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मंगलवार, 12 मार्च 2013

Delhi-Mandi-Kullu-Manikaran Gurudwara दिल्ली-मन्डी-कुल्लू-मणिकर्ण-मनाली होकर रोहतांग दर्रे तक।

पहली हिमाचल बाइक यात्रा-01

हिमाचल प्रदेश में रोहतांग दर्रा के नाम से शायद ही कोई अछूता हो? बात सन 2009 के जुलाई माह की बात है, मैंने और गुजरात व गौमुख-केदार यात्रा में साथ जाने वाले अनिल ने बाइक से लेह-लद्धाख जाने का कार्यक्रम बनाया हुआ था। वैसे मुझे घुमक्कड़ी करते हुए 22 साल से ज्यादा का समय हो गया है। इस यात्रा से पहले मैंने दिल्ली से गंगौत्री व यमुनौत्री तक कई बार बाइक पर आना-जाना किया हुआ था। हिमाचल में इससे पहले मैं एक बार शिमला तक ही गया था। शिमला वाली उस यात्रा में मैं दिल्ली से कालका तक पैसेंजर रेल से गया था। उसके बाद कालका से सुबह 4:30 मिनट पर चलने वाली छोटी रेल/खिलौना रेल toy train से कालका से शिमला तक की यात्रा की थी। उस यात्रा में ज्यादा फ़ोटो नहीं लिये थे। इस यात्रा के समय भी रील वाला कैमरा मेरे पास था। रील वाले कैमरे को प्रयोग करते समय बहुत ज्यादा कंजूसी दिखानी पड़ती थी। इसलिये आज मैं आपको ज्यादा फ़ोटो नहीं दिखा पाऊँगा। चलिये यात्रा पर चलते है....
कुल्लू से पहले एक बाँध पर यह नजारा है।

हम चार बन्दे दो बाइक पर तय समय लेह यात्रा के लिये चल दिये। हमारी यात्रा की शुरुआत तो हमेशा से ही दिल्ली बार्ड़र के घर से ही हुआ करती है, इसलिये मैं और विशेष मलिक मेरी सदाबहार ambition बाइक पर सवार होकर लेह के लिये चल दिये। अनिल और उसका छोटा भाई जो उत्तर प्रदेश पुलिस UP POLICE में कार्यरत है। इस यात्रा के लिये पन्द्रह दिन का अवकाश लेकर आया था। अनिल और उसके भाई को हमें बागपत शहर के चौराहे पर मिलना था। जब हम बागपत पहुँचे तो वे दोनों वहाँ पहले से ही मौजूद थे। हमारे आते ही वे भी तुरन्त चल दिये। अभी हम बड़ौत पार करने के बाद रमाला नामक गाँव में पहुँचे ही थे कि यहाँ अनिल मुझसे आगे चल रहा था, अनिल के आगे एक भैसा-बुग्गी आने के कारण उसने अपनी बाइक रोक दी, जबकि मुझे आगे निकलने की जगह मिलने के कारण मैं आगे बढ़ गया। जब मैंने थोड़ा सा आगे जाने पर महसूस किया कि अनिल पीछे नहीं आ रहा है तो बाइक सड़क के किनारे रोक दी। अनिल लगभग 5 मिनट के बाद बाइक पर आता हुआ दिखायी दिया। जब वे हमारे पास आये तो उन्होंने अपने लहुलूहान पैर खून से लथपथ पैर मुझे दिखाये तो मैं आश्चर्यचकित रह गया कि अरे अभी तो मैं तुम्हे सही सलामत छोड़ कर आया था और अब तुम खून से लथपथ हो। आखिर तुम्हे हुआ क्या?  इतनी चोट लगी कैसे?

रोहतांग अभी 11 किमी दूर है।


उन्होंने बताया कि हम जिस बुग्गी के पीछे रुके थे, वहाँ पर एक मोपेड़ (अरे वही मरचली कुतिया जैसी हल्की सी बाइक होती है।) वाले ने हमें पीछे से ठोक दिया था, यह सारी चोट उसी की टक्कर का नतीजा है। चूंकि उस समय ताजी-ताजी चोट लगी थी इसलिये दर्द का ज्यादा अहसास नहीं हो पा रहा था। हमने चोट के बाद भी अपनी यात्रा जारी रखी। हमें यह अंदेशा तो था ही कि इस चोट के कारण लेह जाना तो मुमकिन नहीं हो पायेगा। इसलिये हम सोच रहे थे कि चलो हिमाचल या मनाली तक ही घूम कर वापिस आ जायेंगे। हम चोट लगने के बाद 20 किमी आगे शामली कस्बे तक ही पहुँचे थे कि चोट वालों बन्दों अनिल को पैर में व संजीव को सीधे हाथ में दर्द होना शुरु हो गया था। आखिरकार एक डाक्टर/चिकित्सक की दुकान देखकर उसको खुलवाया गया। सुबह के सात बजे थे, इस कारण दुकाने बन्द ही थी। ड़ाक्टर को injection, जख्म की साफ़-सफ़ाई व पटटी आदि करने में आधा घन्टा लग गया था। इलाज कराने बाद भी हम आधा घन्टा वही बैठे रहे। लेकिन जैसे-जैसे समय बीत रहा था चोट वाले दोनों भाईयों का दर्द कम नहीं हो रहा था, इस कारण वे दोनों भाई अपनी बाइक समेत वही शामले से ही वापिस चले आये। अब आगे की यात्रा में मेरी बाइक अकेली रह गयी थी।

दिल्ली से अम्बाला का हमारा मार्ग

मैंने और विशेष मलिक ने लेह का कार्यक्रम अभी भी पूरी तरह तो रदद नहीं किया था। हम लोग आगे देखेंगे है कैसे हालात होंगे कि क्या होगा कि तर्ज पर चलते रहे। शामली से हमारी बाइक करनाल रोड़ की ओर मुड़ गयी थी कि यहाँ से हमें करनाल होकर अम्बाला पहुँचना था। हम ठीक-ठाक लेकिन सुरक्षित गति से अपनी मंजिल की ओर बढ रहे थे। हमें मन्ड़ी से आगे हणौगी माता के तक पहुँचने में ही रात होने को आ रही थी। जब पुन: एक बार फ़िर मैं लेह गया था तो हम तीन बाइक होने पर भी शाम तक आसानी से मनाली पहुँच गये थे। जबकि इस यात्रा में मन्डी से कुछ किमी आगे हणोगी माता के मन्दिर तक ही पहुँच पाये थे। इस मन्दिर के बाहर एक बोर्ड़ देखा जिस पर लिखा था। साफ़ व सुन्दर कमरा 150 रुपये में, अरे हाँ यहाँ एक बड़ा हॉल भी जिसमें रुकने के लिये मात्र २० रुपये चार्ज लिया जाता है। शाम को मन्दिर में लंगर का भी प्रबन्ध किया जाता है। भोजन के लिये चिंता करने की भी आवश्यकता नहीं है। लंगर में भोजन उन्ही लोगों को मिलता है जो शाम होने तक यहाँ आ जाते है। अगर कोई देर रात आता है तो उसे कमरा तो मिल जायेगा, लेकिन खाना शायद नहीं मिलेगा। मनाली तक पहुँचना सम्भव नहीं हो रहा था, इसलिये हम भी रात में यही ठहर गये। यहाँ के कमरे काफ़ी अच्छी साफ़-सफ़ाई वाले थे। कमरे में बाथरुम अन्दर ही बनाया गया है। गर्म पानी की सुविधा भी कमरों में ही दी गयी है।

अम्बाला से मणिकर्ण मार्ग

अगले दिन हम चाहते तो मन्दिर के कमरे के गर्मागर्म पानी में नहाकर आगे यात्रा पर निकल पड़ते। लेकिन सुबह-सुबह चलकर सबसे पहले कुल्लू से पहले मणिकर्ण जाने वाले मार्ग पर सीधे हाथ पुल पार करते ही मणिकर्ण के लिये निकल पड़े। गुरुद्धारे के गर्म जल में जी भर कर स्नान किया था, जब नहा-नहा कर जी भर गया तो गुरुद्धारे का लंगर चखकर रोहतांग के लिये अपनी बाइक फ़िर से दौड़ पड़ी। कुल्लू मनाली होकर हमारी बाइक दोपहर होते-होते हम रोहतांग दर्रे के बेहद नजदीक पहुँच गयी थी। रोहतांग से कोई 20-25 किमी पहले अच्छी खासी चढ़ाई आ जाती है जिससे सभी वाहनों की रफ़्तार पर लगाम खुद व खुद लग जाती है। रोहतांग अभी 11 किमी दूरी पर रह गया था कि मार्ग में ट्रेफ़िक जाम की हालत दिखायी दी, इस कारण हम वहाँ पर कुछ देर रुकने के बाद जाम में लाईन में वाहनों के आगे-पीछे दाये-बाये कभी खाई कभी पहाड़ के किनारे होते हुए आगे की ओर बढ़ चले। एक जगह मेरी बाइक पहाड़ के एकदम किनारे थी यहाँ अगर 4-6 ईंच भी पहिया इधर उधर होता तो बाइक सीधे हजारों फ़ीट तक स्केटिंग करती हुई दिखाई देती, और शायद मैं भी। मेरी इस दुस्साहसिक कदम को देखकर एक सरदारजी अपने किसी साथी से बोला था, ओये देख लगता है कि बाइक वाला पैग चढ़ाकर आया है।...........आपको क्या लगता है कि मैं नशा कर सकता हूँ

मणिकर्ण से रोहतांग  तक

अगले लेख में रोहतांग दर्रे की यात्रा करायी जायेगी।

हिमाचल की इस पहली लम्बी बाइक यात्रा के सभी लेख के लिंक नीचे दिये गये है।

भाग-01 दिल्ली से कुल्लू मणिकर्ण गुरुद्धारा।
भाग-02 रोहतांग दर्रा व वापसी कुल्लू तक
भाग-03 रिवाल्सर झील, चिंतपूणी मन्दिर, ज्वाला जी मन्दिर, कांगड़ा मन्दिर।
भाग-04 चामुंण्ड़ा से धर्मशाला पठानकोठ होकर जम्मू तक।
भाग-05 जम्मू से वैष्णों देवी व दिल्ली तक की बाइक यात्रा का वर्णन।
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2 टिप्‍पणियां:

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