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रविवार, 26 मई 2013

Ukhimath temple and Nature attack ऊखीमठ मन्दिर व कुदरत का कहर

ROOPKUND-TUNGNATH 13                                                                             SANDEEP PANWAR
चोपता से सुबह जल्दी निकलने की तैयारी थी, इसलिये रात में भी जल्दी ही सो गये थे। दिन में कही नहाने का मौका नहीं लगने वाला था इसलिये चोपता में नहाने का विचार बनाया भी, लेकिन चोपता की भयंकर ठन्ड़ देखकर इरादा बदल दिया गया। सुबह छ बजे से पहले ही अपनी बाइक पर सवार होकर ऊखीमठ के लिये प्रस्थान कर दिया। चोपता से ऊखीमठ की ओर जाते समय सड़क में लगभग 20 किमी तक जोरदार ढ़लान है। सुबह का समय था जिससे ठन्ड़ ज्यादा थी इसलिये हमें भी कोई ज्यादा जल्दी नहीं थी जिस कारण बाइक का इन्जन बन्द कर बाइक आगे बढ़ती रही। लगभग बीस किमी तक सुनसान, जंगल व ढ़लान भरे मार्ग पर बाइक चलाने के बाद बाइक स्टार्ट करने की नौबत आयी थी। ढ़लान समाप्त होने के बाद एक गांव आया था। बीच में जरुर होटल की तरह के एक-दो ठिकाने दिखायी दिये थे।



जैसे ही उखीमठ कस्बा आरम्भ हुआ तो हमने बाइक की गति बेहद ही कम कर दी थी ताकि ऊखीमठ का मन्दिर पीछे ना छूट जाये। आखिरकार पूरा ऊखीमठ पार हो गया लेकिन मन्दिर कही दिखायी नहीं दिया तो हमें एक स्थानीय बन्दे से मालूम करना पड़ा। उसने हमें बताया कि पीछे एक गली नुमा सड़क ऊपर को गयी है। उसी पर कुछ दूर जाने के बाद मन्दिर आता है। मन्दिर मुख्य मार्ग से काफ़ी हटकर बना हुआ है जबकि हम समझ रहे थे कि मन्दिर सड़क किनारे बना हुआ है। हमने अपनी बाइक मुख्य सड़क से उस गली नुमा मार्ग पर घूमा दी जिस पर उखीमठ का मन्दिर बना हुआ है। थोड़ी ही देर में मन्दिर हमारे सामने था। मन्दिर से कुछ मीटर पहले तक बाइक ले जायी जा सकती है जबकि कार आदि उससे भी पहले ही खड़ी करनी पड़ जायेगी।

बाइक खड़ी करने के बाद मन्दिर के प्रांगण में जा पहुँचे। हमने अपना बैग एक तरफ़ रखा जिसके बाद मन्दिर को चारों ओर से अच्छी तरह छान मारा। मुख्य मन्दिर के दर्शन भी किये गये। यहाँ के पुजारी से केदारनाथ बाबा की डोली व सर्द ऋतु में होने वाली पूजा का स्थान भी पता किया। यह मन्दिर भी भोलेनाथ के अन्य पंच केदार की वास्तु शैली में ही बना हुआ है। इसे देखते ही अन्य केदार अपने आप स्मरण हो आते है। मन्दिर के फ़ोटो लेन के बारे में पुजारी से पता किया उन्होंने कहा कि मन्दिर की मूर्तियाँ छोड़कर किसी भी चीज का फ़ोटो लेने में कोई रोक नहीं नहीं है। हमें मूर्ति से वैसे भी कोई खास काम होता नहीं है। मन्दिर की वास्तु कला का फ़ोटो हमारे लिये ज्यादा महत्व रखता है। मन्दिर के फ़ोटो लेने के बाद हम बाहर चले आये। यहाँ से एक मार्ग उन्नियाना होकर अन्य केदार मदमहेश्वर भी जाता है लेकिन उसके लिये पहले बीस किमी सड़क मार्ग है जिसके बाद 40 किमी आने-जाने के मिलाकर पद यात्रा करनी पड़ती है।

मन्दिर से बाहर आते ही देखा कि वहाँ कई दुकाने खुली हुई है। उनमें से एक-दो ने हमसे पूछा कि चाय पराठे खाओगे क्या? अभी सुबह का समय था हम रुद्रप्रयाग से पहले कुछ खाना नहीं चाहते थे। मनु की चाय पीने की इच्छा थी जिसे आधे घन्टे तक के लिये टाल दिया गया। उखीमठ से आगे चलते ही कुदरत का वो भयंकर रोद्र रुप देखने को मिला जिसके बारे में मैंने और आपने अखबार या समाचार में ही पढ़ा-देखा था। यहाँ पर बीते साल अगस्त माह में बादल फ़टने(एकाअक जोरदार बारिश) से आये पानी को नाले सम्भाल नहीं पाये थे जिससे पानी अनियन्त्रित होकर इधर उधर बहने से उसने पहाड़ को चीरते हुए गाँव के बीचोंबीच से अपना मार्ग बना दिया था। अचानक व रात को आये इस जोरदार अपनी के सैलाब को गाँव वाले समझ नहीं पाये जिससे गाँव के कई घर इस पानी की भेंट भी चढ़ गये थे। बताते है कि इस आपदा के कारण कई जिंदगी हमेशा के लिये मय शरीर इस बाढ़ के साथ बह गयी थी। बाढ़ का कहर सड़क पर कई किमी बाद तक दिखायी दिया था।

कुन्ड़ नामक जगह आने के बाद मनु बोला संदीप भाई चाय पीने के बाद आगे चलेंगे। मुझे चाय नहीं पीनी पड़ती है लेकिन मेरे कारण साथ वाले को क्यों पिलना पड़े इसलिये मनु के चाय पीने तक उस पुल के पास कुछ देर विश्राम किया गया जहाँ से उल्टे हाथ गुप्तकाशी होकर केदारनाथ जाया जाता है सीधे हाथ वाले मार्ग से हम चोपता की ओर से आ ही रहे है। मनु ने चाय पी साथ ही फ़ैन या क्रीम रोल का स्वाद भी लिया, क्रीम रोल देखकर मैंने भी दो क्रीम रोल पेल दिये। जब हम चाय व क्रीम रोल के लिये रुके थे तो एक आदमी हमारे पास आया और बोला आप रुद्रनाथ की ओर जा रहे हो क्या? हाँ क्यो? उसने कहा मेरी बस आगे निकल गयी है अगर आप मुझे आगे तक छोड़ दो तो मुझे बस मिल जायेगी। मनु ने उसको अपनी बाइक पर लाध लिया।

यहाँ हमारी यात्रा केदारगंगा नदी की धारा के साथ ढ्लान में होने जा रही थी। वैसे तो चोपता से ही हम ढ़लान की ओर उतरते आ रहे थे। चाप पान के बाद हमारी बाइके रुद्रप्रयाग के लिये दौड़ पड़ी।  इस सड़क की हालत बीच बीच में कई जगह बुरी हालत में थी नहीं तो ज्यादातर सड़क अच्छी हालत में थी। आगे जाकर मनु की सवारी को उसकी बस मिल गयी जिसे उसकी में बैठाकर हम अगस्तमुनि होते हुए आगे बढ़ते रहे। तिलवाड़ा नाम स्थान पर आते-आते हमें सुबह के 9 बजने जा रहे थे। एक दुकान पर बन रहे गर्मागर्म पराठे देखकर हमने अपनी बाइक उस दुकान के सामने रोक दी। मैंने और मनु ने दो-दो पराठे बनाने का आर्ड़र दिया। कुछ ही देर में पराठे बनकर हमारे सामने थे। दो पराठे खाकर पेट फ़ुल हो गया। मनु को शायद ज्यादा भूख लगी थी या रात में कम खाया था इसलिये मनु ने एक पराठा और लिया।


पराठे खाने के बाद आगे जाने के लिये फ़िर से अपनी बाइक पर सवार होकर रुद्रप्रयाग जाने के लिये सवार हो गये। तिलवाड़ा से एक मार्ग घनस्याली होकर घुत्तू कस्बे के लिये जाता है वैसे तो दिल्ली से सीधी बस घनस्याली के लिये मिल जाती है। आजकल उतराखन्ड़ जाने वाली सभी बसे कश्मीरी गेट बस स्थानक की बजाय आनन्दविहार बस स्थानक से मिलती है। उतराखन्ड़ की ओर जाने वाली बसे 140 नम्बर स्टैन्ड़ से शुरु होती है। घूत्तू ही वह स्थान है जहाँ से पवाली कांठा नामक शानदार बुग्याल के लिये 18 किमी की जोरदार पद यात्रा आरम्भ होती है। मैं उसी पवाली कांठा की बात कर रहा हूँ जिसके बारे में अंग्रेजों से सम्बंधित एक कहावत थी कि अंग्रेज दो चीजों से ड़रते है एक पवाली की चढ़ाई से दूजी जर्मनी की लड़ाई से। खैर रुद्रप्रयाग आने वाला है, चलो पहले इसे देखते है। (क्रमश:)

रुपकुन्ड़ तुंगनाथ की इस यात्रा के सम्पूर्ण लेख के लिंक क्रमवार दिये गये है।
01. दिल्ली से हल्द्धानी होकर अल्मोड़ा तक की यात्रा का विवरण।
02. बैजनाथ व कोट भ्रामरी मन्दिर के दर्शन के बाद वाण रवाना।
03. वाण गाँव से गैरोली पाताल होकर वेदनी बुग्याल तक की यात्रा।
04. वेदनी बुग्याल से पत्थर नाचनी होकर कालू विनायक तक की यात्रा
05. कालू विनायक से रुपकुन्ड़ तक व वापसी वेदनी बुग्याल तक की यात्रा।
06. आली बुग्याल देखते हुए वाण गाँव तक की यात्रा का विवरण।
07. वाण गाँव की सम्पूर्ण (घर, खेत, खलियान आदि) सैर/भ्रमण।
08. वाण से आदि बद्री तक की यात्रा।
09. कर्णप्रयाग व नन्दप्रयाग देखते हुए, गोपेश्वर तक की ओर।
10. गोपेश्वर का जड़ी-बूटी वाला हर्बल गार्ड़न।
11. चोपता से तुंगनाथ मन्दिर के दर्शन
12. तुंगनाथ मन्दिर से ऊपर चन्द्रशिला तक
13. ऊखीमठ मन्दिर
14. रुद्रप्रयाग 
15. लैंसड़ोन छावनी की सुन्दर झील 
16. कोटद्धार का सिद्धबली हनुमान मन्दिर












4 टिप्‍पणियां:

  1. वाह, मजेदार बात बताई
    अंग्रेज डरते थे तो पवाली की चढ़ाई और जर्मनी की लड़ाई से

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  2. शुभम
    आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा कल सोमवार (27-05-2013) के :चर्चा मंच 1257: पर ,अपनी प्रतिक्रिया के लिए पधारें
    सूचनार्थ |

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