गंगौत्री से केदारनाथ पदयात्रा/ट्रेकिंग-1
सावन के महीने में दिल्ली और आस
पास के क्षेत्र से हजारों (लाखों हरिदवार से ही लाते है) लोग गौमुख गंगा जल लेने
जाते है। इन हजारों में से भी केवल 300-400 लोग ही केदारनाथ जाते हैं। कुल
दूरी है 250 किलोमीटर, पैदल जाने में पूरे 9-10 दिन
लग जाते है, व बस से यही दूरी लगभग 400 किलोमीटर
हो जाती है। हमने भी पैदल जाने की पक्की ठान रखी थी। हम तय तिथि को दिल्ली के
अ.रा.ब.अ. से रात के ठीक 9 बजे, दिल्ली से
उत्तरकाशी के बीच चलने वाली उतराखंड की एकमात्र (एक ही जाती है) बस में बैठ गए। यह
बस हमको सुबह 9 बजे उत्तरकाशी पहुँचा देती है। दिल्ली से
उत्तरकाशी की कुल दूरी 400 किलोमीटर है। उत्तरकाशी से
गंगोत्री तक दूरी 98 किलोमीटर है और रास्ता बड़ा खतरनाक, केवल
12-15 फुट चौडा ही है। समय लगता है लगभग 4 घंटे, खैर
हम भी दोपहर बाद 3 बजे तक गंगोत्री पहुँच गए। मुझको बस में पूरी
रात नींद नहीं आई थी। बात ये है, कि मुझे बस में कभी नींद नहीं आती
है, लेकिन गजब ये कि रेल में नींद आ जाती हैं। इसलिए गंगौत्री
पहुँचते ही फटाफट एक आश्रम में सोने का ठिकाना तलाशा। किराया कुछ नहीं देना था, जो
अपनी इच्छा आये वो दे देनी थी। मैं तो जल्दी सो गया, पर मेरे मामा
का छोरा जो पूरे रास्ते बस में सोता आया था, लगता था कि देर से सोया था
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क्या मजबूत व डरावना पुल है, पानी की स्पीड 40 किलोमीटर से कम न थी |
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एक तंग घाटी से बहता झरना |
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यही वे दो बन्दे है, जो भोजवासा से ही हिम्मत हार गए थे, |
दूसरे
दिन सुबह 5 बजे गौमुख के लिए पैदल चल दिए। यहाँ एक बात बता दूँ कि अब गौमुख
जाने के लिए पहले दिन ही आज्ञा ले लेनी पड़ती है। अगर सुबह जल्दी जाना हो तो नहीं तो, आज्ञा सुबह 9 बजे ही मिलेगी और 9 बजे जा के अँधेरा होने तक वापस आना मुश्किल हो जाता है। मै आखिरी बार अक्टूबर 2000 में गोमुख गया था। आज है जुलाई 2009 इन नौ सालों में जो सबसे बड़ा बदलाव देखा वो यह था, कि गंगोत्री से गौमुख के रास्ते में 20 किलोमीटर की दूरी में खाने पीने की सुविधा पूर्ण रुप से बंद कर दी गयी है। हमको
यह मालूम ही नहीं था। हमारे बैग में बिस्कुट का सिर्फ़ 250 ग्राम का एक ही पैकिट था और हम खाने वाले दो बन्दे थे।
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भोज वृक्ष इन पेड़ों के कारण ही यह जगह भोजवासा कहलायी अब ये पेड़ तो यहाँ गिने-चुने ही बचे है। |
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जाटदेवता मस्ती के मूड़ में |
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चलते रहो |
पीने का पानी तो पहाड़ में कही से भी झरता रहता ही है। टपकने का अर्थ यह नहीं है कि गन्दा-शंदा पानी, पानी
कैसा भी हो सकता है। पहले पानी की तसल्ली जरुर कर ले, बाद में कुछ गड़बड़ हुई तो फिर तो उपरवाला मालिक (अगर है तो) ही जाने। खैर हमारे साथ पानी की समस्या तो नहीं आई थी, परन्तु भूख के मारे हमारा बुरा हाल था। हमारे साथ
गंगोत्री से ही चले दो बन्दे तो चीडवासा में ही हिम्मत हार गये व
वही से ही वापस हो लिए। हमने थोडी सी कोशिश भी की थी कि चलो शाम तक तो वापिस आना ही है, लेकिन वे माने नहीं।
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आगे मौसम खराब दिख रहा है |
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चलते रहो |
पहला फ़ोटो देखो जिस पुल का है, यह पुल गौमुख के रास्ते में पड़ता है। ऐसे कई
पुल इस राह में आते है। चढ़ाई तो लगातार बनी ही रहती है। आखिर के 3-4 किलोमीटर ही कुछ एकसार/समतल सा रास्ता है। कुल मिला
के जाने-जाने में ही 6 घंटे का समय तो आराम से लग ही जाता है। हम सुबह ठीक 6 बजे चल कर, दोपहर के ठीक 12 बजे गौमुख पहुँचे थे। पूरे एक घंटा हमने वहाँ आराम किया था। भूख तो बहुत जोर कि लगी थी, पर
क्या करते? खाने का तो कुछ भी इंतजाम न था। उस समय ऐसा लग रहा था कि हमारे पेट में चूहे नहीं दौड़ रहे, बल्कि
लंगूर जमकर उछाल-कूद मचा रहे थे। रविंदर बोला अरे भाई, अपना बैग देख ले, कुछ मिल जावेगा। बैग में
देखा, तो एक 250-
ग्राम का बिस्कुट का पैकिट था। डूबते को तिनके
का सहारा सुना था, लेकिन यहाँ तो दो भूखों को एक पाव बिस्किट के पैकेट ने बहुत सहारा दिया था। बिस्कुट खाकर जान
में जान आयी। बिस्किट खा कर हम लोग गौमुख से वापस चल दिये। रास्ते में कुछ पेड़
मिले हमने वहाँ फोटो सैसन किया।
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आगे देखो |
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ओ तेरी तो |
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अरे कहाँ फ़सा दिया? |
गौमुख से आते समय हमें एक जगह पर पहाड़ की छोटी से मिटटी के साथ पत्थर भी आते दिख रहे थे। हम उन पत्थरों से बचने के लिये रास्ते पर कम व पहाड़ की और ज्यादा देख रहे थे। कच्चे पहाड़ केवल 300 मीटर की दूरी में ही है, बिना किसी तकलीफ़/परेशानी के यह पार भी हो गए। मिटटी इतनी कच्ची है कि अगर ट्रक यहाँ आ जाये तो भराव के लिये मिटटी उठानी भी शुरु हो जाये। हमारे साथ दस दिन यात्रा करने वाले बन्दे सिर्फ इन पहाड़ के कारण दुबारा गौमुख
नहीं आये थे तीन चार साल पहले इन्हीं कच्चे पहाड़ में वे मुश्किल से निकल पाये थे। इन्हें पार करने में भी अच्छे-अच्छो कि हवा निकल जाती है।
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मामा के फ़ेर ना आवेगा |
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गोमुख से आते समय भोजवासा |
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इसका नाम मुझे नहीं पता है। |
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गजब है कुदरत |
हम शाम 7 बजे
तक गंगोत्री आ चुके थे। मुझे तो कुछ नहीं हुआ था लेकिन मामा के छोरे को भूख व थकावट के कारण बुखार आ गया
था। हमारे पास दवाई थी, पहले खाना खाया गया उसके बाद दवाई ली और
तब तक हमारे साथी भी हमें तलाश करते हुए आ पहुँचे। हमारे अलावा 9 लोग
और थे। इन्होंने पहले ही कमरे ले रखे थे। हम भी इनके साथ ही घुस गए। डबल बैड (तख्त) पर 5-5 बन्दे हो तो,
उन्हें घुसना
नहीं कहेंगे, तो क्या कहेंगे? लेकिन गंगौत्री में ठन्ड होती है इसलिये ज्यादा परेशानी नहीं हुई थी।
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अब गंगौत्री दूर नहीं |
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पहली रात यहाँ बितायी थी। |
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बस जी बस यही तो करना है। |
अगले भाग में गंगौत्री से गंगनानी तक की ट्रेकिंग दिखायी जायेगी।
गोमुख से केदारनाथ पद यात्रा के सभी लेख के लिंक नीचे दिये गये है।
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18 टिप्पणियां:
sandeep ji,
I am very glad to see u in this interseting blog. This is a very good idea to share your experiences to others.
Thanks and keep in touch.
Ajay
dear bhai yatra read kar ka kafi maza aya apna yatra ka vo pal yad dila diya par mara ak he photo kyo dala or bhi load karna ok bhai apka monu pandit (praveen sharma)
यह यात्रा मेरे बस के बहार है -सुन्दर चित्रण ! फोटू थोड़े बड़े कर के लगाओ --अच्छे दिखेगे ..
बढ़िया रहा भाई। वाया नीरज पहुंचना हुआ इधर, आगे और पोस्ट्स का इंतजार रहेगा।
यात्रा का व्रतान्त बडा ही रोमाचित कर ने वाला हे
यात्रा का व्रतान्त बडा ही रोमाचित कर ने वाला हे
जाट देवता की राम-राम,
जानकारी देने के लिये आपका आभार।
मजा आ गया आपके साथ यात्रा करके
behad khoobsurat photos hain.
पहली बार आपका ब्लाग देखा साधारण भाषा के बिना किसी बनावट के सहज रूप में यात्रा वृतांत । अच्छी कोशिश है जारी रखे शुभकामनाएं ।
अरे संदीप .गोवा से गंगोत्री कैसे पंहुँच गए ..अभी तो गोवा के लेख अधूरे है ....
bhut vistar se likha hai, lga jaise khud bhi travel kar rhi hu . kedarnath me huyi trasdi ke bad ise read kiya ,bhut man ho rha hai kedar ji ka darshan kru, jaldi sab thik ho jaye................
इस यात्रा में मैं भी आपके साथ चलूँगा आज से ! बहुत सुन्दर वर्णन चल रहा है
इस यात्रा में मैं भी आपके साथ चलूँगा आज से ! बहुत सुन्दर वर्णन चल रहा है
Please tell me about pedal route from gangotri /goumukh to kedarnath dham for kawad yatra. I will be very thankful to you.
इस यात्रा को शुरु से पढिये। आपको अपने जवाब का हल मिल जायेगा।
भाई में भी तीन बार गंगोत्री और दो बार गोमुख जा चुका हूँ और एक बार दाड़ी आश्रम में रूका हूँ इसके संचालक साधु बाबा जी से एक बार ग्रेटर नोएडा के पाली पलला गांव में भी मुलाकात हुई थी मेरी कुछ पुरानी यादे ताज़ा हो गयी में भी उत्तराखंड में पिछले 20 बरसों से खूब घूमा हूँ
अभी-अभी एक यात्रा ब्लाग लिखना शुरू किया है आपकी मदद चाहता हूँ कि ब्लाग पर ट्रैफिक कैसे बढाया जाय ।एक बार पठ कर बताना क्या गलती हुई है
https://traveladrug.blogspot.com/?m=0
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