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शुक्रवार, 9 अगस्त 2013

Mahakaal Jyotiringa Temple-Ujjain महाकालेश्वर-महाकाल मन्दिर उज्जैन

UJJAIN-JABALPUR-AMARKANTAK-PURI-CHILKA-02                              SANDEEP PANWAR
मन्दिर के आसपास बहुत ज्यादा भीड़ थी, उसमें उन्हे कहाँ तलाश करता? सोचा उन्हे फ़ोन ही लगा दूँ कि मैं मन्दिर के सामने वाली गली में ही हूँ। प्रेम सिंह ने फ़ोन पर कहा कि हम भी इसी गली में बनी दुकानों से सामान खरीद रहे है। मन्दिर की तरफ़ आते समय उल्टे हाथ वाली लाईन में हम मिल जायेंगे। मैं उन्हे देखता हुआ मन्दिर की ओर बढ़ता गया। मन्दिर से 100 मीटर पहले ही प्रेम सिंह एन्ड़ पार्टी वहाँ दिखायी दी। उनके माथे पर लगे लम्बे तिलक को देखकर मैं समझ गया कि यह सभी मन्दिर होकर आ चुके है। लेकिन फ़िर भी मैंने कहा कि मन्दिर में दर्शन करके आये कि नहीं। उन्होंने कहा कि हमने तो रात को भी आराम से दर्शन किये थे। सुबह भी पहले ही लाइन में लग गये थे जिससे जल्दी दर्शन हो गये। 


मैं उनके साथ उनके कमरे पर गया। पहले स्नान आदि किया गया, उसके बाद अपना सारा सामान वही छोड़कर मन्दिर के लिये प्रस्थान कर दिया। मन्दिर के सामने जाकर पता लगा कि यदि इमानदारी से लाईन में लगे तो कम से कम 3 घन्टे में नम्बर आयेगा। मुझे प्रेम सिंह ने पहले ही बता दिया था कि साधारण लाईन में लगने पर समय खराब करने से अच्छा रहेगा कि 151 रुपये की पर्ची कटाकर अलग लाईन में लगा जाये। मैं 151 की पर्ची कटवा ली जिसके बाद मैंने बिना भीड़ वाली लाईन का लाभ उठाया। मात्र 15 मिनट में ही महाकाल दर्शन कर बाहर आ गया। मन्दिर में अन्दर प्रवेश करते समय अच्छी तरह तलाशी ली गयी थी। उसके बाद टेड़ी-मेड़ी घुमावदार जीने से होते हुए मन्दिर में नीचे उतारा गया। यहाँ के मन्दिर का प्रांगण देखकर अच्छा लगा था।

महाकाल मन्दिर में दर्शन करते समय अन्य मन्दिरों की तरह मारामारी नहीं मची थी। जहाँ से मन्दिर के गर्भ गृह का दर्शन होता है वहाँ पर बहुत बड़ा खुला स्थान बनाया हुआ है यह स्थान स्टेडियम की सीढियों जैसा बनाया गया है ताकि एक साथ बहुत सारे लोग मन्दिर के दर्शन कर सके। समतल स्थान होने पर पीछे वालों भक्तों को उचक-उचक कर आगे देखना पड़ता है। अन्य मन्दिरों में इस प्रकार की सुविधा नहीं दी गयी है। इस शानदार सुविधा को भक्तों को प्रदान करने के लिये मन्दिर प्रशासन आभारी होने का पात्र है। मन्दिर में फ़ोटो लेने पर पाबन्दी लगायी हुई है जिस कारण चोरी छिपे फ़ोटो लिये जाते है। मन्दिर में मोबाइल ले जाने पर कोई आपत्ति नहीं दिखायी दी।

मन्दिर से बाहर आने के लिये लोगों में उतना उतावला पन नहीं रहता है जितना उतावला पन अन्दर जाने में होता है। अन्य लोगों की तरह मैं भी आसानी से बाहर चला आया। मन्दिर से बाहर आने के बाद मैं सीधा दोस्तों के कमरे पर पहुँचा। वे मेरा इन्तजार कर रहे थे। मेरे आते ही उन्होंने उज्जैन देखने के लिये चलने की तैयारी शुरु कर दी। सबने अपना सामान पैक कर अपने-अपने थैले में ड़ाल दिया। सामान पैक करने के बाद हम उज्जैन दर्शन करने के इरादे से मन्दिर की बराबर वाली सड़क से होते हुए आगे ढ़लान की ओर चल दिये।

उज्जैन एक प्राचीन नगर है इसका प्राचीन नाम अवंतिका था अमरावती भी इसे ही कहा जाता था। उज्जैन दर्शन के लिये चलने वाली दैनिक बस दिन में दो बार आमतौर पर चलती है सुबह 7 बजे व दोपहर को 2 बजे यह बस उज्जैन घूमाने के लिये चलती है। इसके अलावा निजी जीप जैसी गाड़ियाँ भी आसानी से देवास गेट से ही मिल जाती है। उज्जैन महाकाल मन्दिर में कई आरती होती है लेकिन यहाँ पर होने वाली भस्म आरती सबसे निराली होती है जिसमें शामिल होने के लिये सुबह जल्द ही मन्दिर पहुँचना होता है। सुना है कि पहले दिन ही भस्म आरती के लिये बुकिंग करनी होती है। भस्म आरती में शामिल होने के पास बनवाना होता है जिसके लिये पहचान पत्र की प्रतिलिपी लगानी होती है। भस्म आरती का समय सुबह 4 बजे का बताया गया, साथ ही इस आरती के समय पुरुष को सिर्फ़ धोती व महिला को साड़ी पहन कर आने के सख्त निर्देश है।

आगे जाने पर हमें मन्दिर की धर्मशाला व अन्य इमारते दिखायी दी। यहाँ इस सड़क पर मन्दिर आने वाले लोगों के लिये स्थानीय लोगों ने बाजार लगाया हुआ था जिसमें ऐसी चीजे मिल रही थी जिन्हे आसानी से बड़ी दुकानों पर तलाश करना मुश्किल हो जाता है। इनमें से कई वस्तुएँ अपने काम की भी थी इसलिये मैंने ऊँ बनाने वली जाली ले ली। अपुन ठहरे आर्य समाजी ऊँ के अलावा और किसी के क्या काम? मैं पहले भी कई बार बता चुका हूँ कि मैं मन्दिरों में भक्ति के इरादे से नहीं जाता हूँ। मैं मन्दिरों में यह देखने जाता हूँ कि लोग मूर्ति पूजा के अंधविश्वास के चलते कितने बावले हुए जा रहे है। क्या घर में बैठकर पूजा-पाठ नहीं हो सकता है। हो सकता है लेकिन फ़िर मेरी तरह घुमक्कड़ी का मौका कैसे लगेगा? उसके लिये मन्दिर वाला बहाना सबसे अच्छा है।

यहां मन्दिर के पास ही नो पार्किंग के नाम पर लगे एक बोर्ड़ को देखकर आँखे चौड़ी हो गयी, इस बोर्ड़ पर जो जुर्माना लिखा हुआ था उसके बारे में आजतक कही नहीं देखा था कि बिजली के झटके जैसा जुर्माना भी लगाया जा सकता है। इस बोर्ड़ को देखकर लगता है कि इसके साथ छेड़छाड़ की गयी है। खैर कुछ भी हो अगर गलत पार्किंग के कारण 440 रुपये का जुर्माना लगा दिया जाये तो कोई आसानी से यहाँ गाड़ी खड़ी ही नहीं करेगा। हिन्दुस्तान के लोगों को अपने मजे के लिये बर्बाद करने को भले ही कितना भी रुपया हो लेकिन कानून के नाम पर दो रुपये जेब से निकालना बहुत भारी पड़ता है।

मन्दिर से थोड़ा सा आगे चलते ही एक दुकान पर एक बोर्ड़ दिखायी दिया जिस पर उज्जैन घूमाने के बारे किराया तालिका सहित विवरण दिया गया था। यहाँ उज्जैन घूमने के लिये बस या टैम्पो आदि में मात्र 50 रुपये का ही किराया लगता है। उज्जैन में और आसपास घूमने-देखने लायक कई स्थान है जिनमें से राजा भृतहरी की गुफ़ा, संदीपनी आश्रम (मेरा वाला नहीं), शराब पीने वाली काल भैरव मन्दिर की मूर्ति, वैधशाला जन्तर-मन्तर, गढ़कालिका मन्दिर, क्षिप्रा नदी का तट रामघाट, हरसिद्धी माता मन्दिर, सिद्धवट मुख्य है।

उज्जैन यात्रा की शुरुआत करने के लिये हमें महाराज विक्रमादित्य की सभा स्थली देखकर आगे जाना था इसलिये सबसे पहले विक्रम-बेताल वाले विक्रम की सभा स्थल के लिये चल दिये। सबसे पहले बड़ा गणेश मन्दिर सड़क के सीधे हाथ आता है लेकिन जब हम गणेश के बापू से मिलकर आये है तो फ़िर उसके बेटे से मिलने की इच्छा नहीं रही थी। इसलिये इस मन्दिर को दूर सड़क से ही राम-राम कर दिया गया था। वैसे गणेश और बड़ा गणेश के नाम का कुछ ना कुछ तो चक्कर जरुर होगा। वैसे भी मैं भगवानों के चक्कर से थोड़ा बचकर रहने में ही भलाई मानता हूँ कि क्या पता किस भगवान का कब मूड़ बिगड़ जाये और हमारे पीछे पड़ जावे।

हिन्दुओं में वैसे भी 33 प्रकार के भगवान होते है। जो ज्ञानी यह समझता हो कि अरे संदीप भाई आप 33 करोड़ भगवान की जगह 33 प्रकार गलती से लिख गये हो, कृप्या वह महानुभाव अपने ज्ञान को दुबारा चैक कर ले। मुझे उस प्राचीन ग्रन्थ का उल्लेख जरुर करे जिसमें ऐसा लिखा हो। मैंने कई पुस्तके पढ़ी है लेकिन मुझे कही भी 33 करोड़ नामक शब्द नहीं मिला है। जो लोग हिन्दुओं के धर्म का उपहास बनाना चाहते है उन्होंने ही इस प्रकार की मन घड़ंत बाते चलायी हुई है। मैं पहले ही कह रहा था कि इन भगवानों से जितना बच कर रहो उतना ही सेहत के लिये ठीक रहता है इन्हे दूर से ही राम-राम कहना चाहिए। चलो विक्रम-बेताल वाले विक्रम की सभा स्थली आ गयी है इसे देखकर आगे बढेंगे। आज के लेख में बस इतना ही बाकि अगले लेख में। (उज्जैन यात्रा अभी जारी है) 
उज्जैन यात्रा के सभी लेख के लिंक नीचे दिये गये है।

05हरसिद्धी शक्ति पीठ मन्दिर, राजा विक्रमादित्य की आराध्य देवी।
06- उज्जैन का चार धाम मन्दिर व बिजली से चलने वाली झाकियाँ।
07- राजा भृतहरि की गुफ़ा/तपस्या स्थली।
08- गढ़कालिका का प्राचीन मन्दिर
09- शराब/दारु पीने वाले काल भैरव का मन्दिर
10- श्रीकृष्ण, सुदामा, बलराम का गुरुकुल/स्कूल संदीपनी आश्रम।
11- उज्जैन की महान विभूति सुरेश चिपलूनकर जी से मुलाकात व उज्जैन से जबलपुर प्रस्थान



This is not my photo






















15 टिप्‍पणियां:

  1. सनदीप जी राम-राम।उजजैन महाकाल दॅशन कराने के आभार।

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  2. सही कहा भाई जी भगवान से तो दूर से ही हाथ जोड लो नही तो पुजारी क्या डायलाँग मारते है "दिन बंन्धू बलि राजा । छोड पैसा पकड धागा ।।" और हाथ पे कलावा लपेट देते है अब आदमी को शर्मिँदा होके कुछ तो देना पडता है सब जगह लूट है जैसे जम्मू का रघूनाथ मँदिर...

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  3. सही कहा भाई जी भगवान से तो दूर से ही हाथ जोड लो नही तो पुजारी क्या डायलाँग मारते है "दिन बंन्धू बलि राजा । छोड पैसा पकड धागा ।।" और हाथ पे कलावा लपेट देते है अब आदमी को शर्मिँदा होके कुछ तो देना पडता है सब जगह लूट है जैसे जम्मू का रघूनाथ मँदिर...

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  4. मैं इंदौर की रहने वाली हूँ , बचपन में जब पहली बार उज्जैन गई थी तब मुझे और मेरी मोसी को भस्म आरती में जाने नहीं दिया था क्योकि हम दोनों ने सलवार-कमीज पहन राखी थी ...उस समय बड़ा गुस्सा आया था ...बाद में कई बार जा चुकी हु क्योकि मेरा बड़ा भाई वहां पुलिस इंस्पेक्टर है और अब हम आराम से वी आइ पी गेट से चले जाते है ...जय महाकाल की ...

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  5. आपकी इस ब्लॉग-प्रस्तुति को हिंदी ब्लॉगजगत की सर्वश्रेष्ठ प्रस्तुतियाँ ( 6 अगस्त से 10 अगस्त, 2013 तक) में शामिल किया गया है। सादर …. आभार।।

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  6. बहुत अच्छा लगा -खूब रही हूँ उज्जैन में !

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  7. मोबाइल नहीं ले जाने के बोर्ड जगह जगह पर लगे हैं ।

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  8. Hi,

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