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बुधवार, 1 मई 2013

Mahunag, Karsog मूल माहूनाग बखारी कोठी, करसोग

हिमाचल की कांगड़ा व करसोग घाटी की यात्रा 10                                                       SANDEEP PANWAR

करसोग बस अड़ड़े से मूल माहूनाग जाने वाली सीधी बस सेवा उपलब्ध है। हमने इसी सेवा का उपयोग करते हुए, अपनी इस हिमाचल यात्रा के अंतिम दिन की यात्रा आगे जारी रखी। करसोग से चिन्दी होकर माहूनाग के लिये मार्ग बनाया गया है। मन्ड़ी-सुन्दरनगर से चिन्दी होकर हम कल रात ही करसोग आये थे। करसोग घाटी में हमारे काम के सिर्फ़ दो ही प्राचीन मन्दिर थे। करसोग के आसपास पहाड़ों के शीर्ष पर कुछ अन्य प्रसिद्ध मन्दिर भी है जैसे कमरुनाग व शिकारी देवी, इन दोनों तक पहुँचने के लिये ट्रेकिंग करनी पड़ती है। अगर बाइक साथ हो तो शिकारी देवी तक पहुँच सकते है। आज अभी जिस मन्दिर तक हम बस से जा रहे है वहाँ पहुँचने के लिये कोई समस्या नहीं है। हमारे साथ बैठे एक स्थानीय बन्दे ने हमें बताया कि यह चिन्दी होकर जाती है। बस जैसे-जैसे चिन्दी/चिन्ड़ी के नजदीक पहुँचती जा रही थी हमारे दिलों की धड़कन भी बढ़ती जा रही थी। आखिरकार जब हमारी वस चिन्दी पहुँची तो वहाँ से आसपास के नजारे देख तबियत खुश हो गयी।




हमने बस में बैठते समय ही विचार कर लिया था कि बस से पहले माहू नाग चलते है वापसी में चिन्दी उतर जायेंगे। टिकट लेते समय कंड़क्टर ने बताया था कि यह बस माहू नाग पहुँचने के बाद 20 मिनट रुकती है। माहूनाग ने सिर्फ़ मन्दिर के दर्शन करने के लिये ही दर्शनार्थी वहाँ तक जाने के बाद उसी बस से लौटने की कोशिश करते है। कंड़क्टर ने टिकट देते समय वापसी के बारे में पूछा तो हमने कहा कि ठीक है हम भी वापिस आ जायेंगे। जब बस का टिकट लिया था उस समय यह मालूम नहीं था कि यह बस चिन्दी होकर जायेगी।  अगर पहले पता होता तो हम वापसी में चिन्दी तक का ही टिकट बनवाते। खैर चिन्दी के नजारे बस में अन्दर बैठे-बैठे देखते हुए हमारी बस यात्रा आगे चलती जा रही थी। चिन्दी शिमला वाले रोड़ पर कई किमी आगे जाने के बाद एक गांव धरमौर (dharmour) आता है यहाँ बस चालक ने सवारियाँ उतारने व चढ़ाने के बाद बस को मोड़ना शुरु किया। बस को मोड़ते देख अपने माथे पर बल पड़ना लाजमी थी। यह बस वापसी कहाँ जा रही है? जब मैंने अपने पास बैठे बन्दे से पूछा तो उसने कहा कि पहाड़ों में सवारियाँ लेने के चक्कर में बसे काफ़ी दूर तक घूम कर आती है। आखिरकार बस एक-दो किमी आने के बाद चिराग शिखर नामक जगह से सीधे हाथ की ओर मुड़ गयी।

चिराग शिखर से माहू नाग लगभग 11-12 किमी सड़क दूरी पर है। मुख्य सड़क छोड़ते ही जो नया मार्ग माहू नाग जाने के लिये हमारी बस ने तय  करना शुरु किया था इस मार्ग पर लगातार चढ़ाई आ रही थी। लगातार चढ़ाई आने के कारण बस की गति धीमी हो चली थी। इस छोटी सी बस यात्रा में पहाड़ों के एक अलग निराले रु के दर्शन हो रहे थे। आगे चलते हुए हमारी बस एक स्कूल के भवन के आगे से होकर बढ़ रही थी। मैंने अंदाजा लगाया कि माहू नाग मन्दिर आने वाला है लेकिन यह माहू गाँव था मन्दिर अभी एक किमी दूरी पर था। यहाँ एक किमी की दूरी चढ़ने में बस की सारी ताकत लग गयी थी। आखिरकार हमारी बस एक दुकान के सामने जा रुक गयी। आगे जाने के लिये कोई मार्ग दिखायी नहीं दे रहा था। बस चालक बोला जाओ जल्दी दर्शन कर 20 मिनट में वापिस आ जाना। अन्य सवारियों के साथ हम भी बस से उतर कर बाहर सड़क पर आ गये। दुकान में कच्चे-पक्के सेब रखे हुए थे। मन था कि कुछ खाने के लिये ले लिये जाये। लेकिन पहले मन्दिर देख कर आये उसके बाद सेब लेना ठीक रहेगा।

जहाँ सड़क समाप्त होती है वहाँ से मन्दिर तक पक्की पगड़न्ड़ी बनाई हुई है। सड़क से मन्दिर की दूरी मुश्किल से 200-250 मीटर ही होगी। बस की ज्यादातर सवारियाँ मन्दिर देखने के लिये जा चुकी थी। सबसे आखिर में चलने वाले हम दोनों ही थे। 3-4 मिनट चलने पर ही मन्दिर दिखायी दिया। पगड़न्ड़ी से मन्दिर में प्रवेश करने के लिये सीढियाँ बनी हुई है। हमें सीढियों के पास सेब का एक पेड़ दिखायी दिया। पहले दरवाजे का फ़ोटो लिया उसके बाद सेब के पेड़ के फ़ोटो लिये। मन्दिर के ठीक सामने विशाल फ़ैली करसोग घाटी दिखायी दे रही थी। मन्दिर की बाहरी दीवार पर निर्माण कार्य चल रहा था। मन्दिर में प्रवेश करने लगे तो बताया कि मन्दिर का द्धार बन्द है अभी खुलने वाला है। जैसे ही मन्दिर में प्रवेश किया तो वहाँ पर लगायी गयी शानदार लकड़ी की नक्काशी देखकर मन बाग-बाग हो गया। यह मन्दिर भी अपने सजने सँवरने के दौर से गुजर रहा था। बाद में कभी यहाँ आना हुआ तो इसकी कायाकल्प के बाद नया रुप देखना अच्छा रहेगा। मन्दिर के आँगन में बहुत पुरानी मूर्तियाँ रखी हुई थी। एक मूर्ति पर मूल माहू नाग भी लिखा हुआ था\

मन्दिर को देखकर मन्दिर से बाहर आये, यहाँ बाहर खड़े होकर आसापास की अन्य जगह छोटी दिखायी पड़ रही थी। माहू नाग अपने आसपास की अन्य पहाड़ियों से ऊँची जगह है इसलिये ऊपर से घाटी का नजारा दिलकश दिखायी देता है। मन्दिर के बाहर जो आँगन है वह काफ़ी बड़ा है जिसमें एक साथ बहुत सारे भक्त खड़े हो सकते है। इस मन्दिर की अपनी छोटी सी धर्मशाला भी है जहां यात्रियों के रहने खाने का प्रबन्ध हो जाता है। माहू नाग नाम हिमाचल के पहाड़ में एक विशेष प्रकार की प्रजाति वाला नाग पाया जाता है जिसमें जहर नहीं होता है। इसी बिना जहर वाले नाग की कुछ कथा के कारण ही माहू नाग मन्दिर इस क्षेत्र में सबसे ज्यादा मान्यता वाला मन्दिर है। मन्दिर देखकर अपनी बस की ओर चल पड़े। विपिन का पता नहीं चलता कि चलते-चलते बीच मार्ग से कहाँ गायब हो जाता है? बस स्टार्ट होकर चलने को तैयार थी लेकिन अपने ढ़ीलू भाई का पता नहीं कहाँ गायव हो गया था? 3-4 मिनट बाद विपिन आया जिसके बाद बस वापसी करसोग के लिये चल पड़ी। हमें तो चिन्दी उतरना था। जैसे ही चिन्दी आया, हमने बस रुकवा कर चिन्दी देखने के लिये अपना बैग अपने कंधे पर उठा लिया। (क्रमश:)    

हिमाचल की इस बस व रेल यात्रा के सभी लेख के लिंक नीचे दिये गये है। सबसे नीचे स्कारपियो वाली यात्रा के लिंक दिये है।








खोल दे भाई




नाग


जय हो नागराज


मन्दिर के साथ लगा हुआ सेब का पेड़

फ़ुस्स

माहू नाग से

माहूनाग के सामने वाली घाटी

हिमाचल की इस यात्रा के सभी लेख के लिंक नीचे दिये गये है।
01. मणिमहेश यात्रा की तैयारी और नैना देवी तक पहुँचने की विवरण।
02. नैना देवी मन्दिर के दर्शन और भाखड़ा नांगल डैम/बाँध के लिये प्रस्थान।
03. भाखड़ा नांगल बांध देखकर ज्वालामुखी मन्दिर पहुँचना।
04. माँ ज्वाला जी/ज्वाला मुखी के बारे में विस्तार से दर्शन व जानकारी।
05. ज्वाला जी मन्दिर कांगड़ा से ड़लहौजी तक सड़क पर बिखरे मिले पके-पके आम
06. डलहौजी के पंजपुला ने दिल खुश कर दिया। 
07. डलहौजी से आगे काला टोप एक सुन्दरतम प्राकृतिक हरियाली से भरपूर स्थल।
08. कालाटोप से वापसी में एक विशाल पेड़ पर सभी की धमाल चौकड़ी।
09. ड़लहौजी का खजियार उर्फ़ भारत का स्विटजरलैंड़ एक हरा-भरा विशाल मैदान 
10. ड़लहौजी के मैदान में आकाश मार्ग से अवतरित होना। पैराग्लाईंडिंग करना।
11. ड़लहौजी से चम्बा होते हुए भरमौर-हड़सर तक की यात्रा का विवरण।
12. हड़सर से धन्छो तक मणिमहेश की कठिन ट्रेकिंग।
13. धन्छो से भैरों घाटी तक की जानलेवा ट्रेकिंग।
14. गौरीकुन्ड़ के पवित्र कुन्ड़ के दर्शन।
15. मणिमहेश पर्वत व पवित्र झील में के दर्शन व झील के मस्त पानी में स्नान।
16. मणिमहेश से सुन्दरासी तक की वापसी यात्रा।
17. सुन्दरासी - धन्छो - हड़सर - भरमौर तक की यात्रा।
18. भरमौर की 84 मन्दिर समूह के दर्शन के साथ मणिमहेश की यात्रा का समापन।
19. चम्बा का चौगान देखने व विवाद के बाद आगे की यात्रा बस से।

3 टिप्‍पणियां:

  1. जय राम जी कि, बहुत ही खूबसूरत पोस्ट. लकड़ी के ऊपर नक्काशी, गज़ब..और पेड़ के ऊपर सेव, तोड़कर खाने का अलग ही स्वाद हैं...लगे रहो मेरे भाई...वन्देमातरम...

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  2. नीरज जी। आपको शिवा देहरा,धमून टिब्बा और चवासी गढ़ जरूर जाना चाहिए। तीनों स्थान करसोग के नजदीक ही है।

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  3. नीरज जी। आपको शिवा देहरा,धमून टिब्बा और चवासी गढ़ जरूर जाना चाहिए। तीनों स्थान करसोग के नजदीक ही है।

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