रविवार, 26 जून 2011

संगम (प्रयाग) से काशी(बनारस) तक पद यात्रा भाग 1, SANGAM, ALLAHABAD,

प्रयाग काशी पद यात्रा-
पैदल यात्रा के लिये जरुरी सामान लेकर हम तीनों संगम की ओर चल दिये, यहाँ सामने ही हनुमान जी का  मन्दिर है। किले के एकदम किनारे सटा हुआ है। शनिवार का दिन होने के कारण श्रद्धालु बहुत बडी संख्या में यहाँ मौजूद थे। हमने भी हनुमान जी को प्रणाम किया, व सीधे संगम की ओर चले गये, इस मन्दिर से यमुना नदी नजदीक है हम सीधे यमुना के किनारे जा पहुँचे, यमुना जी का फ़ोटो भी खींचा था। आप भी देख लो। आज दिनांक थी 26 फ़रवरी 2011 
यमुना नदी की धारा का अन्त यही हो जाता है, मैंने इस नदी के दोनों छोर देख लिये है।


अब हम धीरे-धीरे संगम पर आ पहुँचे लेकिन यहाँ आकर अपना सिर खुजाना पड रहा था, क्योंकि गंगा में तो जल चल रहा था, परन्तु यमुना तो एकदम ठप्प थी, हम काफ़ी देर तक इस जगह को देखते रहे। यहाँ पर अभी कुछ दिन पहले ही संगम पर लगने वाला वार्षिक मेला समाप्त हुआ था, जिसका सामान अभी उखाडा जा रहा था, काफ़ी संख्या  में लोग बडे-बडे बांसों पर झंडे लगा कर गंगा जी में स्नान कर रहे थे। यहाँ भीड ज्यादा होने के कारण हम थोडा हटकर स्नान करना चाहते थे, इसलिये हमने अपना सामान उठाया व एक तरफ़ जाने लगे कि तभी एक नाव वाला भागा-भागा आया कि भाईसाहब मेरी नाव में बैठ जाओ, आप को बीच नदी में स्नान करा कर लाऊंगा, मैं बोला अरे भाई बीच में ले जाकर हमें डुबा कर मारने का सोच कर आया है क्या? वो बोला नहीं-नहीं मेरा कहना है कि आप जल में बने लकडी के मचानों पर खडे होकर आराम से नहा सकते हो और वहाँ जल  भी चार-पाँच फ़ुट से ज्यादा नहीं है, आप मचान पर बंधी रस्सी के सहारे जल में उतर कर देख लेना। अगर जल  ज्यादा लगे तो मचान के ऊपर नहा लेना, उसकी बात अपनी जाट खोपडी में भा गयी।
बीच संगम में नरेश व देवता,

अब बात आयी धन-दौलत के देने की तय हुआ बीस रुपये एक बंदे के, हम उसकी नाव में बैठ गये, लेकिन मैंने उसे मना कर दिया कि मैं नहीं जा रहा तेरी नाव में, वो बेचारा सोचने लगा कि साठ रुपये गये हाथ से, मैने कहा कि भाई बीच मचान स्नान कराकर गंगापार छोड कर आओ तो हम चलते है नहीं तो उतार दो हमें। अब वो लगा अपनी बाते बनाने, कि बहुत तेज बहाव है(वैसे था भी)  बहुत दूर से घूम कर आना पडेगा, आदि-आदि। मैं बोला बात बंद कर ये बता हाँ या ना, तो वो बोला कि एक सौ बीस रुपये लूंगा, हमने कहा कि हमें आना नहीं है केवल उस पार जाना है, सौ रुपये में हाँ या ना, वो चुपचाप चल पडा, 
जय गंगा अब सम्भाल यमुना को भी,

पहले हम बीच मझदार जल में बने मचान पर नहाये रस्सी पकड जल में कूद गये, तो पता चला कि जल चार फुट के आसपास ही है, अब जल का डर तो था नहीं, जम के नहाये, फ़िर ऐसे ही निक्कर में ही दुबारा बैठ गये नाव में, नाव वाला काफ़ी घुमा कर नाव उस किनारे पर ले गया क्योंकि जल का बहाव काफ़ी तेज था। उस पार जाकर, उसे एक सौ रुपये अदा किये, वो हमें छोडकर वापस लौट गया। हम इस पार आकर भी फ़िर से घुस गये जल में जब हमारी तसल्ली हुई तो हमने अपने-अपने कपडे धारण किये। गंगा जल अपनी अपनी एक-एक लीटर की कैन में भर लिया, गंगा जी को प्रणाम किया, कहा जाता है कि जब कोई गंगा जल लेकर चलता है, तो गंगाजी उसे अपनी और खींचती है। 

हमारे प्रेम सिंह हम तीनों में से वजन में सबसे हल्के थे।

हम गंगा जी के किनारे से नाक की सीध में दिखाई दे रहे पुल के छोर की ओर चल दिये। सडक तक जाने में दो किलोमीटर का मार्ग पूरी तरह रेत से ही बना हुआ था, इस रेत में चलना बहुत भारी पड रहा था, या गंगा जी अपनी ओर खींच रही थी। पुल के पास जाकर मालूम हुआ कि इस जगह का नाम झूसी है, हम तो भूसी ही कहते थे। सुबह प्रयाग में मिलने वाले चने ही तो खाये थे, व अपने साथ लाते हुए चार-पाँच लड्डू, अब समय हुआ था, तीन बजकर दस मिनट भूख बडे जोर की लगी थी। झूसी खत्म होते-होते एक ढाबा मिला, वहाँ रुककर खाना खाया गया। खा पी कर हम आगे के सफ़र पर चल दिये।
इलाहाबाद से आगे एक मुख्य मोड

मार्ग में कुछ किलोमीटर बाद एक बोर्ड आया जिस पर लिखा था, गोरखपुर, जौनपुर उल्टे हाथ, व हनुमान गंज, हण्डिया सीधे नाक की सीध में, ये हण्डिया शब्द हमारा इस सफ़र का तकिया कलाम सा बन गया था, जब भी कोई थकावट सी महसूस करता तो हम उसे गोविंदा की फ़िल्म का डायलाग बोल देते कि बाबू कौन गाँव के हो, बंदा तुरंत जबाब देता हम हण्डिया का हूँ, जौनपुर का नहीं। ये सुनते ही हम सब खूब हसँते।
पहली रात का विश्राम स्थल

आराम से अंधेरा होने तक हम हनुमान गंज पहुँच गये, यहाँ रात में रुकने के लिये कमरा या धर्मशाला तलाश की पर कुछ नहीं मिला, खाने के लिये होटल भी नहीं मिला, बडे परेशान कि यार ये कैसा कस्बा है, खैर एक हलवाई की दुकान से कुछ समौसे के बच्चे(समौसे नहीं) हाथ लग गये, हमने कई-कई बच्चे गटक लिये। अब आयी कि सोये कहाँ हम एक सुनसान मन्दिर में जा पहुँचे, यहाँ साफ़-सफ़ाई तो थी, पर कपडे नहीं थे, हमारे पास एक-एक गर्म हल्का कम्बल था, आज वो हमको एक मोटी रजाई की तरह लग रहा था, सामने के एक घर से हम नीचे बिछाने के लिये दरी ले आये, बन गयी बात, और किसी तरह कट गयी रात।

सीता के पृथ्वी में समाने वाली जगह जाने का मार्ग
यमराज है या कॊई और जरा ध्यान से पहचानना
ये देखो बस, टूटा पेड व किस्मत से सभी बच गये, क्योंकि यमराज का वाहन धीमा चल रहा था।
दूसरी रात सामने नजर आ रहे मन्दिर में आराम से गुजारी।

अगली सुबह यानी 27 फ़रवरी 2011 को सुबह साढे चार बजे उठ कर जरुरी काम,से निपट नहा धो कर ठीक छ बजे आज की आगे की यात्रा पर चल दिये। आज हम शाम तक 42 किलोमीटर दूर गोपीगंज पार करना चाह रहे थे। मार्ग में हमें एक और बोर्ड मिला जिस पर लिखा था कि सीता के धरती में समाने वाला स्थान, हम इस बोर्ड के पास ही पेड की छाव में बैठे हुए थे कि तभी एक धमाके की आवाज आयी उधर देखा तो पता चला कि एक बस ने सडक से उतर कर एक पेड को ऐसी जोर की टक्कर मारी कि वो बेचारा पेड बीच में से ही टूट गया था।
चल भाई दिन निकलने वाला है, जल्दी कर ले

आज शाम होने से पहले हम गोपीगंज पार कर चुके थे, गोपीगंज पार करने के बाद हम एक मन्दिर में रुक गये यहाँ का पुजारी परिवार सहित रहता था, उन्होंने हमें बिछाने के लिये गददे दे दिये थे। आज जहाँ रुके हुए थे वहाँ पीछे खेत थे। रात आराम से कट गयी। सुबह आराम से नहा धो कर, ठीक छ बजे आगे की यात्रा पर चल दिये।   
इस मन्दिर के सामने का बोर्ड यहाँ से दिल्ली व कलकत्ता बराबर दूरी पर है

आधा सफ़र तो हुआ, अब अगली किश्त के लिये यहाँ क्लिक कर लो


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प्रयाग काशी पद यात्रा-


37 टिप्‍पणियां:

Smart Indian ने कहा…

जय गंगे! रोचक सफर रहा!

ब्लॉ.ललित शर्मा ने कहा…

अजी अगली किश्त का इंतजार कर रहे हैं।

डॉ टी एस दराल ने कहा…

बढ़िया सफ़र पर निकले हो भाई ।
अच्छा लग रहा है वर्णन ।

Asha Lata Saxena ने कहा…

हमें भी ऐसा ही अनुभव हुआ था वहाँ |स्मृतिया ताजा कर दी आपने |बहुत अच्छा लेख और फोटो |
आशा

Dr. Zakir Ali Rajnish ने कहा…

आप की हिम्‍मत की दाद देनी पडेगी।

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विलुप्‍त हो जाएगा इंसान?
ब्‍लॉग-मैन हैं पाबला जी...

रविकर ने कहा…

१)

उसकी बात भा गई ||

जाट खोपड़ी में आ गई ||

कोई बड़ा विद्वान ही रहा होगा --

२)

बहुत सुन्दर वर्णन |

लिखने का तरीका और सुन्दर ||

जय माँ गंगे |

जय प्रयाग राज ||

Sunny Dhanoe ने कहा…

Nice Description of the Tour!

Admin ने कहा…

रोचक सफर mere blog se bhi update rahe apni raay de mere blog me yaha se aaye

बेनामी ने कहा…

भाई पवार जी आप में तो बड़ा पॉवर है पड़ कर अच्छा लगा

घुमाकड़ी सबसे अच्छा धर्म है

महेन्‍द्र वर्मा ने कहा…

इस यात्रा में हम भी आपके साथ शामिल हो गए हैं।
वर्णन और चित्र दोनों रोचक लगे।

कुमार राधारमण ने कहा…

पैदल चलने का तो चलन ही खत्म हो गया. धार्मिक स्थलों के बहाने ही सही,लोग पैदल चलें तो सही।

Maheshwari kaneri ने कहा…

संदीप जी यात्रा में हम भी साथ हैं । कफी रोचक लगरहा है ..अगला पड़ाव कहाँ है ? इंतजार रहेगा...

Dr Varsha Singh ने कहा…

रोचक यात्रा....रोचक चित्र...

इस यात्रा के लिये आपको मेरी हार्दिक शुभकामनायें.

Surendra shukla" Bhramar"5 ने कहा…

आप से बड़ी शिकायत है मेरी झूंसी को भूसी बना दिए फिर हर आदमी को चिढाते चले हंडिया का है -नाव वाले को डाटने लगे -तेज बहाव है बचियो -पानी में कूद पड़े -हम तो सोचे भैंसे पर आप ही सवार ...चलो अच्छा हुआ नहीं चढ़े ---

अब ७३७ किमी तो रहा कलकत्ते पहुंचा देना -जय गंगे

शुक्ल भ्रमर ५

भ्रमर का दर्द और दर्पण

नीरज मुसाफ़िर ने कहा…

भाई, दो-चार लाइनें कॉपी पेस्ट करनी थी। लगता है आपने कॉपी रोधक लगा रखा है। वे लाइनें मुझे ही टाइप करनी पडेंगी:
टूटा पेड व किस्मत से सभी बच गये, क्योंकि यमराज का वाहन धीमा चल रहा था।
भईया, धीमा भी और रॉंग साइड में भी। राइट साइड वाले तो बचने ही थे।

SANDEEP PANWAR ने कहा…

नीरज भाई,
हमें भी ऐसा ही महसूस हुआ था, जब वो भैंसा पीछे जा रहा था, व बस की टक्कर दूसरी तरफ़ जाकर हुई थी।

Patali-The-Village ने कहा…

वर्णन और चित्र दोनों रोचक लगे। जय गंगे|

बेनामी ने कहा…

रोचक और बहुत सुंदर यात्रा विवरण - बधाई एवं धन्यवाद्

abhi ने कहा…

अरे यार आप और नीरज भाई, कितना घूमते हो....और तो और पहले केवल नीरज भाई थे, अब आप भी ब्लॉग में यात्रा वृत्तांत लिखोगे..हम केवल पढ़ के ही सोचते रहेंगे काश, हम भी जाते :)

G.N.SHAW ने कहा…

वाह क्या सफर है ? बड़ा मजा आ रहा है ! i

रेखा ने कहा…

आपकी पोस्ट पढने पर ऐसा लगता है कि हम भी सफ़र कर रहे थे. आपकी अगली पोस्ट का इंतजार है.
गंगा मैया की जय.

Vaanbhatt ने कहा…

हमारे पाप भी कुछ कम हो गये...आपके स्नान को पढ़ के...वीर तुम बढे चलो...हम अगली पोस्ट का इंतज़ार करते हैं...

चला बिहारी ब्लॉगर बनने ने कहा…

आपने तो इलाहाबाद की याद ताज़ा कर दी जो हमारे पूरे परिवार के लिए तीर्थ से कम नहीं.. संगम के कारण नहीं, यहीं मेरे पिताजी ने 30 साल बिताए..बड़ी यादें जुड़ी हैं हमारी इस शहर से, संगम से!! आभार!!

sm ने कहा…

wait for next virtual trip
nice pics

virendra sharma ने कहा…

चिंता न करो भैया अभी तो यमुना में प्रवाह ढूंढ रहे थे .कुछ बरस बाद गंगा से भी ले देके गंगा होने की शर्त पूरी करवा पाओगे .बहर-सूरत अच्छी चुटकियाँ लेते हुए आगे बढ़ते हो .आपके ज़ज्बे और समर्पण और जाट -भाव (बिंदास पने)को सलाम .हम भी पेंसिलवानिया से लौट आयें हैं जल्दी ही एक संस्मरण पढियेगा .

Rajesh ने कहा…

You do take very interesting trips.

Nisha ने कहा…

काफी रोचक है | अब तो अगली किश्त का इंतज़ार है |

vidhya ने कहा…

आप के सफ़र बहुत आछा था मुझे भी आछा लगा
हो सके तो यह हिन्ढी लिंक मुझे बजीयेगा


vidya

kumaratul453@gmail.com ने कहा…

NICE POST SANDEEP JI, LAGE RAHO APKE SATH HUM BHI GHOOM LETE HAIN,JO LOG KAHIN AA JA NAHIN SAKTE UNKE LIYE YEH BAHUT ACCHA HAIN,OK BYE.

Pramendra Pratap Singh ने कहा…

आपके लिखने का तरीका बहुत ही अच्‍छा है.. आपका प्रयाग आगमन हुआ और प्रयाग पर पोस्‍ट पढ़कर बहुत अच्‍छा लगा।

आपने सही कहा कि एक स्‍थान पर कोलकाता और दिल्‍ली की दूरी बराबर है। :)

Udan Tashtari ने कहा…

पैदल.....गजब भई..बहुत रोचक वृतांत चल रह है...ऐसी घुम्मकड़ी तो बस सपने की बात है हमारे लिए...आनन्द आ जाता है आपको और नीरज जट को सुन सुना कर....

virendra sharma ने कहा…

संदीप भाई भूत साहब आकाशवाणी रोहतक में स्टाफ आर्टिस्ट थे .चंद रागों की विशेष प्रस्तुति के लिए इन्हें जाना जाता रहा है .उस वक्त ये साठ के पार थे सेवा निवृत्त थे .शाल और अंग वस्त्र अमज़द अली खान साहब ने इनके चरण स्पर्श करने के बाद इन्हें पहराया था .इस मौके पर भूत साहब को सम्मानित किया गया था आकाशवाणी में लम्बी सेवा अवधि के बाद .खान साहब के दोनों पुत्र यान और अमां ने ही अपनी प्रस्तुतियां दी थीं.स्थान था यूनिवर्सिटी कोलिज रोहतक ऑडिटोरियम .

Sunil Deepak ने कहा…

इतनी लम्बी पैदल यात्रा, सोच कर ही थकान सी लगने लगी, लेकिन साथ साथ दिल किया कि काश हमें भी आप के साथ चलने का मौका मिलता. :)

kshama ने कहा…

Bahut badhiya warnan aur tasveeren!

Gappu ji ने कहा…

सन २००३ में अप्रेल में भरतपुर(राज.) से मोटर साईकिल से उन्नीस घंटे में इलाहबाद पहुंचा था. यद् दिला दिए वो रस्ते और वो सफ़र .....धन्यवाद.

SANDEEP PANWAR ने कहा…

गप्पू भाई ईमेल आईडी से नही ब्लाग की आई-डी से कमैन्ट करो,

आशुतोष की कलम ने कहा…

बहुत आनंद आया ..
इन रास्तों से गुजर चूका हूँ आप ने याद तजा कर दी..
देर से आया क्षमा चाहता हूँ....
अगले दो अंक पढने के बाद आनंददायक अनुभूति का वर्णन वही करूँगा...

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