लेह बाइक यात्रा-
आज सुबह सातवे दिन दिनांक 10 जुलाई 2010 को एक बार फ़िर ठीक छ: बजे चारों तैयार(बाकि दो पल्सर वालों का अब तक कोई पता नहीं था) होकर आज की मंजिल बालटाल के लिये प्रस्थान कर दिया। हमारा मोबाइल तो यहाँ द्रास में काम कर रहा था, लेकिन उनका मोबाइल अभी भी नेटवर्क की पहुँच से बाहर था। लेह के मुकाबले यहाँ ठन्ड ज्यादा थी। अब मार्ग में हरियाली की कोई कमी नहीं थी, पूरे पाँच दिन अद्दभुत/आश्चर्यजनक रेगिस्तान से पाला पडा रहा था। मार्ग बहुत अच्छा था, उतराई-चढाई भी कोई खास नहीं थी, लेकिन ठन्ड बहुत ज्यादा थी, जिससे बाइक की गति 35-40 से ज्यादा नहीं की जा रही थी।
आज सुबह सातवे दिन दिनांक 10 जुलाई 2010 को एक बार फ़िर ठीक छ: बजे चारों तैयार(बाकि दो पल्सर वालों का अब तक कोई पता नहीं था) होकर आज की मंजिल बालटाल के लिये प्रस्थान कर दिया। हमारा मोबाइल तो यहाँ द्रास में काम कर रहा था, लेकिन उनका मोबाइल अभी भी नेटवर्क की पहुँच से बाहर था। लेह के मुकाबले यहाँ ठन्ड ज्यादा थी। अब मार्ग में हरियाली की कोई कमी नहीं थी, पूरे पाँच दिन अद्दभुत/आश्चर्यजनक रेगिस्तान से पाला पडा रहा था। मार्ग बहुत अच्छा था, उतराई-चढाई भी कोई खास नहीं थी, लेकिन ठन्ड बहुत ज्यादा थी, जिससे बाइक की गति 35-40 से ज्यादा नहीं की जा रही थी।
जोजिला टॉप पर धिल्लू के सिर पर सबका भार
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जोजिला टॉप पर
मार्ग के नजारे शानदार थे। बालटाल अभी 8 -10 किलोमीटर के आसपास ही था, कि सडक किनारे व पहाड पर बर्फ़ के दीदार फिर से हो गये, बर्फ़ से कोई समस्या नहीं आयी, और ना ही ऐसी नौबत आयी कि ताजा बर्फ़बारी से फिर मुलाकात हो। मौसम सुहावना था, धूप निकल आयी थी, धीरे-धीरे बर्फ़ीला मार्ग भी पार हो गया। बडे-बडे वृक्ष आ गये थे। कि एक बार फ़िर वाई आकार का दौराहा आ गया, सामने ढलान थी, हम ये तो जानते थे, कि उल्टी/ बायी तरफ़ का मार्ग बालटाल जायेगा, लेकिन हम फिर भी पक्का कर लेना चाहते थे कि इन दोनों में से कौन सा मार्ग बालटाल जाता है, कुछ ही देर बाद एक सूमो सीधे हाथ वाले मार्ग से ऊपर आयी।
उसी जगह
सूमो वाले ने बताया, कि दोनों मार्ग ही बालटाल जा रहे है, एक जाने के लिए व दूसरा आने के लिये, बस फिर क्या था, हम दुबारा चल पडे, इस मोड से बालटाल लगभग 5 किलोमीटर ही था। थोडी दूर जाते ही बालटाल की घाटी का हसीन नजारा सामने आ गया। कुछ देर रुक कर इस नजारे का लुत्फ़ उठाया, तीन किलोमीटर की जबरदस्त ढलान थी, अधिकतर मोड बहुत खतरनाक थे। सब सुरक्षित बालटाल आ गये, अपनी-अपनी बाइक को सबसे आखिर के वाहन-पडाव-स्थल में एक पंचर वाले की दुकान के किनारे खडी कर दिया, ये दुकान हैलीपेड के एकदम पास में थी। अपने कपाल सुरक्षा कवच, व थैले भी वहीं जमा कर दिये, अब हमारे पास नाम-मात्र का ही सामान(एक जोड़ी कपडे) था।
भंडारे में
जैसे ही सुरक्षा जाँच चौकी पर अपनी व थोडे बहुत सामान की जाँच करा कर आगे की ओर चले तो, अपने पल्सर वालों की मोबाइल पर काल आयी, उन्होंने पूछा, कि "तुम कहाँ हो" हमने कहा "बालटाल में है, और अब पैदल यात्रा शुरु कर रहे है", लेकिन तुम कहाँ पर हो अपनी बताओ, वे बोले कि "हम रात में कारगिल के गुरुद्दारे में ठहरे थे"। अभी आठ बजे है, हम द्रास पहुँच चुके है, मैंने कहा ठीक है अभी बालटाल तक आने में डेढ-पौने दो घंटे लगेंगे, हम पैदल चल रहे है,आज रात में बालटाल वापस जरुर आना है। ये चढाई बिल्कुल मणिमहेश, हेमकुंट साहिब व सुरकंडा देवी जैसी है
मार्ग में
सुरक्षा जाँच चौकी (हैलीपैड के पास) से दो किलोमीटर तक मैदानी मार्ग है। पूरे दो किलोमीटर में भंडारे ही भंडारे थे। इन भंडारों के बाद की जगह का नाम दोमेल है। यहाँ पर नेट या बैंक में किया गया पंजीकरण दिखाना होता है, हम चारों में से दो के पास ही अमरनाथ यात्रा पंजीकरण पर्ची थी, लेकिन हमें बिना पर्ची के जाने दिया गया क्योंकि कश्मीर में सुनियोजित हडताल के कारण यात्रियों की संख्या बहुत कम थी। जैसे ही हमने ये चैक पोस्ट पार किया, तो शुरु हो गयी अमरनाथ की कठिन चढाई, दोनों जाट खोपडी ने शार्टकट मारा तो ढिल्लू जी व संतोष तिडके ने भी साथ निभाया, पहला शार्टकट मारते ही ढिल्लू जी व संतोष तिडके दोनों की हवा खराब, दोनों बैठ गये, अजी पसर गये, साँस जो फ़ूल गया था। हम समझ गये कि इनके साथ तो हो गयी यात्रा पूरी, दोनों ने खच्चर किया और शान से राजा- महाराजा की तरह घुडसवारी करते हुए हमसे आगे चले गये।
दोमेल से चलते ही ये नजारा आता है
हम भी उठते-बैठते रुकते-रुकाते चले जा रहे थे, बस परेशानी तभी होती जब खच्चर आगे या पीछे से आते थे। खच्चर जब आते थे, तो पूरी मालगाडी की तरह एक लाइन में 10-10 या 15-15 आते थे, इक्का-दुक्का तो बहुत ही कम आये। जब इन खच्चरों की रेल आती थी, तो धूल की आफ़त भी साथ ले कर आती थी। पिछली बार जब मैं भोले के द्दार आया था तो पहलगावँ से आना व बालटाल से जाना हुआ था, दो दिन लगे थे। अबकी बार बालटाल से आना-जाना करना था। वो भी एक दिन में।
पीछे बालताल आ जाता है
लाल रंग का हेलीकाप्टर छोटा सा नजर आ रहा है
गधो/खच्चर की रेल जो धूल उडाती है
संगंम के नजदीक जाकर
नया वाला मार्ग
संगम की उतराई सामने है
वो देखो ऊपर वहीँ से होकर आये है
किसी तरह रास्ते में आने वाले भंडारों पर खाते-पीते, गिरते-पडते, कूदते-फ़ांदते, सुस्ताते हुए संगम के पास तक पहुँच गये। हमें संगम से केवल आना था, जाना नहीं, क्योंकि मैं नये वाले मार्ग से जाना चाहता था, जो कि एक साल पहले ही तैयार हुआ था। ये मार्ग २०० मीटर की दूरी तक बहुत खतरनाक था, हम दोनों पत्थर पकड-पकड कर नीचे उतर रहे थे, ये मार्ग इतना खतरनाक होगा मैंने नहीं सोचा था, यहाँ दो-ढाई किलोमीटर दूर से बाबा भोलेनाथ की गुफ़ा के दर्शन हो रहे थे, आगे जाकर बर्फ़ में से होकर निकलना पडा, बर्फ़ में कई बार फ़िसले, किसी तरह बचते-बचाते भोले के घर पहुँच ही गये, यहाँ अपने खच्चर सवार ढिल्लू जी व संतोष तिडके हमारा इंतजार करते हुए मिले।
यहाँ से दो किलोमीटर दूर पवित्र गुफा है वो सामने दोनों तरफ के मार्ग देखो
हम फ़िर से दो दूनी-चार हो गये, चंडाल-चौकडी अब नहाने धोने लगी, एक जगह गर्मागर्म पानी का भंडारा चल रहा था, भंडारे बहुत देखे पर इससे बेहतर भंडारा कहीं-नहीं हो सकता था। सब नहा धो कर फ़िट हो गये और जा पहुँचे दर्शन की लाईन में लगभग आधे घंटे बाद हमारा भी नम्बर आ गया, हमने साक्षात बडे शिवलिंग के दर्शन किये और दुबारा आने की बोल अपनी बोतल में गुफ़ा का जल लिया जो लाईन लगा कर मिलता है। सब बडे खुश थे आखिर साक्षात बडे शिवलिंग के दर्शन जो किये थे।
गरम पानी का भंडारा बड़ा मजा आया था
नहा धो कर अपुन तैयार है
ये फंसे ठन्डे पानी में थोप्डा देख लो हालत खराब है
लो आ गयी इन्हें इनकी नानी याद
हो गए अपने दर्शन तो सब बोलो जय भोले की
वापस आते समय एक भंडारे में कडी-चावल का स्वाद लिया। अब आगे का मार्ग आसान था धीरे-धीरे संगम तक आ पहुँचे, संगम से थोडा पहले हमारे पल्सर वाले साथी भी घोडों पर सवार ऊपर आते मिले, हमने इन्हें कहा कि अभी तीन बजे है अगर तुम वापसी भी घोडों पर करोगे तो हमें बालाटाल मिल जाओगे। हम अब संगम पर आ चुके थे, कुछ देर आराम किया फ़ोटो खींचे। यहाँ से एक जोर का झटका जोर से ही लगता है, क्योकि जबरदस्त खडी चढाई है। इस आधा किलोमीटर की चढाई में पूरा जोर लग जाता है, इसके बाद आगे ढलान ही ढलान थी। सब मस्ती में चले जा रहे थे, लेकिन अब उतराई परेशानी देने लगी थी। चढाई में तो केवल साँस ही फ़ूलता है पर उतराई में सब-कुछ फ़ूल रहा था। हमें बालटाल आते-आते रात के 9 बज चुके थे। जोर की भूख भी लगी थी, पहले एक भंडारे पर मक्का की रोटी व सरसों का साग खाया उसके बाद सुरक्षा जाँच चौकी के पास एक टैंट में जाकर 100 रु वाली खटिया पकड ली, चंडाल-चौकडी को कब नींद आयी हमें नहीं पता।
चलो रात होने से पहले नहीं जा पायेंगे
आज इनका नाम राजा हो गया खच्चर की सवारी करने पर जय हो धिल्लू राजा
देवता, तिडके, राजा
मलिक साहब को ज्यादा गर्मी लगी थी
अगले लेख में डल-झील व कटरा तक का सफ़र रहेगा, पल्सर वालो से मुलाक़ात कहाँ जाकर ही हुई
ये भी पता चलेगा
इस यात्रा का अगला भाग 9 के लिए यहाँ क्लिक करे
लेह वाली इस बाइक यात्रा के जिस लेख को पढ़ना चाहते है नीचे उसी लिंक पर क्लिक करे।
भाग-01-दिल्ली से चड़ीगढ़, मन्ड़ी, कुल्लू होते मनाली तक।
भाग-02-मनाली, रोहतांग दर्रा पार करके बारालाचा ला/दर्रा तक
भाग-03-बारालाचा पार कर, सरचू, गाटा लूप, होते हुए पाँग से आगे तक।
भाग-04-तंगलंगला दर्रा, उपशी होते हुए, लेह में दुनिया की सबसे ऊँची सड़क तक।
भाग-05-चाँग ला/दर्रा होते हुए, पैंन्गोंग तुसू लेक/झील तक।
भाग-06-चुम्बक वाली पहाड़ी व पत्थर साहिब गुरुद्धारा होते हुए।
भाग-07-फ़ोतूला टॉप की जलेबी बैंड़ वाली चढ़ाई व कारगिल होते हुए द्रास तक।
भाग-08-जोजिला पास/दर्रा से बालटाल होकर अमरनाथ यात्रा करते हुए।
भाग-09-श्रीनगर की ड़लझील व जवाहर सुरंग पार करते हुए।
भाग-10-पत्नी टॉप व वैष्णौ देवी दर्शन करते हुए।
भाग-11-कटरा से दिल्ली तक व इस यात्रा के लिये महत्वपूर्ण जानकारी।
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भाग-01-दिल्ली से चड़ीगढ़, मन्ड़ी, कुल्लू होते मनाली तक।
भाग-02-मनाली, रोहतांग दर्रा पार करके बारालाचा ला/दर्रा तक
भाग-03-बारालाचा पार कर, सरचू, गाटा लूप, होते हुए पाँग से आगे तक।
भाग-04-तंगलंगला दर्रा, उपशी होते हुए, लेह में दुनिया की सबसे ऊँची सड़क तक।
भाग-05-चाँग ला/दर्रा होते हुए, पैंन्गोंग तुसू लेक/झील तक।
भाग-06-चुम्बक वाली पहाड़ी व पत्थर साहिब गुरुद्धारा होते हुए।
भाग-07-फ़ोतूला टॉप की जलेबी बैंड़ वाली चढ़ाई व कारगिल होते हुए द्रास तक।
भाग-08-जोजिला पास/दर्रा से बालटाल होकर अमरनाथ यात्रा करते हुए।
भाग-09-श्रीनगर की ड़लझील व जवाहर सुरंग पार करते हुए।
भाग-10-पत्नी टॉप व वैष्णौ देवी दर्शन करते हुए।
भाग-11-कटरा से दिल्ली तक व इस यात्रा के लिये महत्वपूर्ण जानकारी।
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35 टिप्पणियां:
आप लोगों का यात्रा वृतांत रोचक होता जा रहा है । Curiosity भी बढ़ गयी है । Wish you all happy journey।
ओये होये होये होये। कर दी यादें ताजा।
बडा भयंकर रास्ता है। कान पकड रखे हैं कि कभी भी बालटाल वाले रास्ते से नहीं चढूंगा। अपना तो पहलगाम वाला ही अच्छा है, भले ही तीन दिन लगते हों।
चित्र देखकर अंदाज़ लगा सकते हैं आपकी यात्रा के रोमांच और मुश्किलों का ....... शुभकामनायें
वृतांत रोचक रहा हाल कि पहले ८ भाग पढ़ा फिर बाकि के क्यू कि मान के एक कोने में तो है कभी लेह जरुर जायेंगे
http://rimjhim2010.blogspot.com/2011/05/happy-mothers-day.html
रोचक है यह यात्रा वृतांत!!
A Well descriptive and beautifully written post...
Nice Pictures.... Sandeep Ji mein bhi Ladak Leh ki yatra pe jane ka plan bana raha hu... Agar aap apni Agli post mein yeh bhi bataye ki jagah jagah pe kitne paise lagte hai...jaise hotel ka kiraya, kitna petrol kharach huaa, breakfast lunch mein kitne paise lage...etc...toh kafi accha rehega unn logo ke liye jo log yaha pe future mein jana chahate hai ... thanks
वाह! सुन्दर रोचक वृतांत.
मनोहर झांकी प्रस्तुत करते चित्र.
बहुत बहुत आभार शानदार प्रस्तुति करने का.
जाट खोपड़ी का शार्टकट,क्या कहने.
वह..मजा आ गया...चदते चले जाइए जाट के साथ जब देवता मिलता है तो ऐसा ही प्रसंग बनता है.जरा अपने यां का ब्रेक सही रखियेगा..
और साँस फूलने के ५ मिनट तक पानी मत पीजिएगा...बाकि सब आप जानते ही होंगे..
यात्रा वृतांत सुनते रहिये..हम भी भ्रमण कर रहें हैं आ के साथ /.....
बहुत हिम्मत हे जो कठिन से कठिन यात्रा भी कुछ ही घंटो मे खत्म कर लेते हो, बहुत रोमांचकारी, शुभकामनऎ. सभी चित्र भी एक से बढ कर एक लगे, धन्यवाद
आज तो आनन्द ही आनंद है संदीप जी --टिल्लू उस्ताद भी काफी खुश लग रहे हे --आखिर उनकी पसंद की कड़ी -पकोड़ी जो मिल गई --धन्य हो जाट महाराज --मै तो जाने का सोच भी नही सकती --आपके साथ घूम आई हूँ --बस काफी है ---जय बर्फानी बाबा की !
बहुत सुन्दर और रोमांचक यात्रा विवरण ... चित्र मजेदार हैं !
संदीप जी राम-राम, भोले बाबा के करीब पहुँच गये...यात्रा का रोचक वर्णन पढ़ देख कर रोमांच हो जाता है...
श्रीमान संदीप पवार जी नमस्कार! आपके ब्लॉग पे आ कर बहुत अच्छा लगा.आप लोगों का यात्रा वृतांत रोचक होता जा रहा है.
आपके साहस को दाद देना पड़ेगा इस तरह की यात्रा करना बड़ा ही मुश्किल काम है.
बहुत रोचक तरीके से बताया है आपने.
आपको मेरी हार्दिक शुभ कामनाएं.
आप मेरे ब्लॉग पे आये और मेरा उत्साह बढाया इसके लिए आपका बहुत धन्यवाद. आशा है इसी तरह आगे भी मेरा मार्ग दर्शन करते रहेंगे......
श्रीमान संदीप पवार जी नमस्कार! आपके ब्लॉग पे आ कर बहुत अच्छा लगा.आप लोगों का यात्रा वृतांत रोचक होता जा रहा है.
आपके साहस को दाद देना पड़ेगा इस तरह की यात्रा करना बड़ा ही मुश्किल काम है.
बहुत रोचक तरीके से बताया है आपने.
आपको मेरी हार्दिक शुभ कामनाएं.
आप मेरे ब्लॉग पे आये और मेरा उत्साह बढाया इसके लिए आपका बहुत धन्यवाद. आशा है इसी तरह आगे भी मेरा मार्ग दर्शन करते रहेंगे......
श्रीमान संदीप पवार जी नमस्कार! आपके ब्लॉग पे आ कर बहुत अच्छा लगा.आप लोगों का यात्रा वृतांत रोचक होता जा रहा है.
आपके साहस को दाद देना पड़ेगा इस तरह की यात्रा करना बड़ा ही मुश्किल काम है.
बहुत रोचक तरीके से बताया है आपने.
आपको मेरी हार्दिक शुभ कामनाएं.
आप मेरे ब्लॉग पे आये और मेरा उत्साह बढाया इसके लिए आपका बहुत धन्यवाद. आशा है इसी तरह आगे भी मेरा मार्ग दर्शन करते रहेंगे......
श्रीमान संदीप पवार जी नमस्कार! आपके ब्लॉग पे आ कर बहुत अच्छा लगा.आप लोगों का यात्रा वृतांत रोचक होता जा रहा है.
आपके साहस को दाद देना पड़ेगा इस तरह की यात्रा करना बड़ा ही मुश्किल काम है.
बहुत रोचक तरीके से बताया है आपने.
आपको मेरी हार्दिक शुभ कामनाएं.
आप मेरे ब्लॉग पे आये और मेरा उत्साह बढाया इसके लिए आपका बहुत धन्यवाद. आशा है इसी तरह आगे भी मेरा मार्ग दर्शन करते रहेंगे......
रोचक यात्रा वृतांत जाट देवता जी
विवेक जैन vivj2000.blogspot.com
कई दिन बाद लौटे आपके सफ़र का उपभोक्ता सहयात्री बनने .सुन्दर फलक चित्र लिए आतें हैं आप ,तस्वीर सारा हाल खुद कह देती है सारी मुश्किल और थ्रिल सामने परोस देती है .बधाई आपको ,आपके हौसले को ,लुत्फ़ उठाने की कूवत को .
अरे इतने ठन्डे पानी में कैसे नहाये आप...... ? बाकी तो आपका ट्रिप अच्छा चल रहा है फोटो बहुत अच्छे लगे....
आपके ब्लॉग पर आकर बहुत अच्छा लगा! सुन्दर चित्रों के साथ आपने शानदार रूप से प्रस्तुत किया है! यात्रा बड़ा ही रोमांचक रहा चित्र देखकर अंदाजा लगा सकते हैं!
मेरे ब्लोगों पर आपका स्वागत है!
Hardik Badhaiyaan.
............
तीन भूत और चार चुड़ैलें।!
14 सप्ताह का हो गया ब्लॉग समीक्षा कॉलम।
good narration
like the pics
i can only say
Sone Pay Suhaga
फोटो देख कर पता चलता है कि आप लोगो ने खूब मजा किया होगा । हम भी जा पाते ।
रोचक यात्रा वर्णन..संग्रह किये जाने योग्य।
पूरा तो नहीं पढ पाया किन्तु जितना भी पढा, बडा ही रोमांचक लगा। इसकी कडियॉं पूरी हो जाने के बाद इसे लघु पस्तकाकार में प्रस्तुत करने पर विचार अवश्य करें। हालॉंकि यह घाटे का सौदा होगा।
आपकी यात्रा बड़ी ही रोचक और रोमांचक है। मैंने भी अपनी मारुति800 कार में कन्याकुमारी से रोहतांग दर्रे तक की यात्रा की लेकिन चित्रों को सुरक्षित न रख पाने के कारण रिपोर्ट नहीं बनी। फिर भी आपका वृत्तांत पढ़कर तो रास्तों की यादें ताज़ा हो आईं।
संदीप जी
नमस्कार!
....मजा आ गया
कई दिनों व्यस्त होने के कारण ब्लॉग पर नहीं आ सका
बहुत देर से पहुँच पाया ....माफी चाहता हूँ..
wah....Jaat Devta...Wah.....vakai ghumakkadi har kisi ke bhagya me nahi hoti....aap bhagyshali hain....sadhuwaad..
रोचक यात्रा वृतांत.... आनंद आ गया..शुभकामनायें
सदीप जी! यात्रा वृतांत बहुत ही अच्छा लगा . फोटो देखकर सहज ही अंदाज लगाया जा सकता है है की आपकी यात्रा कितनी खतरनाक थी... फोटो देखकर मुझे अपने गाँव की याद आ गयी .. हमारे गाँव भी पूरा पहाड़ी है , खतरनाक पहाड़ी से जब सफ़र करते हैं तो बहुत अच्छा तो लगता है लेकिन अब शहर में रहने की आदत से कभी कभी थोडा डर भी लगता है ..... अपने खास नाते रिश्तेदारों की इन पहाड़ी रास्तों में गुजरते हुए दुर्घटनाएं होकर मौत के मुहं दे जाते देख चुकीं हूँ न शायद इसलिए डर लगता है... लेकिन ये तो जिंदगी है जब तक है दम ख़म के साथ जीना ही तो जिंदगी हैं है की नहीं....
आप मेरी ब्लॉग पर आये मुझे बहुत अच्छा लगा और आपके ब्लॉग पर आकर सच में बेहद अच्छा लगा ... आप हमें इसी तरह बहुत अच्छी रोमाचंकारी यात्रा वृतांत से रु-ब-रु कराएँ ताकि हमें भी लगे की हम ही सफ़र कर लिए हैं .. ..आपकी हर यात्रा मंगलमय हो ...
और हाँ मुझे आपकी प्रोफाइल में आपके बारे में पढ़कर बहुत अच्छा लगा की आप कंजूस, मेहनती, मनमौजी, पक्के घुमक्कड होने के बावजूद चाय, बीडी, सिगरेट, गुटका, पान, तम्बाकू, अंडा, मीट, मछली, शराब, व रिश्वत से सख्त नफ़रत करते हैं .... हमेशा इन बुरी आदतों से बचे रहना और अपने साथ वालों को भी बचा कर रखना, यही मेरी शुभकामना है...
अभी हम भी जून में अपने गाँव जा रहे हैं.... फिर अपने ब्लॉग पर गाँव के बारे में लिखूंगी .. मुझे गाँव पर लिखना और वहां की संस्कृति बहुत भाती है... आते रहिएगा ब्लॉग पर ....
हार्दिक शुभकामनायें
यात्रा वृतांत बेहद खूबसूरत है... मजा आ गया...
निचे लिखी आपके पिताजी पर पोस्ट पढ़ी.. उनकी बहादुरी को सलाम... और श्रधांजलि...
आपकी यात्रा का चित्रात्मक वर्णन मन मोह लेता है और आपके जीवट को भी उजागर करता है. ब्रावो ब्रदर......
wah bhai sandeep maja aa gaya aap logo ki himat ki dad deni padegi
U have really clicked Beautiful Pictures Jaat Bahiyaon. Liked ur Blog... Keep it up :)
-Vikas Kakkar
Delhi
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