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मंगलवार, 17 दिसंबर 2013

Khurdangpo- Sumdo (kaurik Border)- Gue Village खरदांगपो से सुमडो (कौरिक बार्ड़र) होकर गियु ममी वाले गाँव तक

किन्नौर व लाहौल-स्पीति की बाइक यात्रा के सभी लेख के लिंक नीचे दिये है।
11- सतलुज व स्पीति के संगम (काजिंग) से नाको गाँव की झील तल
12- नाको गाँव की झील देखकर खतरनाक मलिंग नाला पार कर खरदांगपो तक
13- खरदांगपो से सुमडो (कौरिक बार्ड़र) के पास ममी वाले गियु गाँव तक (चीन की सीमा सिर्फ़ दो किमी) 
14- गियु में लामा की 500 वर्ष पुरानी ममी देखकर टाबो की मोनेस्ट्री तक
15- ताबो मोनेस्ट्री जो 1000 वर्ष पहले बनायी गयी थी।
16- ताबो से धनकर मोनेस्ट्री पहुँचने में कुदरत के एक से एक नजारे
17- धनकर गोम्पा (मठ) से काजा
18- की गोम्पा (मठ) व सड़क से जुड़ा दुनिया का सबसे ऊँचा किब्बर गाँव (अब नहीं रहा)
20- कुन्जुम दर्रे के पास (12 km) स्थित चन्द्रताल की बाइक व ट्रेकिंग यात्रा
21- चन्द्रताल मोड बातल से ग्रामफ़ू होकर रोहतांग दर्रे तक
22- रोहतांग दर्रे पर वेद व्यास कुन्ड़ जहां से व्यास नदी का आरम्भ होता है।
23- मनाली का वशिष्ट मन्दिर व गर्म पानी का स्रोत

KINNAUR, LAHUL SPITI, BIKE TRIP-13                                 SANDEEP PANWAR

मलिंग नाले पर ड़रावनी जगह पार करने के बाद जो उतराई आती है। वह कई किमी लम्बी चली। इस उतराई में आगे जाने पर काजिंग जैसे लूप वाली उतराई भी आयी। मनु हमारे पीछे आ रहा था। मनु का इरादा यहाँ के पहाड़ में हुई कटिंग को नजदीक से देखने का था। सुनहरे व भूरे रंग के पहाड़ की कटिंग देखकर लेह वाली यात्रा से इसकी तुलना होने लगी। कटिंग वाला पहाड़ देखने में ऐसा लगता था जैसे पहाड़ को बारिश के पानी ने घिस कर डिजाइन बनाया हो। कटिंग वाले पहाड़ के ऊपर पहुँच चुके थे। जिस पहाड़ पर हम खड़े थे उसके सामने वाली पहाडी पर भी कुदरत का नायाब नमूना दिखायी दे रहा था। अब तक मनु हमारे पास आ चुका था। मनु ने आते ही हम दोनों को जमकर सुनायी कि सामने वाले पहाड़ पर इस डिजाइन के बीच खड़े होकर फ़ोटो खिचवा सकते थे। तुम्हे तो भागने की मची रहती है। अब 1 किमी आगे निकल आये चलो। अच्छा वापिस चलते है। वापिस जाने को कोई तैयार नहीं हुआ।


पहाड़ पर प्रकृति का कारनामा देखकर व अपने फ़ोटो लेकर आगे चल दिये। ढलान होने के कारण बाइक का पैट्रोल बचाने में दोनों बाइक साथ निभाती थी। स्पीति नदी दिखायी देने लगी। स्पीति के किनारे कोई गाँव भी लग रहा है। गाँव का अंदाजा इसलिये लगाया क्योंकि नीचे स्पीति किनारे काफ़ी हरियाली दिखाई दे रही थी। लूप समाप्त होते ही स्पीति नदी के किनारे पहुँच गये। पहाड़ के ऊपर कोई गाँव नहीं मिला था लेकिन पहाड़ से नीचे आते ही एक गाँव आ गया। इस गाँव में देश पर सबसे ज्यादा राज करने वाली कांग्रेस पार्टी के झन्ड़े लगे दिखायी दिये। खरदांगपो नामक इस जगह पर लगे बोर्ड़ से पता लगा कि हम 3624 मीटर की ऊँचाई से 3018 मीटर पर उतर आये थे। यहाँ काफ़ी हरियाली मिली। इस गाँव में बहुत सारे सेब के पेड़ भेी दिखायी दिये। 

गाँव निकलते ही सड़क की हालत भी खराब होनी शुरु हो गयी थी। अगला गाँव भी जल्द ही आ गया। अगले गाँव चाँगों तक पहुँचने में बाइक को फ़िर से चढायी के लिये जोर लगाना पड़ा। चाँगों मॆं ट्रेफ़िक पुलिस का एक जवान डयूटी करता हुआ दिखा। हम आश्चर्य चकित थे कि यहाँ ट्रेफ़िक पुलिस क्या कर रही है? यहाँ बन्दे तो कई-कई किमी बाद दिखते है फ़िर वाहन तो इक्का-दुक्का ही दिखाई दिये है। चाँगों में भी कोई मोनेस्ट्ररी बनी हुई है। पुल के पास ही उसका प्रवेश मार्ग बनाया गया था। यहाँ आई टी बी पी का कैम्प भी है। इस गाँव के बाद अगला गाँव शलकर आया जिसकी समुन्द्र तल से ऊँचाई 3200 मीटर लिखी हुई थी। इन गाँवों में देखने लायक कुछ खास नहीं था।

शलकर पार करने के बाद सड़क की जगह पत्थर आ गये थे। यहाँ पुल के जरिये एक बार फ़िर स्पीति पार कर उस ओर पहुँच गये। अब हमारी बाइक खड़े व ड़रावने पहाड़ के नीचे भागी जा रही थी। स्पीति हमारे सीधे हाथ बह रही थी। पत्थरों के कारण बाइक बहुत ही सावधानी से चलायी जा रही थी। नीचे नदी का ड़र, ऊपर पहाड़ से पत्थर गिरने का खतरा, जाये तो जाये कहाँ? इसलिये आगे भागम भाग करते रहे। कुछ देर पहले हमारे ऊपर से एक हैलीकाप्टर उड़ते हुए आगे निकला था। हमने सोचा कि सेना का हैलीकाप्टर होगा। लेकिन वह हैलीकाप्टर तो हिमाचल सरकार का निकला।

आगे आने वाला बड़ा गांव सुमडो था। सुमडो की ओर पूरी तरह बरबाद सड़क पर चले जा रहे थे कि सामने से गाडियों का लम्बा काफ़िला दिखायी दिया। काफ़िले के आगे पुलिस की गाड़ी चल रही थी जिन्होंने हमें एक तरफ़ रुकने को कहा। मार्ग सिंगल था जिस कारण हम किनारे पर बाइक लगा रुक गये। वह काफ़िला मुख्यमन्त्री का था। हिमाचल के मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह किसी गाँव में सभा करने जा रहे थे। मुख्यमंत्री अपनी श्रीमति जी के साथ स्कारपियो में बैठे हुए थे। उनके साथ बहुत सारी गाडियाँ थी। हमने अंदाजा लगाया कि पीछे गये शलकर व अन्य गाँवों मॆं इतनी भीड़ नहीं जुटी होगी, जितनी भीड़ इस काफ़िले में गयी है। दो-तीन गाँवों मॆं मुश्किल से 50-60 लोग ही मुख्यमंत्री को देखने व सुनने के लिये आये थे।

सुमडो में स्पीति नदी को पुल के जरिये पार कर एक बार फ़िर सीधे हाथ वाले किनारे आ गये। पुल से आगे जाते ही पुलिस चैक पोस्ट पर हमें रुकने को कहा गया। इस चौकी पर सी सी टी वी कैमरा भी लगा हुआ है। यहाँ फ़ोटो लेना मना है। लेकिन स्टाफ़ कहते ही पुलिस वाला नर्म पड़ा। बोर्ड़ का फ़ोटो लेने की छूट मिल गयी। बाइक पहले ही किनारे लगा दी गयी थी। मनु व राकेश गाडियों के नम्बर लिखवा कर आ गये। इस पुल से ही स्पीति घाटी आरम्भ होती है यह घाटी रोहतांग से आगे ग्रामफ़ू तक बनी रहेगी। सुमडो में चीन की सीमा पर जाने के लिये कौरिक बार्ड़र बहुत नजदीक पड़ता है। कौरिक बार्ड़र यहाँ से मात्र 17 किमी है। कौरिक वाले मार्ग पर सेना के बैरियर है वहाँ जाना आसान कार्य नहीं है। सुमडो में चीन से एक नदी स्पीति में आकर मिलती है।


नाको झील से 2 घन्टे पहले दोपहर का भोजन करके चले थे। टाबो व काजा जाने के लिये सुमडों के चैक पोस्ट से होकर ही जाना होता है। नाको से टाबो की दूरी 62 किमी है। अगर हम सीधे जाये तो यही दूरी तय करने में मात्र 3 घन्टे का समय लगना तय मानिये। हमने आज रात ठहरने की मंजिल टाबो या काजा जहाँ तक पहुँच पाये। पहले से ही सोचा हुआ था। सुमडों में बाइक के नम्बर लिखाने के बाद, वहाँ ज्यादा देर रुकने का कोई कारण हमारे पास नहीं था। अब सुमडो से गियु गाँव की 500 वर्ष पुरानी लामा की ममी देखने चलते है। सुमडो से ममी की दूरी 11 किमी बाकि रह जाती है।


सुमडो से चलते ही कौरिक वाला मार्ग सीधे हाथ अलग हो जाता है। हमें पहले से ही राकेश ने यह जानकारी दे दी थी कि कौरिक वाले मार्ग पर सेना के जवान आगे जाने नहीं देते है। वैसे शिमला पार करते ही कौरिक की दूरियाँ वाले शिलापट दिखायी देते रहते है। आज उसी कौरिक के पास पहुँच गये थे। यदि सेना वहाँ जाने की आज्ञा देती तो हम भी वहाँ से चीन के दर्शन कर आते। सुमडो से लगभग 2 किमी आगे जाते ही उल्टे हाथ पर पुल के साथ एक मार्ग गियु ममी देखने के लिये अलग कटता है। जिस मोड़ से गियु गाँव स्थित लामा की ममी देखने के लिये मुड़ते है। वहाँ से गियु में लामा की ममी की दूरी मात्र 8 किमी रह जाती है। सुमडो से मात्र दो किमी चलते ही गियु वाला मोड़ आता है।

गियु वाले मार्ग पर चलते ही जोरदार चढाई ने हमारा स्वागत किया। राकेश की 500 cc की बाइक भी यहाँ पहले गियर में चढाने की नौबत आ पहुँची थी। मैं सोच रहा था कि मनु की 100 cc बाइक तो रोने लगी होगी कि मेरी इतनी हैसियत नहीं है जितना तुम मुझे पिलाने पर तुले बैठे हो। चढाई काफ़ी तीखी व सीधी थी जिससे मुझे बाइक पर पीछे बैठने में समस्या आ रही थी। राकेश तो बाइक चला रहा था जिस कारण पकड़ने के लिये उसके हाथों में हैंडिल था लेकिन मेरे पास पकड़ने के लिये कुछ नहीं था इसलिये मैंने राकेश को ही पकड़ लिया। मेरी पीठ पर कई किलो का बैग भी लदा हुआ था जिससे बैलेंस सही से बन नहीं पा रहा था।

मात्र 8 किमी की दूरी चढने में हमें 20 मिनट लग गये। आठ किमी की दूरी में कई बार बाइक रोककर फ़ोटो लिये गये। गियु गाँव से तीन किमी पहले कई लूप आते है इन लूप को चढते ही गियु गाँव दिखायी देने लगता है। गियु गाँव अभी दूर था लेकिन गियु गाँव के ठीक पीछे वाला पहाड़ हमें अपनी ओर खींचे चला जा रहा था। जिस पहाड़ का जिक्र मैंने किया है उसमें प्रकृति ने बेहद की खूबसूरती से अपना कार्य अंजाम दिया हुआ है। गियु वाले पहाड़ के पीछे ही चीन की सीमा भी आती है।

गांव आते ही हरियाली दिखाती दे जाती थी। यहाँ गांव में घुसते ही सबसे पहले ममी का ठिकाना पता करने की जरुरत नहीं पड़ी। एक जीप हमारे आगे-आगे भागी जा रही थी। जीप वाले जरुर ममी देखने के लिये आये होंगे। चलो उनके पीछे-पीछे चलते है। जीप वाले गाँव में घुसने के बाद एक जगह रुक गये। गियु नाले से चलते समय 3100 मीटर की ऊँचाई पर बाइक थी जबकि गियु ममी वाली जगह समुन्द्र तल से 3700 मीटर है यहां इतनी ऊँचाई तक पहुँचने में मात्र आठ किमी बाइक चलायी गयी। आज के लेख में गियु ममी वाले गाँव तक की यात्रा का वर्णन किया गया है। अगले लेख में गियु की 500 वर्ष पुरानी ममी देखकर टाबो के धनकर गोम्पा तक ले जाया जायेगा। (यात्रा अभी जारी है।)
















ममी के लिये यहां से उल्टे हाथ जाये



3 टिप्‍पणियां:

  1. पर्वत के विस्तृत सीने पर खेल रहे हम लघुउन्मादी।

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  2. आपको कितना धन्यवाद दूँ...जो आप अपने यात्रा विवरण इतनी सहज भाषा में हम तक पहुंचते हैं...फोटोज़ के लिए विशेष आभार...

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  3. नीरज जाट के लेख में इन पहाड़ो का जिक्र था---पर तुम्हारा अलग अंदाजे बया पसंद आया---- मनु के लेख में मम्मी का जिक्र पढ़ चुकी हूँ

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