तीन-तीन खीरे जैसे केले खा कर हम इस गार्डन के टिकट घर पर जा पहुँचे। पिंजौर गार्डन के मुख्य द्धार पर ही हम खडे थे। यहाँ अंदर जाने के लिये बीस रुपये का टिकट लेना पडता है। हमनें चार लिये, चंडाल चौकडी के लिये चार ही चाहिए थे। अन्दर जाने का और रास्ता नहीं था। यह गार्डन चंडीगढ़ से मात्र 22, पंचकूला से 15 किलोमीटर दूर है। यह अम्बाला जिरकपुर से कालका जाने वाले मार्ग पर आता है। चंडी मंदिर भी इसी रास्ते में आता है।
लो जी कर लो आप भी इस गार्डन के दर्शन जी।
इस गार्डन के बारे में इस यात्रा को शुरु से पढने के लिये यहाँ क्लिक करे।
ऐसा ही शानदार है ये गार्डन
बिजली के मोटर के जोर पर चलता हुआ फ़ुव्वारा है।
घडी के सामने/ फ़ुव्वारे के सामने कहो, खडे होकर लिया गया चित्र है।
घडी के सामने खडे हो लिया गया चित्र है। क्या समय हुआ है, इस घडी में कोई बतायेगा?
अब हमारे बारे में
चल भाई अब घास के पास चलते है।
ये है जी जल-महल का चित्र।
जल-महल के सामने की गैलरी का चित्र है।
वो देखो नीरज का फ़ोटो जल-महल के पास खडा है।
यहाँ से पीछे का नजारा देखो, जल-महल कैसा लगता है।
आखिरी छोर तक का दिखाई दे रहा है।
फ़ुव्वारे के आगे खडे होकर लिया गया चित्र है।
ये रही जाटो की त्रिमूर्ती, इनसे बच के रहना। तीनों एक से बढकर एक है।
हाय गुडहल का प्यारा सा फ़ूल कितना ताजा है।
ये देखो इस बेशर्म को क्या ड्रामा कर रहा है।
ये रहा विपिन सीधा है ना, अरे भाई तीन-तीन सिरफ़िरे जाटों के साथ कोई अकेला पण्डित क्या कर सकता है।
यहाँ फ़ल नहीं थे, वर्ना तोडते जरुर।
चारदीवारी के ऊपर जाने का मार्ग है।
चारदीवारी के ऊपर जाकर लिया गया फ़ोटो है।
चारदीवारी के ऊपर जाकर देखो, कैसा नजर आता है, ये प्यारा सा बाग।
बाग के अन्दर ये क्या है, देखो कौन बताता है।
वापसी में बाहर आते हुए फ़ुव्वारे के पास लिया गया चित्र है।
खा पी कर ठीक सवा बारह बजे हम आगे की यात्रा पर चलने को तैयार थे। यहाँ से कुछ आगे चलते ही एक बाजार आ गया, जहाँ से नितिन ने एक रैनकोट खरीदा, हमने एक फ़ोटो लिया। बारिश का खतरा तो था ही, सफ़र भी बहुत बाकि था। विपिन व नितिन की तो कैसी मजाक ली कि याद करेंगें।
लो जी फ़िर आ गये शिमला जाने वाले मार्ग पर। चलो श्रीखण्ड की ओर
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इस गार्डन को यदविन्दर गार्डन भी कहा जाता है, नवाब फ़िदैल खान द्धारा इसका नमूना बनाया गया था। कई अंग्रेज अफ़सर भी यहाँ रहे थे। जो लोग कश्मीर का मुगल गार्डन नहीं देख सकते है, उनके लिये ये उसकी लगभग वैसी ही नकल है। इसे भी कभी मुगल गार्डन कहा जाता था। यह लगभग एक सौ एकड जमीन पर बना हुआ है, चारों तरफ़ ऊंची-ऊंची दीवार है, यह आयताकार बना हुआ है, हर दीवार में दरवाजा है, हर कोने में एक सीढियों वाला जीना बना हुआ है, हम भी उस जीने पर जा पहुँचे थे। जीने से ऊपर जाकर एक अलग नजारा नजर आता है। इस गार्डन का अपना एक छोटा सा नन्हा सा चिड़ियाघर, पौधों की नर्सरी, जापानी बगीचा और पिकनिक लॉन आदि-आदि है।
सप्ताह के आखिरी दो दिनों में कुछ ज्यादा ही भीडभाड रहती है, फव्वारे भी मन को मोह लेते है। बताते है कि रात में रोशनी से भी यह गार्डन नहा जाता है। इसमें कई महल जैसे शीश महल (कांच का महल), रंग महल (चित्र महल), जल महल (पानी का महल) का निर्माण हुआ है जो देखने में काफ़ी सुंदर भी है, अन्य मुगल गार्डन की तर्ज पर यह भी एक ढलान वाली भूमि पर बना हुआ है और फव्वारे व सुंदर मंडप (शादी वाला) के साथ सजाया गया है. बगीचे के बीचों-बीच में पानी की एक धारा है। पानी की धारा के दोनों किनारों के साथ-साथ आप आराम से घूम सकते हो। बडे-बडे विशाल पेड, फ़ल-फ़ूल के पेड सब के सब एक लाईन में लगा कर बनाये हुए है, इस गार्डन का सौंदर्य दिन में इतना शानदार है तो रात में तो और भी शानदार लगता होगा। बताते है कि इस जगह पर कुछ विशेष कार्यक्रम जैसे बैसाखी (वसंत) पर्व अप्रैल में, और जून या जुलाई में मैंगो फेस्टिवल भी मनाया जाता है।
बिल्कुल वहीं से आये है हम भीबिजली के मोटर के जोर पर चलता हुआ फ़ुव्वारा है।
जब हम इस गार्डन में गये तो कुछ अलग ही नजारा था, सब अपनी-अपनी सैटिंग(गर्ल फ़्रेंड) को साथ ले कर आये थे, और हमें देखते ही उनकी सैटिंग भाग खडी होती थी, आखिर उन्हे भी डर था कि इन चारों में से दो कुवाँरे है, एक विपिन व दूसरा नीरज वो तो शुक्र रहा कि उस दिन नीरज ने मुँह भी नहीं धोया था, नहीं तो किसी की सैटिंग कोई और ले जाता, वो भी कुछ नहीं कहता, कुछ कह कर उसे पिटना थोडे ही ना था, इस चंडाल चौकडी से। ये तो रही मजाक की बात, वैसे हमने किसी को कुछ नहीं कहा, आपस में हंस-बोल कर पूरे-पूरे मजे उठाये। अरे लडकियाँ सच में हम चारों को देख कर डर जाती थी, हम इस बाग में जहाँ-जहाँ गये आशिकों ने हमारा स्वागत हर उस जगह किया जहाँ वो छुप सकते थे। ये इश्क करने वालों के लिये एक बेहद सुरक्षित स्थल है। अगर कोई ब्लॉगर इस गार्डन के आसपास रहता हो तो उसे इस सच्चाई का जरुर पता होगा। एक सरदार की पंजाबन (पता नहीं सैटिंग थी, या घरवाली) बडी सुंदर थी, नितिन उसे घूरे जा रहा था, और सरदार नितिन को, दोनों की सरदार व नितिन की घूरा-घारी बाहर आने तक चलती रही थी। वैसे जाटनी व सरदारनी होती ही कुछ खूबसूरत है।
इस बाग में आम के पेड कुछ ज्यादा ही थे, परन्तु आम हमारे आने से पहले ही तोड लिये गये थे, शाय़द उन्हे पता चल गया था कि हमारी चंडाल चौकडी 16 जुलाई को यहाँ पर धावा बोल रही है। (इस यात्रा पर दूसरे बाइक वाले की हाँ पहले हो जाती तो हमारे साथ भाई ललित शर्मा छ्तीसगढ वाले भी चलने के लिये एकदम तैयार थे, लेकिन दूसरी बाइक की कभी हाँ कभी ना में उनकी यात्रा रह गयी। ललित भाई अगले साल सही।) इस बाग में फ़ल थे नहीं, अगर होते तो क्या हम उन्हे तोडे बिना मानते, बताईगा जरुर।
अब हमारे बारे में
हमारी चंडाल चौकडी जिधर निकल जाती थी। लोग हमें ऐसे घूरते थे कि पता नहीं किस ग्रह से आये है। सडक पर तो पूछो मत, लठ के साथ वो भी चारों के पास, किसी की हमारे साथ बोलने की भी हिम्मत नहीं होती थी। एक विपिन ही थोडा शर्मीला सा था, नहीं तो तीनों जाट पूरे बेशर्म ठहरे, एक सीमा के अन्दर। इस गार्डन में एक कमाल की दीवार घडी देखी जो उल्टी चलती थी, अरे भाई उसमें संख्या भी उल्टी ही लिखी थी, है ना कमाल की घडी, अब ना कहना कि घडी भी उल्टी चल सकती है।
चल भाई अब घास के पास चलते है।
ये है जी जल-महल का चित्र।
जल-महल के सामने की गैलरी का चित्र है।
वो देखो नीरज का फ़ोटो जल-महल के पास खडा है।
यहाँ से पीछे का नजारा देखो, जल-महल कैसा लगता है।
आखिरी छोर तक का दिखाई दे रहा है।
फ़ुव्वारे के आगे खडे होकर लिया गया चित्र है।
ये रही जाटो की त्रिमूर्ती, इनसे बच के रहना। तीनों एक से बढकर एक है।
हाय गुडहल का प्यारा सा फ़ूल कितना ताजा है।
ये देखो इस बेशर्म को क्या ड्रामा कर रहा है।
ये रहा विपिन सीधा है ना, अरे भाई तीन-तीन सिरफ़िरे जाटों के साथ कोई अकेला पण्डित क्या कर सकता है।
यहाँ फ़ल नहीं थे, वर्ना तोडते जरुर।
चारदीवारी के ऊपर जाने का मार्ग है।
चारदीवारी के ऊपर जाकर लिया गया फ़ोटो है।
चारदीवारी के ऊपर जाकर देखो, कैसा नजर आता है, ये प्यारा सा बाग।
बाग के अन्दर ये क्या है, देखो कौन बताता है।
फ़ोटो खींच-खांच आशिकों को देख, हम इस गार्डन से बाहर आ गये, बाहर आते ही सबने पानी पिया, नीरज ने पानी पीने के साथ मुँह भी धोया लेकिन अब क्या फ़ायदा था, मुँह धोने का, सैटिंग तो अंदर ही रह गयी थी। बाहर जहाँ हमारे चार लठ धरे थे, उस के पास आये उसने ब्रेड-पकौडे बना दिये थे, मन तो था दो-दो या तीन-तीन ब्रैड-पकौडे चट कर जाये, लेकिन उस जालिम ने उनमें बीच में कुछ भी तो नहीं मिलाया था। आलू आदि, बस बेसन में एक ब्रैड बीच में से काट कर आपस में जोडकर उबाल दिये थे, इसलिये एक-एक में ही बस-बस कहनी पडी।
वापसी में बाहर आते हुए फ़ुव्वारे के पास लिया गया चित्र है।
खा पी कर ठीक सवा बारह बजे हम आगे की यात्रा पर चलने को तैयार थे। यहाँ से कुछ आगे चलते ही एक बाजार आ गया, जहाँ से नितिन ने एक रैनकोट खरीदा, हमने एक फ़ोटो लिया। बारिश का खतरा तो था ही, सफ़र भी बहुत बाकि था। विपिन व नितिन की तो कैसी मजाक ली कि याद करेंगें।
लो जी फ़िर आ गये शिमला जाने वाले मार्ग पर। चलो श्रीखण्ड की ओर
बाकि अगली पोस्ट में..जलोडी जोत तक का सफ़र पढने के लिये यहाँ क्लिक करे।
इस यात्रा का जो भाग देखना चाहते हो उसके लिये यहाँ नीचे क्लिक करना होगा
भाग-01-दिल्ली से पिंजौर गार्ड़न तक।
भाग-02-पिंजौर का भव्य गार्ड़न
भाग-11-चकराता का टाईगर फ़ॉल/झरना
भाग-13-पौंटा-साहिब गुरुद्धारा
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32 टिप्पणियां:
@बाग के अन्दर ये क्या है, देखो कौन बताता है।
यो है कळी(चूना)मिलाने का जुगाड़। जब सीमेंट नहीं होती थी तो चिनाई कळी से ही की जाती थी। इस प्राचीन यंत्र से घोटाई करके ही चूने का इस्तेमाल किया जाता था।
इसकी कहानी बहुत लम्बी है, फ़िर कभी इस पर चर्चा करेगें।
बढिया फ़ोटु लगाए, मुगल गार्डन के।
lage raho jaat ji.
सब चित्र देखकर तो मन प्रसन्न हो गया।
बहुत उम्दा वृतांत है जाट देवता,
मुझे लगता है कि यह कोई ऐसा यंत्र है जो प्राचीन स्थापत्य निर्माण के लिये प्रयोग में लाया जाता है. आज जिसे "मिक्सर या ग्राईंडर" कहा जाता है. प्राचीन काल में चूना,गुड़,बेल का रस मिश्रण जुड़ाई के लिये उपयोग में लाया जाता था.
bahut sunder chitra hain.vese pijor garden mera dekha hua hai parantu yahan tasveeron me dekh kar aur bhi khoobsurat najar aa raha hai.tum trimoorti ki photo bhi kafi achchi hai.
पिंजौर गार्डन की सैर मनभावन रही।
चित्र काफी मनोहारी हैं।
१९९० के दशक में अनेक बार एच एम् टी आना होता था तब बड़ी बिटिया कोलिज ऑफ़ फाइन आर्ट्स चंडीगढ़ में पढ़ती थी .एच एम् टी में हमारी एक बहुत ही चहेती कजिन रहतीं थीं .तब पिंजोर बागीचा हमसे एक किलोमीटर दूर ही पड़ता था एच एम् टी आवासीय क्वाटर्स से .चले जाते थे शाम को गोल गप्पे खाने .हाँ मौसमी ताज़े फलों की वहां बा -कायदा बिक्री होती है .फल तोड़ना वर्जित है .
तब शायद इतना विकसित न था यह बागीचा ,हमने परकोटे से इसे देखा भी नहीं था .आपके कैमरे की आँख से कुछ नहीं बच पाता है .कमाल करते हो संदीप भाई .बिंदास अंदाज़ हैं आपकी पाक दिली के साफ़ दिली के .
सुन्दर प्रस्तुति ||
बहुत-बहुत बधाई ||
ईश्वर से
अलग से
विपिन की सलामती की दुआ ||
जय भोले नाथ की , पंवार जी लगता है सारा हिन्दुस्तान घुमाकर ही मानेंगे , सुन्दर पोस्ट
अच्छी सैटिंग बैठा रखी है भाई नै मज़ा आ गया पिंजोर गार्डन देख कर ....धन्यवाद्
देवता जी आपने बहुत ही सुन्दर चित्रण किये है ! इस गार्डेन में मै सपरिवार पांच वर्ष पहले गया था , जब मै अम्बाला में था ! वाकई यह बहुत ही सुन्दर गार्डेन है !बधाई
पिंजोर बहुत पहले गया था...उम्मीद थी कि अब तक बदल गया होगा...पर क्या मेंटेनन्स है...अभी भी फल तोड़ने पर प्रतिबन्ध है...कहते हैं पांडव अपने अज्ञातवास के दौरान यहाँ भी रहे थे...पहले परिवार वाले ज्यादा आते थे...क्योंकि ये शहर से दूर था...अब प्रेमी-युगल ज्यादा आते होंगे...क्योंकि ये शहर से दूर है...
मतलब ये कि दोनों जाट धमाल मचा रहे हैं . चित्र बहुत सुंदर है .... जीवंत. कैमरा कौन सा है
jugaad choona-surti peesne ke liye hai jo intoon ki chinaayi ke liye istemaal hoti hai. Mehta, Allahabad
शुक्रिया संदीप भाई कमाल की फतोग्रेफी करते हो परकोटे से जो सफ़ेद इमारत दिख रही है वह गुरद्वारा है .
लठ के साथ वो भी चारों के पास, किसी की हमारे साथ बोलने की भी हिम्मत नहीं होती थी।
किसे बहका रहे हो। लठ तो हमारे पास थे ही नहीं। उन्हें तो हमने पकौडे वाले की ठेली के नीचे रख दिया था। हां, भारी भरकम बैग थे और दिल्ली से यहां तक बाइक सफर के बाद चेहरे पर उडती हवाईयां।
बढ़िया फोटो अच्छी रचना |हमने भी वहाँ की सिर की थी पर तब फोटो खींचने
की टेक्नीक इतनी डेवलप्ड नहीं थी |बधाई
आशा
Manoram chitr aur sundar lekh se apne is lekh me jeevan phook diya..sach! Bahut khoob!
मेरे ब्लाग पर आने के लिए धन्यवाद... खूबसूरत चित्रमय प्रस्तुति के लिए आभार.
सादर,
डोरोथी.
पिंजौर गार्डेन तो बहुत शानदार है भई आपलोगों ने भी बहुत सारी मस्ती भी की है .आगे भी लगे रहिए गुड लक...
आप पर ईश्वर की कृपा है जो इस बहुत ही सुन्दर यात्रा पर जा आये - और इन सुन्दर चित्रों से हमें भी इस यात्रा का प्रसाद दिया - धन्यवाद :)
चित्र देखकर तो मन प्रसन्न हो गया। सैर मनभावन रही। धन्यवाद्|
सुन्दर और दिलचस्प तस्वीरें .
फोटोज में रिपिटिशन को अवोइड करना चाहिए .
बेशर्म की बेशर्मी को हमें क्यों दिखा रहे हो भाई :)
आखिरी फोटो का राज़ शायद ललित जी ने बता दिया है .
लाजवाब तस्वीरें. वैसे श्रीखंड महादेव के आप लोगों के सफ़र के बारे में पूरा पढ़ लिया है. नीरज ने टिप्पणियों की सुविधा के बदले कुछ और कर रखा है.
nice photos...
पिंजौर गार्डन की सैर मनोहारी हैं
bahut khoob jaat devta ji...........mai to fan ho gaya apka
आप का सफ़र बहुत हु सुन्दर hai
जल महल का चित्र बहुत सुन्दर hai
time 10.20am
पिंजौर गार्डन बहुत सुन्दर है बचपन में मैं स्कूल की से गई थी..चित्र बहुत सुन्दर हैं.....
बाग की तस्वीरें बहुत सुन्दर हैं..आनन्द आ गया.
यह गार्डन मेरा अच्छा से देखा हुआ हैं ! शाम को इसका नजारा और भी खुबसुरत होता हैं ..
वास्तव में दर्शनीय है पिजौंर का गार्डन मै गई हूँ वहाँ।
बडी अच्छी कोशिश है आपकी।
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