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मंगलवार, 28 मई 2013

Kotdwar-SidhBali Hanuman temple कोटद्धार का सिद्धबली हनुमान मन्दिर

ROOPKUND-TUNGNATH 16                                                                             SANDEEP PANWAR
कोटद्धार पार करने के बाद सिद्धबली नाम मशहूर मन्दिर सड़क किनारे दिखायी दे गया। अगर मन्दिर सड़क से कुछ किमी हटकर होता तो शायद हम वहाँ जाने की भी नहीं सोचते। लेकिन यहाँ तो मन्दिर सड़क के एकदम किनारे ही था बस एक नदी का छॊटा सा/लम्बा सा पुल पार करना होता है। इस पुल को पार करते हुए हम मन्दिर के ठीक सामने जा पहुँचे। वहाँ भीड़ के नाम पर मुश्किल से ही कोई दिखायी दे रहा था। इसलिए भीड़ ना होना भी हमारे लिये सोने पे सुहागा  वाली बात साबित हो गयी। भीड़ के कारण मैंने बहुत सारे मन्दिर बाहर से ही देखे है। मध्यप्रदेश, व पुरी यात्रा के दौरान मैंने शराब पीने वाले भैरव मन्दिर के दर्शन नहीं किये थे। बारी-बारी से मन्दिर के दर्शन कर आये। पहले मैं गया था इसलिये मनु का कैमरा साथ ले गया था। ज्यादातर फ़ोटो मैंने ही ले लिये थे। मेरे बाद मनु भी फ़टाफ़ट मन्दिर दर्शन कर वापिस आ गया। 





मन्दिर देखने के बाद हमने दिल्ली की ओर बढ़ने का फ़ैसला किया, चूंकि अभी अंधेरा पूरी तरह नहीं हुआ था इसलिये हम तेजी से उजाले का लाभ लेते हुए आगे बढ़ने लगे। कोटद्धार पार करने के बाद हम सीधे नजीबाबाद की ओर बढ़ने लगे। यहाँ अंधेरा धीरे धीरे बढ़ रहा था, आखिरकार दिन रहते नजीबाबाद भी पार हो गया। अब अंधेरा अपना कब्जा जमाता जा रहा था इसलिये नजीबाद पार करते ही हमने बाइक की गति लगभग 100 किमी प्रति घन्टा कर दी। जैसे ही मनु की बाइक भी पीछे-पीछे भागने लगी तो अपुन का टेंशन भी समाप्त हो गया। मैं सोच रहा था कि मनु भी बाइक को तेज गति से भगायेगा या नहीं। बिजनौर तक हमने जमकर बाइक दौड़ायी। सड़क पर अंधेरे का स्रामाज्य चारों ओर फ़ैल चुका था। धीरे-धीरे हमने गंगा नदी के पुल में प्रवेश भी कर लिया।

गंगा नदी अभी पार भी नहीं हुई थी मनु ने अचानक अपनी बाइक रोक दी, मजबूरन मुझे भी अपनी बाइक धीमी करनी पड़ी। जैसे ही मनु की बाइक मेरे बराबर में आयी तो मनु ने कहा संदीप भाई पिछले पहिये में पेंचर हो गया है। अत: नजदीक किसी दुकान पर रुकर पेंचर सही करवाना पडेगा। आखिरकार चार किमी चलने के बाद एक गुरुद्धारा आया उसके ठीक सामने पेंचर वाली की दुकान थी। मनु की बाइक की ट्यूब सही सलामत नहीं बची थी इसलिये दुकान वाले को कहा कि ट्यूब बदल दे। कुछ ही देर में ट्यूब बदल दी गयी, जिसके बाद हमने अपनी मेरठ की ओर की यात्रा आरम्भ कर दी। अब सड़क पर लगातार अंधेरा था जिस कारण बेहद ही सावधानी से बाइक चलाते हुए मेरठ की ओर बढ़ते गये। वैसे इस मार्ग से भी मैंने बाइक से एक बार नजीबाबाद गंज विदुर की कुटिया तक की यात्रा की हुई है।

मेरठ पहुँचने के बाद हमारी मंजिल नजदीक दिखायी देने लगी। आखिरकार हम दोनों मनु के घर पहुँच गये वहाँ पर मैंने घर का बना हुआ स्वादिष्ट खाना खाया उसके बाद बैग से मनु का सामान निकाल कर उसे सौंप दिया गया। लगभग आधा घन्टा रुकने के बाद मैंने अपना बैग उठा लिया और घर की ओर चल दिया। मेरा घर अभी लगभग 20 किमी की दूरी पर था जिसके लिये आधे घन्टे का समय प्रर्याप्त था। अनुमानित समय में मैं अपने घर सुरक्षित पहुँच गया था। घरवाले माताजी, पत्नी और दो शैतान रात के 11 बजे मुझे घर पर देखकर बेहद ही खुश थे। घरवाले भी सोचते होंगे कि शायद आगे से जाटदेवता यात्रा पर नहीं जायेंगे। लेकिन कुछ दिन बीतते ही फ़िर से अपनी खोपड़ी घूमने के नाम से कुलमुलाने लग जाती है आखिरकार कही ना कही जाकर खोपड़ी को शांत किया जाता है।  (समाप्त)

रुपकुन्ड़ -तुंगनाथ की इस यात्रा के सम्पूर्ण लेख के लिंक क्रमवार दिये गये है।














4 टिप्‍पणियां:

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