संक्षेप में कर्नाटक कोस्टल यात्रा विवरण
ट्रेन से उडुपी स्टेशन उतरा तो देखा कि यहाँ स्टेशन पर डोरमेट्री में ठहर सकते है।
मैं लोकल बस स्टैंड के ऊपर बने होटल में डोरमेट्री में 350 रु में ठहरा था। यहां रुम में 700 रु में ठहर सकते है। एकदम साफ सुधरा होटल है।
इस होटल के नीचे से मालपे बीच की सीधी लोकल बस मिलती है। जो 15 रु में मालपे बीच छोड देती है।
मैंने आवागमन इसी लोकल बस से किया था।
वापसी भी लोकल बस से ही लोकल बस अड्डे आ जाये।
लम्बे रुट के लिए अलग बस अड्डा है जो मालपे बीच जाते समय 1 किमी दूर आता है।
उडुपी स्टेशन से लोकल बस अड्डा 3.5 किमी दूर है। वैसे मैं पैदल टहलता चला आया था।
आटो वाले शेयरिंग में 50 से कम नहीं लेते। प्रीपेड वाले 200 रु लेते है।
वैसे स्टेशन से 1 किमी पैदल चलकर हाइवे पर आ जाये तो फिर मात्र 10/15 रु में 2.5 किमी दूर लोकल बस से लोकल बस अड्डे पहुंच सकते है।
लोकल बस स्टैंड से उडुपी श्री कृष्ण मठ आधा पौन किमी दूर है।
मैं अपना सामान डोरमेट्री में रखकर खाली हाथ केवल मोबाइल पैसे लेकर मठ में आया था।
मंदिर में ड्रेस कोड लागू है पुरुषों को कमीज शर्ट निकाल कर दर्शन करने होते है। लेकिन जबरदस्ती नहीं, इच्छा पर है।
मंदिर में प्रसाद लडडू व पंचरत्न प्रसाद लेकर खाया गया।
उडुपी से अगला पडाव मुरुडेश्वर महा विशाल शिव मूर्ति व महा विशाल गोपुरम है।
उडुपी नये बस स्टैंड से लम्बी दूरी की बस चलती है।
मैं भी यहां से लम्बी दूरी वाली बस में भटकल के लिए बैठा था। वैसे जिस बस में मैं बैठा था वो सिरसी होकर हुबली जा रही थी।
भटकल बस स्टैंड से मुरुडेश्वर मंदिर तक हर आधे में बस चलती रहती है।
मुरुडेश्वर का समुद्र तट प्रवेश मानसून में बंद था। तो लिफ्ट से गोपुरम के 18 वी मंजिल तक रु 20 के टिकट ने यात्रा करा दी।
लिफ्ट के अलावा ऊपर सीढियों से पैदल जाने का विकल्प दिखाई नहीं दिया।
वापसी में सीढियों से उतरने का मार्ग भी बंद था तो लिफ्ट से नीचे उतर मंदिर दर्शन किये।
मंदिर प्रसाद के दो लड्डू खरीद कर खाये गये।
शिव जी की विशाल मूर्ति के नजदीक से दर्शन किये।
मूर्ति के नीचे बनी गुफा में 20 रु के टिकट को लेकर देखा गया।
तीन घंटे मुरुडेश्वर में व्यतीत कर होनावूर जाने वाली बस में सवार हो गया।
होनावूर से दूसरी बस दोपहर डेढ बजे मिली। जिसने दो घंटे में जोगफाल उतारा।
जोगफाल देखकर जोगफाल में ही रात्रि विश्राम की इच्छा थी।
लेकिन जोगफाल में थ्री स्टार होटल में रुम बहुत महंगा था। एक किमी दूर गाँव में अकेले को रूम दे नहीं रहे थे तो ज्यादा सिरदर्द न पालते हुए फिर से होनावूर की बस में सवार हो गया।
होनावूर में रात्रि विश्राम के लिए एक रुम रु 500 में मिला। बस स्टैंड के पास दो तीन ही होटल है। ज्यादा बेहतरीन तो नहीं कह सकते।
साफ सफाई ठीक थी।
वैसे मुझे आगे कुमटा या गोकर्ण पहुंच कर रात्रि विश्राम करने की कोशिश करनी चाहिए थी। लेकिन अंधेरा हो गया था तो रिस्क न लेना बेहतर लगा।
सुबह 7 बजे होनावूर से कुमटा की बस में सवार हो गया।
कुमटा से सीधे गोकर्ण की बस हर आधे घंटे में चलती रहती है।
कुमटा से बस से उतरा ही था कि सामने गोकर्ण की बस तैयार खडी थी।
गोकर्ण पहुंच बस स्टैंड पर पेट पूजा की गयी।
रात्रि विश्राम गोकर्ण में ही करना था। तो मंदिर दर्शन करता हुआ 1 किमी दूर समुद्र तट पहुंच गया।
गोकर्ण में मंदिर दर्शन के लिए ड्रेस कोड अनिवार्य है। लुंगी के बिन जा नहीं सकते।
लुंगी मंदिर के बाहर दुकानों पर 60/80/100 रू में अपनी पसंद अनुसार ले लीजिए।
वैसे मेरे पास हमेशा रहती है।
समुद्र तट पहुंच कर सीधे हाथ एक सवा किमी चलता गया। यहां एक जगह 500 रू में शानदार डोरमेट्री समुद्र किनारे मिल गयी।
अपना सामान डोरमेट्री में पटक समुद्र किनारे घंटों बैठ समुद्र का आनंद लेता रहा।
बारिश आयी तो डोरमेट्री में लेट गया। दोपहर बाद फिर से समुद्र किनारे डेरा डाल दिया।
वापसी के लिए गोकर्ण स्टैंड से कुमटा जाने वाली बस से गोकर्ण रेलवे स्टेशन के मोड पर उतर जाये।
मैं वापसी गोकर्ण बस स्टैंड से नहीं आया था।
मैं सुबह उठते ही पैदल ऊँ बीच पहुंच गया था।
वहां से समुद्र किनारे पत्थरों व जंगल से होता हुआ हाफ मून व पैराडाइज बीच और न जाने कहाँ कहाँ जंगलों से पार करता हुआ। एक दूसरे गाँव Tadadi जाकर निकला था। वहां से तादरी तक पैदल आया। तो तादरी से गोकर्ण जाने वाली रोड तक एक स्कूटी वाले से लिफ्ट ली। गोकर्ण रोड से एक टैम्पों ट्रेवलर में सवार हुआ। उसे 50 रू किराये के दिये।
गोकर्ण रेलवे स्टेशन का नाम गोकर्ण रोड है। जो गोकर्ण से लगभग 10 किमी दूर है।
मुझे गोकर्ण रोड स्टेशन से वास्कोडिगामा जाना था।
एक ट्रेन से मडगांव पहुंच गया।
मडगांव से वास्कोडिगामा वाली ट्रेन 5 मिनट पहले निकल गयी तो पैदल स्टेशन पर सीधे हाथ पूर्व साइड 5 मिनट चलकर मुख्य सडक पर पहुंच गया। यहां से लोकल बस से 2.5 किमी दूर मडगांव बस स्टैंड उतरा।
मडगांव बस स्टैंड से गोवा में चारों तरफ की लोकल व लम्बे रुट की बस मिलती है। जैसे पणजी, वास्कोडिगामा, आदि रुट
मैं यहां मडगांव से कदम्बा बस सर्विस वालों की शटल बस सेवा में सवार हो वास्कोडिगामा पहुंच गया।
शटल बस में कंडक्टर नहीं होता, केवल ड्राइवर होता है। बीच में सवारी बैठाई नहीं जाती। केवल उतरा जा सकता है।
वास्कोडिगामा घूमकर शाम को मडगांव वापसी रेल द्वारा की गयी।
(वैसे मेरा वापसी का टिकट तीन दिन बाद का था। लेकिन दिल्ली में घर की स्थिति न्यूज चैनलों अनुसार खतरनाक लग रही थी।)
मडगांव से दिल्ली का टिकट तत्काल में बुक कर दिल्ली प्रस्थान किया गया।
दिल्ली में अपना घर वजीराबाद में यमुना नदी के बहाव से एक किमी दूरी पर है।
न्यूज चैनलों को मोबाइल पर देखकर लग रहा था कि यमुना का पानी दिल्ली को बहा ले जायेगा।
यमुना के डूब क्षेत्र में खेतों में रहने वाले गैर कानूनी सरकारी भूमि पर अतिक्रमण वाले ही हर साल अपनी झुग्गियों के डूबने पर सडकों पर आकर टैंटों में डेरा जमाते रहते है जिसे मीडिया वाले दिल्ली बाढ में डूब गयी, डूब गयी कहकर खूब दिखाते है।
लेकिन दिल्ली पहुंच स्थिति सामान्य लगी।
कुछ निचले क्षेत्रों में अवश्य यमुना का पानी भर गया है।
दिल्ली में यमुना नदी का पानी आबादी में फैलने से रोकने के लिए 1978 की बाढ के बाद जो तटबंध बनाये गये है। उनसे दिल्ली सुरक्षित रहती है।
अब दिल्ली के नाले जो कीचड़ वाली गाद लाकर यमुना में डालते है उससे यमुना की गहराई कम होती जा रही है।
जिससे पानी स्वयं ज्यादा ऊंचा स्तर दिखाता है।
खैर अपनी यात्रा मस्त रही।
सोमवार से फिर से कलम वाली सरकारी मजदूरी आरम्भ हो जायेगी।
मिलेंगे अगले महीने नयी यात्रा पर कहीं न कहीं....