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गुरुवार, 2 मई 2013

Chindi, Karsog चिन्दी, करसोग

हिमाचल की कांगड़ा व करसोग घाटी की यात्रा 11                                                       SANDEEP PANWAR

चिन्दी आने से पहले कई लेख चिन्दी के बारे में देखे हुए थे। मेरे पास एक बड़ा सा बक्सा है जिसमें भारत की तो शायद ही कोई जगह होगी जिसकी जानकारी मेरे पास नहीं होगी। दुनिया के ज्यादातर देशों की घुमक्कड़ी वाली जानकारी भी मेरे खजाने में मौजूद है। बताऊँगा कभी उसके बारे में एक दो लेख में, यदि मौका लगा तो। आज पहले चिन्दी से निपट लेते है। बस से उतरते ही सामने एक मन्दिर दिखाई दिया। सबसे पहले इसी मन्दिर पर अपना हमला हो गया। यहाँ भी वही निर्माण कार्य वाली बात प्रगति पर थी। इस मन्दिर में देखने लायक जो कुछ था उसका फ़ोटो हमने ले लिया था। यह मन्दिर चिन्दी माता मन्दिर के नाम से जाना जाता है। इस मन्दिर को देखते समय मन में विचार आ रहे थे कि हिन्दू धर्म में ही क्यों दे दना-दन भगवान पैदा कर दिये जा रहे है। इस मन्दिर की बनावट व नक्काशी अन्य सभी मन्दिरों की तरह लाजवाब बनायी गयी थी। अभी तो लकड़ी पर पालिश आदि भी नहीं हुई थी लकड़ी पर पालिश के बाद दिखने वाली चमक अलग ही दिखायी देती है। पहाड़ों में अब बर्फ़ भले ही हर जगह ना गिरती हो, लेकिन बारिश तो हर जगह हो सकती है, इसलिए घर हो या मन्दिर सभी की छत ढ़लावदार बनाई जाती है।

यह चिन्दी वाला मन्दिर है।


चिन्दी का मन्दिर देखने के बाद हम मन्दिर के बाहर एक पेड़ की छाँव में बैठ गये। वहाँ एक पेड़ पर ढ़ेर सारी नाशपाति देखकर मन खाने के लिये ललचा रहा था। लेकिन नाशपाति ज्यादा ऊँचाई पर होने के कारण व शर्म के कारन हमने तोड़ने की कोशिश ही नहीं की। चिन्दी पहाड़ के एकदम टॉप पर बसा हुआ है, जिस कारण पहाड़ के घाटी वाले फ़ोटो शानदार दिखायी देते है। हमने घाटी के एक दो फ़ोटो ही लिये थे लेकिन जब फ़ोटो अच्छे नहीं लगे तो हमने मिटा ड़ाले। मन्दिर के अलावा चिन्दी में हिमाचल सरकार का एक सरकारी गेस्ट हाऊस भी है। हम टहलते हुए उस हाऊस तक भी गये थे। वहाँ जाकर कमरों के दाम पता करने लगे तो बताया कि कोई भी कमरा 1000 रुपये से कम नहीं है। हमें कौन सा वहाँ कमरा लेना था। दाम पता कर वहाँ से वापिस चल दिये। जब हमें आसपास टहलते हुए काफ़ी देर हो गयी और भूख ने तंग करना शुरु किया। वहाँ पर नजदीक की एक दुकान पर पहुँचकर मैगी बनवाने की बात करने लगे। मैगी का आर्डर देने के बाद हमने मैगी वाली से तत्तापानी जाने वाली बस के बारे में बात की। मैगी वाली ने बताया कि तत्तापानी जाने के लिये अभी कुछ देर में दिल्ली जाने वाली बस आयेगी। 

चिन्दी का जितना नाम सुना था उतनी खूबसूरत तो हमें नहीं पायी लेकिन करसोग आते-जाते समय बीच सफ़र में दो-तीन घन्टे बिताने के लिये चिन्दी अच्छा चुनाव हो सकता है। आप लोग करसोग की यात्रा पर आये तो चिन्दी दो-तीन घन्टे रुककर आगे की यात्रा जारी रखी जा सकती है। यहाँ रात्रि निवास की सुविधा भी है इसलिये समस्या वाली कोई बात नहीं है। अभी मैगी वाली ने अपना स्टोप जलाकर उसपर बर्तन रख पानी ही ड़ाला था कि बस ने हार्न से दिया। हमने मैगी वाली से पूछा अभी पानी में मैगी तो नहीं ड़ाली है ना। मैगी वाली बोली नहीं, अभी तो पानी ही ड़ाला था आपकी बस आ गयी है, आप चले जाओ, क्योंकि अगली बस घन्टे भर बाद जाकर आयेगी। हमने अधूरे मन से अधूरी मैगी बने बिना ही, बिना मैगी खाये वहाँ से बस के लिये खड़ा होना पड़ा। उस समय हमारे दिल पर क्या बीत रही होगी? खैर दिल्ली वाली बस थी उसी बस में बैठ तत्ता पानी के लिये आगे की यात्रा शुरु कर दी। 

बस कंड़क्टर ने टिकट के लिये कहा तो पहले हमने उससे यह पता किया कि यह बस तत्तापानी कितनी देर रुककर आगे जायेगी। अगर यही बस तत्तापानी आधा घन्टा रुककर जाती हो तो हमें दिल्ली तक दूसरी बस बदलने की आवश्यकता ही नही पड़ेगी। लेकिन कंड़क्टर ने यह कहकर हमारी उम्मीदों पर सतलुज का पूरा  पानी बहा दिया कि तत्तापानी में यह बस मात्र 5-7 मिनट ही रुकती है। आगे की कई किमी की यात्रा हमने उसी मार्ग पर की थी जिससे माहू नाग जाते और आते समय की थी। बस तत्तापानी से पहले एक बाजार नुमा बड़ी सी जगह पर कुछ देर रुकी तो सामने हलवाई की दुकान पर मिठाई व पकौड़ी देख, अपनी भूख पर काबू रखना कठिन हो गया। बस से नीचे उतरकर काफ़ी सारी पकौडियाँ ले ली गयी। पकौड़ी के साथ आईसक्रीम भी ले ली। अब पकौडी खाकर हमारे पेट में कुछ शांति मिली। आधे घन्टे बाद तत्तापानी आने वाला था इसलिये आराम से अपनी सीट पर पैर फ़ैला दिये। जैसे ही तत्तापानी रुकने पर कंड़क्टर ने आवाज लगायी तो अपना ध्यान टूटा। बस में बैठे-बैठे आलस आ रहा था इसलिये मन कर रहा था कि छोड़ो तत्तापानी गर्मपानी को दिल्ली की बस में बैठे है। बैठे रहो। लेकिन! (क्रमश:)
हिमाचल की इस बस व रेल यात्रा के सभी लेख के लिंक नीचे दिये गये है। सबसे नीचे स्कारपियो वाली यात्रा के लिंक दिये है।

चिन्दी मन्दिर का दाया भाग
























हिमाचल की इस यात्रा के सभी लेख के लिंक नीचे दिये गये है।
01. मणिमहेश यात्रा की तैयारी और नैना देवी तक पहुँचने की विवरण।
02. नैना देवी मन्दिर के दर्शन और भाखड़ा नांगल डैम/बाँध के लिये प्रस्थान।
03. भाखड़ा नांगल बांध देखकर ज्वालामुखी मन्दिर पहुँचना।
04. माँ ज्वाला जी/ज्वाला मुखी के बारे में विस्तार से दर्शन व जानकारी।
05. ज्वाला जी मन्दिर कांगड़ा से ड़लहौजी तक सड़क पर बिखरे मिले पके-पके आम
06. डलहौजी के पंजपुला ने दिल खुश कर दिया। 
07. डलहौजी से आगे काला टोप एक सुन्दरतम प्राकृतिक हरियाली से भरपूर स्थल।
08. कालाटोप से वापसी में एक विशाल पेड़ पर सभी की धमाल चौकड़ी।
09. ड़लहौजी का खजियार उर्फ़ भारत का स्विटजरलैंड़ एक हरा-भरा विशाल मैदान 
10. ड़लहौजी के मैदान में आकाश मार्ग से अवतरित होना। पैराग्लाईंडिंग करना।
11. ड़लहौजी से चम्बा होते हुए भरमौर-हड़सर तक की यात्रा का विवरण।
12. हड़सर से धन्छो तक मणिमहेश की कठिन ट्रेकिंग।
13. धन्छो से भैरों घाटी तक की जानलेवा ट्रेकिंग।
14. गौरीकुन्ड़ के पवित्र कुन्ड़ के दर्शन।
15. मणिमहेश पर्वत व पवित्र झील में के दर्शन व झील के मस्त पानी में स्नान।
16. मणिमहेश से सुन्दरासी तक की वापसी यात्रा।
17. सुन्दरासी - धन्छो - हड़सर - भरमौर तक की यात्रा।
18. भरमौर की 84 मन्दिर समूह के दर्शन के साथ मणिमहेश की यात्रा का समापन।
19. चम्बा का चौगान देखने व विवाद के बाद आगे की यात्रा बस से।

3 टिप्‍पणियां:

  1. राम राम जी..वाह क्या खूबसूरत नक्काशी हैं, जाट भाई ऐसे ही दर्शन कराते रहो...ये तो हमारी, हमारे देश की विरासत हैं जो कि कोने कोने में बिखरी हुई हैं, आप भाइयो के कारण से इन्हें देखने का मौका मिल रहा हैं. धन्यवाद, वन्देमातरम...

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  2. बार बार नया देखने को और नया समझने को।

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  3. आपके जानकारी दुरुस्त करना चाहूंगा।चिन्डी में हर साल डेढ़ से दो फुट बर्फ तो गिरती है।तभी छत ढलानदार है।

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