सूमो वाले ने हमें श्रीनगर ड़लझील के सामने नत्थू मिठाई वाले के नाम से मशहूर दुकान के सामने उतार दिया था। मेरे साथ दिल्ली के चार लोग और भी थे। रात में रुकने के लिये सभी की यही राय थी कि रात तो ड़लझील के किसी हाउस बोट में ही बितायी जायेगी। झील में हाउस बोट सड़क से काफ़ी हटकर पानी ने बीचोबीच बनाये गये है। इसलिये हाउस बोट तक पहुँचने के लिये पहले तो एक शिकारे की आवश्यकता थी। सड़क किनारे को छोड़कर जब हम झील की ओर आये तो देखा कि वहाँ पर झील में आने-जाने के लिये बहुत सारे शिकारे तैयार खड़े है। हमने शिकारे वाले से कहा कि हमें रात में ठहरने के लिये एक हाउस बोट पर रुकना है इसलिये तुम हमें चार-पाँच हाउसबोट पर ले चलो। शिकारे वाला हमें अपनी नाव पर लाधकर झील में अन्दर चल पड़ा। यह ड़लझील में मेरी पहली सैर थी। कुछ ही देर में शिकारे वाला हमें बहुत सारे हाउस बोटों के बीच से होता हुआ एक खाली सी जगह पर खड़े हुए हाउस बोट तक पहुँचा कर बोला कि इनमें से जिसमें आपका मन करे उस हाउस बोट में रात ठहरने की कीमत तय कर लीजिए। यहाँ काफ़ी सौदेबाजी के बाद भी हाउसबोट Houseboat वाला हम 5 बन्दों के 1500 रुपये से कम पर नहीं मान रहा था। हमने उसे 1250 कह कर वापिस शिकारे में बैठकर चलने लगे तो हाउसबोट मालिक के हमें आवाज देकर कहा ठीक है आ जाओ, 1250 रुपये ही दे देना। हमारे शिकारे वाले ने हमें फ़िर से उस हाउसबोट पर उतार दिया। हमने शिकारे वाले से कहा कि हमें ड़लझील में घूमना है इसलिये एक घन्टा रात में आ जाना और एक घन्टा सुबह के समय ड़लझील में घुमा देना।
संदीप आर्य श्रीनगर की ड़लझील में शिकारे की सैर करते हुए। |
रात का खाना हमने हाउस बोट पर ही मंगवा लिया था। हमारे साथ दो पियक्कड़ भी थे जो हाउस बोट तक तो ठीक-ठाक रहे थे लेकिन उन्होंने दिल्ली आने तक जम कर पी थी। पियक्कड़ बन्धुओं ने अपने लिये एक बोतल का प्रबन्ध भी कर लिया था। अपुन ठहरे अधर्मी, शाकाहारी, इन नशे या नशेडियों के काम से अपने को क्या मतलब? मैंने अपना खाने के बाद उनसे थोड़ी दूरी बनाने में ही अपनी भलाई समझी। जब तक वे खा पीकर निपटते तब तक मैं हाउस बोट के बाहर बनी गैलरी में बैठकर DAL LAKE को निहारता रहा। हाउस बोट के बाहर शिकारे वाला हमारा खाना खाने का इन्तजार कर रहा था। जैसे ही सबका खाना व दो का पीना समाप्त हुआ तो सभी शिकारे में सवार होकर ड़ल लेक/झील की सैर करने लगे। शिकारे वाला हमें हाउस बोटों की निराली दुनिया के मध्य से तैराता हुआ, सैर कराता रहा। इसी बीच अंधेरा बढ़ता ही जा रहा था। जब शिकारे वाले के कहा कि अब हम यहां से वापसी जायेंगे। वापसी में शिकारे वाला हाउस बोट पर बनी एक कपड़े की दुकान पर लेकर गया। हम शिकारे से उतर कर कपड़े वाले हाउस बोट पर कश्मीर के शाल आदि देखने चले गये। मैंने दो-तीन शाल की कीमत पता की तो मेरे आश्चर्य का ठिकाना नहीं रहा क्योंकि वहाँ पर कई हजार रुपये की शाल हमें दिखायी गयी थी। मैंने कहा देख भाई कोई 100-200 रुपये में मिलने वाली शाल है तो बता नहीं तो मैं दिल्ली जाकर खरीद लूँगा। उसने मुझे 225 रुपये फ़िक्स दाम की एक शाल दिखायी। जो दाम उसने बताये थे उस दाम में 20-25 रुपये कम में वही शाल दिल्ली में मिल सकती थी, लेकिन कश्मीर की कोई वस्तु लेने के कारण मैंने अपनी माताजी के लिये वह शाल ले ली थी। चूंकि अभी जुलाई माह ही चल रहा था इसलिये गर्म कपड़े की कोई आवश्यकता भी नहीं थी, लेकिन मैं यादगार रुप में वह शाल ले लिया था। इसके बाद शिकारे वाला हमें उसी हाउस बोट में छोड़ गया जहाँ हम ठहरे हुए थे।
कश्मीरी जाट या मेरठ का जाट |
अगली सुबह सात बजे हमने शिकारे वाले को फ़िर से आने के लिये बोला था। शिकारे वाला ठीक समय पर हाजिर हो गया था। सुबह के समय हमने अपना सामान साथ ले लिया था। लगभग घन्टा भर हम उसी शिकारे में घूमते रहे। इसके बाद हम सभी शालीमार व निशात बाग देखने पहुँच गये। इनमें से एक बाग तो ड़लझील के ठीक सामने ही बना हुआ है। इसके सामने शिकारे वाले ने हमें छोड़ा था इसलिये यहाँ पहुँचने में हमें कोई समस्या नहीं आयी। तय दर के टिकट लेकर हम इस बाग में प्रवेश कर गये। इस बाग में अन्दर जाकर हमें लगा कि अब जाकर हम कश्मीर में आये है। ड़ल झील में हमें वो खुशी नहीं आयी थी जो खुशी हमें उस बाग मेम आकर आयी थी। कुछ ऐसा ही बाग मैंने चड़ीगढ़ के पास पिजौर गार्ड़न देखा था। बताते है कि पिंजौर वाला बाग इसकी नकल पर बनाया गया है। इस बाग में ठहलते समय एक फ़ोटोग्राफ़र हमारे पीछे पड़ गया कि फ़ोटो खिंचवा लो। चूंकि मेरे पास रील वाला कैमरा था अत: कैमरे की मना करने के बाद फ़ोटो वाला बोला की कैमरा तो आपके पास है लेकिन यहाँ की वेशभूषा तो आपके पास नहीं है। यह बात उसने सही कही थी। मैंने उससे कहा कि ठीक है कैमरा हमारा कपड़े तुम्हारे बताओ कितने रुपये? फ़ोटो वाला 10 रुपये प्रति बन्दे के माँगने लगा तो हमारे ग्रुप से मेरे अलावा कोई कश्मीरी वेशभूषा में फ़ोटो खिंचवाने को तैयार नहीं हुआ। आखिरकार मैंने उसे 10 रुपये देकर वहाँ की वेशभूषा में तीन फ़ोटो खिंचवाये थे। फ़ोटो के बाद हम दूसरे बाग में जाने के लिये एक ऑटो में सवार हो गये।
जाट की छतरी, छड़ी बनकर रह गयी थी। |
थोड़ी देर में हम दूसरे बाग में पहुँच गये। इस बाग में घूम कर भी मन खुश हो गया था। जब चारों ओर घूमघाम कर मन भर गया तो हम वहाँ से वापिस ड़ल झील की ओर चले आये। ड़लझील के किनारे बैठकर हम बैठे हुए थे कि मुझे अपनी मिनी बस पहलगाँव से बालटाल की ओर आती हुई दिखायी दी। जैसे ही बस हमारे नजदीक आयी तो मैंने बस चालक को रुकने का इशारा किया। बस चालक मुझे पहचान गया था। उसने बस किनारे लगा दी और मुझसे पूछने लगा कि क्या सभी लोग यहाँ आ गये है? मैंने कहा नहीं केवल मैं अकेला ही यहाँ आया हूँ। मैं समय देखा दोपहर के बारह बज रहे थे। यदि बस बिना रुके भी बालटाल जाये और तुरन्त वापिस चल दे तो भी शम होने तक यहाँ श्रीनगर तक ही पहुँच सकती है। जबकि मेरे साथ जो दिल्ली वाले लोग थे उनकी क्वालिस उन्हे लेने यहाँ आ पहुँची थी। मैंने अपनी बस से अपना दुसरा बैग लेकर बस चालक को कहा कि मैं आज ही वैष्णों देवी जा रहा हूँ। मुझे यहाँ से सीधी दिल्ली की क्वालिस मिल गयी है। बस वहाँ से बालटाल के लिये रवाना हो गयी। हम क्वालिस में बैठकर जम्मू के लिये रवाना हो गये। रात को कोई नौ बजे हम जम्मू रेलवे स्टेशन पहुँच गये थे। श्रीनगर से वैष्णों देवी जाने के जम्मू जाने की जरुरत नहीं पड़ती है। लेकिन हमारी क्वालिस में दो बन्दे ऐसे थे जो वैष्णों नहीं जाना चाहते थे। जबकि बाकि सभी लोग वैष्णों देवी जाना चाहते थे। इसलिये देवी के दर्शन करने वालों की वोटिंग बहुमत में होने के कारण सभी माता के दरबार के लिये रवाना हो गये। इसी आने-जाने के चक्कर में रात के दो बजे हम लोग कटरा पहुँच गये थे। अगले दिन हमने सुबह-सुबह वैष्णों देवी दर्शन करने के लिये जयकारा लगा दिया था। (क्रमश:)
इस फ़ोटो में मेरे पीछे जो इमारत दिख रही है बताइये इसका फ़ोटो कहाँ प्रयोग होता है। |
इस यात्रा के सभी लेख के लिंक नीचे क्रमवार दिये गये है।
काश, वैसा ही हो जाये स्वर्ग..
जवाब देंहटाएंहमेशा की तरह ये वृतांत भी रोचक लगा…
जवाब देंहटाएंकश्मीर में श्रीनगर और गुलमर्ग रह गया है . अगली बार यह भी देखना और घूमना है
जवाब देंहटाएंTravel India