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सोमवार, 16 दिसंबर 2013

Nako Lake & crossing the Danger Malling Nala नाको लेक से खतरनाक मलिंग नाला पार करना

किन्नौर व लाहौल-स्पीति की बाइक यात्रा के सभी लेख के लिंक नीचे दिये है।
11- सतलुज व स्पीति के संगम (काजिंग) से नाको गाँव की झील तल
12- नाको गाँव की झील देखकर खतरनाक मलिंग नाला पार कर खरदांगपो तक
13- खरदांगपो से सुमडो (कौरिक बार्ड़र) के पास ममी वाले गियु गाँव तक (चीन की सीमा सिर्फ़ दो किमी) 
14- गियु में लामा की 500 वर्ष पुरानी ममी देखकर टाबो की मोनेस्ट्री तक
15- ताबो मोनेस्ट्री जो 1000 वर्ष पहले बनायी गयी थी।
16- ताबो से धनकर मोनेस्ट्री पहुँचने में कुदरत के एक से एक नजारे
17- धनकर गोम्पा (मठ) से काजा
18- की गोम्पा (मठ) व सड़क से जुड़ा दुनिया का सबसे ऊँचा किब्बर गाँव (अब नहीं रहा)
20- कुन्जुम दर्रे के पास (12 km) स्थित चन्द्रताल की बाइक व ट्रेकिंग यात्रा
21- चन्द्रताल मोड बातल से ग्रामफ़ू होकर रोहतांग दर्रे तक
22- रोहतांग दर्रे पर वेद व्यास कुन्ड़ जहां से व्यास नदी का आरम्भ होता है।
23- मनाली का वशिष्ट मन्दिर व गर्म पानी का स्रोत

KINNAUR, LAHUL SPITI, BIKE TRIP-12                               SANDEEP PANWAR

मनु के नाको मोड़ पर आते ही नाको गाँव की झील देखने चलना था। नाको झील व मोड़ के किनारे कुछ पत्थर रखे हुए थे। जिन पर तिब्बती/लद्दाखी/ अन्य भाषा में कुछ लिखा हुआ था जो अपने लिये भाषा काला अक्षर भैंस बराबर ठहरा। मनु को आगे भेजकर उसके पीछे चले दिये। मनु की बाइक को राकेश की ताकतवर बाइक जल्द पीछे छोड़ देती थी मनु को पीछे छोड़ने में हमें मजा आता था। हमारी बाइक आगे निकलते देख मनु जल भुन जाता होगा। हैलीपेड़ वाले मोड़ से नाको गाँव की दूरी मात्र एक किमी है। यहाँ पहुँचने में मुश्किल से 2-3 मिनट ही लगे होंगे। नाको गाँव तो आ गया था लेकिन नाको की झील कही दिखाई नहीं दे रही थी। हमने एक दुकान वाले से झील के बारे में पता किया। दुकान वाले के अनुसार हमारी बाइक झील के किनारे तक पहुँच जायेगी।



थोड़ा आगे चलते ही हमारी बाइक नाको झील के किनारे पहुँच गयी थी। झील के पास पहुँचने से पहले 20-30 मीटर के उल्टे सीधे चक्कर लगाकर झील तक पहुँच पाये। झील को घरों ने पूरी तरह घेरा हुआ है। गाँव देखने में बहुत सुन्दर लग रहा था। इस गाँव के हर घर की छत के ऊपर सर्दियों में जलाने के लिये लकडियाँ जमा की हुई थी। गाँव के आसपास काफ़ी हरियाली दिखायी दी। बाइक खड़ी करके खाली प्लॉट पैदल पार करने झील किनारे जाना पड़ा। प्लॉट पार करते ही नाको झील हमारे सामने थी। समुन्द्र तल से 3662 मीटर ऊँची नाको झील किन्नौर जिले में आती है। यहाँ ठन्ड़ बहुत पड़ती है। यह झील बर्फ़ का मैदान बन जाती होगी। लाहौल-स्पीति को बर्फ़ का रेगिस्तान कहलाती है।

नाको झील के किनारे पर दो कारीगर पत्थरों पर काँट-छाँट कर रहे थे। झील में पानी की मात्रा ठीक-ठाक थी। झील में उतरने का मार्ग दिखायी नहीं दिया। झील के कई फ़ोटो लिये गये। झील किनारे शादी या अन्य समारोह का एक टैन्ट लगा हुआ था। हमें भूख भी लगी थी। अगर बेशर्म होते तो वही खा पी कर आते, लेकिन नहीं, अपुन मेहनत से कमाते है, माँगना शोभा नहीं देता है। नाको में रुकने ठहरने के लिये बहुत सारे ठिकाने है। बजट से लकर महंगे होटल भी है। टैन्ट के ठिकाने भी दिखायी दिये। पूह के बाद सब तरह से सुख-सुविधा समपन्न गाँव कोई मिला तो वह नाको ही है।

यहाँ कच्चे व पक्के दोनों तरह के मकान बने हुए दिखायी देते है। यहाँ के लोगों का मुख्य कार्य कृषि आधारित है। गाँव के आसपास बहुत सारे खेत थे जिनमें कोई ना कोई फ़सल उगायी हुयी थी। ऊँचे पहाडों में आलू व मटर मुख्य उगायी जाने वाली फ़सल है। पांगी वैली की ट्रक यात्रा में भी हमने मटर व आलू की भरपूर फ़सल देखी थी। नाको में एक बौद्द मोनेस्ट्री के बारे में भी बताया गया है। मेरा मोनेस्ट्री देखने का मन नहीं था। दोनों साथियों ने भी मोनेस्ट्री देखने की जिद नहीं की, अन्यथा मुझे मोनेस्ट्री देखने जाना पड़ जाता। यहाँ नदी किनारे एक कमरे नुमा धर्म स्थल में बहुत बड़ा चक्र देखा, जिसे कुछ लोग घूमाने में लगे थे। आज से पहले मैंने इतना बड़ा धर्म चक्र नहीं देखा था।

दोपहर में नाको पहुँचे थे राकेश को भूख का दौरा काफ़ी देर से पड़ा हुआ था। उसे पूह से बहकाते हुए यहाँ तक ले आया था। अब वह यहाँ से बिना खाये आगे जाने वाले नहीं है। नाको से झील व गाँव के फ़ोटो लेकर आगे की मंजिल पर रवाना हो गये। नाको से चलते ही एक रेस्टोरेंट दिखायी दिया। वहाँ खाने पीने के बारे में पता किया तो जवाब मिला कि यहाँ सिर्फ़ चाऊमीन या वैज मोमो ही मिल सकते है। मोमो बनने के लिये समय लगता, इसलिये चाऊमीन बनाने के लिये बोल दिया गया। जब तक चाऊमीन बनकर आयी, तब तक कैमरे चार्जिंग पर लगा दिये गये। चाऊमीन के प्रति प्लेट 60 रु लिये गये थे।

चाऊमीन के साथ दी जाने वाली चटनी बहुत तीखी थी। दुकान वाले ने बताया था कि हमारे यहाँ की चटनी आप बाद में भी याद रखोगे? तीखी चटनी स्वादिष्ट तो थी लेकिन चाऊमीन खाने के बाद ढेर सारा पानी भी पी लिया। चटनी का तीखापन समाप्त ना हो पाया। मनु ने चाकलेट लेकर सबको बाँट दी। यहाँ चाऊमीन की दुकान के बराबर में ही एक प्रचून की दुकान थी। दुकान वाले ने सही कहा था कि हमारे यहाँ की चटनी को बाद में भी याद रखोगे। नाको से खा पीकर दोपहर 2 बजे के करीब चल दिये। दुकान वाले ने हमें बताया कि आगे मलिंग नाला नामक जगह आयेगी। वह बहुत खतरनाक इलाका है उसे सावधानी से पार करना। मलिंग नाले के बारे में स्थानीय लोग कहते थे कि आपने मलिंग नाला पार कर लिया तो समझो, इस सड़क के सबसे खतरनाक टुकड़े को पार कर लिया। हम सोच रहे थे कि मलिंग नाला पांगी वैली जैसा पागल नाला व दलदल नाला जितना भयंकर होगा जिसमॆं हमारा ट्रक भी अटक गया था।

नाको गाँव से निपटने के बाद थोड़ा आगे आने वाले मलिंग नाला पार करके जाना पडेगा। मलिंग नाला बहुत भयंकर है। उसमें बड़ी से बड़ी गाड़ी फ़ँस जाती है। बाइक से मलिंग नाला पार करना मामूली बात नहीं है। ऊपर से बड़े-बड़े पत्थर सड़क पर गिरते-रहते है। यह हमारा कहना नहीं है बल्कि नाको गाँव के लोगों ने हमें ऐसा बताया था। जब सिर ओखली में दे ही दिया था तो फ़िर मूसल से क्या ड़रना? खतरे उठाये बिना रोमांच का लुत्फ़ नहीं लिया जा सकता है। अपना पूरा जीवन ही एड़वेंचर को समर्पित है तो खतरे की चिंता करना अपना कार्य नहीं है। कुछ लोग कहते है कि परिवार की भी सोचा करो। एक कहावत है जिन्दा हाथी लाख का तो मरा हुआ सवा लाख का होता है। अपना जीवन किसी हाथी से कम नहीं है।

नाको लेक से मंलिंग की दूरी 4-5 किमी ही है इसलिये मलिंग नाला पहुँचने में ज्यादा समय नहीं लगा। जैसे ही मलिंग नाला सामने दिखायी दिया तो एक बार तो साँस थम सी गयी। मलिंग नाले में सितम्बर माह में बहुत कम पानी था। अगर हम यहाँ जून या जुलाई में आये होते तो इस नाले को पार करना टेड़ी खीरे साबित होने वाली थी। यहाँ पक्का रपटा बनाया जा रहा था। सड़क नाम की चिडिया यहाँ दिखायी नहीं दे रही थी। ढेर सारे मजदूर काम पर लगे हुए थे। कुछ मजदूर पहाड़ के ऊपर देख रहे थे। उन्होंने ऊपर देखकर ही हमें आगे निकलने दिया। ऊपर वाला पहाड़ कब नीचे आ जाये भरोसा नहीं किया जा सकता?

मलिंग नाले पर ड़रावना पहाड़ बर्फ़/बारिश होने पर और ज्यादा खतरनाक हो सकता है। खतरनाक मार्ग मलिंग नाले से आगे आधा किमी दूर तक ही रहता है। ड़रावनी जगह पार की तो जान में जान आयी। अब उतराई शुरु हो चुकी थी। यह उतराई काफ़ी लम्बी चली। आगे जाने पर काजिंग जैसे मोड वाली उतराई उतरनी पड़ी। यहाँ नीचे से ऊपर आती एक गाड़ी दिखायी दी, उस गाड़ी की ओर हम भी उतर रहे थे। गाड़ी को हम तक पहुँचने में काफ़ी समय लगा। इन लूप को उतरते हुए आसपास के नजारों से नजर नहीं हट रही थी। कुदरत भी कही-कही तो इतने दुर्लभ नजारे बना देती है उन से नजरे हटाने का मन नहीं करता। सुनहरे व भूरे रंग का पहाड़, देखने में ऐसा लगता था जैसे पहाड़ को बारिश के पानी ने गला कर डिजाइन बनाया हो।


नाको झील से टाबो व काजा जाने के लिये सुमडों से होकर ही जाना होता है। नाको से टाबो की दूरी 62 किमी है। हमारी आज की मंजिल टाबो ही थी। आज के लेख में मलिंग नाले से आगे आने वाली उतराई तक की यात्रा का वर्णन किया गया है। अगले लेख में सुमडों कौरिक बार्ड़र तक की यात्रा का वर्णन किया जायेगा। सुमडो से मात्र दो किमी बाद गियु वाला मोड़ आता है। गियु में पाँच सौ साल पुरानी ममी रखी है। टाबो से आगे धनकर गोम्पा भी देखा गया है। उसकी यात्रा भी जल्द ही करायी जायेगी। (यात्रा अभी जारी है।)









Malling Nala





9 टिप्‍पणियां:

  1. Sandeep ji, Lake bahut hi khoobsurat hai. Aaisa lakta jaise lake artificial hai. Wah re kudrat.
    Thanks.

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  2. मै पन्छी हुं उडने दो आकाश मे क्यो सन्दीप भाई ठीक कहा ना आपके सन्दर्भ मे ?
    चित्र वहां की सुन्दरता को बयां कर रहे है.

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  3. नित नए कीर्तिमान ,
    प्रभु जाट देवता के नाम।

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  4. नमस्ते इंडिया एक दूध कम्पनी का स्लोगन है...गाढ़ा मज़ा...वही आपकी नज़र...

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  5. वाह! झील देखकर मन कर रहा है कि बस यही रुक जाउ ---कितनी सुंदर यह प्रकृति है

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  6. bahut sundar post hai yatra ka varanan bahut sundar tareekese kiya gya hai ,.. dhanyvaad ,pichhlemahine august men main bhi saprivar leh ghum kar aayi thi ,ve yade aapki foto sahit yatra varanana padh kar taja ho gayi .

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Thank you for giving time to read post comment on Jat Devta Ka Safar.
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