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गुरुवार, 30 मई 2013

Visakhapatnam-Ramanaidu Film studio विशाखापटनम का रामानायड़ू फ़िल्म स्टूड़ियों

EAST COAST TO WEST COAST-03                                                                   SANDEEP PANWAR
कैलाश-गिरी पर्वत के बाद हमारी कार समुन्द्र किनारे भागी जा रही थी। नारायण जी अगले साल रिटायर होने वाले है लेकिन उनका जोश-जिगर देखकर नहीं लगता है कि अगले साल रिटायर कैसे? गजब की ड्राईविंग करते है, चूंकि मैं स्वयं कार चलाना भी जानता हूँ और पहाड़ों पर सपिवार कार चलाकर यात्रा की हुई है, इसलिये नारायण जी की हिम्मत देखकर आनन्द के साथ हिम्मत बढ़ती है कि अरे हम तो अभी 40 के भी नहीं हुए है। अचानक नारायण ने कार रोक कर पूछा, संदीप भाई फ़िल्म सिटी देखी है। मैंने कहा कि मैं फ़िल्मे ही कम देखता हूँ फ़िल्म सिटी वाले शहर में अभी तक सिर्फ़ नौएड़ा ही देखा है बोम्बे अब आपके यहाँ से जाऊँगा। लेकिन वहाँ फ़िल्म सिटी देखने नहीं जाऊँगा। नारायण जी बोले तो चलो आज विशाखापट्टनम की मशहूर फ़िल्म सिटी दिखाता हूँ। हमारी कार समुन्द्र किनारे वाली मुख्य सड़क छोड़कर फ़िल्म सिटी की ओर चढ़ चली। आधे किमी की ऊँचाई पर कई घुमावदार मोड़ पार करने के बाद रामानायडू फ़िल्म सिटी आई। टिकट लेकर नारायण जी ने मुझे अन्दर चलने को कहा। आप भी चलिये, देखिए सचित्र रामानायडू फ़िल्म सिटी।


बुधवार, 29 मई 2013

Visakhapatnam- Kailash giri parvat विशाखापट्टनम का कैलाश गिरी पर्वत

EAST COAST TO WEST COAST-02                                                                   SANDEEP PANWAR
विशाखापटनम को विजाग भी कहा जाता है मुझे इस बात का पता ही नही था। हम स्टेशन से समुन्द्र की ओर चल पड़े। नारायण जी बोले, संदीप भाई विजाग में कहाँ-कहाँ घूमना चाहोगे? मैंने कहा, मैं आज दोपहर से लेकर कल शाम तक पूरे ड़ेढ़ दिन तक आपके साथ हूँ आपके नजरिये से जो देखने लायक कुदरती स्थल है उन्हे ही दिखा दिजिएगा। इस तरह शहर के टेड़े मेड़े मार्गों से होते हुए हम समुन्द्र किनारे जा पहुँचे थे। अगर आज मुझे अकेले को स्टेशन से समुन्द्र किनारे उसी जगह जाने को कह दिया जाये तो पता नहीं कितने झमेले झेलने पड़ेंगे? तब जाकर मैं समुन्द्र किनारे पहुंच पाऊँगा। समुन्द्र किनारे पहुँचने से पहले नारायण जी ने एक जगह अपनी कार रोकी और बताया कि सड़क किनारे जो छोटा सा मन्दिर दिखायी दे रहा है यहाँ इस मन्दिर में अधिकतर वही लोग आते है जो नई गाड़ियाँ खरीदते है। हम कह सकते है कि वह नन्हा सा मन्दिर विजाग में खरीदी जानी वाली गाड़ी के लिये आशीर्वाद प्रदान करता है कि जा बच्चा, सुरक्षित रहेगा, यदि सीमित गति में वाहन दौडायेगा।


मंगलवार, 28 मई 2013

Delhi to Vishakapattnam (Vizag) दिल्ली से विशाखापटनम

EAST COAST TO WEST COAST-01                                                                   SANDEEP PANWAR
इस साल की शुरुआत से ही तीन लम्बी-लम्बी कई हजार किमी की रेल यात्राएँ करने को मिल चुकी है। पहली लम्बी यात्रा गोवा की थी जिसके बारे में आपको बता ही दिया गया है, इसके बाद इस यात्रा की बारी आयी थी। इस यात्रा के बारे में पहले से कुछ तय नहीं था ना ही कुछ सोचा गया था। हुआ ऐसा कि कुरुंदा गाँव, नान्देड़ के पास रहने वाले अपने बाइक वाली घुमक्कड़ साथी की लड़की व लड़के दोनों की ही एक ही दिन, एक ही मंड़प के अन्दर फ़रवरी में उनके गाँव में ही शादी थी। जब उन्होंने मुझे शादी में शामिल होने का निमन्त्रण दिया तो मैंने लगे हाथ बोम्बे घूमने का कार्यक्रम भी बना ड़ाला। वैसे बोम्बे एक बार पहले गया तो था लेकिन भीमाशंकर से ही वापिस चला आया था। इस बार बोम्बे जाने का असली मकसद माथेरान की ट्राय ट्रेन की सवारी करने का था। पिछली बार अक्टूबर में गया था तो मानसून के चक्कर में वह छोटी रेल भी बन्द थी।




Kotdwar-SidhBali Hanuman temple कोटद्धार का सिद्धबली हनुमान मन्दिर

ROOPKUND-TUNGNATH 16                                                                             SANDEEP PANWAR
कोटद्धार पार करने के बाद सिद्धबली नाम मशहूर मन्दिर सड़क किनारे दिखायी दे गया। अगर मन्दिर सड़क से कुछ किमी हटकर होता तो शायद हम वहाँ जाने की भी नहीं सोचते। लेकिन यहाँ तो मन्दिर सड़क के एकदम किनारे ही था बस एक नदी का छॊटा सा/लम्बा सा पुल पार करना होता है। इस पुल को पार करते हुए हम मन्दिर के ठीक सामने जा पहुँचे। वहाँ भीड़ के नाम पर मुश्किल से ही कोई दिखायी दे रहा था। इसलिए भीड़ ना होना भी हमारे लिये सोने पे सुहागा  वाली बात साबित हो गयी। भीड़ के कारण मैंने बहुत सारे मन्दिर बाहर से ही देखे है। मध्यप्रदेश, व पुरी यात्रा के दौरान मैंने शराब पीने वाले भैरव मन्दिर के दर्शन नहीं किये थे। बारी-बारी से मन्दिर के दर्शन कर आये। पहले मैं गया था इसलिये मनु का कैमरा साथ ले गया था। ज्यादातर फ़ोटो मैंने ही ले लिये थे। मेरे बाद मनु भी फ़टाफ़ट मन्दिर दर्शन कर वापिस आ गया। 




सोमवार, 27 मई 2013

Lansdowne Cantonment Lake लैंसड़ोन छावनी की सुन्दर झील

ROOPKUND-TUNGNATH 15                                                                             SANDEEP PANWAR
लैंसड़ोन पहुँचने से पहले ही सेना के जवान सड़को पर दिखायी देने लगे। सुरक्षा की दृष्टि से हमने जवानों के फ़ोटो नहीं लिये। सेना के जवान धीमी-धीमी चलती हमारी बाइकों को ध्यान से देख रहे थे। वैसे शक्ल से तो हम नक्कसली व आतंकवादी नजर नहीं आ रहे थे। लेकिन यह सब हमारी खुद ही सोच है सेना के जवान ही असलियत बता सकते है कि हम कैसे दिखते है? यहाँ एक जवान की छाती पर 302 नम्बर का चप्पा चिस्पा किया हुआ था। उसका नम्बर देखकर हमने बाइक रोकी और उसके साथियों से कहा कि कैदी नम्बर 302 को खुला छोड़ा हुआ है, हमारी बात सुनकर वे हसने लगे, और बोले कि खुला कहाँ छोड़ा है? इसे चारों और से घेर कर चल रहे है भागने नहीं देंगे। खैर उनको हसता छोड़कर हमारी बाइके आगे बढ़ती रही।


Rudraparyag रुद्रप्रयाग व लैंसडोन LANSDOWNE

ROOPKUND-TUNGNATH 14                                                                             SANDEEP PANWAR
पराठे खाकर पेट को काफ़ी संतुष्टि मिली, अब शाम तक कही कुछ खाने की जरुरत ही नहीं थी। रुद्रप्रयाग की दूरी वहाँ से ज्यादा नहीं थी। रुद्रप्रयाग से कोई 2 किमी पहले एक मार्ग सीधे हाथ पर केदारगंगा नदी पर बनाये गये नये पुल से होकर ऋषिकेश के लिये कई साल बनाया गया है। मैं आज से लगभग 4 साल पहले अपनी इसी नीली परी पर, इस मार्ग से होकर जा चुका हूँ। इस मार्ग से जाने का सबसे बड़ा लाभ यही है कि रुद्रप्रयाग की भीड़-भाड से छुटकारा मिल जाता है। लेकिन हमें तो भीड से होकर ही अपनी यात्रा जारी रखनी थी, कारण रुद्रप्रयाग में दो नदियों अलकनन्दा व केदारगंगा के मिलन के फ़ोटो लेने का सवाल जो था। मैंने सारे प्रयाग कई-कई बार देखे हुए है इसलिये अब इनकी तरह देखने की इच्छा भी नहीं होती है। सबसे बड़ा और असली प्रयाग (इलाहाबाद) सिर्फ़ एक बार ही देखा है। रुपकुन्ड़ से आते समय चोपता जाते समय कर्णप्रयाग के दर्शन आपको कराये गये थे।



रविवार, 26 मई 2013

Ukhimath temple and Nature attack ऊखीमठ मन्दिर व कुदरत का कहर

ROOPKUND-TUNGNATH 13                                                                             SANDEEP PANWAR
चोपता से सुबह जल्दी निकलने की तैयारी थी, इसलिये रात में भी जल्दी ही सो गये थे। दिन में कही नहाने का मौका नहीं लगने वाला था इसलिये चोपता में नहाने का विचार बनाया भी, लेकिन चोपता की भयंकर ठन्ड़ देखकर इरादा बदल दिया गया। सुबह छ बजे से पहले ही अपनी बाइक पर सवार होकर ऊखीमठ के लिये प्रस्थान कर दिया। चोपता से ऊखीमठ की ओर जाते समय सड़क में लगभग 20 किमी तक जोरदार ढ़लान है। सुबह का समय था जिससे ठन्ड़ ज्यादा थी इसलिये हमें भी कोई ज्यादा जल्दी नहीं थी जिस कारण बाइक का इन्जन बन्द कर बाइक आगे बढ़ती रही। लगभग बीस किमी तक सुनसान, जंगल व ढ़लान भरे मार्ग पर बाइक चलाने के बाद बाइक स्टार्ट करने की नौबत आयी थी। ढ़लान समाप्त होने के बाद एक गांव आया था। बीच में जरुर होटल की तरह के एक-दो ठिकाने दिखायी दिये थे।


शनिवार, 25 मई 2013

Chandrashila चन्द्रशिला व सूर्यास्त

ROOPKUND-TUNGNATH 12                                                                             SANDEEP PANWAR

तुंगनाथ मन्दिर के बराबर से ही एक छोटी सी पगड़न्ड़ी वाला मार्ग ऊपर चन्द्रशिला की ओर जाता है। तुंगनाथ मन्दिर तो हमने देख लिया था लेकिन इस इलाके की सर्वाधिक ऊँची चोटी (4000 मीटर) चन्द्रशिला अभी हमसे 1.5 किमी ऊँचाई वाली दूरी पर थी। यह छोटी सी दूरी तय करने में ही जोरदार चढ़ाई चढ़नी पड़ती है। तुंगनाथ केदार से 200 मीटर आगे जाने पर मार्ग Y आकार में बदल जाता है। यह तो हमारा अंदाजा था कि यहाँ हमें उल्टे हाथ ऊपर की ओर ही चढ़ना था लेकिन दूसरा मार्ग कहाँ जा रहा है? अगर दूसरे मार्ग के बारे में भी पता लग जाये तो सोने पे सुहागा रहेगा। दूसरे मार्ग पर कुछ मीटर चलते ही हमारे होश गुम होने वाली बात आ गयी। जी हाँ, यह कच्चा मार्ग तेजी से नीचे की ओर जाता हुआ दिखाई दे रहा था। इस पर एक छोटा सा बोर्ड़ लगा हुआ मिला जिस पर लिखा था कि यह मार्ग गोपेश्वर की ओर जाता है। पहाडों में पैदल पगड़ंड़ी कही की कही जा निकलती है, क्या पता, यह किस मार्ग से होकर गोपेश्वर जाती है? लेकिन जहाँ तक हमारा अंदाजा है कि यह मार्ग मंड़ल-चोपता मार्ग पर बीच में कही जाकर मिलता है।


शुक्रवार, 24 मई 2013

Tungnath highest altitude mandir/Temple तुंगनाथ मन्दिर (सबसे ऊँचाई वाला केदार)

ROOPKUND-TUNGNATH 11                                                                             SANDEEP PANWAR
चोपता से तुंगनाथ मन्दिर सिर्फ़ 3-4 किमी की दूरी पर ही है। जहाँ चोपता की समुन्द्रतल से ऊँचाई 2900 मीटर  के आसपास है, वही तुंगनाथ मन्दिर की समुन्द्रतल से ऊँचाई 3680 मीटर है। तुंगनाथ मन्दिर भगवान शंकर का विश्व में सर्वाधिक ऊँचाई पर स्थित मन्दिर है। यह पंच केदार भी आता है। इस मन्दिर तक पहुँचने का मार्ग कुछ वर्ष पहले तक कच्चा हुआ करता था लेकिन अब यहां का मार्ग 5-6  फ़ुट चौड़ाई का होने के साथ-साथ चोपता से लेकर मन्दिर तक पूरी तरह सीमेंटिड़ बना दिया गया है। चोपता में मुख्य सड़क पर तुंगनाथ जाने का मार्ग दिखायी देने लगता है। यहाँ एक प्रवेश द्धार भी बनाया गया है जिससे मार्ग के बारे में कोई शंका भी नहीं रहती है। यदि कोई अपने वाहन से भी आ रहा है तो मन्दिर की पद यात्रा आरम्भ होने वाले बिन्दु के पास अपना वाहन लावारिस हालत में छोड़कर मन्दिर के लिए बेफ़िक्र जाया जा सकता है।


गुरुवार, 23 मई 2013

Gopeshwar-Mandal- Chopta गोपेश्वर- मंड़ल- चोपता तक

ROOPKUND-TUNGNATH 10                                                                             SANDEEP PANWAR
हम गोपेश्वर के हर्बल पार्क (जड़ी-बूटी) से बाहर आने के बाद, एक बार फ़िर से अपनी बाइक पर सवार होकर चोपता के लिये चल दिये। अभी कुछ दूर ही बढे थे कि आगे गोपेश्वर शहर की आबादी आरम्भ हो गयी। वैसे गोपेश्वर शहर में ही जिले के सभी कार्यालय बने हुए है जबकि जिले का नाम चमोली है जो नीचे नदी किनारे पर है। चमोली में ज्यादा जगह ना होने के कारण गोपेश्वर में जिले से सम्बंधित कार्यालय बनाने पड़े है। मेरे पास कोई कैमरा नहीं था। इस यात्रा के सारे फ़ोटो मनु के कैमरे से ही लिये गये थे। मनु ने कैमरे की 4 GB की मैमोरी लगभग भर चुकी थी, अभी हमें चोपता तुंगनाथ, चन्द्रशिला देखकर उखीमठ होकर लैंसड़ाऊन भी जाना था यानि कुल मिलाकर अभी 300-400 फ़ोटो तो खजाने में बढ़ जाने वाले थे। सबसे पहले एक मोबाइल की दुकान के सामने बाइक रोककर कैमरे की मैमोरी के फ़ोटो पैन ड्राइव में स्थानांतरित कराये गये। इस कार्य में हमें लगभग आधा घन्टा लग गया था। लेकिन आधे के बदले हमारे पास कैमरे की मैमोरी पूरी तरह सुरक्षित व खाली हो गयी थी।


मंगलवार, 21 मई 2013

Gopeshwar harbal garden गोपेश्वर हर्बल गार्ड़न

ROOPKUND-TUNGNATH 09                                                                             SANDEEP PANWAR
अपनी बाइक गोपेश्वर के हर्बल गार्ड़न के ठीक सामने जाकर रुकी। यह हर्बल गार्ड़न सड़क के मुकाबले गहराई में बनाया गया है जिस कारण यह काफ़ी दूर से ही दिखायी देना आरम्भ हो जाता है। हमने अपनी बाइक इसके गेट के ठीक सामने खड़ी कर दी। गेट के भीतर प्रवेश करते ही एक कमरा उल्टे हाथ दिखायी दिया। कमरे में जाकर देखा, लेकिन वहाँ कोई नहीं मिला। हम गार्ड़न के पेड़-पौधे वाले भाग में प्रवेश करने चल दिये। अभी हम कुछ ही कदम चले थे कि गार्ड़न में कार्यरत दो औरते दिखायी दी। हमने उन औरतों से इस गार्ड़न में देखने व घूमने की अपनी इच्छा व्यक्त की, उन्होंने कहा आपका जहाँ तक मन करे, वहाँ तक घूम कर आये। हमने पेड़ पौधे के फ़ोटो लेने के बारे में भी कहा तो जवाब सकारात्मक मिला कि कोई बात नही। आप जैसा चाहे वैसे घूमिये, बस पौधों को कोई नुक्सान मत पहुँचाना। 


बुधवार, 15 मई 2013

Karanparyag-Nandprayag-Chamoli-Gopeshwar कर्णप्रयाग-नन्दप्रयाग-चमोली-गोपेश्वर

ROOPKUND-TUNGNATH 08                                                                             SANDEEP PANWAR

रात के लगभग 8 बजे के आसपास हमने कर्णप्रयाग में प्रवेश किया। यहाँ रात में ठहरने के लिये एक विश्राम स्थल की तलाश में लग गये। पहले हमने ग्वालदम कर्णप्रयाग सड़क पर कमरे तलाशे, लेकिन इस सड़क पर कई मैरिज होम में शादी के कार्यक्रम होने के कारण कमरे खाली नहीं मिले। हमे एक बन्दे ने कहा कि आप बद्रीनाथ मार्ग पर जाओ वहाँ कमरे खाली होंगे। हमने अपनी बाइक कर्णगंगा नदी के पुराने पुल से निकालते हुए बद्रीनाथ ऋषिकेश मार्ग पर पहुँचा दी। यहाँ तिराहे के पास ही कई होटल, गेस्ट हाऊस थे जिनमें दो में बात करने पर ही हमें एक में 400 रुपये में कमरा मिल गया। कमरे की हालत बहुत ही अच्छी थी। हमारी बाइक कमरे के नीचे मुख्य सड़क पर रात भर खड़ी रही। मन में खटका सा रहा कि कोई बाइक उड़ा ना दे, लेकिन पहाड़ में अभी तक मैदान वाले चोर ज्यादा नहीं घुसे है।


मंगलवार, 14 मई 2013

Vaan to Aadi Badri वाण गाँव की दुकान का ताला तोड़ने के बाद आदि बद्री तक

ROOPKUND-TUNGNATH 07                                                                             SANDEEP PANWAR
मनु ने अपनी बाइक वाण गाँव के पोस्टमैन की दुकान से बाहर निकाल ली। मेरी बाइक कुछ 200 मीटर आगे वाण गाँव की आखिरी दुकान के सामने लावारिस हालत में खड़ी थी। यहाँ हमारे साथ एक पंगा हो गया कि मेरी बाइक तो बाहर सड़क पर ही खड़ी थी। लेकिन मैंने अपना कपाल सुरक्षा कवच जिस दुकान में रखा था व अब बन्द थी। आसपास पता किया लेकिन दुकान वाले का कही अता-पता नहीं चल पा रहा था कि दोपहर में कहाँ गायब हो गया है? उसकी कोई सूचना ना मिलती देख उसका इन्तजार करने के अलावा और कोई इलाज सम्भव नहीं था। पोस्ट मैन की दुकान के ठीक सामने एक टेलर की दुकान है उन्होंने हमारी परेशानी देखते हुए कहा कि मेरे पास उस दुकान वाले के भाई का मोबाइल नम्बर है। यहाँ हमारे मोबाइल भी काम नहीं कर रहे थे।



सोमवार, 13 मई 2013

Vaan village (Laatu Devta) वाण गाँव की सम्पूर्ण सैर (लाटू देवता मन्दिर सहित)

ROOPKUND-TUNGNATH 07                                                                             SANDEEP PANWAR

अंधेरा होते-होते हम वाण पहुँच चुके थे। मनु भाई का पोर्टर कम गाईड़ कुवर सिंह काफ़ी पहले ही आगे भेज दिया गया था। उसे सामान बचा हुआ सामान वापिस करने के लिये कह दिया था। जैसे ही हम पोस्ट मास्टर गोपाल बिष्ट जी के यहाँ पहुँचे तो देखा कि कुवर सिंह सारे सामान सहित वही जमा हुआ है। मनु भाई गोपाल जी के यहाँ एक रात रुककर रुपकुन्ड़ के लिये गये थे। गोपाल जी यहाँ के ड़ाकिया Postman भी है। इसके साथ वह एक दुकान स्वयं चलाते है जो वाण स्टेशन के कच्चे सड़क मार्ग के एकदम आखिरी में ही आती है। मनु भाई ने तो अपनी बाइक भी इन्ही की दुकान में पार्क की हुई थी। इन्होंने हमसे 50 रुपये प्रति बन्दे ठहरने के व 50 रुपये प्रति थाली भोजन के लिये थे। कमरे पर आते ही गोपाल जी को हाथ मुँह धोने के लिये थोड़ा सा गर्म पानी करने के लिये व एक घन्टे में भोजन बनाने के लिये भी लगे हाथ कह दिया था।


Aali Bugyal to Vaan Village आली बुग्याल से वाण गाँव तक

ROOPKUND-TUNGNATH 06                                                                             SANDEEP PANWAR
वेदनी बुग्याल के ऊपर-ऊपर बनी पगड़न्ड़ी से होते हुए हम अली बुग्याल की ओर बढ़ते रहे। वेदनी और अली आपस में लगभग जुड़े हुए से दिखाये देते है। जब यहाँ बर्फ़ का साम्राज्य चारों ओर होता है तब दोनों में अलगाव रेखा का निर्धारण करना कठिन काम है। एक मोड़ पर जाकर अली बुग्याल का 2 किमी लम्बा मार्ग दिखायी देने लगता है। तेजी से समतल पगड़न्ड़ी पर बढ़ते हम अली बुग्याल के नजदीक पहुँचते जा रहे थे। आखिरकार कुछ देर में हम अली बुग्याल पहुँच ही गये। जिस मौसम में हम गये थे उस समय हरी घास सूख कर सुनहरी रुप धारण कर चुकी थी। आसपास के नजारे देखकर वापिस लौट चले। बताते है कि अली बुग्याल पर सर्दी में आकर स्केटिंग करने का अपना मजा है। यहां आने के कई मार्ग है।



रविवार, 12 मई 2013

Bhagubasa-Roopkund-Aali Bugyal भागूबासा-रुपकुन्ड़-आली बुग्याल तक

ROOPKUND-TUNGNATH 05                                                                             SANDEEP PANWAR
पत्थर नौचनी पहुँचकर मेरी नजर सामने वाले पहाड़ पर गयी पूरा पहाड़ बर्फ़ से ढ़का हुआ था। जैसे जैसे मार्ग आगे बढ़ता जा रहा था यह साफ़ होता जा रहा था कि मुझे इस पहाड़ के शीर्ष पर चढ़कर आगे जाना है। मार्ग में रात की गिरी हुई ताजी बर्फ़ खतरनाक हालात पैदा कर रही थी। कुछ जगह तो चलने लायक पगड़न्ड़ी भी नहीं बची हुई थी। जिस कारण बर्फ़ पर पैर धसा कर ऊपर चढ़ना पड़ रहा था। अरे बाप रे, ओ ताऊ रे, अरी माँ री, जैसे शब्द यहाँ बच्चे लगने लगे। खैर किसी तरह मैंने आज के दिन की सबसे बड़ी बाधा पार कर ही ली। ऊपर चढ़ते समय पसीने आने का ड़र लगातार बना हुआ था। इसलिये मैंने शरीर पर हवा लगने के लिये अपनी विन्ड़ शीटर की चैन खोल दी थी। अन्दर एक बनियान व कमीज मात्र पहनी हुई थी। 


शनिवार, 11 मई 2013

Vedni Bugyal to Kalu Vinayak वेदनी बुग्याल से कालू विनायक तक

ROOPKUND-TUNGNATH 04                                                                             SANDEEP PANWAR
वेदनी पहुँचते-पहुँचते घनघोर अंधेरा हो गया था। रात का समय था ज्यादा कुछ दिखायी भी नहीं दे रहा था। आसमान में अपनी चमक बिखेरने वाला चाँद भी ना जाने कहाँ गायब हो गया था। थोड़ा आगे जाने पर वेदनी कैम्प की लाईट दिखायी देने लगी। जैसे-जैसे कैम्प के पास पहुँचते जा रहे थे। ठन्ड़ बढ़ती ही जा रही थी। ठन्ड़ का प्रकोप तो मार्ग में भी था लेकिन पैदल चलते रहने के कारण शरीर लगातार गर्म बना रहता है इसलिये ठन्ड़ अपना असर नहीं दिखा रही थी। कैम्प के पास पहुँचते ही घोड़े वालों ने अपना सामान उतारना शुरु कर दिया। दो नौजवान कुछ पीछे चल रहे थे, उन्होंने मोबाइल की टॉर्च जलाई हुई थी जिससे वे आते हुए दिख भी रहे थे। अंधेरे में कैम्प के पास मेरा पैर गीली मिटटी में चले जाने से जूते पर मिटटी लग गयी थी। 


बुधवार, 8 मई 2013

Vaan to Vedni Bugyal वाण से वेदनी बुग्याल तक

ROOPKUND-TUNGNATH 03                                                                           SANDEEP PANWAR

वाण गाँव की आखिरी दुकान वाले से अपनी आगामी दो दिन की ट्रेकिंग के लिये जरुरी खाने लायक 5-6 बिस्कुट के पैकेट ले लिये। अपना हैलमेट लोक करने की जगह उस दुकान में ही रखवा दिया। जहाँ से अपने खाने के लिये सामान लिया था। वापसी में बाइक तो यहाँ से लेनी ही थी इसलिए हैलमेट बाइक पर बाँधने से क्या लाभ? अभी दिन छिपने में तीन घन्टे बाकि थे। जिसमें मैं आसानी से 10 किमी की चढ़ाई चढ़ सकता था। मैंने दुकानवाले से पता किया कि यहाँ से अगला ठिकाना कितने किमी बाद है? दुकानवाले ने बताया कि यदि आपके पास स्लीपिंग बैग हो तो यहाँ से आगे गैरोली पाताल नामक जगह पर रात रुकने का प्रबंध हो सकता है लेकिन अपने सामान के बिना वहाँ रुकने की सम्भावना ना के बराबर ही है। यदि आप आज किसी भी तरह वेदनी तक पहुँच जाओ तो वहाँ अकेले बन्दे के लिये रहने की कोई समस्या नहीं आयेगी।


सोमवार, 6 मई 2013

Baijhnath temple & Kot bhramri temple बैजनाथ महादेव मन्दिर व कोट भ्रामरी मन्दिर

ROOPKUND-TUNGNATH 02                                                                             SANDEEP PANWAR

सड़क किनारे एक बोर्ड़ दर्शा रहा था कि यहाँ हजारों साल पुराना मन्दिरों का समूह है। यह मन्दिर भारतीय पुरातत्व विभाग के अधीन होना चाहिए। चलो जब मन्दिर सामने ही है तो इसे भी देख ही आता हूँ। बाइक सड़क किनारे खड़ी कर सामने नीचे की ओर जाती हुई सीढियों पर उतरना शुरु कर दिया। लगभग 100 मीटर चलने के बाद मन्दिर के प्रांगण मॆं प्रवेश हुआ। मन्दिर के परिसर पर पहली नजर जाते ही पलके झपकनी बन्द हो गयी, कुछ पल वही खड़ा होकर मन्दिर परिसर को निहारता रहा। मन्दिर परिसर में बहुत सारे मन्दिर दिखायी दे रहे थे। इन सभी मन्दिरों में सिर्फ़ एक मन्दिर सबसे बड़ा था बाकि सभी मन्दिर बहुत छोटे थे। कुछ मन्दिर तो 3-4 फ़ुट तक के ही बने हुए थे। मन्दिर के ठीक सामने एक गरुड़ गंगा नामक नदी अपने स्वच्छ व साफ़ शीशे जैसे जल को साथ लेकर बह रही थी। इस मन्दिर समूह को बैजनाथ मन्दिर कहते है।


शुक्रवार, 3 मई 2013

Haldwani and Almora हल्द्धानी व अल्मोड़ा तक बाइक यात्रा

ROOPKUND-TUNGNATH 01                                                                             SANDEEP PANWAR

जाना था चीन, पहुँच गये जापान, हाँ जी हाँ जी हाँ। आप सोच रहे होंगे कि यह जाट भाई को आज क्या हो गया जो गाना गाना शुरु कर दिया। जी हाँ बात ही ऐसी है कि कई बार यात्रा शुरु करने से पहले मन में सोचा जाता है कि यहाँ जायेंगे, वहाँ जायेंगे। लेकिन किस्मत का खेल निराला होता है किसे कब कहां ले जाये कोई नहीं जानता। मैंने इस यात्रा के समय पहले से ठाना हुआ था कि पंच बद्री, पंच केदार, पंच प्रयाग की यात्रा करके आऊँगा। समय भी था, बाइक भी, मौसम भी, कहने की बात यह है कि किसी किस्म की कोई परॆशानी नहीं थी, लेकिन होनी बड़ी बड़ी बलवान है यात्रा की तय तिथि से 3-4 दिन पहले से ही मेरी कमर व गर्दन में चिनके जैसा दर्द आरम्भ हो गया। मैंने सोचा कि रविवार आने में अभी तो कई दिन बाकि है तब तक ठीक हो जायेगा। लेकिन जब यात्रा वाले दिन की पूर्व वाली रात में भी दर्द पूरी तरह ठीक नहीं हो पाया तो यात्रा केंसिल करने के अलावा और कोई चारा नहीं था। इस बाइक वाली यात्रा में मेरे साथ बाइक वाले महान घुमक्कड़ मनु प्रकाश त्यागी साथ जाने वाले थे। आखिरकार मनु भाई को मना किया गया जिसके बाद उन्हें अकेले ही यात्रा पर जाना पड़ा।~
भीमताल

गुरुवार, 2 मई 2013

Tatapani-Shimla-Delhi तत्ता पानी-शिमला-दिल्ली यात्रा

हिमाचल की कांगड़ा व करसोग घाटी की यात्रा 12                                                       SANDEEP PANWAR


बस तत्तापानी पहुँच चुकी थी। सीट पर पड़े-पड़े शरीर आलस से पूरी तरह भर गया था। सीट से उठने का मन ही नहीं कर रहा था। हमने टिकट भी यही तक का लिया था उससे कुछ नहीं फ़र्क पड़ता। कंड़क्टर बस चलते ही आगे का टिकट दुबारा दे देता। यकायक फ़ैसला किया कि नहीं, फ़िर पता नहीं कब मौका लगे या ना लगे। चलो उतरो बस से नीचे। बस से नीचे उतर गये। बस से नीचे उतरते ही विपिन ने कहा संदीप भाई दो-तीन किमी पीछे शिव गुफ़ा करके, एक लम्बी सी गुफ़ा बताई गयी है। उसे देखने चले। ना, तुरन्त मुँह से निकला। ना सुनकर विपिन बोला ठीक है तत्तापानी चलो। मैं और विपिन तत्तापानी के लिये चल दिये। अभी दिन छिपने में काफ़ी समय था इसलिये फ़ैसला हुआ कि सूरज छिपने से पहले यहाँ से निकल जायेंगे। हम दोनों सतलुज नदी किनारे बने हुए तत्तापानी के गर्म कुन्ड़ देखने के लिये सतलुज के बहाव के पास पहुँचने का मार्ग देखने लगे।


Chindi, Karsog चिन्दी, करसोग

हिमाचल की कांगड़ा व करसोग घाटी की यात्रा 11                                                       SANDEEP PANWAR

चिन्दी आने से पहले कई लेख चिन्दी के बारे में देखे हुए थे। मेरे पास एक बड़ा सा बक्सा है जिसमें भारत की तो शायद ही कोई जगह होगी जिसकी जानकारी मेरे पास नहीं होगी। दुनिया के ज्यादातर देशों की घुमक्कड़ी वाली जानकारी भी मेरे खजाने में मौजूद है। बताऊँगा कभी उसके बारे में एक दो लेख में, यदि मौका लगा तो। आज पहले चिन्दी से निपट लेते है। बस से उतरते ही सामने एक मन्दिर दिखाई दिया। सबसे पहले इसी मन्दिर पर अपना हमला हो गया। यहाँ भी वही निर्माण कार्य वाली बात प्रगति पर थी। इस मन्दिर में देखने लायक जो कुछ था उसका फ़ोटो हमने ले लिया था। यह मन्दिर चिन्दी माता मन्दिर के नाम से जाना जाता है। इस मन्दिर को देखते समय मन में विचार आ रहे थे कि हिन्दू धर्म में ही क्यों दे दना-दन भगवान पैदा कर दिये जा रहे है। इस मन्दिर की बनावट व नक्काशी अन्य सभी मन्दिरों की तरह लाजवाब बनायी गयी थी। अभी तो लकड़ी पर पालिश आदि भी नहीं हुई थी लकड़ी पर पालिश के बाद दिखने वाली चमक अलग ही दिखायी देती है। पहाड़ों में अब बर्फ़ भले ही हर जगह ना गिरती हो, लेकिन बारिश तो हर जगह हो सकती है, इसलिए घर हो या मन्दिर सभी की छत ढ़लावदार बनाई जाती है।

यह चिन्दी वाला मन्दिर है।

बुधवार, 1 मई 2013

Mahunag, Karsog मूल माहूनाग बखारी कोठी, करसोग

हिमाचल की कांगड़ा व करसोग घाटी की यात्रा 10                                                       SANDEEP PANWAR

करसोग बस अड़ड़े से मूल माहूनाग जाने वाली सीधी बस सेवा उपलब्ध है। हमने इसी सेवा का उपयोग करते हुए, अपनी इस हिमाचल यात्रा के अंतिम दिन की यात्रा आगे जारी रखी। करसोग से चिन्दी होकर माहूनाग के लिये मार्ग बनाया गया है। मन्ड़ी-सुन्दरनगर से चिन्दी होकर हम कल रात ही करसोग आये थे। करसोग घाटी में हमारे काम के सिर्फ़ दो ही प्राचीन मन्दिर थे। करसोग के आसपास पहाड़ों के शीर्ष पर कुछ अन्य प्रसिद्ध मन्दिर भी है जैसे कमरुनाग व शिकारी देवी, इन दोनों तक पहुँचने के लिये ट्रेकिंग करनी पड़ती है। अगर बाइक साथ हो तो शिकारी देवी तक पहुँच सकते है। आज अभी जिस मन्दिर तक हम बस से जा रहे है वहाँ पहुँचने के लिये कोई समस्या नहीं है। हमारे साथ बैठे एक स्थानीय बन्दे ने हमें बताया कि यह चिन्दी होकर जाती है। बस जैसे-जैसे चिन्दी/चिन्ड़ी के नजदीक पहुँचती जा रही थी हमारे दिलों की धड़कन भी बढ़ती जा रही थी। आखिरकार जब हमारी वस चिन्दी पहुँची तो वहाँ से आसपास के नजारे देख तबियत खुश हो गयी।


Mamleshwar Mahadev Temple ममलेश्वर महादेव मन्दिर, करसोग

हिमाचल की कांगड़ा व करसोग घाटी की यात्रा 09                                                       SANDEEP PANWAR

कामाक्षा देवी मन्दिर देखने के बाद हमें ममेल गाँव में ममलेश्वर महादेव मन्दिर जाना था। कामाख्या/कामाक्षा मन्दिर के पुजारी ने हमारी बाते सुनकर बताया कि थोड़ी देर में ही बस आने वाली है। यहाँ तक तो हम दोनों पैदल ही आये थे अब आगे की यात्रा बस से करने के कारण हमारे समय व ऊर्जा की बचत होने जा रही थी। हम मन्दिर के आँगन में ही बैठे हुए थे कि बस का होरन सुनाई दिया। बस आते ही हम उसमें सवार होकर ममेल गाँव की ओर चल दिये। बस पीछे किसी गाँव से आ रही थी। यह बस सीधे शिमला जा रही थी। जिस सड़क को हम दूर से देखते हुए आये थे अब उसे बस में बैठकर देखना अच्छा लग रहा था। इस मार्ग की चौड़ाई बहुत ही कम थी। सामने से आ रही एक बस के कारण हमारी बस को आगे बढ़ने से पहले बैक ले जाना पड़ा, जिससे सामने वाली बस के निकलने लायक जगह बन सके। कामाख्या मन्दिर तक शिमला से सीधी बस सेवा उपलब्ध है। यदि किसी को सीधे मन्दिर जाना हो तो सीधी वाली बस से अपनी यात्रा कर सकते है। जैसे ही कंड़क्टर ने टिकट के लिये पैसे माँगे तो हमने पैसे देते हुए कहा हमें ममलेश्वर मन्दिर जाना है।