हम त्रयम्बक जाने वाली बस से अन्जनेरी पर्वत के मोड़ पर उतर गये। यहाँ बस से उतरते ही उल्टे हाथ सड़क किनारे एक दुकान दिखायी दी। हम सीधे उस दुकान में घुस गये। दुकान वाले से अन्जनेरी पर्वत पर आने-जाने के बारे में पता किया। उसने बताया कि अन्जनेरी यहाँ से लगभग 6-7 किमी दूरी पर है जिसमें से आखिरी के 3 किमी ही ज्यादा चढ़ाई वाले है। मैंने सोचा चलो आना-जाना कुल 14-15 किमी है तो है। कोई बड़ी बात नहीं है। लेकिन 14-15 किमी वाली बात पर विशाल के मन में एनर्जी बचाने वाली बात घर गयी थी। उसने कहा कि पहले 4 किमी तो लगभग साधारण सड़क का मार्ग है इसलिये शुरु के चार किमी चलने में क्यों शारीरिक ऊर्जा बर्बाद की जाये। अब साथ जाने वाले का कुछ तो मान रखना ही पड़ता है। साथ वाले की बेईज्जती करना मेरा उसूल नहीं है। लेकिन मैं यदि ऐसे लोगों के साथ यात्रा पर गया हूँ जो दूसरे लोगों के मान सम्मान का ख्याल नहीं रखते है तो मैं दुबारा ऐसे लोगों के साथ जाने से हर सम्भव बचता हूँ। मेरे साथ पहले भी कई बार एक दो जिददी लोग चले गये थे, लेकिन बाद में मैं उनके साथ दुबारा नहीं गया। चलिये अब इस यात्रा की बात हो जाये। विशाल के कहा तो मैंने भी कहा ठीक है भाई 4 किमी किसी वाहन से चल देते है। विशाल ने एक मैजिक वाले से बात की लेकिन उसका जवाब सुनकर विशाल का मुँह फ़टा का फ़टा रह गया। उसका जवाब सुनकर मैं मुस्कुरा रहा था। चलिये आप को भी बता देते है कि उस वाहन वाले ने कहा क्या कहा था? मैजिक वाले ने 4 किमी की दूरी तक, दो बन्दों को छोड़ने के लिये हमसे 500 रुपये की माँग कर ड़ाली। हमने कुछ क्षण उसके जवाब को पचाने में लगाये, लेकिन उसकी बात हजम होने वाली नहीं थी। उसके बाद एक लम्बा साँस लेकर उसे कहा कि दोनों मिलाकर 200 रुपये से ज्यादा नहीं देंगे। यह कहकर मैंने अपना सामान उठा कर चल दिया।
सड़क से चलते ही यह जैन मूर्ति दिखायी देती है। |