पेज

शनिवार, 23 मार्च 2013

Amarnath Cave yatra अमरनाथ गुफ़ा तक व बालटाल तक यात्रा वर्णन

अमृतसर-अमरनाथ-श्रीनगर-वैष्णों देवी यात्रा-04                                                     SANDEEP PANWAR

रात को पंचतरणी में मजबूरी में रुकना पड़ा था। हम रात में जहाँ ठहरे थे वहाँ पर हमें सोने के लिये मोटे-मोटे कम्बल दिये गये थे। मैं रात में नौ बजे सू-सू करने के लिये टैन्ट से बाहर आया, बाहर आकर पाया कि वहाँ का तापमान माइनस में चला गया था। मैं फ़टाफ़ट जरुरी काम कर वापिस टैंट की ओर भागा। इतनी देर में ही मुझे ठन्ड़ ने जबरदस्त झटका दे दिया था। मेरी कम्बल में घुसते समय ऐसी हालत हो गयी थी जैसे मैं अभी-अभी ठन्ड़े पानी के कुंड़ से नहाकर बाहर निकला हूँ। किसी तरह कम्बल में घुसकर राहत की साँस पायी। जब मैं घुसा था तो मेरे दाँत दे दना-दन बजते जा रहे थे। मेरे साथी ने मुझसे पूछा क्या हुआ? मैंने उससे कहा, बेटे एक बार बाहर जाकर घूम फ़िर पूछना क्या हुआ? खैर थोड़ी देर बाद जाकर कम्बल में गर्मायी गयी थी। रात में ठीक-ठाक नीन्द गयी थी। सुबह अपने सही समय 5 बजे उठकर अमरनाथ गुफ़ा जाने की तैयारी शुरु कर दी। यहाँ पर मुझे भण्ड़ारे वालों ने आधी बाल्टी गर्म पानी दे दिया था। जिससे मैंने नहाने में प्रयोग कर दिया था। मेरा साथी यहाँ पर बहने वाली पाँच धाराओं में जाकर नहाकर आया था। नहा-धोकर हम उस जगह पहुँच गये थे जहाँ पर सेना के जवान पगड़न्ड़ी वाले मार्ग की अत्याधुनिक औजारों से तलाशी ले रहे थे। आतंकवादियों कच्चे मार्ग में रात को माइन्स दबा देते है। जिससे कि सुबह यदि जिस यात्री का पैर उस पर पड़ जाये तो वह माइन्स के साथ उड़ जायेगा। जब सेना के जवान मार्ग के सही सलामत होने की हरी झन्ड़ी हिलाते है तो यात्रियों को आगे जाने की अनुमति दे दी जाती है। यात्रियों को बताया जाता है कि मार्ग से हटकर ना चले।

कर लो अमरनाथ गुफ़ा के दर्शन



सुबह ठीक 6;30 पर हम आज की यात्रा पर अमरनाथ गुफ़ा की ओर चल दिये। पंचतरणी से चलने के कुछ देर बाद ही मार्ग में हल्की सी चढ़ाई शुरु हो जाती है। यह चढ़ाई संगम तक लगातार बनी रहती है। यह चढ़ाई लगातार जरुर है लेकिन ज्यादा कठिन नहीं है। जब यात्री संगम पर पहुँचता है तो उसे सामने से बालटाल वाले मार्ग से आने वाले यात्रियों का काफ़िला भी दिखायी देने लगता है। चूंकि हम सुबह जल्दी चले थे इसलिये हमें बालटाल से आने वाले यात्री अभी तक दिखायी नहीं दिये थे। लेकिन जब हम वापिस रहे थे तो बालटाल वाले मार्ग से बहुत से यात्री आते दिखायी दे रहे थे। संगम से लेकर अमरनाथ गुफ़ा तक मार्ग में लगातार हल्की सी ढ़लान बनी हुई है। संगम से अमरनाथ गुफ़ा मुश्किल से दो किमी की दूरी पर ही है। यहाँ इस मार्ग का आधा हिस्सा हमेशा बर्फ़ से ढ़का रहता है। बीच में नदी बहती रहती है। नदी के ऊपर जमी बर्फ़ पर यात्री पैदल घोड़ों सहित लगातार चलते रहते है। चूंकि हम नहाने धोने का कार्य तो पंचतरणी में ही निपटा कर आये थे इसलिये हम सीधे अमरनाथ गुफ़ा में दर्शन के लिये पहुँच गये। यहाँ सुरक्षा के लिये हमारे कैमरे बाहर ही जमा करने के लिये कहा गया। कैमरे से दूर से एक फ़ोटो लेकर मैंने कैमरा जमा करा दिया था। इसके बाद हम गुफ़ा में बर्फ़ीले शिवलिंग के दर्शन करने के पहुँच गये।

गुफ़ा के सामने हैलीकाप्टर उतरते हुए


अमरनाथ गुफ़ा तक पहुँचने के लिये थोड़ी सी चढ़ाई चढ़कर हमने बर्फ़ानी बाला के शिवलिंग के दर्शन किये थे। सुबह का समय होने का लाभ यह मिला कि वहाँ आराम से खड़े होकर हमने तसल्ली से जी भर छत तक मिले शिवलिंग के दर्शन किये थे। अरे सच यह है कि हम जुलाई के आखिरी सप्ताह में पहुँचे थे उस समय तक शिवलिंग पिघल कर आधा गायब हो चुका था।  दर्शन के उपरांत हम दोनों वहाँ से वापिस चलने लगे। जब हम संगम पर पहुँचे तो उस समय हमें अपनी बस के अन्य यात्रियों के आने के बारे में पता लगा। हमने अंदाजा लगाया कि ये हमसे कम से कम तीन घन्टे से ज्यादा दूरी पर चल रहे है। इसके बाद हम संगम की ओर उतरते चले गये। संगम में नदी के तल तक उतरकर पुन: ऊपर पहाड़ के शिखर तक चढ़ना होता है। यह चढ़ाई उस समय सबसे बड़ी दुश्मन दिखायी देती है। खैर किसी तरह यह पहाड़ी भी चढ़कर हम बाल्टाल वाले मार्ग पर उतरना शुरु हो जाते है। उस साल तक अमरनाथ में यात्री को लाने ले जाने के लिये हैलीकाप्टर गुफ़ा के बेहद नजदीक तक आते थे। बाद में काफ़ी हो हल्ला होने से अब हैलीकाप्टर पंचतरणी से ही आना-जाना करते है।

संगम पर गुफ़ा की ओर से उतराई, ध्यान से लोगों को देखो। यह फ़ोटो बाल्टाल की ओर के पहाड़ से लिया गया है।


गुफ़ा से वापिस आते समय संगम की भयंकर उतराई उसके बाद बालटाल की ओर की दमफ़ाडू चढ़ाई चढ़ने से शरीर की साँस फ़ूल कर बेहाल कर जाती है। इसलिये कुछ पल विश्राम कर साँस सामान्य कर बालटाल की ओर उतरना शुरु किया गया था। यहाँ से लेकर बालटाल तक लगातार 9 किमी की जोरदार ढ़लान पर उतरना होता है। पहले तो पहाड़ की चढ़ाई से बुराहाल हो ही चुका था रही सही कसर बालटाल की लगातार तेज उतराई ने पूरी कर दी थी। हम दोनों अपनी मस्ती में उतरते जा रहे थे। यहाँ पर यह मार्ग एकदम कच्चा और बेहद ही खतरनाक है। मार्ग की चौड़ाई मुश्किल से चार-पाँच फ़ुट ही है। इसी पर पैदल यात्री और खच्चर का आना-जाना होता रहता है। जब खच्चर आते है तो अपने साथ धूल का गुब्बार भी लेकर आते है। जिससे बचने के लिये पैदल यात्री को बहुत समस्या जाती है। हम भी इसी प्रकार की परेशानी को झेलते हुए बालटाल की ओर बढ़ते रहे। जब यह उतराई समाप्त होती है तो इस स्थल को दोमेल कहते है यहाँ से बालटाल पहुँचने की सूचना मिल जाती है। क्योंकि यहाँ से बालटाल मात्र 2 किमी दूर रह जाता है। हम कुछ ही देर में बालटाल की पार्किंग में पहुँच गये। पार्किंग में दिल्ली के तीन चार लोग अपनी क्वालिस की तलाश में लगे पड़े थे। मैं उनकी बाते सुन रहा था कुछ देर बाद उनमें से किसी ने फ़ोन करके पता लगाया कि उनकी क्वालिस तो श्रीनगर गयी हुई है शाम तक यहाँ आयेगी। शाम तक क्वालिस आने का मतलब था कि यह लोग कल सुबह यहाँ से आगे की यात्रा आरम्भ करेंगे। इन लोगों ने आज की रात श्रीनगर की ड़लझील में बिताने की योजना बना ड़ाली। 

सामने किसी पहाड़ के नीचे पंचतरणी का मैदान है।


हमारी बस भी वहाँ दिखायी नहीं दे रही थी, इसलिये मैंने भी आज की रात श्रीनगर में ही बिताने के इरादे से बालटाल छोड़ना उचित समझा। मेरे साथी ने कहा कि मैं तुम्हारे साथ नहीं जा रहा हूँ मैं तो शाम को या कल सुबह उसी बस में ही आऊँगा जिसका किराया हमने अग्रिम जमा किया हुआ है। मैंने कहा ठीक है भाई, तु आराम कर और यहाँ टैंट वाले को 100 रुपये दे या फ़्री में किसी भण्ड़ारे में आराम करना। मैं श्रीनगर जा रहा हूँ। चूंकि मेरे पास उस समय भी पोस्ट पेड़ मोबाईल कनेक्सन हुआ करता था। वही नम्बर मेरे पास आज भी है। मैंने कहा ठीक है कल श्रीनगर मुलाकात करेंगे। मैं दिल्ली वाले अन्य बन्दों के साथ प्रति सवारी 200 रुपये के हिसाब से तय करते हुए एक सूमो में श्रीनगर की ओर कूच कर गया। हमारी सूमो सोनमर्ग के नजारे दिखाते हुए धीरे-धीरे आगे बढ़ती रही। मैं इस यात्रा के तीन साल बाद मोटर motar bike से दिल्ली से लेह लेह से श्रीनगर होते हुए दिल्ली तक की यात्रा की हुई है। उस सूमो वाले ने हमें शाम के 4 बजे तक श्रीनगर की ड़लझील के सामने नत्थू स्वीट के आगे उतार दिया था।    (क्रमश:)




इस यात्रा के सभी लेख के लिंक नीचे क्रमवार दिये गये है

5 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी/कैमरे की आँखों से बाबा के दर्शन...बहुत पुन्य मिलेगा आपको...

    जवाब देंहटाएं
  2. अति सुन्दर वर्णन . पंचतरणी की ठंडी मुझे भी याद है . गुफा के दर्शन के लिए धन्यवाद ,

    Travel India

    जवाब देंहटाएं
  3. में तो महागुनस टॉप पर रात रुका था जो कि सबसे ऊंचा टॉप है यात्रा का..... रात कैसे निकाली है ये में ही जानता हूं.......ऐसा लगा जैसे गीले बिस्तर पर सो रहा हु

    जवाब देंहटाएं

Thank you for giving time to read post comment on Jat Devta Ka Safar.
Your comments are the real source of motivation. If you arer require any further information about any place or this post please,
feel free to contact me by mail/phone or comment.