UJJAIN-JABALPUR-AMARKANTAK-PURI-CHILKA-11 SANDEEP PANWAR
उज्जैन के सभी दर्शनीय स्थलों को दिखाने के बाद हमारा गाड़ी वाला हमें लेकर उज्जैन रेलवे स्टेशन की ओर चल दिया। संदीपनी आश्रम से वापसी में जिस मार्ग का प्रयोग हमने किया था वहाँ से इन्दौर मात्र 60 किमी व देवास तो केवल 39 किमी दूर था। अपने साथी कल ही तो इन्दौर से उज्जैन आये थे। कुछ देर में ही हमारा चालक हमें लेकर रेलवे स्टेशन पहुँच गया। स्टेशन से पहले ही मैंने अपने गाड़ी चालक से सुरेश चिपलूनकर जी की कालोनी के बारे में पता किया था उसने कहा था कि आप यहाँ से उस कालोनी में जाने वाली दूसरी सवारी पकड़ लेना। यहाँ से स्टेशन कितना दूर है? जब चालक ने कहा कि मुश्किल से 300 मीटर, अरे फ़िर तो पहले स्टेशन छोड़ दो क्योंकि सुबह से कुछ खाया नहीं था। अत: पहले स्टेशन के आसपास मिलने वाले किसी भोजनालय से भोजन करते है उसके बाद आगे देखते है।
स्टेशन के बाहर हमें कई भोजनालय कम रेस्टोरेन्ट दिखाई दिये। एक सही से भोजनालय में खाना खाने चल दिये। बाकि साथी बोले हमारा तो महाशिवरात्रि का व्रत है। अत: हम तो आज फ़ल ही खायेंगे ठीक है जिसे खाना खाना हो वो मेरे साथ चलो और जिसे खाना नहीं खाना है वो स्टेशन पर जाकर आराम करे। मेरे साथ अनिल पवाँर जो मेरे साथ गौमुख से केदारनाथ पदयात्रा में साथ जा चुका है तथा बंटी फ़ोटो वाला ही चलने को राजी हुए। बाकि साथी फ़ल खाने के लिये किसी फ़ल वाले के पास पहुँच गये जहाँ उन्होंने काफ़ी सारे अंगूर व केले ले लिये थे फ़ल लेकर वे लोग स्टेशन के अन्दर चले गये\
हम तीनों खाना खाने के लिये चाणक्य नामक रेस्टोरेन्ट में पहुँच गये। हमने तीन थाली भोजन देने के बारे में कहा तो होटल वाले बोले कौन सी थाली लोगे? कौन सी मतलब? पहले तीनों की विशेषता बताओ फ़िर हम बतायेंगे कि कौन सी थाली लेनी है? उसने तीनों थाली के बारे में अलग-अलग सुविधा देने की बात कही सबसे महँगी थाली में मिठाई का पीस शामिल था भोजन में एक छॊटी सी कटोरी में दही भी दी हुई थी। उससे कम वाली थाली में मिठाई व दही गायब थी। अब बची सबसे कम वाली थाली उसमें सिर्फ़ दो सब्जी व चार रोटियाँ दी गयी थी। हमने तीनों तरह की एक-एक थाली लाने के बारे में कहा।
थाली आने के बाद अनिल ने 60 वाली, फ़ोटो वाले ने 80 वाली व 30 वाली थाली मैंने ले ली। सब्जी व रोटियाँ पहले ही काफ़ी मात्रा में थी। हाँ कम वाली थाली मेम सलाद नहीं दिया गया था। मैंने सलाद दूसरी थाली से ले लिया था। खाना अच्छा बना हुआ था। महँगी थाली में रोटियाँ चुपड़ी हुई थी। जबकि अन्य थालियों में सूखी रोटियाँ थी। हमने भर पेट भोजन किया। भोजन करने के बाद हम तीनों अपने साथियों के पास रेलवे स्टेशन जा पहुँचे। अपने साथी फ़लों पर टूटे पड़े थे। उन्होंने हमें भी अंगूर के गुच्छे खाने को दिये। अभी शाम के 4 बजे थे इनकी दिल्ली जाने वाली ट्रेन शाम के 6 बजे की थी। जबकि मेरी जबलपुर वाली ट्रेन शाम 07:10 मिनट की थी।
मैंने दोस्तों से कहा कि मेरे एक जानकार यहाँ उज्जैन में रेलवे के उसपार कही रहते है मैम उनसे मिलने जा रहा हूँ। यदि मेरे वापिस आने तक तुम्हारी ट्रेन चली गयी तो ठीक नहीं गयी तो तब भी ठीक, मैं तुम्हे बाय-बाय करता हूँ अगले सप्ताह दिल्ली मुलाकात होगी क्योंकि अभी मुझे जबलपुर-अमरकंटक-पुरी-कोणार्क भी जाना है। मैंने दोस्तों को राम-राम कर सुरेश जी के घर की ओर चल पड़ा। स्टेशन से बाहर निकल कर कुछ दूर चलते ही उल्टे हाथ एक बोर्ड़ पर नजर गयी जहाँ से महाकाल की दूरी मात्र 1.4 किमी लिखी हुई थी जबकि मैं तो महाकाल दो किमी दूर मान रहा था।
यही एक गणेश तीन पहिया जैसे बड़े आटो वाले ने मुझे कहा कहां जाओगे? मैंने उससे कहा कि वहाँ उस जगह जाना है उसने कहा कि वह उस जगह से आधा किमी दूर उतारेगा। ठीक है चलो। मैं उसके ऑटो में सवार हो गया। लगभग 3-4 किमी की दूरी तय करने के बाद वह बोला लो जी अब आप सामने वाली गली में सीधे चले जाओ। आधा किमी जाने पर आपको आपकी जगह मिल जायेगी। सुरेश जी से दिन में कई बार फ़ोन पर बात हो गयी थी। जब हम खाना खा रहे थे तब भी उनका फ़ोन आया था कि भोजन में क्या खाओगे? मैंने कहा कि भोजन तो हमने कर लिया है। बस आपसे पुन: मिलने की इच्छा है।
सुरेश जी की कार्यस्थली पर पहुँचकर देखा कि वहां तो ताला लगा है। अरे सुरेश जी मेरे आने के कारण तो गायब नहीं हो गये। ऐसे तो ना थे। मैने पडौसी की दुकान से पता किया उन्होंने बताया कि घर खाना खाने या कुछ लेने गये है। अभी आते ही होंगे। आज सुरेश जी महाशिवरात्रि का व्रत बता रहे थे। अत: घर पर कुछ लेने ही गये होंगे। थोड़ी देर बाद सुरेश जी दुकान पर आ पहुँचे। पहले तो जबरदस्त मुलाकात की उसके बाद हालचाल पूछा। फ़िर नोले कैसी उज्जैन यात्रा? मस्त रही जी। क्या खाओगे? खापी कर आया हूँ। फ़िर भी सुरेश ने अपने थैले में से अंगूर का गुच्छा निकाल कर मुझे दे दिया।
अंगूर खाते-खाते बाते होती रही। इसी बीच मैंने अपने मोबाइल निकाल कर चार्जिंग पर लगा दिये। तभी सुरेश जी ने एक पुस्तक में अपना ताजा लेख मुझे दिखाया। सुरेश जी भारत और भारत में रहने वाले हिन्दुओं की उन बातों को गहरी खोजबीन के बाद तलाश कर लाते है जिनके बारे में हम सोच भी नहीं सकते है। सुरेश जी दुकान पर एक पेपर के प्रिटिंग का शुल्क मात्र एक रुपया लिया जाता है। इतना कम हमारे यहाँ तो 5 रुपया लेते है फ़ोटो स्टेट के दो रुपये लेते है आप फ़ोटो स्टेट के एक रुपया। सुरेश जी बोले संदीप जी कम खाओ लेकिन सुखी रहो। जी सही कहा जो लाखों कमाने के बाद भी चैन नहीं मिलता वो 100 रुपये कमा कर मिल जाता है। तभी एक लड़का वहाँ अपनी फ़ैस्क को लेने आ गया। मैंने कुछ देर एक डेस्क टॉप पर बैठ कर सोचा कि कुछ काम कर लिया जाये लेकिन मेरे मेल आदि के पासवर्ड़ जिस मोबाइल में आते है उसे तो मैं घर पर ही छोड़ आया था।
सुरेश जी के साथ अपने कई फ़ोटो लिये गये। सुरेश जी से पहली मुलाकात दिल्ली में हो चुकी है। वहां उनके पास मैं शाहदरा में रहने वाले संजय अनेजा के बुलावे पर गया था। वापसी के मार्ग के बारे में मैंने सुरेश जी से पूछा उन्होंने कहा कि आप तो पैदल ही जाओगे। हाँ उन्होंने जिस मार्ग से आप यहाँ आये हो वही सीधा मार्ग रेलवे स्टेशन पहुँचा देगा। मैंने अपने मोबाइल चार्जिंग से हटाये। बैग कन्धे पर लाधा। इस बीच मुझे वहाँ रुके हुए लगभग घन्टा भर से ज्यादा हो गया था। मैंने सुरेश जी से राम-राम कही ओर अपनी अगली मजिल की ओर चल दिया।
सुरेश जी की दुकान से स्टेशन की दूरी 3 से 4 किमी के मध्य तो रही होगी। मुझे यह दूरी पार करने में मुश्किल से पूरा घन्टा भर भी नहीं लगा। मेरी ट्रेन जाने में अभी भी पौन घन्टे का समय बाकि बचा हुआ था। मैंने सोचा चलो एक बार अपने साथियों को देख लिया जाये कि वे अभी यही है या चले गये। उनकी जगह पर जाकर देखा तो वे वही मिले। अरे! क्या हुआ? अभी ट्रेन ही नहीं आयी है। कुछ ही देर में उनकी ट्रेन आने की घोषणा हो गयी। इसी बीच मैं और फ़ोटो वाला बंटी सामने दिखायी दे रही छोटी मीटर गेज वाली ट्रेन के फ़ोटो लेने चले गये।
उनकी ट्रेन आते देख हम जल्दी से वापिस आये। साथियों को उनके डिब्बे में घुसा कर राम-राम कह दी। उनकी ट्रेन जाने के बाद अब बारी मेरी ट्रेन आने की थी। लेकिन जैसा कि अधिकतर होता आया है मेरी ट्रेन भी 25 मिनट देरी से थी। जैसे ही मेरी जबलपुर जाने वाली ट्रेन आयी तो मैं भी अपने टिकट पर अंकित डिब्बे में अपनी सीट पर विराजमान हो गया। शाम का समय था इसलिये दैनिक सवारी आरक्षित डिब्बे में घुसी हुई थी। मेरी सीट पर पहले से ही 3-4 महानुभाव बैठे हुए थे। मेरे जाने के बाद उनमें से दो महानुभाव को तकलीफ़ उठानी पड़ी। रात को ट्रेन चलते हुए कहाँ-कहाँ से गयी, यह तो पता नहीं लगा, लेकिन सुबह जब आँख खुली तो चलती ट्रेन से पीछे छूटता स्टेशन देखा उसका नाम पढ़कर मैं चौक गया। उसका नाम भेड़ाघाट था। मुझे यही तो जाना था। (Continue)
उज्जैन यात्रा के सभी लेख के लिंक नीचे दिये गये है।
जबलपुर यात्रा के सभी लेख के लिंक नीचे दिये गये है।
|
टम टम |
|
भारत की रेलवे व्यवस्था |
|
अपनी टोली |
|
उज्जैन रेलवे स्टेशन पर लगा हुआ महाकाल शिवलिंग का चित्र |
|
अपनी धुन के दो मतवाले, एक देश का घुमक्कड़ तो दूजा देश हित का चिन्तन करने वाला। |
|
सुरेश जी घर के मार्ग में बना एक धर्म स्थल |
|
उज्जैन का टेशन |
|
छोटी लाइन की समय सारिणी |
|
छोटी रेलवे के अन्दर का फ़ोटो |
|
जाट देवता छोटी लाईन में घुसे हुए |
|
जबलपुर से ठीक पहले वाला रेलवे स्टेशन |
शानदार चित्र और चिपलूनकर जी के साथ - यादगार यात्रा.
जवाब देंहटाएंसुन्दर तस्वीरों के साथ एक यादगार प्रस्तुति। आभार।।
जवाब देंहटाएंएक बार अवश्य पढ़े : एक रहस्य का जिंदा हो जाना - शीतला सिंह
भेड़ाघाट तो गया चैन खिचनी पडेगी सनदीप जी। बढीया याञा रही उजजैन की।
जवाब देंहटाएंमैंने 2004 में भेडा घाट देखा था वहां के फोटो देखने के लिए अगली पोस्ट का इंतजार रहेगा
जवाब देंहटाएंसँदीप भाई जी वहाँ भी छोटी लाईन है और अपनी भी छोटी लाईन है ।
जवाब देंहटाएंसुरेशजी से वर्धा में भेंट हुयी थी, स्मृतियाँ अब भी स्पष्ट हैं।
जवाब देंहटाएंSuresh ji acha profile h appka
जवाब देंहटाएं