बाइक पर रोहान्ड़ा की ओर चढ़ते समय जैसे-जैसे
ऊँचाई बढ़ती जा रही थी, ठीक वैसे ही मार्ग के किनारे खाई में सीढ़ीदार खेत दिखायी
देने लगते है। इन खेतों को देखकर बार-बार रुकने का मन करता था। इन खेतों को देखने
के लिये हमने कई बार बाइक रोकी। चढ़ाई लगातार जारी थी लेकिन सड़क भी अच्छी बनी हुई
है ज्यादा तीखे मोड़ भी नहीं है जिससे हमारी बाइके 35-40 की
गति से ऊपर की ओर भागी जा रही थी। इस मार्ग पर जयदेवी नामक एक गाँव आता है जहाँ पर
एक प्राचीन मन्दिर के बारे में बताया गया था हमने मन्दिर में जाने का कष्ट नहीं
उठाया। हमें कटेरु से आगे जाना था जब कटेरु आ गया तो हमने टरु नामक गाँव के बारे
में पता किया यहाँ हमें बताया गया था कि आगे एक मोड़ पर एक ढ़ाबा/होटल जैसा दिखने
वाला घर मिलेगा। उसके साथ ही टरु जाने वाली पक्की पगड़न्ड़ी नीचे उतरती हुई दिखायी
दे जायेगी। हम उस दुकान नुमा ढ़ाबे को देखते हुए आगे बढ़ते रहे।
जैसे ही यह दुकान दिखाई दी, हमने
तुरन्त अपनी बाइक इसकी छत पर ले जाकर रोक दी। जी हाँ इसका आधा हिस्सा सड़क के नीचे
बना हुआ है सड़क से ऊपर सिर्फ़ एक कमरे जैसी जगह है जहाँ पर दुकान बनी हुई है।
हमने इसी छत पर अपनी बाइक खड़ी की थी। बाइक स्टैन्ड़ पर लगा कर नीचे टरु गाँव की
ट्रैकिंग आरम्भ करने चल दिये। यहाँ हमने एक लड़के से पता भी किया था कि टरु कितना
दूर है? उसने कहा कि दो किमी से ज्यादा दूर नहीं है। चलते ही पक्की पगड़न्ड़ी मिली
जिसे देखकर हम समझे कि टरु जाना ज्यादा मुश्किल भरा नहीं रहेगा। पगड़न्ड़ी की
चौड़ाई मुश्किल से दो फ़ुट ही रही होगी। तेज ढ़लान पर पक्की पगड़न्ड़ी से फ़िसलने
का खतरा हो जाता है ऐसा मैंने चकराता के टाइगर फ़ॉल में जाते समय देखा है। इसलिये
हम सावधानी से नीचे उतरने लगे।
अभी कुछ दूर ही गये थे कि सीधे हाथ सेब के पेड़
दिखायी दे गये। विशेष मलिक को सेब तोड़ने से कौन रोक सकता था? मलिक 6-7 apple लेकर ही वापिस आया। मलिक ने जो सेब तोड़े थे उसे खाते हुए
हम नीचे उतरते जा रहे थे। हमारे बैग व हैलमेट भी साथ ही थे। यहाँ यह ध्यान नहीं
रहा कि अपने बैग व हैलमेट उस दुकान पर ही छोड़ आते। जब आधा किमी नीचे उतर आये तब
बैग व हैलमेट पर ध्यान गया था। मुझे व मलिक को सेब खाते देख दोनों पहाड़ी रावत ने
कहा कि क्या खा रहे हो? कुछ भी तो नहीं। नहीं कुछ तो खा रहे हो, ऐसे
ही तुम्हारा मुँह नहीं चल रहा है। कुछ दूर तक हमने उनको तंग किया लेकिन वे भी तो
हमारे जैसे थे मलिक की जेब मोटी जेब बता रही थी कि मलिक की जेब में कुछ छिपा हुआ
है दोनों रावत मलिक के पीछे पड़ गये। मलिक ने उनके हिस्से के सेब उन्हे दे दिये।
नहीं तो वे जबरदस्ती छीन लेते। सेब खाते हुए आगे बढ़ते रहे।
यह मार्ग कुल मिलाकर तीन किमी लम्बी ट्रैकिंग
का रहा था लेकिन जब एक किमी बाद पक्की पगड़न्ड़ी समाप्त हो गयी थी तो हमने सोचा था
कि अरे टरु गाँव तो बहुत ही जल्द आ गया है लेकिन वह दूसरा गाँव था। यहाँ हमारी
वेशभूषा देखकर गाँव वाले पूछने लगे कि कहाँ जाना है? शायद उन्होंने सोचा होगा कि
यह ऐसे ही घूमने आये है लेकिन जब हमने उनसे गंगा राम के घर के बारे में जानकारी
लेनी चाही तो उन्होंने कहा कि यहाँ तो कोई गंगा राम नहीं रहता है तभी एक औरत बोली
नीचे वाले गाँव में गंगू नाम का आदमी तो रहता था लेकिन उसे मरे हुए तो कई साल हो
गये है। अरे हाँ यह बात तो ध्यान में ही नहीं रही कि गाँव के अधिकतर लोग किसी भी
बन्दे का असली नाम बहुत बिगाड़ने वाले होते है गंगाराम का गंगू बना दिया होगा। हमने
झट कहा हाँ हमें इसी गंगू के यहाँ जाना है। उन्होंने हमें नीचे वाले टरु गाँव तक
जाने का मार्ग बता दिया।
इस 7-8 घर के गाँव से निकलते हुए नीचे वाले गाँव टरु
की ओर उतरने लगे कि तभी महेश ने या मलिक ने इस गाँव के किसी घर में खड़े सेब के पेड़
से एक कच्चा छोटा सा सेब तोड़ लिया। मैंने उसे कच्चा सेब तोड़ने से मना भी किया था
लेकिन वह तोड़ कर ही माना, लेकिन जब उसे खाने लगा तो कच्चे पन के कारण, उसे खा नहीं
पाया तो मैंने उसे खूब सुनायी कि मैंने पहले ही कहा था कि कच्ची चीजे तोड़ कर बेकार
मत करो। आखिर वह फ़ल उसने फ़ैंक दिया। इस गाँव से निकलते ही एक पगड़न्ड़ी दो भागों में
बँट गयी। यहाँ किस तरफ़ जाये? मामला अटक गया चूकि नीचे वाला गाँव हमें दिखायी दे रहा था
इसलिये हम अंदाजा लगाते-लगाते उल्टे हाथ की ओर नीचे की तरफ़ चलने लगे यहाँ हमें सेब
का एक बाग मिला जहां पर कुछ बच्चे व उनकी माँ बैठे हुई थी। उन्होंने हमें टरु जाने
के लिये सेब के बाग के बीच से होकर जाने को कहा। हम सेब के बाग के बीचो-बीच से
होते हुए वहाँ से निकल गये।
सेब के बाग से पार जाते ही गाँव सामने दिखायी
देने लगा। हम पगड़न्ड़ी से होते हुए सीधे गाँव पहुँचे। गाँव
के अन्दर पहले घर के सामने बैठे हुए कुछ लोगों से गंगू के घर के बारे में पता कर,
हम आगे बढ़ गये। गंगू का घर नजदीक ही था। इस गाँव में मुश्किल से 10-12 घर दिखायी दे रहे थे। हमने गंगू के घर के बाहर
जाते ही अपने बैग उतार कर एक तरफ़ रख दिये आज हमारी ढ़लान की ओर की ट्रैकिंग समाप्त
हो चुकी थी। गंगू के घर के दरवाजे के बाहर खड़े होकर हमने आवाज लगायी कि घर में कोई
है????? घर से दो-तीन औरते बाहर निकल कर आयी। हमने उनसे कहा कि क्या यह गंगू का ही
घर है? हाँ! ठीक है हम आपके लिये एक बहुत अच्छी खुशखबरी लेकर आये है। पहले हमें
पीने के पानी दो। उसके बाद आपको खुशखबरी सुनाते है।
उस घर की दो लड़कियों ने हमें पीने को पानी
दिया। जब तक हमने पानी पिया तब तक गाँव के आसपास के घर से कई लोग वहाँ आकर खड़े हो
गये थे। हमारी वेषभूषा देखकर वे समझ रहे थे कि ये घूमने वाले लोग है ऐसे ही टहलने
आये होंगे। लेकिन जब हमने उनकी परिवार की 5-6 साल से गायब एक महिला के बारे में कहा तो उनके चेहरे पर
आश्चर्य के भाव उत्पन्न हो गये। उन्होंने कहा आप बिजली (गायब महिला) के बारे में
कैसे जानते हो? हमारा जवाब था क्यों बिजली को क्या हुआ? उन्होंने कहा कि हमने सुना
था कि बिजली दिल्ली में किसी एक्सीड़ेन्ट में मर गयी है। हमने कहा नही! बिजली आज भी
जिन्दा है क्या आपको उससे मिलना है?
घर वालों से मिलना हमारे लिये अदभुत क्षण था
उनके चेहरे पर खुशी साफ़ झलक रही थी। उस महिला की लड़कियाँ अब तक काफ़ी बड़ी हो चुकी
थी जो महिला 5-6 साल
से हमारी कालोनी में रावत जी के खाली प्लाट में पागल अवस्था में रह रही थी ऊपर
वाले परमात्मा का शुक्र है कि उस महिला की दिमागी हालत अपने आप ठीक हो गयी है।
उसने देवेन्द्र रावत जी को अपने इस गाँव, जहाँ हम आये है के बारे में पूरी जानकारी
दे दी थी। मेरी साच पास की यात्रा के बारे सुनते ही रावत जी बोले थे कि संदीप जी
अगर आप वापसी में इस गाँव से होकर आओगे तो हम इस पागल महिला (जो हमारी कालोनी में
पिछले कई साल से रह रही है) के घर पर जाकर इसके सही होने की सूचना देकर आयेंगे।
उसके बाद यदि इसके घरवाले इसे लेने आयेंगे तो
उससे बड़ी खुशी और क्या होगी कि एक परिवार का बिछुड़ा प्राणी इतने सालों बाद जिन्दा
मिल जाये। हमारे वहाँ पहुँचने के बाद उस घर से उस पगली महिला का देवर उसी दिन उसे
लेने दिल्ली चला आया था। जब तक हम दो दिन बाद दिल्ली पहुँचे। तब तक वह महिला अपने
परिवार के पास पहुँच गयी थी। यह बिछुड़े सदस्य का मिलन करवाना हमारी इस यात्रा का
सबसे बड़ी उपलब्धि थी। मैंने सैकडों यात्राएँ की है लेकिन कभी ऐसा पुण्य का कार्य
करने का मौका नहीं मिला था। उस परिवार को खुश करके हमने वहाँ से विदा ली।
गाँव वालों ने बताया कि आप लोग जिस मार्ग से
यहाँ आये हो वह लम्बा मार्ग है। वापसी की यात्रा में आपको थोड़ी सी चढ़ाई से सामना
तो करना पडेगा, लेकिन उससे आप बहुत जल्द सड़क तक पहुँच जाओगे। हमने गाँव वालों की
बात मानकर वापसी की यात्रा नये मार्ग से आरम्भ कर दी। चावल के खेतों के मध्य से
होते हुए हम ऊपर की ओर चढ़ने लगे। नये वाले मार्ग पर तीखी चढ़ाई थी हम पहाड़ की धार
पर चलते हुए ऊपर चढ़ते जा रहे थे। हम धीरे-धीरे ऊपर चढ़ते जा रहे थे कि अचानक रावत
जी बोले इस पगड़न्ड़ी पर जौंक है देख कर चलो!
जोंक का नाम सुनते ही मुझ सहित सभी के नाक-कान
आदि-आदि जो कुछ चौकन्ना होना था हो गया। गंगौत्री/गौमुख से केदारनाथ वाली पद यात्रा
में भी मेरा सामना ढ़ेर सारी जोक से हो चुका था। जोंक नामक छोटा सा प्राणी जिस
इन्सान या जानवर के शरीर से चिपक जाता है उसका भर पेट खून पीने के बाद ही पीछा
छोड़ता है। जौंक का जिक्र आने से पहले हम मजे-मजे में धीरे-धीरे चढ़ रहे थे, लेकिन अब
हमारे मजे जौक पीने के लिये तैयार बैठी थी। हम दे दना तेजी से ऊपर चढ़ते चले गये।
अगर जौंक का पता होता तो मैं पहले से ही जूते पहन कर आता लेकिन अब यहाँ रुककर जूते
पहनने का समय नहीं था जौंक का खतरा ज्यादा था। मेरा ध्यान मार्ग पर ज्यादा नहीं था
मैं अपनी चप्पलों को देखता हुआ आगे बढ़ता जा रहा था मेरी चप्पलों में कई बार जौंक
चिपकी भी थी लेकिन चौकन्ना होने के कारण मैंने तुरन्त चप्पल निकाल कर जमीन पर पटक
दी थी जिससे जौंक चप्पल से उतर जाती थी।
जौंक का आतंक चारों पर छाया हुआ था। लेकिन जौक
के आतंक का लाभ यह हुआ कि जिस मार्ग को पार करने में हम एक घन्टा मानकर चले थे उसे
पार करने में हमें आधा घन्टा भी नहीं लगा होगा। जौक के चक्कर में हम इतनी तेजी से
ऊपर आ रहे थे कि ऊपर आते-आते हमारा शरीर पसीने से तर-बतर हो चुका था। सड़क पर आते
ही हमने अपने बैग उतार कर एक तरफ़ रख दिये। सबसे पहले हमने अपने शरीर के पैर की खास
तौर पर जाँच की थी कि कही एक-आध जौक चिपक कर खून की दावत का मजे तो नहीं ले रही
है। लेकिन देवेन्द्र रावत को छोड़कर किसी को जौंक नहीं चिपकी। हाँ मलिक या महेश के
जूते में एक जौंक अवश्य पायी गयी।
जहाँ हम लोग सड़क पर आये थे यहाँ से हमारी बाइक
कम से कम 3 किमी
दूर थी। कुछ ही देर में एक बस रोहान्ड़ा की ओर जाने के लिये आ गयी। हम अपना सामान
लेकर उस बस में सवार हो गये। जब बस के कन्ड़क्टर ने टिकट के बारे में कहा तो मैंने
पूछा कि 3 किमी
अगे जो दुकान नुमा ढ़ाबा है हमें वहाँ तक जाना है हम चारों का कितना किराया हुआ?
उसने उस छोटी सी दूरी के लिये किराया लेने से इन्कार कर दिया। अपनी बाइक दिखायी
देते ही हम बस से नीचे उतर गये। मैंने और मलिक ने तो अपने हैलमेट अपने बैग में ही
लटकाये हुए थे लेकिन महेश ने अपना हैल्मेट बस में सीट पर ही रखा था। बस से उतरते
समय हेल्मेट उठाना भूल गया। हैलमेट बस में रह गया लेकिन जब बाइक लेकर चलने लगे तो
हैल्मेट की याद आयी।
मैंने महेश को तेजी से बस के पीछे जाने को कहा
अब तक बस कई किमी आगे निकल गयी होगी। महेश को यह बता दिया था कि हैल्मेट लेकर
रोहान्ड़ा मिल जाना जो यहाँ से ज्यादा दू नहीं है। पल्सर वाले बस के पीछे बाइक लेकर
हेल्मेट लेने चले गये। इसके बाद हम दोनों भी अपनी बाइक पर सवार होकर रोहान्ड़ा के
लिये चल दिये। दो-तीन किमी आगे जाते ही चैल चौक जाने वाली सड़क उल्टे हाथ दिखायी दी।
उससे आगे जाने पर रोहान्ड़ा भी जल्द ही आ गया था लेकिन पल्सर वालों का वहाँ कुछ
अता-पता नहीं था। रोहान्ड़ा में रात्रि विश्राम करने का कार्यक्रम पहले से तय हो
चुका था इसलिये हमने रोहान्ड़ा के वन विभाग के विश्राम भवन में अपने लिये एक कमरा
बुक कर अपनी बाइक वहाँ खड़ी कर दी। लेकिन जब 10 मिनट तक भी पल्सर वाले वापिस नहीं आये तो उन्हे फ़ोन लगाया
गया उनका जवाब था कि बस अभी तक पकड़ में नहीं आयी है। (यात्रा अभी जारी है।)
Congratulation for 300 posts.
जवाब देंहटाएंsampurn yatra rahi aapki ek acha sandesh bhi mila kisi ko uske parivaar se milana woh bhi us aurat ko jisa uska parivaar mrat (dead)samajh raha tha.sir ji aapne bahut nak kam kara h yah.good
जवाब देंहटाएंकिसी बिछड़े को परिवार से मिलाने का बड़ा काम कर मानव धर्म निभाया आप लोगों ने. घुमक्कड़ी का यह सुखद पहलू है. ……. ३०० पोस्ट की बधाइयाँ, आज बताशे ही बाँट दो……. :)
जवाब देंहटाएंKisi filmy kahani ki tarah ghatnaaon se bhari hui... tragedy climax action sab kuch mil raha yahan...
जवाब देंहटाएंmajedaar..
bijli ke liye badhai . is guest house main mujhe kamra nahi mila tha
जवाब देंहटाएंभाई घुमाई कम घिसाई ज्यादा हो गयी इस यात्रा में... पर ये अनुभव और अधिक जज्बा प्रदान करेगा आपको....
जवाब देंहटाएंतीन सौ पोस्ट की बधाई | ये लेख तो भावुक कर गया
जवाब देंहटाएं३०० वीं पोस्ट की बधाई हो, ऐसे ही आनन्द दिलाते रहें अपनी यात्राओं में।
जवाब देंहटाएंmast!! bichudon ko milane ke liye badhaai!!
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