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गुरुवार, 14 मार्च 2013

Rivalsar lake, Chintpurni and Jwalamukhi ji Temple रिवाल्सर झील, चिंतपूर्णी माता व ज्वालामुखी जी मन्दिर

हिमाचल की पहली बाइक यात्रा-03


हिमाचल प्रदेश Himachal Pardesh में मणिकर्ण Manikaran  कुल्लू Kullu मनाली Manali रोहतांग Rohtaang देखकर वापसी में फ़िर से मन्ड़ी आना पड़ा यहाँ से हम रिवालसर झील देखने के लिए चल दिये। मन्ड़ी कस्बे में रिवाल्सर जाने के लिये मुख्य चौराहे से एक मार्ग ऊपर शहर की आबादी से होता हुआ चला जाता है। इस मार्ग पर लगातार चढ़ाई मिलती रहती है। इस कारण बाइक व अन्य गाड़ियाँ ज्यादा तेज गति से नहीं चढ़ पाती है। इस मार्ग की दूरी लगभग 25-30 किमी के करीब तो रही ही होगी। हम अपनी बाइक लेकर सीधे रिवाल्सर झील पहुँच गये थे। उस समय तक यहाँ बहुत ज्यादा होटल नहीं बने हुए थे। एक और तिब्बती बौद्ध धर्म वाले छाये हुए है यहाँ पर एक गुरुद्धारा भी है। हमें सिर्फ़ और सिर्फ़ यह झील देखनी थी इसलिये हमने पहले तो झील का एक चक्कर लगाया उसके बाद झील किनारे एक साफ़ जगह देखकर बैठ गये। यहाँ पर झील के पानी में बहुत सारी मछलियाँ है। पानी में खाने को ड़ालते ही ये उस खाने के लिये ऊपर दिखायी देने लगती है।  यहाँ पर हमने ठीक उस जगह से फ़ोटो लिया था जहाँ से पहाड़ के ऊपर सुनहरे महात्मा बुद्ध की मूर्ति भी फ़ोटो में दिखायी दे रही है। यह मूर्ति बहुत बड़ी है।

RIWALSAR LAKE


HANOGI-TO-RIWALSAR

उस यात्रा मे हमारे पास रील वाला कैमरा था अत: फ़ोटो लेने में बहुत सावधानी बरती जाती थी। उन फ़ोटो में से स्कैन करके यहां पोस्ट में लगाये गये है। रिवाल्सर झील देखकर हमने अपनी बाइक पुन: अगली यात्रा की ओर दौड़ा दी। अब हमारी मंजिल चिंतपूर्णी माता का मन्दिर था जहाँ हम रात में विश्राम करने की सोच रहे थे। अब यह तो याद नहीं है कि हम किन-किन मार्ग से होकर गये थे इसलिये मार्ग की पूरी जानकारी देना तो मुश्किल है, लेकिन जितना याद आ रहा है उतना बता रहा हूँ कि हम शाम के चार बजे तक चिंतपूर्णी मन्दिर पहुँच गये थे। सबसे पहले तो हम बाइक को एकदम आखिर तक ले गये, जब आगे जाने का मार्ग समाप्त हुआ तो हम रात में ठहरने के लिये एक धर्मशाला में एक कमरा 150 में मिल गया। कमरा एकदम सड़क पर था, हमारी बाइक कमरे के ठीक सामने धर्मशाला में ही खड़ी थी। जबकि हणॊगी माता के मन्दिर में तो हमने बाइक बाहर सड़क पर खुले में ही लावारिस छोड़ दी थी। कमरा लेकर स्नान कर तरोताजा हुए, उसके बाद मन्दिर में दर्शन करने पहुँच गये। हमारे कमरे से मन्दिर लगभग 300 मीटर की दूरी पर ही था इसलिये हमने अपनी चप्पल कमरे में ही छोड़ दी थी। मन्दिर तक पहुँचने के लिये कुछ सीढियाँ चढ़नी पड़ती है। सीढियों के दोनों ओर दुकाने बनी हुई है। जहाँ पर दुकानदार अपना सामान बेचने के लिये तंग करते रहते है। शाम का समय होने के कारण मन्दिर में भीड़ नहीं थी इसलिये आसानी से मन्दिर पहुँच गये। मुख्य मन्दिर में मूर्ति के दर्शन किये। राम-राम कर विदा ली साथ ही माता की मूति से कहा कि है हिम्मत तो अगले साल फ़िर दुबारा से बुला। अब तो आये है ही इसलिये अब तो कई बार दर्शन कर ले उससे क्या फ़र्क पड़ता है? लेकिन लगता है कि मूर्ति में इतनी हिम्मत नहीं थी इसलिये अब तक दुबारा नहीं बुला पायी।

RIWALSAR TO CHINTPURNI

CHINTPURNI-JWALA MUKHI-KANGRA-CHAMUNDA DEVI TEMPLE


रात में बिना खाना खाये ही सो गये थे। अरे हाँ खाना क्यों नहीं खाया पहले इसकी राम कहानी तो सुनते जाओ। सोने से पहले हम वहाँ ठहल रहे थे कि एक जगह एक ट्रक में आम बाँटे जा रहे थे। वे लोग आने-जाने वाले को एक-एक आम दे रहे थे जाहिर है हमें भी मिल गये। हमने वही रुककर आम खाये उसके बाद आगे बढ़ गये। कुछ आगे जाने पर एक जगह एक धर्मशाला में भी बाँटे जा रहे थे, यहाँ पर आम बाँटने वालों की एक शर्त थी कि जितने मन करे उतने आम खाओ लेकिन यही खड़े होकर खाने है साथ लेकर नहीं जाने है। हम कौन सा लेकर जाने वाले थे हमने दोनों आम वही खड़े होकर कई-कई आम चट कर दिये। जब हमारा पेट भर गया तो हम वहाँ से आगे बढ़ चले। अब पेट तो पूरी तरह ठसाठस भर चुका था इसलिये रात का भोजन करने की मनाही हो चुकी थी। ठहल टुहल कर हम अपने कमरे में आकर पड़ कर लम्ब लेट हो गये। कब नीन्द आयी, पता नहीं लगा। सुबह 5 बजे आँख खुली तो फ़टाफ़ट नहाधोकर एक बार फ़िर मन्दिर पहुँच गये। अबकी बार सुबह के समय मन्दिर में बहुत भीड़ थी। इसलिये मूर्ति तक पहुँचने में आधा घन्टा लग गया था। दर्शन कर अपने कमरे में आये और सामान उठाकर बाइक पर बैठ, ज्वालामुखी मन्दिर की और भाग लिये।

CHAMUNDA-DHARAMSHALA-MCLEOD GANJ-PATHANKOT-JAMMU


यहाँ चिंतपूर्णी मन्दिर से ज्वालामुखी मन्दिर तक पहुँचने के लिये ज्यादा समय नहीं लगा। मुश्किल से आधा घन्टे में ही हम ज्वाला जी पहुँच गये। यहां पर पार्किंग में बाइक लगाकर हम पैदल मन्दिर की ओर बढ़ चले। आधा किमी दूरी पार करने के बाद मन्दिर का मुख्य द्धार दिखाये दिया। सड़क के दोनों और दुकाने ही दुकाने थी जहाँ सभी नोट बनाने के लिय बैठे हुए थे। मन्दिर के पास एक दुकान पर अपना सामान रख दर्शन के लिये चल दिये। जब हम मन्दिर के प्रांगण में पहुँचे तो हमारे होश उड़ गये। वहाँ पर इतनी भीड़ थी कि लग नहीं रहा था कि किसी भी तरह तीन घन्टे से पहले नम्बर आ जायेगा। चूंकि यह हमारी पहली यात्रा थी इसलिये हमने भी सोच ली कि देखा जायेगा जितना भी समय लगे, आज तो यहाँ पर जलने वाली अमर ज्योत के दर्शन करके ही जायेंगे। धीरे-धीरे चीटियों की मरी-मरी सी चाल से हम वहाँ रेंगते हुए आगे सरक रहे थे। मन तो कर रहा था कि छोडो लाइन को मारो गोली, वापस चलो लेकिन वापस चलने में भी महाभारत थी इसलिये महाभारत से तो रामायण भली। रामाय़ण में कम दिक्कत थी। खैर हम भी अपना सिनक सुड़-सूड़ करते हुए लाइन में लगे रहे। इतनी लम्बी लाइन में लगने की सबसे बड़ी आफ़त यह होती है कि यदि किसी को सू-सू आ जाये तो बेचारा क्या करेगा? किसी तरह टाँगे भीच भाच कर अपना प्रेसर तो रोक कर ही रखेगा। लाइन छोड़ी तो आफ़त। लगभग ढ़ाई घन्टे में जाकर हमारा नम्बर आया। हम जैसे ही मन्दिर में अन्दर घुसे तो हमारा निशाना तो जलती हुई जोत थी। हमने वहाँ पर कई जोत जलती हुई देखी थी। हाथ से छूकर महसूस भी की थी। कुछ सैकन्ड़ वहाँ बिता कर हम बाहर निकल आये। इसके बाद एक हॉल में पहुँच गये वहाँ पर मुगल बादशाह का घमन्ड़ चूर करने वाला अनाम धातु का छत्र रखा हुआ था। 
फ़ुर्सत में जाटदेवता

यह सब देखकर हम कांगड़े की ओर बढ़ चले, उसके बाद चामुन्ड़ा जाकर रात बिताने की यात्रा अगले लेख में बतायी जायेगी।


हिमाचल की इस पहली लम्बी बाइक यात्रा के सभी लेख के लिंक नीचे दिये गये है।
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4 टिप्‍पणियां:

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