अमृतसर-अमरनाथ-श्रीनगर-वैष्णों देवी यात्रा-06 SANDEEP PANWAR
वैष्णों देवी यात्रा पर जाने के लिये सबसे जरुरी चीज वो पर्ची होती है जिसके बिना आपको यात्रा से वापिस लौटना पड़ जायेगा। हम सुबह ठीक साढ़े 5 बजे पर्ची की लाइन में गये थे, जिस कारण सुबह 6 बजे हमारे हाथ में वैष्णों देवी यात्रा पर ऊपर जाने के लिये कटरा के पर्ची केन्द्र से पर्ची मिल चुकी थी। अगर हम शाम को यहाँ आते तो रात में ही यह पद यात्रा आसानी से हो जाती। हम कुल मिलाकर 6 लोग थे। सभी के सभी जवान ही थे जो एक दो बुजुर्ग की श्रेणी में आते थे उन्होंने कल ही हमारा साथ छोड़ दिया था। यह भी अच्छा ही हुआ कि वे हमारा साथ छोड़ गये। नहीं तो वे हमें इस यात्रा में तंग करते। चूंकि यह मेरी पहली वैष्णों देवी यात्रा थी इसलिये मैं मजबूरी में सबके साथ चल रहा था। मैंने मजबूरी इसलिये कही है कि पहाड़ की उतराई हो या चढ़ाई उससे अपनी गति पर कोई फ़र्क नहीं पड़ता है। अपनी प्रतिदिन साईकिल चलाने की आदत के कारण पहाड़ की उतराई व चढ़ाई से अपुन को कुछ फ़र्क नहीं पड़ता है। हमारे ग्रुप में यह अच्छा रहा कि सभी जवान ही थे जिस कारण सभी की सोच भी मेल खा रही थी।
जब पर्ची आदि चैक करके आगे बढ़े तो एक जगह ऊपर जाने के सीढ़ियाँ दिखायी देने लगी। देखने से तो लग रहा था कि यह सीढ़ियाँ ऊपर वैष्णों देवी भवन के लिये ही जा रही है लेकिन फ़िर भी मैंने उन बन्दों से पता करना उचित समझा जो यहाँ पहले भी आ चुके है। जैसे ही सीढ़ियाँ आई, हमारे ग्रुप के आगे चलने वाले बन्दे उन सीढ़ियों पर चढ़ना शुरु हो गये। एक ने उन्हे टोका कि सीढियों से मत जाओ जल्दी थक जाओगे। लेकिन जवानी का जोश अपनी मस्ती में हो तो भला किसकी सुनता है? अगर जवानी का जोश ऐसे ही सुन ले तो दुनिया में अपराध जैसे बलात्कार, मारपीट आदि स्वयं ही समाप्त हो जायेंगे। आज तक किसी नीम हकीम के पास जवानी का जोश काबू करने की कोई दवा नहीं मिली है। अत: कुछ लोग अपराध कर अपना जोश ढ़ीला करते रहेंगे। कुछ दूसरी किस्म के लोग जिन्हे आम लोग घुमक्कड़ श्रेणी में रखते है। अपना जोश पहाड़ व यात्राओं पर निकालते रहेंगे। वैसे बताओ कौन सा जोश अच्छा है अपराध करने का या फ़िर पहाड़ पर चढ़ने का, हमें पहाड़ पर विजय पाने में खुशी मिलती है। हम तो यही करते रहेंगे।
इस मार्ग में हमें जितनी भी सीढियाँ मिली थी हमने किसी को भी नहीं छोड़ा था। जैसे ही कोई सीढियाँ दिखाती देती हम तुरन्त उस पर चढ़ना शुरु कर देते थे। कब अर्धकुवारी का भवन आया हमें पता ही नहीं लगा। यहाँ एक नजर दौड़ाई तो देखा कि अगर किसी को यहाँ दर्शन करने है तो 4-5 घन्टे लगने तय मान कर बैठना होगा उसके बाद जाकर ही उसका नम्बर आयेगा। हमने यहाँ बाहर से राम-राम कर ऊपर की ओर यात्रा जारी रखी। जितना ऊपर हम बढ़ते जा रहे थे ऊपर से चारों ओर के नजारे बहुत खूबसूरत दिखाये देते जा रहे थे। धीरे-धीरे हम इस मार्ग की सबसे ऊँची जगह पर जा पहुँचे, साथियों ने बताया कि इसे हाथी मत्था कहते है। इसका नाम हाथी मत्था क्यों पड़ा मुझे नहीं मालूम। यहाँ से माता के भवन तक हल्की सी ढ़लान ही ढ़लान दिखायी दे रही थी। हमारे जिस साथी के पास पर्ची थी उसने पर्ची केन्द्र पर जाकर अपना नम्बर लगवाया था। साथ ही उसने कहा कि हमारा नम्बर एक घन्टे बाद आयेगा। इसलिये जिसे नहाना धोना है वो नहा ले। सुबह बिना नहाये चले थे इसलिये लगभग सभी वहाँ पर बनी हुई टोंटी के नीचे खड़े होकर नहा लिये थे।
नहाधोकर जब तक बाहर आते हमारा पर्ची पर दिया गया नम्बर टीवी में दिखायी देने लगा था। जिसका स्पष्ट ईशारा था कि अब हम भवन में अन्दर जाने वाली लाईन में लग सकते है। लाइन में लगने से पहले हमने अपना सब सामान, जैसे पैन, बैल्ट, पर्स, बैग आदि लाकर में जमा करा दिया था। यहाँ सिर्फ़ रुपये ही अन्दर लेकर जा सकते है। आज के समय चैंकिग करने के लिये इतने अत्याधुनिक अस्त्र-शस्त्र मौजूद है और यहाँ पैन तक भी ले जाने पर पाबन्दी है। अरे असली हो तो रुपये भी अन्दर ले जाने पर पाबन्दी लगवा दो। ताकि लोगों की श्रद्धा के बहाने उनकी जेब तो ला लूट सके। अन्दर जाने पर एक जगह नारियल जमा कराने का केन्द्र बनाया गया था। हमने भी अपने-अपने नारियल वही जमा करा दिये थे, जो वहाँ नारियल जमा कराता था उसे एक टोकन मिलता था। वापसी में इसी टोकन के बदले हमें एक नारियल मिलता था। यहाँ से आगे अगर गलती से भी कोई नारियल ले गया तो उसका नारियल जब्त कर लिया जाता है।
इसके बाद दो-तीन जगह मुड़ते-चढ़ते हुए हम माता की गुफ़ा में प्रवेश कर गये। वहाँ पर बताया गया कि माता की तीन पिन्ड़ी पर ही अपना ध्यान रखे। जैसे ही कोई बन्दा एकदम आखिर में पहुँचता था तो उसे माता की पिन्ड़ी निहारने के लिये मुश्किल से 4-5 सेकिंड़ का समय मिल पाता होगा। इसके बाद वहाँ मौजूद पहरेदार लगभग धक्का देते हुए बाहर का रास्ता दिखा देता है। गुफ़ा के बाहर निकलते ही एक शीशे का कमरा दिखायी देने लगता है जहाँ पर कई लोग नोटों को गिनने में लगे हुए थे। यह वही नोट होते है जो यहाँ आने वाले भक्त यहाँ दान करते है। हिन्दुओं से मिले इसी रुपये को सरकार अन्य धर्मों को सब्सिड़ी देने में खर्च करती है। जबकि कैलाश यात्रा में देख लो कितनी छूट मिलती है? दर्शन करने केउपराँत हमारा वहाँ कोई काम नहीं था इसलिये हम वहाँ से भैरों नाथ मन्दिर के लिये चल दिये। माता के भवन से भैरोंनाथ मन्दिर तक पहुँचने के लिये ड़ेढ़ किमी की जोरदार चढ़ाई चढ़नी पड़ती है। भैरों पहुँच कर कुछ देर विश्राम किया गया था। उसके बाद भैरोंनाथ के दर्शन कर सीढ़्यों से बने हुए मार्ग से ही वापिस लौटने लगे।
यह फ़ोटो इस यात्रा का नहीं है। |
जब पर्ची आदि चैक करके आगे बढ़े तो एक जगह ऊपर जाने के सीढ़ियाँ दिखायी देने लगी। देखने से तो लग रहा था कि यह सीढ़ियाँ ऊपर वैष्णों देवी भवन के लिये ही जा रही है लेकिन फ़िर भी मैंने उन बन्दों से पता करना उचित समझा जो यहाँ पहले भी आ चुके है। जैसे ही सीढ़ियाँ आई, हमारे ग्रुप के आगे चलने वाले बन्दे उन सीढ़ियों पर चढ़ना शुरु हो गये। एक ने उन्हे टोका कि सीढियों से मत जाओ जल्दी थक जाओगे। लेकिन जवानी का जोश अपनी मस्ती में हो तो भला किसकी सुनता है? अगर जवानी का जोश ऐसे ही सुन ले तो दुनिया में अपराध जैसे बलात्कार, मारपीट आदि स्वयं ही समाप्त हो जायेंगे। आज तक किसी नीम हकीम के पास जवानी का जोश काबू करने की कोई दवा नहीं मिली है। अत: कुछ लोग अपराध कर अपना जोश ढ़ीला करते रहेंगे। कुछ दूसरी किस्म के लोग जिन्हे आम लोग घुमक्कड़ श्रेणी में रखते है। अपना जोश पहाड़ व यात्राओं पर निकालते रहेंगे। वैसे बताओ कौन सा जोश अच्छा है अपराध करने का या फ़िर पहाड़ पर चढ़ने का, हमें पहाड़ पर विजय पाने में खुशी मिलती है। हम तो यही करते रहेंगे।
इस मार्ग में हमें जितनी भी सीढियाँ मिली थी हमने किसी को भी नहीं छोड़ा था। जैसे ही कोई सीढियाँ दिखाती देती हम तुरन्त उस पर चढ़ना शुरु कर देते थे। कब अर्धकुवारी का भवन आया हमें पता ही नहीं लगा। यहाँ एक नजर दौड़ाई तो देखा कि अगर किसी को यहाँ दर्शन करने है तो 4-5 घन्टे लगने तय मान कर बैठना होगा उसके बाद जाकर ही उसका नम्बर आयेगा। हमने यहाँ बाहर से राम-राम कर ऊपर की ओर यात्रा जारी रखी। जितना ऊपर हम बढ़ते जा रहे थे ऊपर से चारों ओर के नजारे बहुत खूबसूरत दिखाये देते जा रहे थे। धीरे-धीरे हम इस मार्ग की सबसे ऊँची जगह पर जा पहुँचे, साथियों ने बताया कि इसे हाथी मत्था कहते है। इसका नाम हाथी मत्था क्यों पड़ा मुझे नहीं मालूम। यहाँ से माता के भवन तक हल्की सी ढ़लान ही ढ़लान दिखायी दे रही थी। हमारे जिस साथी के पास पर्ची थी उसने पर्ची केन्द्र पर जाकर अपना नम्बर लगवाया था। साथ ही उसने कहा कि हमारा नम्बर एक घन्टे बाद आयेगा। इसलिये जिसे नहाना धोना है वो नहा ले। सुबह बिना नहाये चले थे इसलिये लगभग सभी वहाँ पर बनी हुई टोंटी के नीचे खड़े होकर नहा लिये थे।
नहाधोकर जब तक बाहर आते हमारा पर्ची पर दिया गया नम्बर टीवी में दिखायी देने लगा था। जिसका स्पष्ट ईशारा था कि अब हम भवन में अन्दर जाने वाली लाईन में लग सकते है। लाइन में लगने से पहले हमने अपना सब सामान, जैसे पैन, बैल्ट, पर्स, बैग आदि लाकर में जमा करा दिया था। यहाँ सिर्फ़ रुपये ही अन्दर लेकर जा सकते है। आज के समय चैंकिग करने के लिये इतने अत्याधुनिक अस्त्र-शस्त्र मौजूद है और यहाँ पैन तक भी ले जाने पर पाबन्दी है। अरे असली हो तो रुपये भी अन्दर ले जाने पर पाबन्दी लगवा दो। ताकि लोगों की श्रद्धा के बहाने उनकी जेब तो ला लूट सके। अन्दर जाने पर एक जगह नारियल जमा कराने का केन्द्र बनाया गया था। हमने भी अपने-अपने नारियल वही जमा करा दिये थे, जो वहाँ नारियल जमा कराता था उसे एक टोकन मिलता था। वापसी में इसी टोकन के बदले हमें एक नारियल मिलता था। यहाँ से आगे अगर गलती से भी कोई नारियल ले गया तो उसका नारियल जब्त कर लिया जाता है।
इसके बाद दो-तीन जगह मुड़ते-चढ़ते हुए हम माता की गुफ़ा में प्रवेश कर गये। वहाँ पर बताया गया कि माता की तीन पिन्ड़ी पर ही अपना ध्यान रखे। जैसे ही कोई बन्दा एकदम आखिर में पहुँचता था तो उसे माता की पिन्ड़ी निहारने के लिये मुश्किल से 4-5 सेकिंड़ का समय मिल पाता होगा। इसके बाद वहाँ मौजूद पहरेदार लगभग धक्का देते हुए बाहर का रास्ता दिखा देता है। गुफ़ा के बाहर निकलते ही एक शीशे का कमरा दिखायी देने लगता है जहाँ पर कई लोग नोटों को गिनने में लगे हुए थे। यह वही नोट होते है जो यहाँ आने वाले भक्त यहाँ दान करते है। हिन्दुओं से मिले इसी रुपये को सरकार अन्य धर्मों को सब्सिड़ी देने में खर्च करती है। जबकि कैलाश यात्रा में देख लो कितनी छूट मिलती है? दर्शन करने केउपराँत हमारा वहाँ कोई काम नहीं था इसलिये हम वहाँ से भैरों नाथ मन्दिर के लिये चल दिये। माता के भवन से भैरोंनाथ मन्दिर तक पहुँचने के लिये ड़ेढ़ किमी की जोरदार चढ़ाई चढ़नी पड़ती है। भैरों पहुँच कर कुछ देर विश्राम किया गया था। उसके बाद भैरोंनाथ के दर्शन कर सीढ़्यों से बने हुए मार्ग से ही वापिस लौटने लगे।
दोपहर बाद 3 बजे तक सभी बन्धु वैष्णों देवी से दर्शन कर वापिस कटरा आ चुके थे। जितना समय हमने देवी के यहाँ आना-जाना करने में खर्च किया, तब तक क्वालिस चालक ने अपनी नींद पूरी कर ली थी। वापिस आने के बाद यह फ़ैसला हुआ कि दो घन्टे आराम करने के बाद दिल्ली की ओर कूच कर दिया जायेगा। शाम ठीक 5 बजे हमारी क्वालिस दिल्ली के लिये लौट चली। हमारी क्वालिस में तीन पियक्कड़ भी थे जिन्होंने अपनी असलियत जम्मू बाईपास पार करने के बाद दिखायी थी। ये लोग चलती गाड़ी में शराब पीते रहे। चूंकि मुझे गाड़ी में बैठे-बैठे कम ही नींद आती है इसलिये मैं आगे चालक के पास ही बैठा हुआ था। रात भर गाड़ी चलने के बाद हम सुबह दिन निकलने के समय दिल्ली के वजीराबाद पुल पहुँच चुके थे। गाड़ी की ज्यादातर सवारियाँ दिल्ली के कृष्णा नगर की रहने वाली थी इसलिये मैं भी उनके साथ वहाँ तक चला आया था। दिल्ली पहुँचने से पहले सभी से किराये के हिस्से की राशि ले ली गयी थी मुझसे केवल 700 रुपये श्रीनगर से दिल्ली तक पहुँचाने के लिये गये थे। यहाँ से मैं सीधा शाहदरा पहुँचा, वहाँ से चार किमी दूरी पर स्थित अपने घर पहुँचने में मुश्किल से एक घन्टा का समय लगा होगा।
वैष्णों देवी के मुख्य भवन तक बाण गंगा से कुल कदम
4635, कुल सीढियाँ 4870, सबसे लम्बी सीढियाँ 576 गिनी गयी है।
दोस्तों इस तरह इस यादगार यात्रा का समापन हुआ। अगली यात्रा भी कल से शुरु कर दी जायेगी। आप अंदाजा लगाओ कि अगली यात्रा कौन सी हो सकती है? वैसे अभी बिना लिखी हुई 6 यात्रा बची हुई है।
इस यात्रा के सभी लेख के लिंक नीचे क्रमवार दिये गये है।
यादें ताजा हो गयीं..
जवाब देंहटाएंधार्मिक यात्रा में शराब....राम...राम...संदीप जी ऐसे लोगो के साथ ना जाया करो....हमारे साथ भी कई बार ऐसे लोग फंस जाते हैं...पर क्या करे मज़बूरी हो जाती हैं...
जवाब देंहटाएंआपने सही कहा प्रवीण भाई, उस दिन के बाद, आजतक मैं उनमें से किसी से मिला भी नहीं, और ना कभी मिलने की उम्मीद है।
जवाब देंहटाएंमाता के दर्शन की पूरी गाथा बहुत ही आकर्षक ढंग से आपने पाठकों तक पहुंचाई...धन्यवाद...
जवाब देंहटाएंमेरी भी यादे तरोताजा हो गयी . पिछले साल मैंने भी यही यात्रा की थी बस अंतर यह था की आपने बालताल से वापसी की श्रीनगर होते हुए, मैंने चंदनवाडी से वापसी की पहलगाम होते हुए .
जवाब देंहटाएंबढ़िया और बेस्ट यात्रा
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The Yatris have to undertake a trek of nearly 12 km from the base camp at Katra. At the culmination of their pilgrimage, the yatris are blessed with the Darshans of the Mother Goddess inside the Sanctum Sanctorum- the Holy Cave For V dhramshala in katra vaishno devi
जवाब देंहटाएं.. very nice article