रविवार, 28 अगस्त 2011

श्रीखण्ड महादेव वापसी (रामपुर-रोहडू-चकराता) भाग 10

रामपुर में ये दूरी का बोर्ड एक दीवार पर बना हुआ था।

रामपुर में मजे से सारी रात पंखे के नीचे गुजारने के बाद आज बारी थी, घर की ओर जाने की दिल्ली से रामपुर तक आने के लिये शिमला होते हुए आना होता है, व वापसी भी शिमला होते हुए ही जाया जाता है, लेकिन मैं ठहरा कुछ अलग खोपडी का इंसान अरे जब वाहन अपना, चालक हम स्वयं तो फ़िर क्यों बसों की सवारियों की तरह लाचार होकर, उन मार्गों से ही वापस जाया जाये जहाँ से हम आये थे जबकि हमारे पास दूसरे विकल्प भी हो तो। तो जी मेरी इस मार्ग से जाने की राय तीनों ने मानी, वैसे दो तो बेचारे हमारे साथ मौज-मस्ती के लिये थे, मार्ग से उन्हे कोई लेना देना नही था। मार्ग कि चिंता तो दो को ही थी, वो भी कुछ खास नहीं थी। हमने यहाँ आने से पहले नक्शा खोल के भी देख लिया था।
रामपुर में ये पुल नदी के दोनों ओर शहर में आने जाने के लिये बना हुआ है।

शाम को तो सब नहाये थे ही फ़िर भी सब सुबह नहा धो कर तैयार हो गये थे। समय वही पुराना 7 बजने वाले थे, जब यहाँ से चले तो सामने ही एक दीवार पर दूरी दर्शाने वाला बोर्ड था। रामपुर काफ़ी बडा शहर है, अत: हमने यहाँ से ही अपनी बाइक में पेट्रोल लेना उचित समझा, तो जी हम चल दिये पेट्रोल पम्प की तलाश में, ये दो-तीन किलोमीटर का शहर पार हो गया पर हमें पम्प नहीं मिला, जब एक जीप वाले से पूछा कि भाई पेट्रोल पम्प कहाँ है? वो उल्लू की पूँछ पम्प तो बताने से रहा बल्कि हमारे लठ देखकर बोला कि पहले गन्ना खिलाओ तब बताऊँगा कि पेट्रोल पम्प कहाँ है, जब उसके मुँह के आगे लठ अडा दिये तो उसकी आँखे फ़टी की फ़टी रह गयी कि गन्ने लठ कैसे हो गये। खैर हमें जब पम्प नहीं मिला तो हम वापस शिमला की ओर चल दिये, रामपुर से 10 किलोमीटर पहले एक पम्प आता है। यहाँ से अपनी बाइक की टंकी फ़ुल करा कर आगे की यात्रा पर चल दिये।


रामपुर से पहले सडक किनारे पर विशाल बजरंगबली की जय हो।
रामपुर से पहले उसी मंदिर के बाहर मेरा भी।

आगे शिमला की ओर नहीं, बल्कि रामपुर की ओर, हमें जाना था रोहडू होते हुए, जिसके लिये रामपुर से 7 किलोमीटर पहले सीधे हाथ वाला मार्ग रोहडू की ओर जाता है जिसकी दूरी मात्र 81 किलोमीटर है। उल्टे हाथ पर सतलुज नदी है, जो आगे रामपुर के मध्य से होते हुए चली आ रही है। सुबह के 8 बजने वाले थे जब इस मोड से आगे के लिये चले थे, यहाँ खाने पीने को कुछ नहीं था, अत: आगे के लिए चलते रहे। इस मार्ग पर भीड नाममात्र की ही थी, कभी-कभार ही कोई वाहन आता था। सडक कोई खास चौडी तो नहीं थी, फ़िर भी 12-15 फ़ीट तो रही होगी। नीरज के पेट में भूख के मारे परेशानी हो रही थी, मार्ग में एक दुकान मिली उससे लेकर कुछ नमकीन खायी गयी, फ़्रिज का पानी पिया, यहाँ फ़्रिज का ठन्डा पानी देख सब चौंक गये थे। वैसे रामपुर में भी रात को छत के पंखे चलाकर सोये थे। मौसम देहरादून जैसा ही था या ये कहो कि हम बर्फ़ से हो कर आये थे जिससे हमें ऐसा लगा हो। जहाँ हमने नमकीन खायी थी सामने ही सेब के बाग थे लेकिन यहाँ पर दुकान वाले ने कहा कि सेब अभी कच्चे है। उससे खाने का पता किया तो उसने एक जगह तकलेच के बारे में बताया जो उसकी दुकान से 18 किलोमीटर आगे थी। 
ऐसा भी मार्ग कहीं-कहीं आ जाता था।
नौनिहाल स्कूल जाते हुए।

अब खाने मिलने की जगह का पता चल गया था, अत: सबके मन में भूख ने जोर लगा दिया था, लेकिन जब इस जगह के पास आये तो पता चला कि वो जगह तो इस मार्ग से एक किलोमीटर हट कर है, दो किलोमीटर बेकार में चलने के बजाय, हम आगे की ओर चलते रहे। अब मार्ग की हालत कुछ डावाडोल होने लगी थी, सडक जगह-जगह से खराब आ रही थी, कही-कही तो कीचड भी मिल रहा था चढाई भी थी, लेकिन ऐसा नही था जैसा बागीपुल से आगे है। बाइक पर सवारी ऊपर से सडक खराब होने के कारण पीछे बैठने वाली सवारी परेशान होने लगी थी। हर 10 किलोमीटर के आसपास नीरज बाइक रुकवा देता था, बाकि सब भी अपने-अपने हाथ पैर सीधे कर लेते थे। बारिश ने भी बीच-बीच में डराने की कोशिश की थी, लेकिन हम चलते रहे। आखिर हम इस मार्ग की सबसे ऊँची जगह साँकुरी पर जाकर ही रुके। यहाँ एक छोटा सा गाँव है कुछ दुकाने है, ये एक दर्रे जैसा ही है। यहाँ से एक मार्ग नारकंडा जाता है दूसरा रोहडू होते हुए चकराता, व तीसरा रामपुर जिससे हम आ रहे थे।
चाऊमीन वाली दुकान पर ये चिपका हुआ था। अच्छा लगा, इसका भी ले लिया।

यहाँ हमने एक दुकान से चाऊमीन बनवा कर खायी थी, जब तक चाऊमीन बनी तब तक हम यहाँ आस-पास घूम आये थे। एक अंग्रेजों का बनाया हुआ घर भी है। और कुछ पुराने घर भी यहाँ मिले थे। ये जगह बिल्कुल जलोडी जोत के जैसी ही लगती है, चढाई उतनी भयंकर नहीं है, मार्ग लम्बा है जिस कारण चढाई आसान हो गयी है। यहाँ से रामपुर 60 किलोमीटर के आसपास है। खा पी कर जब आगे चले तो दो मार्ग थे हम उल्टे हाथ वाले मार्ग पर रोहडू के लिये नीचे की ओर उतर गये, यहाँ से रोहडू तक 20 किलोमीटर तक ढलान ही ढलान थी। सडक भी काफ़ी अच्छी बनी हुई थी। मार्ग के शानदार नजारों का लुत्फ़ लेते हुए हम चले जा रहे थे, कि एक जगह पर तिब्बती लोगों जैसा मकान या मंदिर दिखाई दिया सडक से दूर था, अत: हम दूर से उसे देख, फ़ोटो ले कर आगे चल दिये थे। रोहडू शहर के नजदीक जाते ही कुछ देर आराम किया गया। यहाँ बिल्कुल बडॆ-बडे शहरों जैसे मकान व होटल बने हुए है। मार्ग के सीधे हाथ पर एक विशाल मैदान भी देखा, जिसमें कोई मैच भी हो रहा था।
ये है वो दर्रा सामने जा रहा है, रोहडू का मार्ग।
कैसा लगा ये नजारा, बताना।

ये रही अंग्रेजों की बनायी हुई कोठी।

सामने घाटी में ही रोहडू भी है कहीं पर।
रोहडू से पहले एक लोहे के जाल वाला पुल है।
बिल्कुल स्क्रीन सेवर जैसा नजारा है ना। नीरज ने लिया था।
अपनी नीली परी व इसके चालक का भी एक हो जाये।
ये है वो तिब्बती जैसा मंदिर।

ये है रोहडू का मैदान देखो कितना बडा है।

यहाँ के बस अडडे से होते हुए हम सीधे नाक की सीध में आगे की ओर चलते गये, जबकि उतराखण्ड जाने वाला मार्ग बस अडडे के एकदम साथ ही सीधे हाथ पर ही मुडा हुआ है, लेकिन कोई बोर्ड नहीं होने के कारण हमें पता ही नहीं चला, कोई दो किलोमीटर आगे चीडगाँव वाले मार्ग पर जाकर हमने पता किया, तब हम वापस आये उसी बस अडडे पर जहाँ से हम आगे चले गये थे, यहाँ पर नीरज को फ़िर से भूख लगी, वह डॆढ दर्जन केले ले आया था। नितिन ने अपने लिये चप्पल खरीदी थी, विपिन ने और मैंने कुछ नहीं लिया। हम वापस आते हुए बस अडडे के साथ उल्टे हाथ की ओर जाने वाले मार्ग पर मुड गये।मार्ग अब उल्टे हाथ हो गया था, नहीं तो आते समय सीधा हाथ ही था। यहाँ से एक नदी के किनारे-किनारे आगे का सफ़र चलता रहता है। सारा मार्ग ढलान वाला था, लेकिन हिमाचल की ये सडक ठीक ठाक ही थी, शानदार नहीं थी। इस शहर को पार करने के बाद ही हमने केले खाये थे। यहाँ कालेज के छात्रों के मध्य खुले आम आशिकी हो रही थी। धीरे-धीरे वो जगह भी आ गयी जहाँ सीमा पर हिमाचल का आखिरी चैक पोस्ट था। यहाँ आने जाने के लिये जीप का प्रयोग हो रहा था। यहाँ भी हमारे लठ देख कर पुलिस वाला चौंक गया था।


यहाँ से शुरु होता है अपना उतराखण्ड।

अब तो मार्ग की हालत खराब ही थी, हाँ जहाँ से उतराखण्ड शुरु होता है, वहाँ से सडक एक बार फ़िर शानदार आ गयी थी, यहाँ एक बडा झमेला देखा कि कुछ दूर पर देखो तो हिमाचल का बोर्ड दो किलोमीटर आगे जाने पर फ़िर उतराखण्ड का बोर्ड ये चक्कर बडा घमचक्कर था। इस प्यारे से मार्ग पर चलते हुए, एक जगह सरकारी नल पर पानी पीने के लिये रुके थे, तो वहाँ कुछ स्कूली लडकियाँ पहले से पानी पी रही थी जो हमें देखते ही वहाँ से भाग खडी हुई थी, अब पता नहीं हमारी शक्ल से डर गयी थी, या हमारे लठों से। कुछ आगे चलने पर उतराखण्ड का पहला कस्बा त्यूनी आ गया था। वैसे एक कस्बा आराकोट भी आता है लेकिन वो एकदम बोर्डर पर है, जिसका कितना भाग हिमाचल में व कितना उतराखण्ड में ये कहना मुश्किल है? यहाँ पर रुक कर खाना खाया गया। नीरज ने समौसे खाये थे, हम तीनों ने राजमा व रोटी का स्वाद भर पेट लिया था। यहाँ से एक मार्ग एशिया के सबसे ऊँचे चीड के पेड को देखने के लिये जाता है, लेकिन यहाँ आकर पता चला कि वो पेड तो दो साल पहले ही टूट गया था। बडा दुख हुआ, बेचारा पेड हमारा इंतजार भी ना कर सका।


नदी किनारे का प्यारा सा नजारा। इस मार्ग से ही आये है।

जब यहाँ से आगे चले तो एक पुल आता है, चकराता जाने वाले इस पुल को पार करते है, नदी के इस किनारे वाले हिमाचल में चलते रहते है, यहाँ पर दो सबसे बडे घुमक्कड संदीप पवाँर व नीरज जाट जी से एक छोटी सी भूल हो गयी जो आगे जाकर एक बडी गलती बन गयी थी। असल में हमें चकराता जाना था, लेकिन इस बात का ध्यान नहीं रहा कि पुल त्यूनी से पार करना है हम दोनों इस भूल में रहे कि पुल पार करके मोरी व बडकोट वाला मार्ग है जो आगे यमुनौत्री भी चला जाता है। पुल पार करते ही दो मार्ग हो जाते है, उल्टे हाथ मोरी बडकोट व सीधे हाथ वाला चकराता होते हुए मंसूरी देहरादून की ओर चला जाता है। हमने पुल पार ही नहीं किया, असलियत में मुझे तो इस पुल पर कोई बोर्ड नजर नहीं आया था, एक बोर्ड था, वो आधे किलोमीटर पहले था। हम इस नदी के साथ-साथ चलते रहे, लेकिन सबसे बुरी बात जो हुई कि मार्ग की हालत बहुत ही बुरी थी, ऊपर से एक बोर्ड जो हर दो तीन किलोमीटर पर आता था कि देहरादून इतना, पौंटा इतना बाकि है। जिससे हम इसे देहरादून वाला मार्ग समझ रहे थे, ये देहरादून तो जाता था, परन्तु ये चकराता होते हुए नहीं जाता था।
नदी पार करने के लिये ऐसे-ऐसे पुल भी बनाये हुए है।

त्यूनी से चकराता था 84 किलोमीटर, जब हम 50 किलोमीटर आगे आ गये तो हमारे से आगे चल रहे नितिन व विपिन एक वाई आकार दोहराहे/तिराहे पर रुके हुए मिले, अब दो पैदल वाले यात्रियों ने बताया कि आप तो गलत रास्ते पर आ गये हो। खोपडी खराब, गलती का पता भी चला तो पूरे 50 किलोमीटर आगे जाकर। अब इस गलती का सुधार कैसे हो? तो उन्होंने बताया कि 4-5 किलोमीटर आगे जाकर एक पुल उल्टे हाथ पर आयेगा, जिसे पार करते ही आप उतराखण्ड में चले जाओगे। वहाँ से 18-20 किलोमीटर आगे जाकर, फ़िर आपको उल्टे हाथ वाले मार्ग पर जाना होगा, क्योंकि ये मार्ग आगे तैयार नहीं हुआ है। जिससे आप आगे जाकर सहिया नाम की जगह पर पहुँच जाओगे जो कि चकराता-कालसी-विकासनगर मार्ग पर आता है। चल दिये जी उनके बताये मार्ग पर पुल पार किया फ़िर वो मोड भी आया, मुड गये इस मोड से सहिया 52 किलोमीटर था, व सहिया से चकराता 22 किलोमीटर था। कुल मिलाकर हमारी छोटी सी भूल 75-80 किलोमीटर भारी पडी वो भी बेकार से सडॆ से खड्डे वाले मार्ग पर, जहाँ पीछॆ बैठने वालों के पिछवाडे का बुरा हाल हो गया था। गनीमत ये रही कि उतराखण्ड में आते ही सडक की हालत अच्छी हो गयी थी। नहीं तो बेचारे पीछे बैठने वाले मारे जाते, दो घन्टे और सहते।
मार्ग में कैसे-कैसे पौधे आते है।

जब सहिया 32 किलोमीटर बाकि था तो एक और गजब हो गया, मैं आगे चल रहा था, जब नितिन आता हुआ नहीं दिखाई दिया तो हम भी रुक गये तभी एक मोड से नितिन पैदल बाइक चलाता आ रहा था, विपिन पीछे-पीछे पैदल आ रहा था। मैं व नीरज परेशान कि इन्हे क्या हुआ, हम वापस उनके पास गये तो पता चला कि अगले पहिया में पेन्चर हो गया है। अब मेरी बाइक पर तीन सवारी थी नितिन अकेला पीछे होकर बाइक चला रहा था। सहिया से 18 किलोमीटर पहले अंधेरा हो गया था तो सोचा कि रात यही रुका जाये, लेकिन उस गाँव में रात रुकने का प्रबन्ध नहीं था अत: हम सहिया के लिये चल दिये, 8:30 पर हम सहिया आ चुके थे। यहाँ एक कमरा लिया गया जिसका किराया 300 रुपये टी वी सहित था। खाना खाया, बाइक में पेन्चर लगवाया व दस/ग्यारह बजे तक सब सो गये थे।

ये है सहिया, और सामने वो मार्ग जहाँ से हम रात में आये थे।


आगे की यात्रा में चकराता का टाईगर फ़ाल रहेगा, कालसी का शिलालेख होगा।
इस यात्रा का आगे का भाग देखने के लिये   यहाँ क्लिक करना     होगा


                    इस यात्रा का जो भाग देखना चाहते हो उसके लिये यहाँ नीचे क्लिक करना होगा

भाग-01-दिल्ली से पिंजौर गार्ड़न तक।
भाग-02-पिंजौर का भव्य गार्ड़न
भाग-03-पिंजौर से जलोड़ी जोत/जलोढ़ी दर्रा

भाग-04-सरोलसर झील व रघुपुर किले के अवशेष
भाग-05-सैंज से निरमुन्ड़ होते हुए जॉव तक
भाग-06-सिंहगाड़ से ड़न्ड़ाधार की खड़ी चढ़ाई कर, थाचडू होते हुए काली घाटी तक


भाग-07-काली घाटी से भीमद्धार/भीमडवार तक
भाग-08-पार्वती बाग, नैन सरोवर होते हुए, श्रीखण्ड़ महादेव शिला के दर्शन
भाग-09-वापसी श्रीखन्ड़ से भीमड़वार होते हुए, रामपुर बुशैहर तक


भाग-10-रामपुर से रोहड़ होते हुए चकराता तक।
भाग-11-चकराता  का टाईगर फ़ॉल/झरना
भाग-12-सम्राट अशोक कालीन शिलालेख, कालसी में


भाग-13-पौंटा-साहिब गुरुद्धारा
भाग-14-पौंटा-साहिब से सहारनपुर-शामली होते हुए दिल्ली तक।
भाग-15-श्रीखन्ड़ यात्रा पर जाने के लिये महत्वपूर्ण बाते।

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28 टिप्‍पणियां:

दीपक बाबा ने कहा…

sundr chitr.......
dilchasp varnan...

संजय @ मो सम कौन... ने कहा…

अरे यार, कब से इंतजार कर रहा था नई पोस्ट का। लेकिन इंतज़ार करना वसूल हुआ।
बैस्ट ऑफ़ लक, ऐसे ही घूमते रहो और हमें घर बैठे शानदार जानकारियाँ देते रहो।

नीरज मुसाफ़िर ने कहा…

1. रोहडू में जो मैदान था, वो हमारे उल्टे हाथ की तरफ नहीं बल्कि सीधे हाथ की तरफ था- सुधार कीजिये।
2. बिल्कुल स्क्रीन सेवर जैसा नजारा है ना। - भईया, फोटोग्राफर को भी फेमस कर देते।
3. उतराखण्ड जाने वाला मार्ग बस अडडे के एकदम साथ ही मुडा हुआ है - हम चीडगांव की तरफ चलने लगे थे। देखा जाये तो चीडगांव से उत्तराखण्ड नाममात्र की ही दूरी पर है। हां, पैदल चलना पडता लेकिन हमारे नीचे वो ट्र्ररर खटोला बंधा हुआ था।
4. हम आगे बस अडडॆ के साथ सीधे हाथ की ओर जाने वाले मार्ग पर मुड गये। - फिर गलती। जब नींद आ रही है तो पोस्ट लिखनी क्या जरूरी थी? जब रोहडू में चीडगांव की तरफ से आयेंगे तो हम उल्टे हाथ की तरफ मुडे थे। क्यों गुमराह कर रहे हो?
5. जहां केले खा रहे थे, वहां कहीं चुम्मा वुम्मा भी तो चल रहा था।
6. वहाँ कुछ स्कूली बच्चे पहले से पानी पी रहे थे जो हमें देखते ही वहाँ से भाग लिये थे, अब पता नहीं हमारी शक्ल से डर गये थे या हमारे लठों से। - बच्चे नहीं थे, जवान लडकियां थीं। आसपास हमारे ही अलावा कोई आदमजात नहीं थी, इसलिये डरना ही पडा उन्हें। और हम कौन सा वास्तव में पानी पीने के लिये रुके थे?
7. उतराखण्ड का पहला कस्बा त्यूनी - गलत, त्यूनी से भी पहले आराकोट है जो बॉर्डर के बिल्कुल पास में है और उत्तराखण्ड में है।
8. पुल पार करते ही दो मार्ग हो जाते है, सीधे हाथ मोरी बडकोट व उल्टे हाथ वाला चकराता होते हुए मंसूरी देहरादून की ओर चला जाता है। - अरे थारा भला हो जा। फिर से वही सीधे उल्टे का चक्कर। बिल्कुल गलत जानकारी।
9. नितिन व विपिन एक दोहराहे पर रुके हुए मिले, - दोराहे पर नहीं तिराहे पर। वे अनाडी हमेशा तिराहे पर ही रुकते थे।
10. और भाई आखिर में, बडा भयानक सफर था आज का बाइक पर। कान पकड रखे हैं कि आगे से कभी भी बाइक पर नहीं जाऊंगा। होगी जिसके लिये बाइक जिन्दाबाद, अपने लिये तो बाइक मुर्दाबाद। बस, रेल और अपने हरफनमौला पैर- घुमक्कडी के लिये इतना ही काफी है।
देखा जाये तो गलती कहां हुई? उस टूट चुके पेड की वजह से हम भटकते-फिरते रहे। ना वो पेड टूटता, ना हम दोबारा हिमाचल में घुसते और ना यह आफत हम पर पडती।

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

ऐसी ही किसी मनोरम जगह पर बैठकर साहित्य सृजन हो।

Vidhan Chandra ने कहा…

भैया! गलतियाँ तो नीरज ने निकाल दी , लेकिन नीरज भाई बाईक से घूमने का भी अपना एक मजा है , वैसे सीख लो बाईक चलाना !! अरे आगे अभी बहुत यात्राये करनी है , बाईक से स्पीड बढ़ जाएगी ...........जिंदगी एक सफ़र है सुहाना .....यहाँ कल क्या हो किसने जाना ....! आप की एक फोटो चोरी की है माफ़ करना !!

Kajal Kumar's Cartoons काजल कुमार के कार्टून ने कहा…

सुंदर विवरण मनोहारी चित्र. वाह.

Arti ने कहा…

Manmohak Chitra... Sundar Vivran...
The bridge and the mighty hills and the amazing beauty of the nature capture the heart and cant take eyes off it...

डॉ टी एस दराल ने कहा…

काले बादलों की घटा , हनुमान मूर्ती और ब्रिटिश बंगला --बहुत खूबसूरत तस्वीरें । आपके साथ पूरी यात्रा कर ली । बहुत आनंद आया ।
रामपुर के रास्ते में एक सुरंग का निर्माण हो रहा था । क्या वो पूरा हो गया ?

आपको इस यात्रा की पुस्तक निकालनी चाहिए ।
अति सुन्दर ।

ब्लॉ.ललित शर्मा ने कहा…

ओ तेरी के, थारा भला हो ज्या, मेरे उरे भी लड़ लिए, दायें बाएं के चक्कर में........हा हा हा बढ़िया सफ़र रहा जलेबी वाला......:)

vidhya ने कहा…

इतना सुन्दर फोटो
इतना सुन्दर सफ़र बहुत ही मन को छु लिए /
हनुमान जी का मूर्ति बहुत सुन्दर है
मुझे भी जानेका उत्साह हो रहा है
लेकिन bike मै आनन्द ही निराली है
सुंदर

virendra sharma ने कहा…

संदीप भाई ये सूक्तियों की ही कहाँ से उठा लाये ?जहां प्रेम है नियम कायदे नहीं हैं .....इतने बेहतरीन रास्ते और मोर से नाचते कैक्टस क्या बात है और वह गन्ने का स्वाद बतलाना आपका .शाबाश भाई

रेखा ने कहा…

हमारे लठ देखकर बोला कि पहले गन्ना खिलाओ तब बताऊँगा कि पेट्रोल पम्प कहाँ है, जब उसके मुँह के आगे लठ अडा दिये तो उसकी आँखे फ़टी की फ़टी रह गयी कि गन्ने लठ कैसे हो गये।

कभी कभी ऐसे भी लोग रस्ते में मिलते है ...

अशोक कुमार शुक्ला ने कहा…

Bahut sundar yaatra vritant.
Badhai aur sadhuwaad.

Suresh kumar ने कहा…

संदीप भाई शानदार फोटो और जो चाउमीन
की दुकान पर शलोक लिख रखें है बहुत ही
बढिया हैं लगे रहो ....

Sunil Kumar ने कहा…

इसे कहते है ब्लोगिंग का लाभ घर बैठे घुमा दिया आपने फोटो बहुत सुंदर कंपनी का नाम और मोडल बताएं ताकि मेरे जैसा एक गरीब ब्लोगर इसके बारे में सोंच सके , आभार

नीरज मुसाफ़िर ने कहा…

हाँ, इब ठीक है. भईया, इस बायें-दायें के चक्कर में मैं भी हमेशा पड़ जाता हूँ. इसलिए लिखने के बाद दस बार पढ़ता हूँ, तब दायें बाएं क्लियर होते हैं.

रविकर ने कहा…

बहुत सुन्दर
बधाई ||

शूरवीर रावत ने कहा…

संदीप जी, इस पोस्ट के बारे में कुछ तो नीरज जी ने लिखा है और कुछ मै भी लिख दूं तो आप नाराज ना होना. जब रोहडू से आप चले तो रास्ते में हाटकोटी जगह पड़ी होगी. हाटकोटी में हाटेश्वरी देवी का कांगड़ा शैली में बना हुआ भव्य मन्दिर है. शायद आपने देखा नही. वैसे रोहडू का नाम आज विश्व भर में है क्योंकि world wrestling champion दलीप सिंह राणा उर्फ़ खली जी रोहडू के रहने वाले हैं. रोहडू, हाटकोटी व आराकोट पबार नदी के दायें तट पर स्थित है और त्यूणी के ठीक पहले पबार और टोंस नदी का संगम है.(पबार नदी का अस्तित्व यहाँ पर समाप्त हो जाता है. टोंस नदी हर की दून से आ रही है, जहाँ आप सितम्बर में जाने वाले हैं). आपने त्यूणी में टोंस को पार करना था और फिर दायीं ओर मुड़ जाना था आप चकराता पहुँच जाते. परन्तु आपके लेख से लगता है कि आपने टोंस को पार ही नहीं किया और दायें तट पर चलते रहे. अठारह किलोमीटर पर आपको अटाल नाम का छोटा सा क़स्बा अवश्य पड़ा होगा जो कि देहरादून जिले का ही हिस्सा है. फिर अटाल से आप रोणहाट की ओर बढे या सिलाई की ओर, पता नहीं चल पा रहा है. आपने मीनस नाम की जगह पर टोंस नाम की जगह को पार किया होगा...... बाहरहाल.
आपके हिम्मत और आपके जज्बे की दाद देनी होगी. आपकी सामग्री ज्ञानवर्धक तो है ही उत्साहवर्धक भी है. और अपने को देख कर दुःख भी होता है कि यार मै क्यों नहीं संदीप जी के साथ हो लिया.खैर.

virendra sharma ने कहा…

ऐसा ही लगता अन्ना संदीप जी ,लेकिन लफडा तो अब इन तोतों के साथ ही हो गया . ,हो सकता है इन्हें पौराणिक कपिल मुनि की सचमुच आवाजें ही सुनाई दे रहीं हों ,ऑडियो हेल्युसिनेशन हो रहें हों ,दुचित्ता और दुरंगा तो यह आदमी है ही ,आदमी का आदमी जोगी का जोगी ,जासूस का जासूस ,हद तो यह है कोंग्रेस में तोतों के भी आगे तोते होतें हैं ,कुछ प्राधिकृत तोतें हैं जो गाली गुफार में माहिर हैं .पहले ऐसे तोतों को वैश्या के तोते कहा जाता था ,अब ये हाई कमान के तोते कहातें हैं ,गौरवानित होतें हैं .वेदांगी का तोता मन्त्र जाप करता था .राजनीति का जालसाजी .आपकी ब्लोगिया हाजिरी के लिए आभार ,७५ %तो हमारी भी होंगी "जाट देवता के सफ़र "पर .

Rajesh ने कहा…

Very nice.

दर्शन कौर धनोय ने कहा…

शानदार फोटू ! शानदार यात्रा ! स्कुल के बच्चे बहुत प्यारे लगे ..और पुल तो बहुत ही सुंदर थे ...तुम्हारा साहस बरकरार रहे ...

बेनामी ने कहा…

Dilip Singh Rana is from Nainidhar (a village in Sirmour District of Himachal Pradesh)

Maheshwari kaneri ने कहा…

शानदार चित्र ! शानदार यात्रा..बहुत अच्छा..शुभकामनाएँ

मदन शर्मा ने कहा…

मैं समय न मिलने और कुछ व्यक्तिगत कारणों से बहुत देर से पहुँच पाया ....माफी चाहता हूँ.
बहुत सुन्दर चित्र मय प्रस्तुति !!!!
लेकिन एक बात याद रखिये ये तीर्थ स्थल हमें एक दुसरे से जोड़ने के लिए ही बनाये गए हैं देवी देवताओं की पूजा तो एक बहाना है एक दुसरे के नजदीक आने का !!

शूरवीर रावत ने कहा…

Thanx. anonymous jee, once I had been Rohdu and I heard that he is from that place. But Rohdu is not in Sirmour, I think it is in Shimla dist.Isn't it?

नीरज गोस्वामी ने कहा…

बेहतरीन फोटो और दिलचस्प वर्णन...

नीरज

Joshi umesh ने कहा…

ये चाउमीन का नाम पहलीबार सुना । वैसे तो आप शाकाहारी है तो शाकाहारी ही होगा । सुँदर यात्रावर्णन ।ी है तो शाकाहारी ही होगा । सुँदर यात्रावर्णन ।

बेनामी ने कहा…

yes Subirji, Rohru is in Shimla Distt.

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