मन्दिर के पास वाली दुकानों से मावे की बनी मिठाई खरीदने के बाद हमने मन्दिर प्रांगण में प्रवेश किया। हमने पहले वहाँ एक परिक्रमा रुपी भ्रमण किया ताकि वहाँ के माहौल का जायजा लिया जा सके। उसके बाद वहाँ नहाने के लिये एक कुन्ड़ तलाश लिया। कुंड़ के सामने ही एक सामान बेचने वाली मराठी महिला बैठी हुई थी। पहले मैंने कुंड़ में घुस कर स्नान किया उसके बाद सामान के पास खड़ा होने की मेरी बारी थी तब तक विशाल भी कुंड़ में स्नान कर आया। लोगों ने अंधी श्रद्धा के चक्कर में स्नान करने के कुंड़ में भी फ़ूल आदि ड़ाले हुए थे। स्नान करने के उपराँत हमने अपना सामान बैग, चप्पल आदि वही उसी मराठी महिला मौसी के हवाले कर दिया। उस महिला ने कहा कि क्या तुम फ़ूल नहीं ले जाओगे? मैंने कहा कि क्या बिना फ़ूल के पूजा नहीं हो सकती है। मैं पूजा पाठ के चक्कर में कभी पड़ता ही नहीं हूँ मैं सिर्फ़ मूर्ति के दर्शन करने जाता हूँ। खैर उस महिला ने मुझसे ज्यादा मग्जमारी नहीं की। हम दोनों दर्शन करने वाली लाइन में लगने चल दिये।
यही भीमाशंकर का मुख्य मन्दिर है। |
हमने यहाँ स्नान नहीं किया था। |
मन्दिर में दीपक स्तम्भ |
लाइन जरा लम्बी हो गयी है। |
भगवान शिव के कुल 12 ज्योतिर्लिंग बताये जाते है।
1. सोमनाथ (गुजरात, सौराष्ट्र, समुन्द्र किनारे), 2. मल्लिकार्जुन (आंध्र प्रदेश, कुर्नूल के पास), 3. महाकालेश्वर (मध्य प्रदेश, उज्जैन), 4. ओंकारेश्वर (मध्य प्रदेश, नर्मदा नदी के किनारे), 5. वैद्यनाथ (झारखंड के देवघरमें), 6. भीमाशंकर (महाराष्ट्र, भीमाशंकर), 7. रामेश्वरम् (तमिलनाडु, रामेश्वरम), 8. नागेश्वर (गुजरात, दारुकावन, द्वारका), 9. काशी विश्वनाथ (उत्तर प्रदेश, वाराणसी), 10. त्रयम्बकेश्वर (महाराष्ट्र, त्रयम्बकेश्वर नाशिक के पास), 11. केदारनाथ (उत्तराखंड, केदारनाथ रुदप्रयाग जिले में), 12. घृष्णेश्वर (महाराष्ट्र, औरंगाबाद के पास )
यह मन्दिर 12 ज्योतिर्लिंग में छटे स्थान पर आता है। यह भीमाशंकर मन्दिर महाराष्ट्र राज्य के पुणे जिले में सहयाद्रि पहाड़ के अन्तर्गत आता है। ऐसा ही एक मन्दिर उतराचंल राज्य में उधम सिंह नगर में भी बताया गया है। ऐसा ही एक मन्दिर आसाम में भी बताया गया है असली वाला कौन सा है? इस मामले में अपुन घुसना नहीं चाहते है अत: हमारे लिये यही बेहतर है कि सारे देख लिये जाये। यही से भीमा व कृष्णा नाम की दो नदियाँ भी निकलती है। हमने तो केवल भीमा नदी ही देखी थी।
लगे रहो नम्बर आ ही जायेगा। |
यहाँ दान देने वालों की पर्ची काटी जा रही है। |
यहाँ फ़ुर्सत में बैठ सकते हो। |
मन्दिर के प्रांगण में यह भी था। |
मन्दिर में दर्शन करने वालों की लम्बी लाईन देखकर अंदाजा लगाया कि कम से कम 2 घन्टे का समय बर्बाद होना तय है। मैंने विशाल से कहा "जा भाई तु दर्शन कर आ मैं तो यही मन्दिर के गर्भ गृह की दीवार को ही प्रणाम कर लेता हूँ।" इस लम्बी लाइन में मैं लगने नहीं जा रहा हूँ। अब विशाल ने कहा क्या संदीप भाई? इतनी परेशानी उठाकर यहाँ तक आये हो और अब लाइन में लगने से इन्कार कर रहे हो। मैंने कहा देख भाई अपुन जरा अलग किस्म के भक्त है। अभी हम मन्दिर प्रांगण में खड़े है तो इसका अर्थ है कि हमने भगवान के घर में प्रवेश कर लिया है। अपने लिये इतना ही बहुत है। शिवलिंग से चिपकना या उसको पकड़ना ही भक्ति है तो मैं ऐसी भक्ति नहीं करता। लेकिन चलो जब तुम कहते ही हो तो पहले चलकर लाइन की हालत देखते है कि धीरे-धीर सरक रही है या तेज चल रही है। अगर ज्यादा धीरे खिसट रही होगी तो मैं बाहर चला आऊँगा। तुम दर्शन कर आना। लेकिन लगता था भीमाशंकर को भी मेरे दर्शन करने थे, इसलिये जब हम लाइन में लगे तो लाईन भी फ़टाफ़ट चल रही थी। हम लाइन में धीरे-धीरे आगे बढ़ते रहे। लगभग 40-45 मिनट में ही हमारा नम्बर भी आ गया था। यहाँ के पुजारी अन्य मन्दिरों के पुजारियों की तरह भिखारी वाली श्रेणी में नहीं दिखायी दिये। हम आसानी से मन्दिर के गर्भ गृह में घुस कर दर्शन कर बाहर निकल आये। विशाल अपने साथ मिठाई मन्दिर में लेकर गया था। यह तो पता नहीं उसने मन्दिर में मिठाई चढ़ाई या दिखाई। लेकिन मन्दिर से बाहर आते ही हमने अपना सामान उठा कर वहाँ से प्रस्थान कर दिया। मिठाई हमारे हाथ में ही थी इसलिये हम पैदल चलते जा रहे थे और मिठाई खाते जा रहे थे।
दर्शन हो गये, अब चले। |
चल भाई यहाँ का किला फ़तह। |
दुकान पर मिलने वाली तस्वीर से लिया गया फ़ोटो है। |
जब हम मन्दिर से काफ़ी दूर आ गये तो वहाँ विशाल ने किसी से भीमा नदी के उदगम स्थल के बारे में पता किया। सीढ़ियों वाले मन्दिर मार्ग से वापिस आते समय सीधे हाथ पर मार्ग से थोड़ा एक तरफ़ हटकर एक जगह एक मन्दिर सा बना हुआ दिखायी दिया। हम उस मन्दिर को देखने के लिये चल दिये। वहाँ जाकर देखा कि यह बहुत पुराना मन्दिर है जो शायद कभी पूजा-पाठ के लिये अहम स्थान रखता होगा लेकिन आजकल इसके पास शायद ही कोई भूल से फ़टकता होगा। इसी मन्दिर के बराबर में एक कुन्ड़ बना हुआ था। इस कुंड़ को ही भीमानदी (शायद) का उदगम स्थान कहा जाता है। कुन्ड़ से कई लोग पानी भरकर ले जा रहे थे। हमने यहाँ के फ़ोटो लेने के अलावा और कुछ नहीं किया। इसके बाद हम वहाँ से बाजार की ओर आ गये। अभी दिन छिपने में काफ़ी समय बचा हुआ था। इसलिये सबसे पहले हमने बस स्टैंड़ के बारे में पता किया। वैसे तो यहाँ भी रात में ठहरने के लिये प्रबन्ध है लेकिन हमें वहाँ ठहरना नहीं था। हमें यहाँ से नाशिक जाना था। नाशिक जकर त्रयम्बक दर्शन करने थे।
वापसी में एक मन्दिर यह भी मिला था। |
इसी कुन्ड़ से भीमा नदी उत्पन्न होती है। |
अब चलते है नाशिक के लिये। |
भीमाशंकर का बाजार। |
भीमाशंकर बस अड़ड़े से हमें लगभग 60 किमी दूर मंचर Manchar नामक स्थान के लिये बस मिल गयी थी। हमारे बस में सवार होने के कुछ देर बाद ही बस चल पड़ी। बस की ज्यादातर सीटे ज्यादातर खाली पड़ी थी। बस चालक भी बस चलाने में पक्का माहिर था इसलिये पहाड़ी मार्गों पर जोरदार गति से उसने बस भगानी जारी रखी थी। सड़क की हालत थोड़ी खराब थी जिस कारण बस बीच-बीच में उछलती जा रही थी। मैं सबसे आखिर वाली सीट पर था। आखिर वाली सीट पर वैसे भी सबसे ज्यादा उछाल लगती है। जब इस बस से मन्चर में उतरे तो विशाल यहाँ अपनी मिठाई वाली पन्नी को बस में ही भूलवश छोड़ आया था। जब बस छोड़कर हम रात रुकने के लिये मन्चर में कमरे की तलाश में घूम रहे थे तो मिठाई वाली पन्नी की याद आयी थी। यहाँ हमने एक भोजनालय से 80/90 रुपये प्रति थाली के हिसाब से दोनों ने एकएक थाली भोजना का निपटारा कर दिया था। भोजनालय का नाम याद नही आ रहा है। इसके बाद हमने रात रुकने के लिये कमरा तलाश करना शुरु किया। कई होटल देखने के बाद इस नतीजे पर पहुँचे कि वहाँ पर कोई भी 600-700 से कम का कमरा नहीं बता रहा था।
इसलिये हमने वहाँ से नाशिक की ओर, आगे किसी अन्य शहर में रुकने की सोचकर दुबारा बस अड़ड़े आये वहाँ से पुन; एक बस में बैठकर आगे संगमनेर की यात्रा पर रवाना हो गये। रात को 11 बजे बस ने हमें संगमनेर बस अड़ड़े पर उतारा था हमने बस अड़ड़े के ठीक सामने 500 रुपये वाला एक कमरा लिया और नहा कर सो गये। सुबह 5 बजे उठकर एक बार फ़िर नहाये और होटल के सामने ही बस अड़ड़े पहुँच गये। बस अड़ड़े से से हमें जल्द ही नाशिक जाने की बस मिल गयी। संगमनेर से नाशिक पहुँचने में मुश्किल से दो घन्टे का समय भी नहीं लगा। नाशिक पहुँचकर वहाँ से एक ऑटो में बैठकर हम त्रयम्बक पहुँचाने के लिये मिलने वाले दूसरे बस अड़ड़े पहुँच गये। यहाँ हमने एक अनार वाले से एक किलो अनार लिया। उसके बाद बस अडड़े में अन्दर जाकर दो-दो समोसे उबली हुई हरी मिर्च के साथ खाकर हम दोनों त्रयम्बक जाने वाली बस में सवार हो गये। बस में बैठकर हमने महिला कंड़क्टर से कहा कि हमें नाशिक के पास अन्जनेरी पर्वत पर जाना है, तो उस महिला कन्ड़कटर ने हमें त्रयम्बक से 6 किमी पहले का टिकट दिया। इसलिये अगर कोई नाशिक से अन्जनेरी जाना चाहता है तो उसे पहले त्रयम्बक जाने की आवश्यकता नहीं है। इस बस ने लगभग 25 किमी की दूरी घन्टे भर में तय कर हमें सुबह के 9 बजे उस मोड़ पर उतार दिया था जहाँ से अन्जनेरी पर्वत पर जाया जाता है। आज के लिये बहुत हो गया है। अब बाकि यात्रा कल देखिये। (क्रमश:)
इसलिये हमने वहाँ से नाशिक की ओर, आगे किसी अन्य शहर में रुकने की सोचकर दुबारा बस अड़ड़े आये वहाँ से पुन; एक बस में बैठकर आगे संगमनेर की यात्रा पर रवाना हो गये। रात को 11 बजे बस ने हमें संगमनेर बस अड़ड़े पर उतारा था हमने बस अड़ड़े के ठीक सामने 500 रुपये वाला एक कमरा लिया और नहा कर सो गये। सुबह 5 बजे उठकर एक बार फ़िर नहाये और होटल के सामने ही बस अड़ड़े पहुँच गये। बस अड़ड़े से से हमें जल्द ही नाशिक जाने की बस मिल गयी। संगमनेर से नाशिक पहुँचने में मुश्किल से दो घन्टे का समय भी नहीं लगा। नाशिक पहुँचकर वहाँ से एक ऑटो में बैठकर हम त्रयम्बक पहुँचाने के लिये मिलने वाले दूसरे बस अड़ड़े पहुँच गये। यहाँ हमने एक अनार वाले से एक किलो अनार लिया। उसके बाद बस अडड़े में अन्दर जाकर दो-दो समोसे उबली हुई हरी मिर्च के साथ खाकर हम दोनों त्रयम्बक जाने वाली बस में सवार हो गये। बस में बैठकर हमने महिला कंड़क्टर से कहा कि हमें नाशिक के पास अन्जनेरी पर्वत पर जाना है, तो उस महिला कन्ड़कटर ने हमें त्रयम्बक से 6 किमी पहले का टिकट दिया। इसलिये अगर कोई नाशिक से अन्जनेरी जाना चाहता है तो उसे पहले त्रयम्बक जाने की आवश्यकता नहीं है। इस बस ने लगभग 25 किमी की दूरी घन्टे भर में तय कर हमें सुबह के 9 बजे उस मोड़ पर उतार दिया था जहाँ से अन्जनेरी पर्वत पर जाया जाता है। आज के लिये बहुत हो गया है। अब बाकि यात्रा कल देखिये। (क्रमश:)
यह फ़ोटो नाशिक का है। |
चलिये अब हम नाशिक के अन्जनेरी जाने के लिये तैयार है। |
इस यात्रा के सभी लेख के लिंक नीचे दी गयी सूची में दिये गये है।
बोम्बे से भीमाशंकर यात्रा विवरण
01. दिल्ली से दादर-नेरल तक ट्रेन यात्रा, उसके बाद खंड़स से सीढ़ी घाट होकर भीमाशंकर के लिये ट्रेकिंग।
02. खंड़स के आगे सीढ़ी घाट से भीमाशंकर के लिये घने जंगलों व नदियों के बीच से कठिन चढ़ाई शुरु।
03. भीमाशंकर ट्रेकिंग में सीढ़ीघाट का सबसे कठिन टुकड़े का चित्र सहित वर्णन।
01. दिल्ली से दादर-नेरल तक ट्रेन यात्रा, उसके बाद खंड़स से सीढ़ी घाट होकर भीमाशंकर के लिये ट्रेकिंग।
02. खंड़स के आगे सीढ़ी घाट से भीमाशंकर के लिये घने जंगलों व नदियों के बीच से कठिन चढ़ाई शुरु।
03. भीमाशंकर ट्रेकिंग में सीढ़ीघाट का सबसे कठिन टुकड़े का चित्र सहित वर्णन।
05. भीमाशंकर मन्दिर के सम्पूर्ण दर्शन।
नाशिक के त्रयम्बक में गोदावरी-अन्जनेरी पर्वत-त्रयम्बकेश्वर ज्योतिर्लिंग आदि क विवरण
06. नाशिक त्रयम्बक के पास अन्जनेरी पर्वत पर हनुमान जन्म स्थान की ट्रेकिंग।
07. हनुमान गुफ़ा देखकर ट्रेकिंग करते हुए वापसी व त्रयम्बक शहर में आगमन।
08. त्रयम्बक शहर में गजानन संस्थान व पहाड़ पर राम तीर्थ दर्शन।
09. गुरु गोरखनाथ गुफ़ा व गंगा गोदावरी उदगम स्थल की ट्रेकिंग।
10. सन्त ज्ञानेश्वर भाई/गुरु का समाधी मन्दिर स्थल व गोदावरी मन्दिर।
11. नाशिक शहर के पास त्रयम्बक में मुख्य ज्योतिर्लिंग के दर्शन
औरंगाबाद शहर के आसपास के स्थल।
12. घृष्शनेश्वर ज्योतिर्लिंग के दर्शन
13. अजंता-ऐलौरा गुफ़ा देखने की हसरत।
14. दौलताबाद किले में मैदानी भाग का भ्रमण।
15. दौलताबाद किले की पहाड़ी की जबरदस्त चढ़ाई।
16. दौलताबाद किले के शीर्ष से नाशिक होकर दिल्ली तक की यात्रा का समापन।
नाशिक के त्रयम्बक में गोदावरी-अन्जनेरी पर्वत-त्रयम्बकेश्वर ज्योतिर्लिंग आदि क विवरण
06. नाशिक त्रयम्बक के पास अन्जनेरी पर्वत पर हनुमान जन्म स्थान की ट्रेकिंग।
07. हनुमान गुफ़ा देखकर ट्रेकिंग करते हुए वापसी व त्रयम्बक शहर में आगमन।
08. त्रयम्बक शहर में गजानन संस्थान व पहाड़ पर राम तीर्थ दर्शन।
09. गुरु गोरखनाथ गुफ़ा व गंगा गोदावरी उदगम स्थल की ट्रेकिंग।
10. सन्त ज्ञानेश्वर भाई/गुरु का समाधी मन्दिर स्थल व गोदावरी मन्दिर।
11. नाशिक शहर के पास त्रयम्बक में मुख्य ज्योतिर्लिंग के दर्शन
औरंगाबाद शहर के आसपास के स्थल।
12. घृष्शनेश्वर ज्योतिर्लिंग के दर्शन
13. अजंता-ऐलौरा गुफ़ा देखने की हसरत।
14. दौलताबाद किले में मैदानी भाग का भ्रमण।
15. दौलताबाद किले की पहाड़ी की जबरदस्त चढ़ाई।
16. दौलताबाद किले के शीर्ष से नाशिक होकर दिल्ली तक की यात्रा का समापन।
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धन्यवाद बन्धु...एक ज्योतिर्लिंग आपके सौजन्य से...
जवाब देंहटाएंसंदीप भाई आपकी लेखो के वर्णन अब पुराने लेखो जैसे लग रहे है. बिलकुल ठोस . आपकी पोस्ट में भाव कि अद्भुद शक्ति है जो मेरी ज्योतिर्लिंग वाली पोस्ट में नहीं है. क्या लिखा है . चाहे जो हो जाये ऐसे ही जारी रहिये .मंचर में मैंने होटल वाला कांड किया था टोइलेट वाला वह आपने लिखा नहीं .मजेदार किस्सा था. और हाँ भाई हम बुरा नहीं मानते .
जवाब देंहटाएंजय हो महाराज आपकी ... जय हो !
जवाब देंहटाएंहर हर महादेव !
आज की ब्लॉग बुलेटिन क्योंकि सुरक्षित रहने मे ही समझदारी है - ब्लॉग बुलेटिन मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
bahut sundar..
जवाब देंहटाएंबहुत-बहुत शुक्रिया !जाट भाई ...
जवाब देंहटाएंस्वस्थ रहो !
आपके साथ घूम रहे हैं।
जवाब देंहटाएंदेख-पढ़ कर मन ही मन साक्षात् हो जाता है -धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंजय हो भीमाशंकर महादेव......ज्योतिर्लिंग की यात्रा के लिए धन्यवाद....
जवाब देंहटाएंमेरी पोस्टिंग मुम्बई हो गई है। पिछले माह अकेला ही माथेरान घूम आया।
जवाब देंहटाएंआज भीमाशंकर के लिए नेट पर एक्सप्लोर कर रहा तो आश्चर्य हुआ कि नेरल से केवल 23 km दूर होने पर भी गूगल मैप पर सड़क मार्ग से बहुत लंबा घूमकर जाने का दिखा रहा है। पैदल रास्ता अवश्य होगा और होगा तो उम्मीद थी कि जाट देवता जरूर जा चुका होगा☺️ ये सोचकर तुम्हारे ब्लॉग पर आया। अच्छा ये भी लगा कि इस पोस्ट पर अपने बैंक का नाम भी दिख गया☺️
मानसून के बाद मैं भी भीमाशंकर जाकर आता हूँ।
अभी जल्दी में मुम्बई आना हो तो बताना, मिलना। अच्छा लगेगा।