकर्षण (2)..............4
http://safarhainsuhana.blogspot.com/2011/10/24.html
यात्रा तो बहुत ही बढ़िया और रोचक रहा! दिलचस्प प्रस्तुती!
मेरे नए पोस्ट पर आपका स्वागत है-
http://seawave-babli.blogspot.com/
http://ek-jhalak-urmi-ki-kavitayen.blogspot.com/
Very nice description. Its a co incidence that my latest post is on Har ki Pauri...
The scenes in the Himalayas are always very beautiful, but the roads are not that good...
Have a nice day.
My Yatra Diary...
आपकी सभी यात्राये सफल हो यही भागवान से दुवा हे..........
आज मेने आपकी काफी पोस्टे पढ़ी ...अच्छी लगी..
अब में आपको फोल्लो[80 ] भी कर रहा हु....
आप भी आये हमारे गाँव ...............
http://vijaypalkurdiya.blogspot.com
रितेश व विजयपाल जी आयेंगे आपके यहाँ भी।
आरती जी,
सच में इसे ही संयोग कहते है आप हर की पौडी व मैं हर की दून,कही भी चले जाओ हर यानि परमात्मा हर जगह मिलेंगे।
पहाड से ज्यादा मुझे यूपी की सडके खराब लगी।
सुन्दर प्रस्तुति |
रोचक यात्रा वृतांत|
संदीप जी आपके द्वारा मेरे ब्लॉग पर दिया गया समय और कमेन्ट दोनों के लिए धन्यवाद.....
मैं आगे भी घूमता रहूँगा आखिर आपको और नीरज बाबू को फोलो जो कर रहा हूँ.....
सहभावित रचना ,पाठक को संग लिए आगे बढती है .बधाई .दिवाली मुबारक .
ये यायावरी भी व्यक्ति में जूनून ला देती है...यात्रा जारी रहे दुनिया की.
Sandeep ji ,
May be, someday we meet in the course of our roaming.Your journey to Leh Laddhakh was very interesting, adventurous and exciting. Keep on roaming. I have just visited Gangtok, Namchi (Sikkim) and Darjeeling.( I am sorry for not having Hindi fonts on this system).
यादव जी यात्राएँ आखिरी साँस तक जारी रहेगी।
हरि शंकर जी हो सकता है कि मुलाकात जल्द ही हो जाये? अगली बार लेह, आप भी साथ चलना।
Sandeep ji,
Programme banaate rahiye .Baat bhi aap se jaldi hi hogi.
हर की दून अपने आप में एक खुबसुरत घाटी हैं -- चित्रों का इन्तजार रहेगा -- तुम्हारे साथ घुमने का मज़ा ही अलग हैं ..ऐसा लगता हैं मानो हम साथ ही घूम रहे हैं ---! संदीप, आइसक्रीम तो तुम्हारी कमजोरी हैं ....और वो पहाड़ो पर बहुत मिलती हैं .. तुम्हारी 'नीलीपरी' सचमुच में बहुत सुंदर हैं !
मनोरम चित्रों के साथ रोचक सफरनामा।
दीपावली की हार्दिक शुभकामनाएं।
नयनाभिराम मनोरम चित्र व ज्ञानवर्धक वृत्तांत ने दृश्यों को सजीव कर दिया.
Great site and nice design. Such interesting sites are really worth comment.
In a Hindi saying, If people call you stupid, they will say, does not open your mouth and prove it. But several people who make extraordinary efforts to prove that he is stupid.Take a look here How True
आप सब को भी दीपावली पर्व की शुभकामनायें।
रोचक वर्णन |
दीपावली के शुभ अवसर पर हार्दिक शुभ कामनाएं |
आशा
वाह एक से बढ़ कर एक सुंदर चित्र.
आपकी हर यात्रा बहुत ही रोचक होती है ..............संदीप भाई
रोमांचकारी सफ़र ...आप का जुनून भी काबिले तारीफ़ है..
APNE SAFAR YAAD HO AAYE .
सबसे भ्रष्ट पुलिस वाले कहाँ के थे , और एन ट्रिप में कितने पैसे पुलिस वालों को देने पड़े उसका उल्लेख भी जरुरी है , ताकि कोई भाई जाना चाहे तो खर्चे का हिसाब लगा कर रखे
आप यूँ ही रोमांचक यात्रा करें और हमें सुन्दर पोस्ट पढवाते रहें.
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