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सोमवार, 11 मार्च 2013

Kedarnath (12 Jyotirlinga) Temple केदारनाथ 12 ज्योतिर्लिंग में सर्वाधिक ऊँचाई वाला ज्योतिर्लिंग

बद्रीनाथ-फ़ूलों की घाटी-हेमकुन्ठ साहिब-केदारनाथ यात्रा-06


रुद्रप्रयाग से अपना साथी मुझे अकेला छोड़कर दिल्ली के लिये रवाना हो गया। मैंने अपनी बाइक गौरीकुंड़ के लिये दौड़ा दी। बाइक पर अकेले सवारी करते हुए मैंने महसूस किया कि बाइक पर अकेला होने के कारण बाइक आसानी से पहाड़ पर चढ़ती जा रही है। पीछे किसी के बैठने पर बाइक का संतुलन बनाने में सावधानी रखनी पड़ती थी। अकेला होने पर जो आराम मिला, उसका मुझे बहुत लाभ हुआ। मैं मुश्किल से दो घन्टे से पहले ही गौरीकुंड़ पहुँच चुका था। गौरीकुंड़ पहुँचते ही घड़ी में समय देखा तो दोपहर के 11 बजने जा रहे थे। सबसे पहले तो बाइक को किसी सुरक्षित स्थान पर खड़ा करना था उसके बाद आगे जाने की कार्यवाही पर अमल करना था। मैं गौरीकुंड़ में घुसते ही सबसे पहले सीधे हाथ की ओर दिखायी देने वाले कमरों में जगह देखने के लिये बात बात की, वहाँ पर मौजूद एक कर्मचारी बोला कितने आदमी हो, मैंने कहा कि मैं तो अकेला हूँ उस आदमी ने मुझे किराया मात्र 50 रुपये बताया था। मैंने तुरन्त 50 रुपये उसको दे दिये। उसने मुझे सबसे नीचे का सड़क किनारे वाला कमरा दिया था मेरी बाइक उसने मेरे कमरे के अन्दर ही खड़ी करवा दी थी। मैंने बाइक खड़ी कर अपने बैग से फ़ालतू सामान निकाल कर सिर्फ़ एक जोड़ी कपड़े व नहाने का सामान व बरसात से बचने की पन्नी वाला बुर्का लेकर गौरीकुंड़ के गर्म पानी में स्नान करने के लिये चला गया। 

केदारनाथ मन्दिर





मैं लगभग दस मिनट तक गौरीकुंड़ के गर्मागर्म पानी में घुस कर नहाता रहा। नहाधोकर मैं बाहर आया तो सामने ही एक दुकान पर गर्म-गर्म पराँठे बनते दिखायी दे रहे थे। सुबह से कुछ खाया भी नहीं था। इसलिये पहले दो/तीन परांठे खाये गये\ परांठे खाने के बाद मैंने केदारनाथ के लिये धावा बोल दिया। वैसे तो केदारनाथ की मेरी पहली यात्रा थी जिस कारण मैं गौरीकुंड़ में कई लोगों से केदारनाथ जाने वाले के बारे में पता कर आगे बढ़ा था। शुरु की एक किमी की यात्रा तो लगभग सही सलामत सी दिखायी देती है लेकिन इसके बाद केदारनाथ तक लगातार चढ़ाई चढ़नी पड़ती है।  मैं अकेला होने के कारण अपनी मस्ती में चला जा रहा था। मैंने मार्ग में जितने शार्टकट दिखायी पड़ते थे सभी का प्रयोग किया था। यह मार्ग बिल्कुल वैष्णों देवी के मार्ग की तरह आसान बनाया गया है। कल मैं हेमकुंठ की कठिन चढ़ाई व उतराई करके आया था उसके मुकाबले मुझे यह मार्ग 25 % ही कठिन लग रहा था। अगर लम्बाई की तुलना भी की जाये तो यह मार्ग उससे कम ही बैठता है। कठिनाई में यह उसके सामने कुछ भी नहीं है। यहाँ पर चढ़ाई भी आसान है जबकि हेमकुंठ में तो बर्फ़ के गलेशियर भी पार करने पड़े थे। इस पूरे मार्ग में कही भी खतरा नहीं महसूस हुआ था। जबकि हेमकुंठ में कई बार रोंगटे खड़े हो गये थे।

मैं रामबाड़ा तक कही भी नहीं रुका, बीच-बीच में हल्की-हल्की बारिश/बून्दा-बांदी भी आयी थी जिसको बिना किसी परॆशानी के बिना कही रुके मैं पार करता रहा। रामबाड़ा रुककर मैंने एक जगह एक गिलास नीम्बू पानी पिया था। चाय आदि से अपने को ना कभी मतलब था और ना कभी होगा। रामबाड़ा में 5-7 मिनट बैठने के बाद मैं फ़िर से केदारनाथ के लिये बढ़ चला। अरे हाँ याद आया कि जिस दिन मैं केदारनाथ की चढ़ाई कर रहा था उस दिन 15 अगस्त का दिन था। दुकान वालों ने रंग बिरंगे तिरंगे लगाये हुए थे। रामबाड़ा से चलते ही एक बहुत बड़ा शार्टकट दिखायी दे रहा था मैंने पहले ही कहा था कि मैं किसी भी शार्ट कट को नहीं छोड़ रहा था। इस सबसे लम्बे कट पर चलने के बाद मैंने पाया कि यह कट पूरे डेढ़-दो किमी के मार्ग से मुक्ति दिला देता है। इसमें एक नदी को पार कर आगे बढ़्ना होता है जैसे ही नदी आयी तो मुझे अपने जूते निकाल कर नदी पार करनी पड़ी। ऊपर जाकर मैंने पीछे मुड़कर देखा कि अरे वाह यह कट तो बहुत काम कर गया। कट समाप्त होने के बाद कुछ पहल खड़े-खड़े सुस्ता कर मैं आगे बढ़ गया। आगे जाने पर जो जगह आती है उसे गरुड़ चटटी कहकर पुकारते है। सर्दियों में भी यहाँ कुछ साधु निवास करते है जबकि यहाँ चारो और बर्फ़ ही बर्फ़ दिखायी देती है।

गरुड़ चट्टी से आगे जाने के बाद मार्ग की कठिनाईयाँ बहुत कम रह जाती है। केदारनाथ से एक किमी से भी पहले तो इस मार्ग की हालत एकदम समतल हो जाती है वहाँ चलते हुए ऐसा लगता है कि जैसे हम किसी आम सड़क पर चल रहे हो। इस आसान टुकड़े को पार कर मैं केदारनाथ की आबादी में प्रवेश कर गया था। यहाँ पर कुछ पुजारियों के चेले मिलते है जो आपसे आपसे आपके इलाके का नाम पता मालूम कर बता देते है कि आपको किससे पूजा करवानी है? ऐसे ही दो-तीन मुर्गे मुझे भी मिले थे। जब वो मुझसे कहते कहाँ से आये हो? तो मैं कहता कि गौरीकुंड़ से आया हूँ। उनमें से एक ने कहा कि आपको पूजा करवा देंगे रहने की व्यवस्था भी करवा देंगे। मैं उनसे परेशान होकर बोला कि ना मैं यहाँ पूजा करने करने आया हूँ ना या ठहरने आया हूँ। मैं सिर्फ़ दर्शन करने आया हूँ उसके लिये मुझे किसी मदद की आवश्यकता नहीं है। मैं उससे अपना पिन्ड़ छुटा कर आगे बढ़ गया। आगे जाते ही उस नदी केदार गंगा का पुल पार किया, जिसके साथ-साथ मैं यहाँ तक आया था।  इस पुल से आगे चलते ही मार्ग में एकदम से तेज चढ़ाई का सामना करना पड़ता है। जो इन्सान सही सलामत यहाँ इस पुल तक आ जाता है उसकी रही सही कसर यह चढ़ाई कर देती है। लेकिन इस छोटी सी दम फ़ुलाऊ चढ़ाई के बाद मन्दिर वाली मुख्य गली आ ही जाती है। सामने मन्दिर की चोटी/गुम्बद दिखायी दे रही होती है। 

सबसे पहले एक दुकान पर बैठकर एक गर्मागर्म समोसा खाया गया। उसके बाद मन्दिर पहुँचकर अपनी चप्पल वही सीढियों पर छोड़कर मैं मन्दिर के प्रांगण में प्रवेश कर गया। पहले तो मन्दिर का परिक्रमा रुपी एक चक्कर लगाया। उसके बाद खाली पड़े मन्दिर में अन्दर जाकर दर्शन किये गये। मन्दिर बरसात क अमौसम होने के कारण एकदम खाली पड़ा था। यहाँ पर एक परम्परा है कि दोपहर बाद गर्भगृह में प्रवेश बन्द कर दिया जाता है। दोपहर से पहले गर्भगृह खुला होता है यदि किसी को अभिषेक जा जल अभिषेक करना हो तो वह दोपहर बाद मन्दिर में जाकर अपना मन दुखी ना करे। यहाँ पर रात में ठहरने की भी कोई समस्या नहीं है। हाँ जून का महीना छोडकर यहाँ आसानी से रात रुकने के लिये स्थान मिल जाता है। उत्तर भारत में स्कूलों के अवकाश के दिनों में यहाँ भीड़ की जबरदस्त मारामारी मचती है। इसलिए यहाँ कभी भी आये, लेकिन 15 मई से लेकर 1 जुलाई तक कभी ना आये।  बरसात का महीना यहाँ एकदम शांत होता है। बहुत कम लोग यहाँ आते है। लेकिन उन दिनों में पहाड़ खिसकने के कारण मार्ग बन्द हो जाने का खतरा हमेशा बना रहता है। मैं दर्शन करने के बाद अपने फ़ोटो खिंचवाकर वहाँ से वापिस चल दिया।

जब मैं वहाँ से चला था उस समय घड़ी में शाम के 5 बज चुके थे। मैं वापसी में तीन घन्टे का सफ़र मान कर चल रहा था लेकिन थोड़ा सा आगे चलते ही बरसात शुरु हो गयी इस कारण चलने की गति पर नियन्त्रण कर उतरने लगा। तीन किमी बाद बारिश तो रुक गयी लेकिन अब पानी के कारण मार्ग गीला हो गया था। गीले मार्ग पर मैंने थोड़ी सी तेजी दिखायी तो एक जगह ओये रे, गया रे, ऊई माँ री, बच गया रे। होते-होते बच गया। मैं फ़िर भी मौका लगते ही बीच-बीच में तेजी पकड़ लेता था। वापसी में मैंने शार्टकट का प्रयोग दो-तीन जगह ही किया था। रामबाड़ा तक पहुँचते-पहुँचते अंधेरा होने लगा था। वैसे तो मार्ग में लाईट लगायी गयी थी। लेकिन लाईट रामबाड़ा से दो किमी आगे जाकर बन्द हो चुकी थी। रामबाड़ा से एक बन्दा मेरे साथ हो लिया था। मैं अपनी चाल से उतरता रहा। मार्ग में अब आगे व पीछे साथ चल रहे बन्दे के अलावा कोई नहीं दिख रहा था। जो बन्दा मेरे साथ उतर रहा था उसने बातों बातों में बताया कि वह महाराष्ट्र में अध्यापक है। पहली बार केदारनाथ यात्रा पर आया है। मैंने उससे गौरीकुंड़ में रुकने के ठिया के बारे मॆं पता किया तो उसने  बताया कि वह गौरीकुंड़ जाकर कमरा तलाश कर लेगा। मैंने कहा कि कमरा लेने की कोई जरुरत नहीं है। मैं जिस कमरे में हूँ, अकेला हूँ मेरे कमरे में दो तख्त है एक पर मैं दूजे पर तुम सो जाना।

उसे अगले दिन बद्रीनाथ जाना था इसलिये मैंने उसे बद्री नाथ के बारे में भी काफ़ी बाते बता दी थी। रात को अंधेरे में मोबाइल की रोशनी में धीरे-धीरे चार किमी चलते हुए हम किसी तरह गौरीकुंड़ पहुँचे थे। वहाँ पहुँचकर समय देखा तो रात के साढ़े 9 बज चुके थे। गौरीकुंड़ का बाजार आधा बन्द हो चुका था। कुछ दुकाने खुली थी हमें देखकर वे लोग आवाल लगा रहे थे 50 रुपये में कमरा मिल जायेगा। जबकि मैं पहले ही 50 रुपये में सड़क वाला कमरा लेकर गया था। दोपहर को 12 बजे यात्रा की शुरुआत कर रात के नौ बजे अपनी ट्रेकिंग वाली यात्रा का समापन हुआ। जहाँ मैं ठहरा हुआ था उसके बराबर में ही एक ढ़ाबा था। ढ़ाबे वाले ने रात को कमरे में ही खाना भिजवा दिया था। अगले दिन सुबह चार बजे उठकर दिल्ली चलने की तैयारी शुरु कर दी। सुबह के ठीक 5 बजे मैंने अपनी बाइक स्टार्ट कर दिल्ली के लिये प्रस्थान कर दिया था। वहाँ से चलकर मैं सीधा ऋषिकेश आकर गंगा जी के किनारे ही रुका। कुछ देर गंगा जी के ठन्ड़े-ठन्ड़े शीतल जल में पैर ड़ालकर बैठा रहा। उसके बाद फ़िर दिल्ली के लिये चल दिया।  हरिद्धार पहुँचकर एक जगह पुल के ऊपर अपना एक पडौसी दिखायी दिया, मैंने तुरन्त बाइक उसके सामने लगायी। वह मुझे देखकर चौंक गया कि तुम यहाँ कहाँ घूम रहे हो? मैंने कहा कही नहीं बस ऐसे ही टहलने आया था। अब उसे सारी यात्रा के बारे में बताता तो वो मुझे सिरफ़िरा ही कहता ना। लगभग एक बजे मैंने हरिद्धार पार कर लिया था। यहाँ से घर पहुँचने तक मुझे चार घन्टे का समय और लगा। इस तरह मैं सुबह के 5 बजे गौरीकुन्ड़ से बाइक चलाकर शाम के 5 बजने से कुछ मिनट पहले अपने घर दिल्ली बार्ड़र पहुँच चुका था।
तो दोस्तों यह थी मेरी उतराखण्ड़ की एक यादगार बाइक यात्रा, इसके बाद मैं आपको हिमाचल में की गयी एक और बाइक यात्रा का विवरण करुँगा। आप जो भी मेरी यात्राएँ पढ़ते है उनका मैं धन्यवाद करता हूँ। मेरे लेख में कोई कमी लगे तो मुझे मेल द्धारा अवश्य अवगत कराये।



बद्रीनाथ-माणा-भीम पुल-फ़ूलों की घाटी-हेमकुंठ साहिब-केदारनाथ की बाइक bike यात्रा के सभी लिंक नीचे दिये गये है। 
भाग-01 आओ बाइक पर सवार होकर बद्रीनाथ धाम चले। Let's go to Badrinath Temple
भाग-02 माणा गाँव व भीम पुल से घांघरिया तक
भाग-03 फ़ूलों की घाटी की ट्रेकिंग Trekking to Velly of flowers
भाग-04 हेमकुंठ साहिब गुरुद्धारा का कठिन ट्रेक/Trek
भाग-05 गोविन्दघाट से रुद्रप्रयाग होते हुए गौरीकुंड़ तक।
भाग-06 गौरीकुंड़ से केदानाथ तक पद यात्रा, व केदारनाथ से दिल्ली तक बाइक यात्रा।
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10 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी उत्कृष्ट प्रस्तुति सोमवारीय चर्चा मंच पर ।।

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  2. बहुत ही सार्थक एवं सुन्दर प्रस्तुतीकरण.

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  3. अरे उल्टी गंगा क्यों बहा रहे हो पड़ौसी भाई? घर बिठाये ही इतनी बढ़िया बढिया यात्रायें करवा रहे हो और फ़िर धन्यवाद भी दे रहे हो - गलत बात। धन्यवाद तुम्हारा है भाई।

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  4. एक फोटो ही काफी है ऐसा तो ​आजकल देखने को भी नही मिलेगा ।

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  5. बहुत बढ़िया रही...आपकी केदार नाथ यात्रा...| क्या बात शोर्टकट बहुत लेते हो...

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  6. जाट देवता हम आपके फेन (पंखा) हो गये हैं। क्या लिखते हो आप। बदरीनाथ केदारनाथ अमरनाथ तो हम भी हो आये पर घूमना केसे हो ये आपने बताया है!

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  7. केदारनाथ की फोटोज भी होती तो और भी आनंद आता। गौरीकुंड के गर्म पानी में ज्यादा देर रहने से चक्कर आने लगते हैं। हम अक्टूबर १९९० में गए थे।

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  8. बहुत तेज बाइक चलाते हैं आप।

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