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बुधवार, 18 दिसंबर 2013

500 years old Gue Lama's Mummy to Tabo गियु लामा की ममी से ताबो (टाबो) तक

किन्नौर व लाहौल-स्पीति की बाइक यात्रा के सभी लेख के लिंक नीचे दिये है।
11- सतलुज व स्पीति के संगम (काजिंग) से नाको गाँव की झील तल
12- नाको गाँव की झील देखकर खतरनाक मलिंग नाला पार कर खरदांगपो तक
13- खरदांगपो से सुमडो (कौरिक बार्ड़र) के पास ममी वाले गियु गाँव तक (चीन की सीमा सिर्फ़ दो किमी) 
14- गियु में लामा की 500 वर्ष पुरानी ममी देखकर टाबो की मोनेस्ट्री तक
15- ताबो मोनेस्ट्री जो 1000 वर्ष पहले बनायी गयी थी।
16- ताबो से धनकर मोनेस्ट्री पहुँचने में कुदरत के एक से एक नजारे
17- धनकर गोम्पा (मठ) से काजा
18- की गोम्पा (मठ) व सड़क से जुड़ा दुनिया का सबसे ऊँचा किब्बर गाँव (अब नहीं रहा)
20- कुन्जुम दर्रे के पास (12 km) स्थित चन्द्रताल की बाइक व ट्रेकिंग यात्रा
21- चन्द्रताल मोड बातल से ग्रामफ़ू होकर रोहतांग दर्रे तक
22- रोहतांग दर्रे पर वेद व्यास कुन्ड़ जहां से व्यास नदी का आरम्भ होता है।
23- मनाली का वशिष्ट मन्दिर व गर्म पानी का स्रोत

KINNAUR, LAHUL SPITI, BIKE TRIP-14                                                SANDEEP PANWAR

सुमडो से दो किमी आगे जाने पर गियु मोड़ आता है गियु मोड़ वाली जगह समुन्द्र तल से 3100 मीटर की ऊँचाई पर है। जबकि गियु गाँव में ममी वाला मन्दिर समुन्द्र तल से 3700 मीटर ऊँचाई पर है। हाईवे से मात्र 8 किमी आने में ही ऊँचाई 600 मीटर चढने में बाइक की कड़ी मेहनत हो जाती है। गियु गांव में घुसते ही हमें ममी का ठिकाना पता करने की जरुरत नहीं पड़ी। एक जीप ममी देखने जा रही थी। हम भी उनके पीछे-पीछे चल दिये। जीप वाले गाँव में घुसने के बाद ममी का पता ठिकाना पता करने के लिये एक दुकान पर रुक गये। दुकान वाले ने उन्हे बताया कि आप गाँव से ऊपर निकल जाओ। यह मार्ग लामा की ममी वाले मन्दिर तक ही जाता है। दुकान वाले की बाते सुनकर हम जीप से पहले चल दिये। गाँव से एक किमी आगे ऊपर की ओर जाने पर उल्टे हाथ ममी का मन्दिर आ गया।


गियु में गांव से एक किमी ऊपर लामा वाली ममी का नया मन्दिर बनाया जा रहा है। इस मन्दिर को तैयार होने में एक साल का समय और लग सकता है। अभी तक मन्दिर का बाहरी हिस्सा व छत का लैंटर ही बना है। यहाँ नये बनाये जा रहे मन्दिर के बराबर में ही एक छोटा सा कमरा है इस छोटे से कमरे में ही लामा की 500 वर्ष से ज्यादा पुरानी ममी सुरक्षित रखी हुई है। कुछ बाते इस ममी के बारे में भी हो जाये। यहाँ जिस बौदद लामा की ममी रखी हुई है। उसकी उम्र मृत्यु के समय मात्र 45 साल थी। दुनिया में यह एकमात्र ममी है जो बैठी हुई अवस्था में है। मिश्र की ममी दुनिया भर में मशहूर है। मैंने अब तक दो ममी देखी है इससे पहले मैंने पुराने/ओल्ड़ गोवा के एक चर्च में वहाँ के पुजारी/फ़ादर/मौलवी की ममी देखी है।

मैंने पिछले लेख में बताया था कि यह ममी (तिब्बत) की सीमा से मात्र दो किमी दूर है। तिब्बत से गियु गाँव में आकर तपस्या करने वाले लामा सांगला तेनजिंग साधना में लीन होते हुए अपने प्राण त्याग बैठे थे। तेनजिंग बैठी हुई अवस्था में थे। इनकी ममी आज भी बैठी हुई अवस्था में ही है। हमें कमरे में बन्द ममी के नजदीक जाने का अवसर नहीं मिल सका। लेकिन खिड़कियों से ममी साफ़-साफ़ दिखायी दे रही थी। ममी का चेहरा देखकर ऐसा लगता है जैसे किसी की मूर्ति यहाँ स्थापित की गयी हो। मनु के ब्लॉग अनुसार- यह ममी पहले गियु गाँव के एक स्तूप में स्थापित थी।

सन 1974 में यहाँ आये भूकम्प में यह ममी जमीन में दफ़न हो गयी थी। सन 1995 में आई टी बी पी के जवानों ने सड़क बनाते समय खुदाई में यह ममी पुन: प्राप्त हुई। खुदाई के समय इस ममी के सिर में कुदाल लगने से खून भी निकल आया था। सन 2009 तक यह ममी ITBP के कैम्पस में रखी हुई थी। गाँव वालों ने ममी देखने के आने वाले बाहरी लोगों की भीड़ देखकर ममी को अपने गाँव में स्थापित कर लिया। इस ममी की वैज्ञानिक जाँच में इसकी उम्र 545 वर्ष पायी गयी है। ममी बनाने में एक खास किस्म का लेप मृत शरीर पर लगाया जाता है लेकिन इस ममी पर किसी किस्म का लेप नहीं लगाया है फ़िर भी इतने वर्षों से यह ममी कैसे सुरक्षित है?

बौदद धर्म में गुरुओं की ममी बनाने की लम्बी परम्परा है हिमाचल में ही बौदद लामा की दूसरी ममी मैकलोड़गंज में है जिसे दलाई लामा के गुरु की ममी कहा जाता है। इसके अलावा कांगड़ा के बैजनाथ में तांजोग मठ में गुरु आमतीन की ममी है। मौका लगा तो वे ममी भी देख ली जायेगी। इस ममी के नाखून व बाल के बारे में बताया गया है कि इनका बढना बन्द हो गया है। वैज्ञानिक कहते है कि ममी की कोशिकाएं समाप्त हो चुकी है। मनु के आने से पहले हम दोनों ममी को खिड़कियों से देख चुके थे। मनु की बाइक ने मनु को जमकर रुलाया। मनु हमारे आने के 7-8 मिनट बाद आ सका।

मनु के आते ही फ़ोटो लेने शुरु किये गये। जीप वाले मनु से पहले पहुँच चुके थे। जब तक हमने फ़ोटो लिये जीप वाले ममी को देखकार वापिस चलते बने। ममी के मन्दिर से चारों ओर स्वर्ग जैसा माहौल था। यहाँ आकर वापिस लौटने का मन नहीं करता। गियु गाँव के पीछे जो पहाड़ है उसके ठीक पीछे तिब्बत यानि चीन की सीमा लगती है। तिब्बत जाना आसान कार्य नहीं है क्योंकि गियु के पीछे जो पहाड़ है उस पर वर्ष भर बर्फ़ रहती है। वह पहाड़ एकदम खड़ी चढाई वाला है जाहिर है तिब्बत वाली दिशा में भी उसकी दुर्गमता कम नहीं होगी। नहीं तो चीन के सैनिक लेह के चुमार की तरह यहाँ भी गियु वालों को ड़राने व घूमने आ जाया करते।

ममी वाला मन्दिर गाँव से बहुत ऊँचाई पर बनाया गया है यहाँ से पूरा गाँव व पूरी घाटी दिखायी देती है। अभी सितम्बर माह का मध्य चल रहा है यहाँ के ऊँचे पहाडों पर अभी से ताजी बर्फ़बारी दिखाई देने लगी है। जनवरी फ़रवरी में गिरने वाली बर्फ़ से यहाँ की हालत बदतर हो जाती होगी। ममी देखकर टाबो की ओर चलने के अलावा, हमारे पास कोई कारण नहीं था। गियु से टाबो की ओर चलते समय बाइक स्टार्ट करने की ज्यादा आवश्यकता नहीं पड़ती है। गियु नाला के साथ रहने वाली कच्ची-पक्की सड़क पर वापसी में तेज ढलान मिला। ऊपर जाते समय इस चढाई ने हमारी दोनों बाइकों को नानी याद दिला दी थी। बिना स्टार्ट किये बाइक चलाने का अलग सुख है।

ममी से आठ किमी की उतराई वाली दूरी मजे-मजे में पार नहीं हो गयी। इस उतराई के दो-तीन किमी ही उतरे थे कि राकेश बोला, जाट भाई बाइक का पिछला ब्रेक फ़ेल हो गया है। बाइक के ब्रेक फ़ेल होने की बात सुनते ही चिंता होने लगी। राकेश ढलान पर तेजी से बाइक चला रहा था। अब बाइक के अगले ब्रेक के सहारे ही यह तीखी ढलान पार करनी थी। ढलान पर हम पैट्रोल बचाने के चक्कर में बाइक की गति बनाये रखने के लिये बिना गियर लगाये बाइक चलाते थे। एक ब्रेक के सहारे बाइक की गति नियंत्रित नहीं हो सकती थी। इसलिये बाइक में तीसरा दूसरा/गियर लगाकर बाइक चलानी पड़ी। मैंने राकेश से एक बार पूछा भी था राकेश भाई मजाक तो नी कर रहे हो?

हाईवे पर आते ही गियु मोड़ का बाइक सहित फ़ोटो लेकर आगे बढ चले। हाइवे पर स्पीति नदी के किनारे चलते हुए एक जगह ऐसी आयी जहाँ पर एक पहाड़ी नाला पार करने वाला लोहे का पुल नाले में आये मलबे के कारण तबाह हो चुका था। चूंकि सितम्बर में पहाडी नालों में पानी बहुत कम रह जाता है अत: हमे भी इस पहाड़ी नाले में कम पानी होने के कारण पार करने में समस्या नहीं आयी। इस पुल के ऊपर से भी मलबा निकल चुका है। पुल अपनी जगह से खिसक कर 3-4 मीटर आगे चला गया है। इस पुल से आगे एक जगह रुककर ब्रेक की जाँच भी की गयी लेकिन हमारी समझ में ब्रेक की बीमारी नहीं आ पायी।

इस तबाह हुए पुल को पार करते ही बहुत दूर तक सीधी सड़क दिखायी दी। पूह के बाद यह पहला मौका था जहाँ हमें इतनी दूर तक एकदम सीधी सड़क दिखायी दे रही थी। सड़क की हालत काफ़ी ठीक थी जिस पर हमारी बाइके भागी चली जा रही थी। सुबह सांगला से चलते समय सोचा था कि रात होने तक काजा पहुँच जायेंगे। अभी दिन छिपने में घन्टा भर बाकि था। अगर सड़क इसी प्रकार ठीक-ठाक मिलती रही तो काजा पहुँचने की उम्मीद बनी रहेगी। इस सड़क पर चड़ीगढ नाम का एक गांव भी आया। चड़ीगढ शहर इस गाँव से 500 किमी दूर है। सुरक्षित गति से बाइक भगाये जा रहे थे बीच-बीच में फ़ोटो लेने लायक जगह दिखाई देती तो उसका फ़ोटो भी ले लेते थे। बाइक का ब्रेक अपने आप सही हो गया। ब्रेक सही होने के बाद भी उसपर हमने पूरी तरह विश्वास नहीं किया था।

टाबो से थोड़ा सा पहले एक बोर्ड दिखायी दिया जिस पर काजा की दूरी 46 किमी लिखी हुई थी। सूर्य छिपने जा रहा था। पहाड़ी मार्ग में अंधेरा होने के बाद मैं बाइक चलाने को मान्यता नहीं देता। टाबो से रोहतांग की दूरी 200 किमी के करीब थी जिसमें से 24 किमी ChandraTal/Moon Lake आने-जाने में अलग से बाइक चलने वाली थी। कुन्जुम टॉप ही 118 किमी बाकि था। इस मार्ग पर असली दुर्दशा कुन्जुम से आगे आती है। बोर्ड का फ़ोटो लेकर आगे बढते ही टाबो मोनेस्ट्री देखने के लिये मुड़ना था। टाबो मोनेस्ट्री देखने के लिये उल्टे हाथ वाले मार्ग पर मुड़ गये। अगले लेख में टाबो का धनकर गोम्पा दिखाकर रात में हैलीपैड़ पर सोने की तैयारी के बारे में बताया जायेगा। (यात्रा अभी जारी है।) 






















6 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत ही रोमांचक। ………। आपकी गाडी का ब्रेक फ़ैल हुआ यह पढ़ कर हमें तो बहुत चिंता होने लगी कि बाकी यात्रा कैसे पूरी होगी

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  2. बहुत ही शानदार रोमांचक स्टोरी चल रही है--पुर नावेल ख़त्म कर के ही उठूँगी हा हा हाहा
    ये बरसादी नाले बहुत भयंकर भी होते है हम जब रोहतांग जा रहे थे तो हमने सुना था कि एक कार इस बरसादी नाले में बह गई है सारा परिवार बह गया था

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  3. ममी की अवधारणा वहृद नहीं है भारतीय संस्कृति में, हम शरीर से अधिक शब्दों को अपनाते हैं, शरीर तो नश्वर है।

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