पेज

मंगलवार, 21 मई 2013

Gopeshwar harbal garden गोपेश्वर हर्बल गार्ड़न

ROOPKUND-TUNGNATH 09                                                                             SANDEEP PANWAR
अपनी बाइक गोपेश्वर के हर्बल गार्ड़न के ठीक सामने जाकर रुकी। यह हर्बल गार्ड़न सड़क के मुकाबले गहराई में बनाया गया है जिस कारण यह काफ़ी दूर से ही दिखायी देना आरम्भ हो जाता है। हमने अपनी बाइक इसके गेट के ठीक सामने खड़ी कर दी। गेट के भीतर प्रवेश करते ही एक कमरा उल्टे हाथ दिखायी दिया। कमरे में जाकर देखा, लेकिन वहाँ कोई नहीं मिला। हम गार्ड़न के पेड़-पौधे वाले भाग में प्रवेश करने चल दिये। अभी हम कुछ ही कदम चले थे कि गार्ड़न में कार्यरत दो औरते दिखायी दी। हमने उन औरतों से इस गार्ड़न में देखने व घूमने की अपनी इच्छा व्यक्त की, उन्होंने कहा आपका जहाँ तक मन करे, वहाँ तक घूम कर आये। हमने पेड़ पौधे के फ़ोटो लेने के बारे में भी कहा तो जवाब सकारात्मक मिला कि कोई बात नही। आप जैसा चाहे वैसे घूमिये, बस पौधों को कोई नुक्सान मत पहुँचाना। 


हमने अपने बैग अभी तक अपने कंधे पर ही लाधे हुए थे, सबसे पहले बैग उतारकर एक तरफ़ रख दिये। गार्ड़न में एक किनारे से आरम्भ कर सभी पेड़-पौधे देखने शुरु कर दिये। यहाँ सैकड़ों किस्म के विस्मयकारी पौधे बहुसंख्या में पैदा किये जा रहे थे। लगभग सभी पौधों की क्यारी के आगे उस पौधे की प्रजाति बताने वाली पट्टिका लगायी गयी थी। यहाँ पाये जाने वाले अधिकतर पौधे तो जाने-पहचाने मिल रहे थे, लेकिन फ़िर भी बहुत सारे पौधे ऐसे थे जो मैं पहली बार देख रहा था। जो पेड़ और पौधे मैंने पहली बार यहाँ देखे थे उसमें से आँवला व रुद्राक्ष वाले पौधे प्रमुख थे। हम पौधों को देखते रहे और आगे बढ़ते रहे। जैसे-जैसे हम आगे जा रहे थे गार्ड़न उतराई की ओर चला जा रहा था। आगे जाकर एक नदी की धारा के किनारे जाकर इस गार्ड़न की आखिरी सीमा आ गयी।

आखिरी सीमा आने के बाद हमने दूसरे मार्ग से अन्य बचे हुए पेड़-पौधे देखने का निश्चय किया। यहाँ नदी किनारे बैठने के लिये बहुत ही शानदार झोपड़ी भी बनायी गयी थी। कुछ मिनट इस शानदार झोपड़ी को देखने के लिये देने भी जरुरी थे। झोपड़ी देखकर हम पुन: पौधों की दुनिया में खो गये। यहाँ एक पौधे को देखकर मनु बोला ये देखो संदीप भाई चीनी से मीठा पत्ता वाला पौधा। मैंने ऐसे पौधे के बारे में सुना तो था जिसके बारे में कहा जाता है कि उसका पत्ता इतना मीठा है कि पूरा पत्ता एक साथ नहीं खाया जा सकता है यहाँ पहली बार उस मीठे पौधे के बारे में चखने का अनोखा अनुभव हासिल करने का अनमोल मौका हाथ लगा था।

जैसे ही मनु ने उस पौधे की एक पत्ती तोड़कर आधी मुझे खाने को दी तो मैंने कहा क्यों मनु भाई सिर्फ़ आधी पत्ती, मैं तो मीठा खाने का बहुत शौकीन हूँ। पूरी पत्ती झेल सकता हूँ। मनु ने कहा, संदीप भाई पहले आधी पत्ती से तो सुलट लो अगर इसके बाद भी कसर रही तो यह आधी पत्ती भी खा लेना। जैसे ही मैंने उस पत्ती का जरा सा हिस्सा मुँह से लगाया तो एकदम शरीर रोंगटे से भर गया, मुझे ऐसा लगा कि जैसे किसी ने मेरे मुँह में सेकरीन (चीनी से सैकड़ों गुणा मीठा पदार्थ) भर दी हो। मैंने बड़ी मुश्किल से उस पत्ती का चौथाई हिस्सा खाया। इसके बाद मेरा मन मीठा खाने को बिल्कुल भी नहीं हुआ। मनु ने सही कहा था कि पहले आधी पत्ती से तो सुलट लो, आधी पत्ती ही भारी पड़ गयी। पूरी पत्ती तो मेरा बुरा हाल करने के लिये बहुत ज्यादा हो जाती।


मनु और मैंने पार्क में मौजूद कर्मचारी से काफ़ी देर तक वहाँ मिलने वाले सभी पौधों के बारे में चर्चा की। हमें बताया गया कि यहाँ मिलने वाले लगभग सभी पौधे की तैयार पौध बिक्री के लिये उपलब्ध है। हमारी बाइक समाप्त होने में अभी लम्बा सफ़र बाकि था जिस कारण हम वहाँ से पौधे तो साथ नहीं ला सके थे, लेकिन फ़िर भी निशानी के रुप में कुछ पौधों के बीज हमने जरुर ले लिये थे। वे बीज यात्रा में वापिस आने तक पता नहीं चला कि किसके पास है। मेरे पास तो नहीं थे शायद मनु के पास होंगे। अगर उसके पास भी नहीं है तो फ़िर हमने उन बीजों को कही खो दिया है। इस पार्क के बारे में बहुत सी बाते है लेकिन सारी जानकारी के लिये आपको एक बार यहाँ जाकर ही देखना होगा। चलिये हम तो यहाँ से मंड़ल-चोपता होते हुए तुंगनाथ की यात्रा पर चलते है यदि आपके पास हिम्मत है तो इस हर्बल गार्ड़न में कभी ना कभी एक मौका घूमने का छोड़ना नही। हम पार्क से बाहर आने के बाद फ़िर से अपनी बाइक पर चोपता जाने के लिये सवार हो गये। (क्रमश:)

रुपकुन्ड़ तुंगनाथ की इस यात्रा के सम्पूर्ण लेख के लिंक क्रमवार दिये गये है।
01. दिल्ली से हल्द्धानी होकर अल्मोड़ा तक की यात्रा का विवरण।
02. बैजनाथ व कोट भ्रामरी मन्दिर के दर्शन के बाद वाण रवाना।
03. वाण गाँव से गैरोली पाताल होकर वेदनी बुग्याल तक की यात्रा।
04. वेदनी बुग्याल से पत्थर नाचनी होकर कालू विनायक तक की यात्रा
05. कालू विनायक से रुपकुन्ड़ तक व वापसी वेदनी बुग्याल तक की यात्रा।
06. आली बुग्याल देखते हुए वाण गाँव तक की यात्रा का विवरण।
07. वाण गाँव की सम्पूर्ण (घर, खेत, खलियान आदि) सैर/भ्रमण।
08. वाण से आदि बद्री तक की यात्रा।
09. कर्णप्रयाग व नन्दप्रयाग देखते हुए, गोपेश्वर तक की ओर।
10. गोपेश्वर का जड़ी-बूटी वाला हर्बल गार्ड़न।
11. चोपता से तुंगनाथ मन्दिर के दर्शन
12. तुंगनाथ मन्दिर से ऊपर चन्द्रशिला तक
13. ऊखीमठ मन्दिर
14. रुद्रप्रयाग 
15. लैंसड़ोन छावनी की सुन्दर झील 
16. कोटद्धार का सिद्धबली हनुमान मन्दिर





















3 टिप्‍पणियां:

Thank you for giving time to read post comment on Jat Devta Ka Safar.
Your comments are the real source of motivation. If you arer require any further information about any place or this post please,
feel free to contact me by mail/phone or comment.