Hindi Travel Photography Blog, हिन्दी यात्रा वृतांत- घुमक्कडी किस्मत से मिलती है।
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शनिवार, 31 अगस्त 2013
शुक्रवार, 30 अगस्त 2013
अमरकंटक की एक निराली सुबह की झलक A rare morning in Amarkantak
UJJAIN-JABALPUR-AMARKANTAK-PURI-CHILKA-18 SANDEEP PANWAR
हमारी बस पेन्ड़्रा रोड़ से चलते समय कुछ दूरी तक तो शहरी आबादी से होकर चलती रही, जिस कारण बिजली वाले बल्बों के उजाले के कारण अंधेरे का पता ही नहीं लग पाया था कि बस कहाँ-कहाँ से होकर आगे बढ़ती रही। मार्ग में अंधेरा भले ही था लेकिन जब बस बलखाती नागिन की तरह झूमती हुई आगे बढ़ने लगी तो समझ में आने लगा कि बस किसी पहाड़ पर चढ़ने लगी है। जब बस मुड़ती थी तो उसकी आगे वाली हैड़ लाईट की रोशनी में इतना नजर आ रहा था कि जिससे यह पता चलने लगा था कि अब सीधी सड़क नहीं है पहाड़ आरम्भ हो गये है। अगर सीधी सड़क पर इस तरह गाडी बलखाती हुई चलने लगे तो सड़क पर चलने वाले आम लोग सड़क छोड़ कर भाग खड़े होंगे।
गुरुवार, 29 अगस्त 2013
Bhedaghat to Amarkantak भेड़ाघाट से अमरकंटक
UJJAIN-JABALPUR-AMARKANTAK-PURI-CHILKA-17 SANDEEP PANWAR
धुआँधार से भेड़ाघाट आते समय ऑटो वाले ने जिस चौराहे पर
उतारा था वहाँ से धुआँधार की दूरी लगभग 7 किमी
रह जाती है जबलपुर वहाँ से सीधे हाथ 17 किमी
दूर है। उल्टे हाथ वाला मार्ग पीपरिया/पंचमढ़ी के लिये चला जाता है। अब बचा चौथा
मार्ग यह छोटा सा ग्रामीण मार्ग जरुर है लेकिन पक्की काली सड़क सीधे भेड़ाघाट
स्टेशन के लिये चली जाती है। मेरे साथ ऑटो में दो लोग और भी थे जो भेड़ाघाट स्टेशन
पर जाना चाहते थे लेकिन उन्हे भूख लगी थी इसलिये वे वही तिराहे/चौराहे पर कुछ खाने
के लिये रुक गये। मैंने अकेले ही स्टेशन की ओर चलना शुरु कर दिया। यह तो पहले ही
पता लग चुका था कि यहाँ से भेड़ाघाट का स्टेशन लगभग दो किमी दूरी पर है अत: मैं
अपनी धुन में पैदल चलता चला गया। पैदल चलते हुए मुझे एक साईकिल पर सामान बेचने
वाला एक बन्दा दिखायी दिया। उसके पास खाने के लिये मीठे व मूँगफ़ली को मिलाकर
बनायी गयी कुछ स्वादिष्ट वस्तु थी। 10 रु की
मीठी सामग्री लेकर मैं आगे बढ़ चला।
बुधवार, 28 अगस्त 2013
Dhuandhaar boating point with Jain Muni भेड़ाघाट के नौका विहार स्नान घाट के दर्शन
UJJAIN-JABALPUR-AMARKANTAK-PURI-CHILKA-16 SANDEEP PANWAR
भेड़ाघाट के तहस-नहस किये गये चौसट योगिनी
मूर्तियाँ वाले मन्दिर को देखने के बाद वहाँ के घाट देखने के लिये चल दिया। मुख्य
सड़क पर ढ़लान की दिशा में आगे बढ़ते समय सड़क पर ठीक सामने एक मन्दिर जैसा भवन दिखायी
दे रहा था। मैंने सोचा कोई मन्दिर-वन्दिर होगा। लेकिन उसके पास जाकर मालूम हुआ कि
यह कोई मन्दिर नहीं, बल्कि किसी की याद में बनायी जाने वाली कोई छतरी है। इसके पास
ही यहाँ का एकमात्र सरकारी गेस्ट हाऊस भी है। यदि वहाँ गेस्ट हाऊस का बोर्ड़ ना लगा
हो तो कोई यह अंदाजा भी नहीं लगा सकता है कि यहाँ कोई गेस्ट हाऊस भी हो सकता है। धुआँधार
विश्राम गृह में मुझे कोई काम नहीं था इसलिये मैं सीधा नौका विहार वाले मार्ग पर
चलता रहा।
शनिवार, 24 अगस्त 2013
Chaunsath 64 yogini temple चौसट योगिनी मन्दिर
UJJAIN-JABALPUR-AMARKANTAK-PURI-CHILKA-15 SANDEEP PANWAR
भेड़ाघाट
के रेस्ट हाऊस की ओर चलते हुए सडक पर 64 योगिनी नामक मन्दिर का बोर्ड दिखायी देता है।
सड़क से देखने पर पहली नजर में मन्दिर तो मन्दिर मन्दिर का कोई अंश भी दिखायी नहीं
देता। मन्दिर ऊपर कही पहाड़ी पर बना होगा। जहाँ तक पहुँचाने के लिये पत्थर की बनी
हुई पक्की सीढियाँ दिखायी दे रही थी। मैंने उन सीढियों से ऊपर पहाड़ी पर चढ़ना
शुरु कर दिया। जैसे-जैसे ऊपर की ओर जाता जा रहा था शरीर कहने लगता कि रुक जा जरा
साँस तो ले ले, ऐसी क्या जल्दी है जो दे दना-दना भागे जा रहा है। साँस
फ़ूलने की समस्या तो चढ़ाई पर आती ही है अब चढ़ाई चाहे श्रीखन्ड़ की हो या मणिमहेश
की या 64 योगिनी मन्दिर की ही क्यों ना रही हो। मुझे साँस सामान्य
करने के लिये बीच में एक बार रुकना पड़ा।
गुरुवार, 22 अगस्त 2013
Dhuandhaar water fall to 64 Yogini Temple धुआँधार प्रपात से चौसट योगिनी मन्दिर तक
UJJAIN-JABALPUR-AMARKANTAK-PURI-CHILKA-14 SANDEEP PANWAR
धुआँधार जलप्रपात देखकर व नहाने के
उपराँत मैंने नर्मदा के साथ-साथ नदी के जल की धारा के विपरीत दिशा में चलने का
फ़ैसला कर लिया। सुबह से यहाँ बैठे हुए कई घन्टे बीत चुके थे। जैसे-जैसे मैं आगे
बढ़ता जा रहा था नर्मदा भी उछल कूद मचाती हुई मेरी ओर चली आ रही थी। मैं नर्मदा के
पानी से दूरी बनाकर चल रहा था अन्यथा नर्मदा मुझे पकड़ लेती। यहाँ नदी की धारा का
बहाव काफ़ी तेज है जिस कारण पानी काफ़ी तेजी से नीचे की ओर भागता चला जाता है। पानी
तेजी से लुढ़कने के कारण नदी में पानी काफ़ी धमालचौकड़ी मचाता हुआ उछल-उछल कर आगे
चलता रहता है। पानी उछलने का मुख्य कारण तेज ढ़लान व नदी के बीच में बड़े पत्थर का
होना है। थोड़ा आगे जाने पर एक मैदान आता है जहाँ पर कुछ लोग नहा धोकर अपने कपड़े
सुखाने में लगे पड़े थे। यही नदी की धारा के साथ किनारे पर पड़े हुए पत्थरों में
बने डिजाइन को देखकर मुझे कुछ मिनट वही ठहरना पड़ा,
क्योंकि नदी
किनारे पड़े पत्थरों पर वैसे ही आकृति बनी हुई थी जैसी आकृति समुन्द्र किनारे के
खारे पानी की मार के कारण वहाँ की चट्टानों की हो जाती है।
बुधवार, 21 अगस्त 2013
Bhedaghat Dhuandhaar water fall भेड़ाघाट का धुआँधार जलप्रपात
UJJAIN-JABALPUR-AMARKANTAK-PURI-CHILKA-13 SANDEEP PANWAR
जब मैं धुआँधार जल प्रपात के ठीक सामने पहुँचा
तो वहाँ का नजारा देख मेरे आश्चर्य का ठिकाना ही नहीं रहा। मेरी आँखों के सामने वह
झरना था जिसके बारे में मैं अभी तक सुनता आया था अब मुझे इसे देखने से कोई नहीं
रोक सकता था। इस प्रपात का नाम धुआँधार क्यों पड़ा? इसे देख कर यह अंदाजा लगाना
आसान है कि पानी जिस भयंकर मात्रा में ऊँचाई से गिरता है उस हालत में यहाँ पर पानी
के दवाब का असर ही है जो पानी नीचे गिरने पर धुआँ-धुआँ होने लगता है। पानी की धार
ऊँचाई से गिरने पर धुआँ का रुप धारण कर लेती है इसलिये इसे धुआँधार कहते है। दूर
से देखने पर ऐसा लगता था जैसे कि नदी किनारे किसी ने आग लगाई हो और उस आग से धुआ
उठ रहा हो। जहाँ खड़े होकर मैंने फ़ोटो लिये थे वहाँ ज्यादा देर खड़े रहना मुश्किल हो
रहा था क्योंकि धुएँ के रुप में उड़ता पानी मुझे भिगोने के लिये मेरी ओर उड़कर चला आता था।
मंगलवार, 20 अगस्त 2013
Jabalpur to Bhedagath जबलपुर से भेड़ाघाट धुआँधार जलप्रपात तक
UJJAIN-JABALPUR-AMARKANTAK-PURI-CHILKA-12 SANDEEP PANWAR
ट्रेन में रात सोते हुए कब बीती? पता ही नहीं
लग पाया! सुबह जब आँख खुली और खिड़की से बाहर झाँक कर देखना चाहा कि कौन सा स्टेशन
आने वाला है? घड़ी के हिसाब से तो अपना स्टेशन अभी नही आया था। लेकिन जैसे ही तेज
गति से भागती ट्रेन से भेड़ाघाट नामक स्टेशन पीछे छूटता दिखायी दिया तो आँखे
चौकन्नी हो गयी। मैंने साथ बैठी सवारियों से पूछा कि क्या भेड़ाघाट स्टेशन से धुआँधार
झरने तक पहुँचने में आसानी है या यह भेड़ाघाट कोई और स्टॆशन का नाम है? मेरे पास
बैठे एक महोदय ने बताया कि यही भेड़ाघाट का मुख्य स्टेशन है लेकिन यहाँ सिर्फ़
सवारी/लोकल रेल ही रुकती है लम्बी दूरी वाली रेलगाडियाँ यहाँ नहीं रुकती है। लेकिन
अगर किसी को भेड़ाघाट जाना हो तो वो क्या करेगा? उसके लिये उसे मदन-महल नामक स्टेशन
पर उतरना होगा। मदन महल क्यो? जबलपुर क्यों नहीं? मैंने उनसे सवाल किया। उन्होंने
कहा कि जबलपुर से कई किमी पहले मुख्य स्टेशन मदन महल है जहाँ लम्बी दूरी की लगभग
सभी रेल गाडियाँ रुकती है। यहाँ से भेड़ाघाट जाना नजदीक पड़ता है जबकि जबलपुर से
भेड़ाघाट जाने वाला सड़क मार्ग भी मदन महल से होकर ही गुजरता है।
सोमवार, 19 अगस्त 2013
Ujjain leaving after meeting with suresh chiplunkar सुरेश चिपचूलनकर जी से मुलाकात व जबलपुर प्रस्थान
UJJAIN-JABALPUR-AMARKANTAK-PURI-CHILKA-11 SANDEEP PANWAR
उज्जैन के सभी दर्शनीय स्थलों को दिखाने के बाद हमारा गाड़ी वाला हमें लेकर उज्जैन रेलवे स्टेशन की ओर चल दिया। संदीपनी आश्रम से वापसी में जिस मार्ग का प्रयोग हमने किया था वहाँ से इन्दौर मात्र 60 किमी व देवास तो केवल 39 किमी दूर था। अपने साथी कल ही तो इन्दौर से उज्जैन आये थे। कुछ देर में ही हमारा चालक हमें लेकर रेलवे स्टेशन पहुँच गया। स्टेशन से पहले ही मैंने अपने गाड़ी चालक से सुरेश चिपलूनकर जी की कालोनी के बारे में पता किया था उसने कहा था कि आप यहाँ से उस कालोनी में जाने वाली दूसरी सवारी पकड़ लेना। यहाँ से स्टेशन कितना दूर है? जब चालक ने कहा कि मुश्किल से 300 मीटर, अरे फ़िर तो पहले स्टेशन छोड़ दो क्योंकि सुबह से कुछ खाया नहीं था। अत: पहले स्टेशन के आसपास मिलने वाले किसी भोजनालय से भोजन करते है उसके बाद आगे देखते है।
शनिवार, 17 अगस्त 2013
Sandeepnai Aashram, The school of Lord Krishna, Ujjain श्रीकृष्ण-बलराम-सुदामा की शिक्षा स्थली संदीपनी आश्रम, उज्जैन
UJJAIN-JABALPUR-AMARKANTAK-PURI-CHILKA-10 SANDEEP PANWAR
उज्जैन का अन्तिम व महत्वपूर्ण पर्य़टन स्थल संजीवनी आश्रम देखने के लिये हम मंगलनाथ मन्दिर से सीधी सड़क पर चलते हुए कुछ ही देर में संजीवनी आश्रम पहुँच गये। आज से कई हजार लगभग 5000 साल पहले यहां इसी आश्रम में भगवान श्रीकृष्ण व उनके भाई बलराम और उनके गरीब दोस्त सुदामा ने यहाँ शिक्षा प्राप्त की थी। आज से कुछ सौ वर्ष पहले तक गुरुकुल पद्धति से पढ़ाई होती थी लेकिन अंग्रेजों के भारत आने के बाद कान्वेन्ट ने गुरुकुल की जगह हथिया ली। आजकल गुरुकुल मुश्किल से ही दिखायी देते है जबकि निजी स्कूल हर गली मोहल्ले में दिखाती दे जाता है। गुरुल में रहते समय छात्र को अपने जीवन यापन के लिये भोजन भी गांव से माँग कर लाना होता था। जबकि स्कूलों में जमकर लूट मची हुई है। चलिये स्कूलों के चक्कर में ना पड़ते हुए संदीपनी आश्रम देखने चलते है।
शुक्रवार, 16 अगस्त 2013
Kal Bhairav Temple शराब पीने वाले काल भैरव मन्दिर- उज्जैन
UJJAIN-JABALPUR-AMARKANTAK-PURI-CHILKA-09 SANDEEP PANWAR
दारु पीने वाली मूर्ति के बारे में सुनते ही मुझे दिल्ली के पुराने किले के साथ लगा हुआ भैरो मन्दिर याद आ गया। दिल्ली के भैरो मन्दिर में शराब चढ़ाई जाती है। उज्जैन की सेन्ट्रल/केन्द्रीय जेल के सामने से होते हुए हम लोग श्रीकाल भैरव मन्दिर जा पहुँचे। इस मन्दिर की विशेष महिमा बतायी गयी है कि इस मन्दिर की मूर्ति को जितना जी करे उतनी शराब पिला दो, मूर्ति भी पक्की पियक्कड़ ठहरी जो बोतल मुँह से लगाते ही बोतल खाली होनी शुरु हो जाती है। पहली बार तो मुझे अपने वाहन चालक की बातों पर विश्वास ही नहीं हुआ था लेकिन मन्दिर के बाहर बिक्री के लिये उपलब्ध शराब देखकर मेरा माथा ठनका कि कुछ ना कुछ गड़बड़ तो जरुर है।
गुरुवार, 15 अगस्त 2013
Gadh Kalika Temple-Ujjain गढ़ कालिका मन्दिर-उज्जैन
UJJAIN-JABALPUR-AMARKANTAK-PURI-CHILKA-08 SANDEEP PANWAR
हमारी गाड़ी आगे बढ़ते हुए जिस स्थान पर पहुँची उसे गढ़कालिका मन्दिर कहा जाता है। जिस समय हम यहाँ पहुँचे उस समय दोपहर की आरती चल रही थी। आरती में कई आरती बोली जाती है जिस कारण मैं आरती समाप्त होने के समय ही आरती के पास जाता हूँ। मैंने मन्दिर के चारों ओर घूम-घूम कर मन्दिर को अच्छी तरह देख ड़ाला था। यह मन्दिर भी मराठा शैली का बना हुआ मिला। मराठों के शासन काल में ही इस मन्दिर का निर्माण किया गया होगा। इस मन्दिर को महाशिवरात्रि के कारण फ़ूलों से इतना अच्छी तरह सजाया गया था कि मैं उस सजावट को देखता ही रह गया था। मन्दिर की आरती समाप्त होने के बाद हमारे साथियों ने वहाँ से आगे चलने का इरादा किया। एक भक्त यहाँ भी मन्दिर में ही कही अटका हुआ था। उसे लेने के लिये फ़िर से एक बन्दा भेजा गया।
बुधवार, 14 अगस्त 2013
Raja Bharat Hari Cave-Ujjain राजा भृतहरि गुफ़ा-उज्जैन
UJJAIN-JABALPUR-AMARKANTAK-PURI-CHILKA-07 SANDEEP PANWAR
उज्जैन में महाकाल, विक्रमादित्य टेकरी, हरसिद्धी शक्तिपीठ व चार धाम मन्दिर देखने के बाद हम एक वैन नुमा वाहन में सवार हो गये। इस वाहन ने हमें रेलवे लाईन पर बने हुए पुल के नीचे से निकालते हुए आगे की यात्रा जारी रखी। रेलवे लाईन का पुल देखकर दिल्ली का लोहे वाला पुराना पुल याद आ गया जो लाल किले के साथ ही बना हुआ है। इस पुल से आगे निकलते ही क्षिप्रा नदी पर बना हुआ सड़क पुल भी आ गया। सड़क पुल भले ही आया हो लेकिन हमें उस पुल के ऊपर नहीं जाना पड़ा। हमारी गाड़ी सड़क जिस कच्ची मार्ग से होकर अल रही थी उसके सामने सिर्फ़ रपटे जैसे बंध से होकर निकलने में ही क्षिप्रा नदी पार हो गयी। जिस प्रकार उत्तर भारत में गंगा को पवित्र नदी माना जाता है उसी प्रकार मध्यप्रदेश में भी क्षिप्रा व नर्मदा को वैसी ही मान्यता प्राप्त है।
मंगलवार, 13 अगस्त 2013
4 Chaar Dhaam mandir-Ujjain उज्जैन का चार धाम झाकियों वाला मन्दिर
UJJAIN-JABALPUR-AMARKANTAK-PURI-CHILKA-06 SANDEEP PANWAR
चार धाम मन्दिर देखने के लिये सबसे पहले मन्दिर के बाहर बनी दुकान पर जूते-चप्पल उतार कर आगे बढ़े। हम इस मन्दिर को देखते भी नहीं यदि इस मन्दिर के बाहर लगे बोर्ड़ पर यह लिखा ना होता कि विधुत चलित झाँकियाँ का दर्शन करे। चार धाम मन्दिर के प्रांगण में घुसते ही सीधे हाथ पर हरा-भरा छोटा सा मैदान है। अगर हमें कही और ना जाना होता तो इस पार्क में बैठा जा सकता था। मन्दिर देखने के लिये आगे बढ़ चले। मुख्य मन्दिर तक पहुँचे ही थे कि वहाँ पर लगे एक बोर्ड़ से पता लगा कि यहाँ कि झाकियाँ देखने के लिये थोड़ा सा खर्च करना पडेगा। एक बार तो सोचा, छोड़ो झाकियाँ-वाकियाँ। इन मन्दिरों वालों ने कमाई का जरिया बनाया हुआ है। लेकिन फ़िर सोचा चलो 5 रुपये की ही तो बात है। अगर कुछ अच्छा मिला तो 5 रुपये वसूल भी हो जायेंगे।
सोमवार, 12 अगस्त 2013
Harsiddhi Temple सम्राट विक्रमादित्य की आराध्य देवी मन्दिर
UJJAIN-JABALPUR-AMARKANTAK-PURI-CHILKA-05 SANDEEP PANWAR
सम्राट वीर विक्रमादित्य के नवरत्न दरबार के एकदम नजदीक ही सीधे हाथ पर हरसिद्धी देवी का मन्दिर है। इस देवी मन्दिर को राजा विक्रम की आराध्य कुल देवी भी कहा जाता है। यह मन्दिर देखने में भी काफ़ी शानदार है लेकिन पहली नजर में यह मन्दिर बहुत पुराना नहीं लगता है हो सकता है कि इस मन्दिर का पुननिर्माण कराया गया हो। मन्दिर के बाहर लगे एक शिला पट से पता चलता है कि यह मन्दिर सन 1447 में मराठों ने बनवाया था। मन्दिर के अन्दर बने दीप स्तम्भ भी मराठा शैली के बारे में ही इंगित कर रहे है। तांत्रिक परम्परा में इस हरसिद्धी मन्दिर का विशेष महत्व बताया गया है। हो सकता है कि इसी मन्दिर के योगी ने राजा विक्रम को अपने तंत्रजाल में फ़ँसाकर भूत बेताल को पकड़ लाने का आदेश दिया हो। खैर इतिहास कुछ भी रहा हो, आप यहाँ की यात्रा फ़ोटो के जरिये करते रहिये।
Vikram and Betal (ghost)-Vikram Tekri विक्रम और बेताल भूत वाले राजा विक्रम का दरबार स्थल-विक्रम टेकरी
UJJAIN-JABALPUR-AMARKANTAK-PURI-CHILKA-04 SANDEEP PANWAR
राजा विक्रम का दरबार स्थल विक्रम टेकरी पहुँचने के बाद कुछ देर आराम किया। इसके बाद वहाँ काफ़ी देर तक अच्छी तरह राजा विक्रम का नवरत्न दरबार स्थल देखते रहे। यहाँ लिखे गये बोर्ड़ से यह जाना कि राजा विक्रम भारत के महान राजा क्यों माने गये है। यह वही राजा जिनके नाम पर भारत का अपना तिथि कैलेन्ड़र चलाया गया था। विक्रम संवत के नाम से जाने जाने वाला कैलेन्ड़र दुनिया का सबसे पहला कैलेन्ड़र है। आज वर्तमान दौर में हम जिस अंग्रेजी कैलेन्ड़र के बारे में जानते है उसका आगमन तो इन राजा के कैलेन्ड़र के बहुत सालों बाद हुआ था। इसी से अंदाजा लगाया जा सकता है आज विक्रम संवत का 2070 वर्ष चल रहा है। जबकि अंग्रेजी कैलेन्ड़र में अभी सन 2013 ही चल रहा है।
शनिवार, 10 अगस्त 2013
Omkareshwar Jyotirlinga Temple ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग मन्दिर
UJJAIN-JABALPUR-AMARKANTAK-PURI-CHILKA-03 SANDEEP PANWAR
आज के लेख में ओमकारेश्वर ज्योतिर्लिंग की यात्रा करायी जा रही है वैसे मैं इस जगह कई साल पहले जा चुका हूँ लेकिन अपने दोस्त यहाँ पहली बार गये थे। जैसा कि आपको पहले लेख में पता लग ही चुका है कि प्रेम सिंह अपने साथियों के साथ महाशिवरात्रि से दो दिन पहले ही दिल्ली से इन्दौर के बीच चलने वाली इन्टर सिटी ट्रेन से यहाँ पहुँच गये थे। इन्दौर तक उनकी रेल यात्रा मस्त रही। दोपहर के एक बजे उनकी ट्रेन इन्दौर पहुँच गयी थी। यहाँ स्टेशन से बाहर निकलते ही उन्होंने सबसे पहले पेट पूजा करने के लिये केले व समौसा का भोग लगाया, उसके बाद स्टेशन के बाहर से ही ओमकारेश्वर जाने वाली मिनी बस में बैठकर ओमकारेश्वर पहुँच गये। मैंने उन्हे कहा था कि अगर तुम्हे इन्दौर से बड़वाह पातालपानी होकर ओमकारेश्वर रोड़ की ओर अकोला तक जाने वाली मीटर गेज वाली छोटी ट्रेन मिल जाती है तो यह सुनहरा मौका मत छोड़ना, लेकिन अफ़सोस उन्हे वह रेल नहीं मिल पायी।
शुक्रवार, 9 अगस्त 2013
Mahakaal Jyotiringa Temple-Ujjain महाकालेश्वर-महाकाल मन्दिर उज्जैन
UJJAIN-JABALPUR-AMARKANTAK-PURI-CHILKA-02 SANDEEP PANWAR
मन्दिर के आसपास बहुत ज्यादा भीड़ थी, उसमें उन्हे कहाँ तलाश
करता? सोचा उन्हे फ़ोन ही लगा दूँ कि मैं मन्दिर के सामने वाली गली में ही हूँ।
प्रेम सिंह ने फ़ोन पर कहा कि हम भी इसी गली में बनी दुकानों से सामान खरीद रहे है।
मन्दिर की तरफ़ आते समय उल्टे हाथ वाली लाईन में हम मिल जायेंगे। मैं उन्हे देखता
हुआ मन्दिर की ओर बढ़ता गया। मन्दिर से 100 मीटर पहले ही प्रेम सिंह एन्ड़ पार्टी वहाँ दिखायी दी। उनके माथे पर लगे लम्बे
तिलक को देखकर मैं समझ गया कि यह सभी मन्दिर होकर आ चुके है। लेकिन फ़िर भी मैंने
कहा कि मन्दिर में दर्शन करके आये कि नहीं। उन्होंने कहा कि हमने तो रात को भी
आराम से दर्शन किये थे। सुबह भी पहले ही लाइन में लग गये थे जिससे जल्दी दर्शन हो
गये।
गुरुवार, 8 अगस्त 2013
Train Yatra-Delhi To Ujjain दिल्ली से उज्जैन तक ट्रेन यात्रा
UJJAIN-JABALPUR-AMARKANTAK-PURI-CHILKA-01 SANDEEP PANWAR
आज के लेख से जिस रेल यात्रा की शुरुआत की जा रही है पहले इसी
के बारे में कुछ बाते हो जाये। जैसा कि आपको पता है कि मैं हर साल फ़ागुन महीने में
आने वाली महाशिवरात्रि में किसी एक ज्योतिर्लिंग के दर्शन करने जाता हूँ। पूरे
भारत में कुल 12 ज्योतिर्लिग
स्थित है लेकिन कई पर वाद-विवाद भी है कि नहीं यह नहीं, हमारे वाला असली
ज्योतिर्लिंग है। विवाद का भाग बनने वाले कई ज्योतिर्लिंग है जैसे महाराष्ट्र का
औंढ़ानाग नाथ=गुजरात का नागेश्वर, बिहार अब झारखन्ड़ का बाबा वैधनाथ धाम=हिमाचल का
बैजनाथ धाम=उतराखन्ड़ का बैजनाथ मन्दिर प्रमुख है। इन सभी मन्दिरों के पन्ड़े/पुजारी
अपनी कमाई बढ़ाने के चक्कर में अपने वाले मन्दिर को असली ज्योतिर्लिंग बताते रहे
है। जबकि भगवान तो हर जगह मौजूद है वो अलग बात है आजकल भगवान लम्बी तान के कहीं सो
रहा है। पिछले 800 साल
का इतिहास तो यही कहता है कि भगवान शायद कही नहीं है। यह दुनिया जिसकी लाठी उसकी
भैस के सिद्धांत पर चल रही है। अरे शुरुआत की थी रेल यात्रा के नाम पर लेकिन बीच
में भगवान का प्रवचन कहाँ से टाँग अड़ा कर बैठ गया?
मंगलवार, 6 अगस्त 2013
Bike Trip- Rohanda to Delhi रोहान्ड़ा से दिल्ली तक का यात्रा वर्णन
SACH PASS, PANGI VALLEY-14 SANDEEP PANWAR
अब रोहान्ड़ा का स्कूल सामने दिखायी दे रहा था। इससे पहले कि हम इस स्कूल तक
पहुँच पाते, स्कूल के कुछ बच्चे स्कूल के पास ही खेलने में लगे पड़े थे। कुछ बच्चे
कन्चे का खेल खेल रहे थे तो कुछ बच्चे पहाड़ की झाडियों में शहतूत जैसा छोटा सा
दिखने वाला फ़ल चुनकर खाने में लगे पड़े थे। हम भी उन बच्चों के साथ उस झाड़ी में उस
फ़ल को तोड़कर खाने में लग गये। कुछ फ़ल खाने के बाद हमने नीचे उतरना शुरु किया।
स्कूल के आगे से होते हुए अपने गेस्ट हाऊस जा पहुँचे। महेश धूप में बैठा अखबार पढ़
रहा था। हमने जाते ही बोला चलो बैग उठाओ, बाइक पर सवार हो जाओ। महेश बोला आपने 10 बजे चलने की बोला था अभी तो 09:15 मिनट ही हुए है। अच्छा किया ना आना-जाना कुल
मिलाकर 4 घन्टे
का समय ही तो लगाया है।
सोमवार, 5 अगस्त 2013
Trekking to Kamru Naag Temple and lake कमरुनाग मन्दिर व झील की ट्रैकिंग
SACH PASS, PANGI VALLEY-13 SANDEEP PANWAR
कमरुनाग मन्दिर की समुन्द्र तल से कुल ऊँचाई 3334 मीटर बतायी जाती है जबकि मैंने गुगल में तलाश कर देखा तो
यह 3200 मीटर ही दिखायी देती है। कमरुनाग का आधार रोहान्ड़ा
कस्बा/गाँव समुन्द्र तल से 2100 मीटर की ऊँचाई पर बसा हुआ है
इसका मतलब यह हुआ कि हमें 6 किमी की दूरी में 1200 मीटर ही चढना था। अगर देखा जाये तो यह चढ़ाई बहुत ज्यादा भारी नहीं पड़ती है
लेकिन रात को सोते समय सभी यह कहकर सोये थे कि सुबह जल्दी चलेंगे, देवेन्द्र रावत
जी तो रात को 2 बजे ही कमरुनाग के लिये निकलने की बात कर रहे
थे। मैंने उन्हे कहा रावत जी हिमाचल में भी अपने उतराखन्ड़ की तरह भरपूर संख्या में
भालू पाये जाते है रात को 2 बजे निकलने का मतलब होगा कि
जंगली जानवर से सीधा मुकाबला करना।
KAMRU NAAG TEMPLE |
रविवार, 4 अगस्त 2013
Rohanda- beautiful place रोहान्ड़ा- सपरिवार समय बिताने लायक सुन्दरतम स्थल
SACH PASS, PANGI VALLEY-12 SANDEEP PANWAR
हमने रोहान्ड़ा में वन विभाग के विश्राम भवन में
अपने लिये एक कमरा बुक कर लिया। रेस्ट हाऊस वालों ने हमारी बाइक वहाँ अन्दर ही खड़ी
करवा दी। मैंने मलिक को रेस्ट हाऊस के बाहर ही पल्सर वालों का इन्तजार करने को कहा
कि कही लेह वाली यात्रा की तरह वे यहाँ से आगे ना निकल जाये। लेकिन जब 10 मिनट तक भी पल्सर वाले वापिस नहीं आये तो उन्हे
फ़ोन लगाया गया उनका जवाब था कि बस अभी तक उनकी पकड़ में नहीं आ पायी है। बस व बाइक
की गति पहाड़ पर चढ़ते समय लगभग एक समान होती है। ऐसा कई बार देखा है कि किसी पहाड़ी
यात्रा में कम सवारी की बस या खाली ट्रक यदि हमारे साथ-साथ या आगे पीछे चल रहा हो तो
वह बड़ी गाड़ी भी बाइक के साथ ही चलती रहती है।
ROHANDA GUEST HOUSE AND OUR BIKE |
शनिवार, 3 अगस्त 2013
Taru-A Trekking to Himachal Village हिमाचल के टरु गाँव की पद यात्रा में जौंक का आतंक व एक बिछुड़े परिवार को मिलवाना
SACH PASS, PANGI VALLEY-11 SANDEEP PANWAR
आज के लेख में आगे की यात्रा का विवरण शुरु
किया जाये, उससे पहले एक छोटी सी जानकारी दे रहा हूँ कि आज वाला यह लेख मेरे ब्लॉग
का 300 वाँ लेख है। देखते है यह संख्या कहाँ तक जायेगी! अब इस
यात्रा के बारे में- यह तो आपको पिछले लेख में ही पता लग चुका है कि हमारी दोनों
बाइक हिमाचल के मन्ड़ी शहर में आकर ठीक हो गयी। हमारी बाइक मनाली या कैलोंग में
ठीक हो सकती थी लेकिन हमारा मन भी वहाँ कैलांग
में बाइक सही कराने को नही मान रहा था। मन्ड़ी में बाइक ठीक होते ही हमने सुन्दर
नगर की ओर अपनी बाइक दौड़ा दी। सुन्दर नगर से रोहान्ड़ा के लिये सीधी सड़क जाती
है। वैसे रोहान्ड़ा जाने के लिये मन्ड़ी से भी कई अन्य सड़क रोहान्ड़ा के लिये
निकलती है लेकिन वह सड़क मेरी देखी हुई नहीं थी इसलिये मैंने पहले से देखी हुई
सड़क से ही रोहान्ड़ा जाने का इरादा बना लिया था। सुन्दर नगर से रोहान्ड़ा जाने
वाली सड़क पर लगातार चढ़ाई है जबकि मन्ड़ी से जाने वाली सड़क से रोहान्ड़ा जाने में
चढ़ाई बहुत कम आती है।
शुक्रवार, 2 अगस्त 2013
Rohtang-Manali-Kullu-Mandi रोहताँग-मनाली-कुल्लू व मन्डी (बाइक यात्रा फ़िर आरम्भ हुई)
SACH PASS, PANGI VALLEY-10 SANDEEP PANWAR
रोहतांग में बारिश का मौसम देखकर वहाँ रुकने का मन नही किया
क्योंकि वहाँ चारों ओर घना कोहरा छाया हुआ था। फ़ोटो लेने लायक हल्का साफ़ मौसम हुआ
तो मैंने झट से क्लिक कर दिया। रोहतांग में पब्लिक ना दिखे ऐसा कैसे हो सकता था?
यहाँ पर सैकडों की संख्या में पर्यटक बर्फ़ में मस्ती करते हुए दिखायी दे रहे थे।
हमारा यहाँ मस्ती करने का मूड़ बिल्कुल नहीं था हमें जल्द से जल्द मनाली पहुँचना
था। मनाली जाकर सबसे पहले अपनी बाइक सही करानी थी। रोहतांग से मनाली की ओर चलते ही
तेज ढ़लान आरम्भ होने लग जाती है इससे गाड़ी की गति को सीमित रखना पड़ता था। यदि ढ़लान
पर गति सीमित नहीं रखेंगे तो इस दुनिया से जल्द ही पत्ता साफ़ हो सकता है। यहाँ
बीच-बीच में खराब सड़क के टुकड़े भी आते रहे।
गुरुवार, 1 अगस्त 2013
Udaipur-Tandi-Koksar-Rohtaang उदयपुर-टान्डी-कोकसर-रोहताँग
SACH PASS, PANGI VALLEY-09 SANDEEP PANWAR
उदयपुर में हम लोग रात के 8 बजे पहुँच गये थे इसलिये यहाँ रुकते ही सबसे पहले बाइक की
दुकान की तलाश की गयी। यहाँ पर बाइक की स्पेशल दुकान तो नहीं मिल पायी। ल्रेकिन
एक-दो दुकान ऐसी थी जो बाइक ठीक कर सकते थे। लेकिन किलाड़ से उदयपुर तक की
महा-बेकारी कच्ची-पथरीली सड़क में हमारे ट्रक ने पल्सर बाइक का हैंडिल तोड़ दिया था।
यहाँ की दुकान में बाइक की ऐसेसरीज नहीं मिलती थी। इसलिये हमने मनाली जाना ही
बेहतर माना। जब यहाँ बाइक की कोई दुकान ही नही तो यहाँ उतरकर क्यों समय खराब किया
जाये? अगर सुबह यहाँ दुकान खुलने का इन्तजार भी किया जाता तो वह कैलोंग से बाइक के
हैंडिल लेने जाता। वहाँ से आने-जाने व मरम्मत कराने में कल का पूरा दिन लगना निश्चित था। इस
कारण भी हमने मनाली जाना ही बेहतर समझा। कम से कम कल का दिन तो बच जाता। रात को सोने में वैसे भी देर हो ही गयी थी उसपर लफ़ड़ा यह कि सुबह
जल्दी निकलना भी था।