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गुरुवार, 19 दिसंबर 2013

1000 years old Tabo Monastery ताबो की एक हजार साल पुरानी मोनेस्ट्री

किन्नौर व लाहौल-स्पीति की बाइक यात्रा के सभी लेख के लिंक नीचे दिये है।
11- सतलुज व स्पीति के संगम (काजिंग) से नाको गाँव की झील तल
12- नाको गाँव की झील देखकर खतरनाक मलिंग नाला पार कर खरदांगपो तक
13- खरदांगपो से सुमडो (कौरिक बार्ड़र) के पास ममी वाले गियु गाँव तक (चीन की सीमा सिर्फ़ दो किमी) 
14- गियु में लामा की 500 वर्ष पुरानी ममी देखकर टाबो की मोनेस्ट्री तक
15- ताबो मोनेस्ट्री जो 1000 वर्ष पहले बनायी गयी थी।
16- ताबो से धनकर मोनेस्ट्री पहुँचने में कुदरत के एक से एक नजारे
17- धनकर गोम्पा (मठ) से काजा
18- की गोम्पा (मठ) व सड़क से जुड़ा दुनिया का सबसे ऊँचा किब्बर गाँव (अब नहीं रहा)
20- कुन्जुम दर्रे के पास (12 km) स्थित चन्द्रताल की बाइक व ट्रेकिंग यात्रा
21- चन्द्रताल मोड बातल से ग्रामफ़ू होकर रोहतांग दर्रे तक
22- रोहतांग दर्रे पर वेद व्यास कुन्ड़ जहां से व्यास नदी का आरम्भ होता है।
23- मनाली का वशिष्ट मन्दिर व गर्म पानी का स्रोत

KINNAUR, LAHUL SPITI, BIKE TRIP-15                                       SANDEEP PANWAR

ताबो में हाई वे के बोर्ड पर काजा की दूरी 46 किमी लिखी हुई थी। बोर्ड का फ़ोटो लेकर ताबो मोनेस्ट्री देखने के लिये मुड़ गये। ताबो में प्रवेश करने के लिये एक दरवाजे से होकर आगे जाना पड़ता है। कुछ बच्चे वहाँ खेल रहे थे उनसे ताबो मोनेस्ट्री के बारे में पता किया। इस दरवाजे को पार कर उल्टे हाथ जाने पर हैलीपेड़ आता है जबकि सीधे हाथ जाने पर ताबो की मोनेस्ट्री देखने जाते है। हमारा इरादा ताबो मोनेस्ट्री देखकर आगे काजा की ओर निकलने का था। मोनेस्ट्री के मुख्य गेट से परिसर में घुस गये। हमने अपनी बाइके एक किनारे खड़ी कर दी। सामने ही तिब्बती स्मारक रुपी निशान दिखाई दे रहा था। इसके फ़ोटो मोनेस्ट्री देखने के बाद वापसी में लिये थे जबकि आपको पहले दिखाये गये है।


इस निशान के बराबर से ही मोनेस्ट्री के मुख्य भवन में जाने का मार्ग है। हम तीनों मोनेस्ट्री के दरवाजे से होकर अन्दर चले गये। वैसे हमें बाहर ही पता लग गया था कि मोनेस्ट्री अभी तो बन्द हो चुकी है। मोनेस्ट्री के कमरे ही बन्द थे। कमरों के अन्दर चित्रकारी वाले कुछ फ़ोटो थे। उनके फ़ोटो लेने की मनाही करता बोर्ड़ सामने लगाया गया। इसलिये हमारे लिये तो मोनेस्ट्री ही ज्यादा कीमती थी जिसके फ़ोटो लेने की छूट थी। हम मोनेस्ट्री में काफ़ी देर तक रुके रहे। मोनेस्ट्री के कमरे मिट्टी की दीवार से बने हुए थे। आजकल इस प्रकार के मिट्टी से लीपे पोते गये घर मैदानी भारत के बहुत पिछड़े इलाकों में ही दिखाई देते है। वर्तमान में ताबो में बनाये जा रहे सभी प्रकार के निर्माण में सीमेंट का प्रयोग किया जा रहा है। यहाँ बारिश नहीं के बराबर ही होती है जिस कारण मिटटी से बने मकान भी सालों-साल चलते रहते है। स्पीति घाटी में मिट्टी से बने हुए घर बहुतायत में दिखाई दिये थे।
ताबो हिमाचल के लाहौल स्पीति जिले में स्पीति नदी के किनारे बसा एक छोटा सा शहर है। समुन्द्र तल से ताबो की ऊँचाई 3050 मीटर है। ताबो का मठ सन 996 में रिंगचेन जैंगपो ने बनवाया गया था। जी हाँ ताबो का मठ एक हजार वर्ष से ज्यादा पुराना है। इस गोम्पा में पेंटिंग्स व धर्मग्रथों का विशाल संग्रह है। यहाँ का मुख्य मठ तुसलांग है। सन 1996 में इस गोम्पा ने अपने एक हजार वर्ष पूरे कर लिये है। बौदद धर्म के दलाई लामा यहाँ प्रत्येक वर्ष जुलाई-अगस्त माह में होने वाले कालचक्र समारोह का शुभारम्भ करते है। गोम्पा के सामने वाले पहाड़ में प्रकृति निर्मित गुफ़ा है। इन्हे हिमालय की अंजन्ता ऐलौरा कहा जाता है। प्रवचन के बाद अपनी यात्रा की ओर चलते है।

दिन छिपने में थोड़ा बहुत समय बाकि था। मोनेस्ट्री में घूमने के बाद रात का भोजन करके आगे की योजना बनाने की बात हुई। पहले तय हुआ था कि ताबो की मोनेस्ट्री देखकर यहाँ से आगे चलेंगे। रात में सड़क किनारे किसी उचित जगह देखकर टैन्ट लगा देंगे। हिमालय का अजंता-एलौरा कही जाने वाले गुफ़ाएँ भी इसी छोटे से शहर में सामने वाली पहाड़ी पर बतायी गयी है। राकेश खाना खाते ही आगे चलने की बात कर रहा था जबकि मनु यही रुकने की कह रहा था। अगर हमें गुफ़ाएँ देखनी है तो रात में यहाँ रुकना चाहिए, अन्यथा आगे की राह पकड़ने में ही भलाई है।

यह गोम्पा मैदान में बना हुआ है जबकि अब तक जितने में गोम्पा देखे है सभी पहाडी पर आड़े-तिरछे बने हुए है। इस गोम्पा के बारे में कहा जाता है कि इसका नम्बर तिब्बत में स्थित गोम्पा के बाद आता है। यहाँ पहुँचने के लिये अपना वाहन सबसे अच्छा साधन है। कुल्लू से यहाँ आने के लिये काजा के लिये चलने वाली एकमात्र बस में बैठ कर काजा तक आना पडेगा। काजा से पूह/ रिकांगपियो/ रामपुर/ शिमला के लिये दिन भर में इक्का-दुक्का चलने वाली बस में बैठकर ताबो आना पडेगा। इस मार्ग पर ट्रक व निजी जीप चलती तो है लेकिन उनकी संख्या भी नाममात्र ही है। वैसे मनाली वाला मार्ग कुन्जुम होकर आता है जो वर्ष के सिर्फ़ चार माह ही खुला रह पाता है।  

पहले भोजन करना था। राकेश और मनु को भूख काफ़ी तंग कर रही थी। बहती गंगा में मुझे भी डुबकी लगा लेनी थी। भोजन करने के लिये हमारे पास काफ़ी सेब बचे हुए थे पूरे दिन में हमने कुल मिलाकर 8-10 सेब ही खाये होंगे। दो-तीन बन्दों से बढिया भोजन बनाने वाले ढाबे के बारे में पता किया। बताये गये ढाबे वाले से भोजन के बारे में पता करने गये तो वहाँ ढाबे वाली मिली हमने उससे ही पता किया कि भोजन तैयार है या नहीं। जवाब मिला “आधा घन्टा”। मैं और मनु तो चाहते ही यही थे कि ढाबे पर जितना ज्यादा बैठने का मौका हमें मिलेगा, हमारे कैमरों की बैटरियाँ उतनी ज्यादा चार्ज हो जायेंगी।

हम भोजन बनने से भोजन करने तक मिलाकर घन्टा भर रुके रहे। लेकिन हमारी बैट्री आधा-पौना घन्टा ही चार्ज हो पायी होगी कि बिजली चली गयी। ढाबे वाली ने बताया कि इस वर्ष यहाँ कई महीनों तक बिजली नहीं आ पायी थी। बीती सर्दियों में भारी बर्फ़बारी के कारण हुए भूस्खलन से स्पीति नदी व सड़क किनारे बनाकर लायी गयी बिजली की लाईन जगह-जगह से टूट गयी थी जिसे ठीक करने में 5-6 महीने लग गये थे। इतने लम्बे समय तक सौर ऊर्जा के सहारे लोगों ने अपना काम चलाया था। सौर ऊर्जा भी बड़े काम की चीज है इसके बारे में ताबो वालों से बेहतर कौन बता सकता है? मुझे नरेन्द्र मोदी जी वह योजना बहुत अच्छी लगती है जिसमें उन्होंने गुजरात में कई सौ एकड़ में सौर ऊर्जा प्लांट लगाया है।

राकेश का कारोबार अधिकतर फ़ोन पर ही चलता है लेकिन आज इस यात्रा का पहला दिन ऐसा रहा जिसमें राकेश का फ़ोन नेटवर्क डेड़ हो चुका था। राकेश का फ़ोन बन्द होने की खुशी सबसे ज्यादा मुझे थी। मैं अपने घर दिन में एक बार फ़ोन कर सूचित कर देता था कि आज हम कहाँ है और कल कहाँ पर पहुँच सकते है? ताबो आने से पहले मैंने दिन में घर पर फ़ोन कर दिया था कि हो सकता है कि अगले दो दिन तक फ़ोन ना कर पाऊँ? मैं हर दूसरे महीने घर से बाहर रहता हूँ इसलिये परिवार को भी आदत हो चुकी है कि हर यात्रा में एक-दो फ़ोन ना मिले तो भी चलेगा।

खाना बनने में समय था तब तक मनु व राकेश सामने ही एक साइबर कैफ़े की दुकान पर फ़ोन करने चले गये। ताबो में बी एस एन एल का नेटवर्क ही कार्य करता है। मनु ने लौटने पर बताया था कि यहाँ पर सेटलाइट से नेट व फ़ोन कार्य करता है। भारत की अन्य छोटी मोटी मोबाइल कम्पनी यहाँ तक पहुँचने की हिम्मत नहीं जुटा पायी है। जब तक वे दोनों फ़ोन कर आये तो भोजन बनकर तैयार हो चुका था। गर्मागर्म राजमा चावल बनकर हमारे सामने आ चुका था। खाना बनाने वाले हिमाचल के निवासी नहीं थे नेपाल से यहाँ आकर किराये पर ढाबा चलाना हर किसी के बसकी बात नहीं है। ऐसा ही कुछ पांगी वैली में देखा था जब हमारे साथियों की पल्सर बर्फ़ीले पानी में बहने से दुबारा स्टार्ट ना हो पायी थी। वहाँ भी नेपाली परिवार ढाबा चला रहा था।

भर पेट भोजन किया। राजमा चावल के साथ रोटी भी मिली लेकिन रोटी से ज्यादा राजमा चावल अच्छे लगे। भोजन करने के उपराँत सोने या चलने की बारी थी। अपने कैमरे चार्जिंग से हटाकर बैग में रख लिये। अंधेरा हुए घन्टा भर से ज्यादा हो चुका था इसलिये आगे चलने की बात मना कर, रात में वही ठहरना तय हुआ। ढाबे वाली से टैन्ट लगाने लायक जगह के बारे में पता कर लिया। टैन्ट वाली ने बताया कि हैलीपेड़ पर काफ़ी जगह मिल जायेगी। इस यात्रा के पहले दिन सराहन में भीमाकाली मन्दिर के पास टैन्ट में ही रुके थे। दूसरे दिन सांगला में बारिश के कारण कमरा लिया था। टैन्ट साथ होने से पैसों की बचत हो रही थी।

आज तीसरे दिन ताबो में एक बार फ़िर टैन्ट लगाने के लिये हैलीपेड़ का ही सहारा लिया। हैलीपेड़ नजदीक ही था यहाँ आते समय उसकी जानकारी मिल ही चुकी थी। अंधेरे में टैन्ट लगाना मुश्किल कार्य था। इसलिये बाइक की लाइट जलाकर टैन्ट लगा लिया गया। यहाँ पर टैन्ट के कोने पत्थरों के सहारे बांध दिये गये थे। राकेश को आज पहली बार पता लग गया कि टैन्ट लगाने के लिये कील गाड़ने की आवश्यकता नहीं पड़ती है। मैं दो दिन से राकेश को यह समझाने की कोशिश कर रहा था। नीचे बिछाने के लिये मैंने अपना मैट मनु को दे दिया। अपने नीचे फ़ोन्चू ड़ालकर अपनी सदाबहार गर्म चददर बिछा ली गयी।

सुनसान रात में स्पीति नदी की आवाज सुनायी दे रही थी। रात में कुल मिलाकर ठीक-ठाक नीन्द आयी। स्लिपिंग बैग में कैदी की तरह बन्द होकर सोना पड़ता है इस कारण मैंने अपने स्लिपिंग बैग की चैन खोलकर ही रखी थी। ताबो में बहुत ज्यादा ठन्ड़ नहीं मिली। सुबह जल्दी आँखे खुलने की आदत है उजाला होने की प्रतीक्षा करता रहा। जैसे ही उजाला होने लगा, दोनों को जगा दिया। उठते ही ताबो से आगे चलने की तैयारी करने लगे। सुबह उठते ही फ़ेश होने की समस्या आती है इसलिये फ़टाफ़ट तैयार होकर ताबो से आगे की यात्रा के लिये प्रस्थान कर दिया।

अगले लेख में ताबो से काजा की ओर जाते समय धनकर गोम्पा/ मठ तक की सुन्दरतम पर्वतों के मध्य की गयी यात्रा के बारे में बताया जायेगा। ताबो से काजा की दूरी 46 किमी बाकि थी। टाबो से रोहतांग की दूरी 200 किमी के करीब थी। ताबो से कुन्जुम टॉप ही 118 किमी बाकि था। इस मार्ग पर असली दुर्दशा कुन्जुम पास/ दर्रा के नजदीक पहुँचकर ही आती है। (यात्रा अभी जारी है।)























10 टिप्‍पणियां:

  1. यहाँ के दरवाजे बड़े ही सुंदर दिखाई देते है --- मिटटी के मकान गर्मी में ठन्डे और सर्दी में गरम होते है इसलिए जब पंखें नहीं होते थे तो मकान ऐसे ही बनते थे--खूबसूरत मॉनेस्ट्री देखकर ही दिल खुश हो गया----
    मजेदार यात्रा चल रही है चावल और राजमा का ज़ायका मुंह में आ गया और एक बात; आपलोगो के तम्बू में यदि कोई जमीनी जिव घुस जाये तो ?????

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  2. हर दूसर महीने तुम भाग जाते हो तो नोकरी कैसे करते हो ?

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  3. भाई राम-राम,एक चित्र मे हाथी ओर मनुष्य की कहानी दर्शायी गयी है हाथी काले से सफेद कैसे हो गया कुछ प्रकाश डाले?
    ओर एक चित्र मे कुछ पहाडी पर लिखा है वो क्या है?

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  4. सौर ऊर्जा निश्चय ही समाधान है यहाँ के निवासियों को आत्म निर्भर बनाने के लिये। पर्यटन में भी महतीं आवश्यकता होती है बिजली की।

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  5. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

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  6. मुझे नरेन्द्र मोदी जी वह योजना बहुत अच्छी लगती है जिसमें उन्होंने गुजरात में कई सौ एकड़ में सौर ऊर्जा प्लांट लगाया है।

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  7. आपकी इस प्रस्तुति को आज की बुलेटिन बलिदान दिवस और ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है।कृपया एक बार आकर हमारा मान ज़रूर बढ़ाएं,,, सादर .... आभार।।

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  8. सचिन जी, चित्र में पत्थर पर बौद्ध लामाओं द्वारा पढ़ा जाने वाला बीज मंत्र लिखा है-ॐ मणिपद्मे हुम्

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