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मंगलवार, 26 मार्च 2013

Delhi-Bombay(Dadar)-Narel-Khandas दिल्ली-दादर-नेरल-खंड़स तक।

महाराष्ट्र के भीमाशंकर-नाशिक-औरंगाबाद की यात्रा-01                                            SANDEEP PANWAR


बीते साल 2012 में जुलाई माह की बात है मुम्बई में रहने वाला दोस्त विशाल राठौर कई बार भीमाशंकर ट्रेकिंग की बात करता रहता था। पहले तो मन में वहाँ जाने का विचार ही नहीं बन रहा था लेकिन विशाल के बार-बार बुलाने के कारण मैंने रेल से बोम्बे जाने के लिये गोल्ड़न टेम्पल मेल से अपना टिकट बुक कर ही दिया था। दिल्ली से बोम्बे तक पहुँचने में कोई खास घटना नहीं घटी थी इसलिये उसका कोई विवरण नहीं दे रहा हूँ। यह ट्रेन सुबह 5 बजे दादर रेलवे स्टेशन पहुँच जाती है। यहाँ पर जैसे ही ट्रेन प्लेटफ़ॉर्म पर रुकी तो विशाल अपने कोच के ठीक सामने खड़ा दिखायी दिया। पहले तो गले मिलकर एक दूसरे का स्वागत किया गया। इसके तुरन्त बाद हम दोनों वहाँ से बम्बई लोकल ट्रेन में बैठने के लिये फ़ुटओवर ब्रिज पार कर दूसरी ओर लोकल वाली लाईन पर पहुँच गये। यहाँ पर विशाल ने अपने कार्ड़ से हम दोनों का दादर से नेरल तक जाने का टिकट ले लिया था। 
जाटदेवता के कदम बोम्बे में पड़ ही गये।

बोम्बे लोकल अपनी गति से दौड़ी जा रही है।

इस यात्रा के समय ही मेरे पहली बार बोम्बे की भूमि पर कदम पड़े थे। तो जाहिर है कि बोम्बे लोकल में भी पहली बार सवारी हो रही थी। सुबह का समय होने के कारण बम्बई की जीवन रेखा/ life line कही जाने वाली लोकल रेल में ज्यादा भीड़भाड़ नहीं थी। एक दिन पहले ही बोम्बे का गणपति उत्सव समाप्त हुआ था जिस कारण थोड़ी बहुत भीड़ भी 10-15 किमी तक ही दिखायी दी थी। शुरु में हमें दादर स्टेशन से सीट नहीं मिल सकी थी, लेकिन इस रुट पर नजारे देखने की इच्छा के कारण सीट मिलने का लालच भी नहीं हो रहा था। शुरु-शुरु में विशाल ने मुझे कई बार टोका कि तुम दरवाजे पर खड़े हो, सावधानी से खड़े रहो। गिर जाओगे। बैग को सम्भाल कर पकड़ो। मुझे कई बार विशाल पर आश्चर्य भी हुआ कि अरे यह बन्दा क्या मुझे अनाड़ी समझ रहा है। लेकिन विशाल की चिंता अपनी जगह सही थी, बोम्बे में गेट पर लटकने के कारण हर साल सैंकड़ों हादसे होते रहते है। बिना किसी परेशानी के अपना सफ़र चलता रहा।

कोई बात नहीं इस बार ना सही अगली बार यात्रा करनी ही है।



यह नैरो गेज का डिब्बा है।

बोम्बे लोकल ट्रेन ने हमें नेरल नाम के स्टेशन पर लाकर उतार दिया था। यहाँ हम ट्रेन से उतर कर सीधे माथेरान जाने के लिये मिलने वाली नैरो गेज रेलवे के टिकट काऊँटर पर पहुँच गये। मेरी माथेरान नैरो गेज लाइन पर यात्रा करने की बहु इच्छा थी लेकिन यह इच्छा इस यात्रा में पूरी ना हो सकी थी। टिकट काउँटर पर हमें बताया गया कि बारिश के सीजन में यह ट्रेन बन्द रहती है। इसलिये अभी यह रेल पुन: शुरु नहीं हो पायी है। यह अलग बात है कि माथेरान से तीन किमी पहले तक यह रेल बारिश में भी जॉय राइड़ के नाम से साल भर चलती रहती है। मुझे यह रेल यात्रा करने के लिये फ़रवरी 2013 में यहाँ दुबारा आना पड़ा था। उसका विवरण बाद में बताया जायेगा। जब रेल यात्रा का पूरी तरह इन्कार हो गया तो अब हमारी मंजिल भीमाशंकर ट्रेकिंग करने की योजना पर बन गयी थी।

छोटे इन्जन को चलाकर देखा जा रहा था।

माथेरान जाने की समय सारिणी।

सबसे पहले हमने स्टेशन पर मिलने वाले स्थानीय व्यंजन बड़ा पाव का स्वाद लिया था। यहाँ हमने दो-दो बड़ा पाव सटक लिये, बड़ा पाव खाकर नेरल स्टेशन से बाहर आये। यहाँ यह बात ध्यान रखनी जरुरी है कि जिस ओर से माथेरान जाने की छोटी रेल मिलती है, भीमाशंकर जाने के उसके उल्टी/विपरीत दिशा में रेलवे लाइन पार कर उस जगह आना होता है जहाँ से नेरल का प्लेटफ़ार्म शुरु होता है। यहाँ यह ध्यान जरुर रखे कि बोम्बे से नेरल आने पर रेलवे लाइन पार किये बिना वापसी प्लेटफ़ार्म के उसी आखिरी किनारे पर आ जाये जिस ओर बोम्बे से हमारी ट्रेन यहाँ आयी थी। स्टेशन से बाहर निकल कर खंड़स जाने के लिये वाहन के बारे में पता किया लेकिन उस दिन हमें खंड़स के लिये कोई सीधा वाहन नहीं मिल पा रहा था इसलिये हमें खंड़स तक की यात्रा को दो टुकड़ों में करना पड़ा था। नेरल से हमें खंड़स से 10 किमी पहले एक गाँव कसाले तक जाने के लिये टैम्पो मिल गये थे। यहाँ से शेयरिंग आधार पर हम दोनों उस वाहन में सवार होकर भीमाशंकर की ओर रवाना हो गये थे।

यहाँ कसाले घाट पर पहले बाहन ने हमें लाकर छोड़ दिया था।



इसी नदी किनारे हमारी गाड़ी में पंचर हुआ था।

खंड़स से पहले कसाले में हम जहाँ खड़े हुए थे। वहाँ सामने ही ताजे-ताजे गर्मागर्म वडा पाव बनाये जा रहे थे। यहाँ से हमने एक बार दो-दो बड़ा पाव खाये थे। वहां काफ़ी देर प्रतीक्षा करने के उपराँत भी जब कोई वाहन हमें खंड़स तक जाने के लिये नहीं मिला तो हमने एक मैजिक वाहन वाले से बात की, उसने हमसे खंड़स तक पहुँचाने के 200 रुपये माँगे। 10 किमी तक की दूरी के लिये 200 रुपये देना हम जैसे कंजूसों के लिये बड़ी बात थी। इसलिये हमने आधा घन्टा अन्य यात्रियों की प्रतीक्षा की थी। जब कई सवारी हो गयी तो हमने उस वाहन वाले से कहा कि कितनी सवारी होने पर चलोगे? उसने कहा कि पूरी दस सवारी होने पर ही मैं जाऊँगा। ठीक है चार सवारी के पैसे हम दे देंगे, अब चलो। हमने 20 रुपये प्रति सवारी के हिसाब से चार सवारी के पैसे उसे दे दिये थे। अभी हम 3 किमी ही आये थे कि हमारे वाहन के पहिये में पंचर हो गया। गाड़ी वाले के पास गाड़ी उठाने के लिये जैक भी नहीं था। इसलिये उसने तीन किमी दूरी से जैक मंगवाया, पहिया बदल कर हमारी यात्रा आगे खंड़स के लिये चल पड़ी।

यह खंड़स गाँव है। यहाँ से पैदल यात्रा शुरु होती है।

ना हमें आसान मार्ग पर नहीं जाना है।

चलते रहो, सामने वाले पहाड़ पर चढ़ना है।


पुल लिया गया बहती धारा का फ़ोटो

यहाँ पुल पार करते ही हम उल्टे हाथ बोर्ड़ की दिशा में चल दिये थे।

खंड़स गाँव से चलते ही पैदल पक्की पगड़न्ड़ी बनी हुई है जो खंड़स गाँव के बीच से होकर बढ़ती है। गाँव से होकर जाते समय यहाँ की जीवन शैली की झलक भी देखने को मिलती है। गाँव समाप्त होते ही वह सड़क पुन: इसी पगड़न्ड़ी में मिल जाती है जिसे हम अभी पीछे छोड़ कर आये थे। करीब दो किमी तक हमें इसी सड़क आगे बढ़ता रहना होता है। एक जगह गणेश घाट की दूरी दो किमी का बोर्ड़ का भी लगा हुआ था। विशाल पहले भी इसी गणेश घाट से जाकर भीमाशंकर दर्शन कर चुका है। लेकिन अपना इरादा तो हमेशा से चुनौती पूर्ण यात्राएँ करने में ही रहता है। पैदल चलते हुए विशाल ने कई बार चेतावनी वाले अंदाज में बताने की कोशिश भी की थी सीढी घाट बहुत खतरनाक है। लेकिन अपना भी हमेशा से एक फ़ंड़ा रहा है कि जहाँ लोगों की हिम्मत जवाब देने लगती है, वहाँ से अपना सफ़र यानि "जाट देवता का सफ़र" शुरु होता है। हर मुश्किल को आसान बनाने के जज्बे के कारण ही अपुन का नाम जाट देवता पड़ा है।

इसी सड़क से हम आये थे।

यह गाँव पार करते ही सीढी घाट की पगड़न्ड़ी आ जाती है।

मार्ग में चलते हुए कोई दो किमी के आसपास जाने पर एक नदी का पुल आता है। यहाँ सामने पुल पार करते ही  मार्ग T आकार में हो जाता है। सीधे हाथ जाने वाला गणेश घाट वाले आसान पद यात्रा मार्ग की ओर जाता है। जबकि उल्टे हाथ जाने वाला मार्ग काठेवाड़ी गाँव होकर सीढी घाट की भयंकर सी दिखने वाली कठिन चढ़ाई की ओर जाता है। यहाँ पर एक बार मन हुआ कि चलो यार गणेश घाट से चलते है क्यों खामाह खा सीढी घाट की कठिन चढ़ाई से पंगे लिये जाये। मैं विशाल के मन की भावना समझ रहा था वह सीढी घाट से जाने का इच्छुक नहीं दिख रहा था। लेकिन जब मैंने उसके साथ दो किमी की पैदल यात्रा की तो मुझे लगने लगा कि यह बन्दा सीढी घाट की चढ़ाई से थोड़ा सा चिंतित भले ही दिख रहा हो लेकिन यह इस खतरनाक बतायी जाने वाली चढ़ाई को कर ही लेगा। हम दोनों उल्टे हाथ वाले मार्ग पर चल पड़े। मुश्किल से एक किमी भी नहीं आये होंगे कि काठेवाड़ी गाँव आ गया। हमने गाँव पारकर एक भेड़-बकरी चराने वाले से ऐसे ही पूछ लिया कि सीढी घाट वाला मार्ग कहाँ से कटता है तो उसने कहा कि अरे आप तो वह मार्ग 100 मीटर पीछे गाँव समाप्त होते ही छोड़ आये हो। हम वापिस गाँव के नजदीक आये। यहाँ से पहाड़ की दिशा में चावल के खेतों की मेंढ पर चलते हुए हम सीढी घाट की चढ़ाई की चलने लगे।

पढ लो भाई।

यह सीढी घाट का पैदल हाई वे है।


इस यात्रा के सभी लेख के लिंक नीचे दी गयी सूची में दिये गये है।
बोम्बे से भीमाशंकर यात्रा विवरण
01. दिल्ली से दादर-नेरल तक ट्रेन यात्रा, उसके बाद खंड़स से सीढ़ी घाट होकर भीमाशंकर के लिये ट्रेकिंग।
02. खंड़स के आगे सीढ़ी घाट से भीमाशंकर के लिये घने जंगलों व नदियों के बीच से कठिन चढ़ाई शुरु।
03. भीमाशंकर ट्रेकिंग में सीढ़ीघाट का सबसे कठिन टुकड़े का चित्र सहित वर्णन।
05. भीमाशंकर मन्दिर के सम्पूर्ण दर्शन।
नाशिक के त्रयम्बक में गोदावरी-अन्जनेरी पर्वत-त्रयम्बकेश्वर ज्योतिर्लिंग आदि क विवरण
06. नाशिक त्रयम्बक के पास अन्जनेरी पर्वत पर हनुमान जन्म स्थान की ट्रेकिंग।
07. हनुमान गुफ़ा देखकर ट्रेकिंग करते हुए वापसी व त्रयम्बक शहर में आगमन। 
08. त्रयम्बक शहर में गजानन संस्थान व पहाड़ पर राम तीर्थ दर्शन।
09. गुरु गोरखनाथ गुफ़ा व गंगा गोदावरी उदगम स्थल की ट्रेकिंग।
10. सन्त ज्ञानेश्वर भाई/गुरु का समाधी मन्दिर स्थल व गोदावरी मन्दिर।
11. नाशिक शहर के पास त्रयम्बक में मुख्य ज्योतिर्लिंग के दर्शन
औरंगाबाद शहर के आसपास के स्थल।
12. घृष्शनेश्वर ज्योतिर्लिंग के दर्शन
13. अजंता-ऐलौरा गुफ़ा देखने की हसरत।
14. दौलताबाद किले में मैदानी भाग का भ्रमण।
15. दौलताबाद किले की पहाड़ी की जबरदस्त चढ़ाई।
16. दौलताबाद किले के शीर्ष से नाशिक होकर दिल्ली तक की यात्रा का समापन।
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5 टिप्‍पणियां:

  1. होली की हार्दिक शुभकामनायें!!!

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  2. बड़ा ही सुन्दर क्षेत्र है यह, आनन्द आ जाता है।

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  3. आखिर पहुच ही गए आमची मुंबई ......वाह क्या जाच रहे हो लौकल में सफ़र करते हुए ....बोम्बे में जो रहता है उसकी दरवाजे में खड़े रहने की आदत होती है ...पर जब कोई बाहर से आता है तो हम डर जाते है और उसको बताना अपना फ़र्ज़ समझते है ...ही ही ही ही

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  4. शुभ यात्रा...मै ये यात्रा पिछली पोस्टों से कवर कर रहा हूँ...

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