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रविवार, 15 दिसंबर 2013

Kazing to Nako lake सतलुज व स्पीति के संगम से नाको तक

किन्नौर व लाहौल-स्पीति की बाइक यात्रा के सभी लेख के लिंक नीचे दिये है।
11- सतलुज व स्पीति के संगम (काजिंग) से नाको गाँव की झील तल
12- नाको गाँव की झील देखकर खतरनाक मलिंग नाला पार कर खरदांगपो तक
13- खरदांगपो से सुमडो (कौरिक बार्ड़र) के पास ममी वाले गियु गाँव तक (चीन की सीमा सिर्फ़ दो किमी) 
14- गियु में लामा की 500 वर्ष पुरानी ममी देखकर टाबो की मोनेस्ट्री तक
15- ताबो मोनेस्ट्री जो 1000 वर्ष पहले बनायी गयी थी।
16- ताबो से धनकर मोनेस्ट्री पहुँचने में कुदरत के एक से एक नजारे
17- धनकर गोम्पा (मठ) से काजा
18- की गोम्पा (मठ) व सड़क से जुड़ा दुनिया का सबसे ऊँचा किब्बर गाँव (अब नहीं रहा)
20- कुन्जुम दर्रे के पास (12 km) स्थित चन्द्रताल की बाइक व ट्रेकिंग यात्रा
21- चन्द्रताल मोड बातल से ग्रामफ़ू होकर रोहतांग दर्रे तक
22- रोहतांग दर्रे पर वेद व्यास कुन्ड़ जहां से व्यास नदी का आरम्भ होता है।
23- मनाली का वशिष्ट मन्दिर व गर्म पानी का स्रोत

KINNAUR, LAHUL SPITI, BIKE TRIP-11                                   SANDEEP PANWAR


आगे आने वाली जिस चढाई की बात हो रही थी उसे काजिंग कहते है। यह काजिंग कई हैयरपिन  बैंड़ जैसी दिखने वाली दे दना दन चढाई देखकर लेह वाली गाटा लूप व फ़ोतूला वाली जलेबी बैंड़ की याद हो आयी। इसी काजिंग की चढाई को पार कर नाको झील तक जाना है। इस चढाई से तुरन्त पहले स्पीति नदी बेहद संकरी जगह से होकर बहती है। संकरे भाग में स्पीति नदी अपने अंतिम क्षणों में भयंकरतम रुप में थी। स्पीति का अंतिम क्षण इसलिये कहा क्योंकि आगे जाते ही खाब में सतलुज और स्पीति का संगम हो जाता है। वहाँ से आगे स्पीति का नाम गायब हो सतलुज ही रह जाता है। बारिश ने हमारा पीछा नहीं छोड़ा था। राकेश ने फ़ोन्चू ओढा हुआ था जिसकी ओट में मैंने अपना कैमरा छिपाया हुआ था। कैमरे की कैप गुम होने का टंटा खत्म कर दिया था, उतार कर जेब में ड़ाल ली गयी थी। कैप हटाने के कारण, बारिश के पानी व धूल से बचाने के लिये कैमरे को पन्नी में छुपाना पड़ रहा था। खाब से नाको झील की दूरी 25-26 किमी है।


मनु व राकेश बारिश में भीगने के ड़र से फ़ोटो लेने के लिये अपने कैमरे व मोबाइल को निकाल नहीं पा रहे थे। अब तक मेरे साथ की गयी सभी यात्राओं में साथ गये दोस्तों के कैमरों के फ़ोटो भी मेरे पास है। अपना सीधा सा नियम रहता है कि यात्रा पर जाने वाली सभी दोस्तों के फ़ोटो आपस में बांटे जायेंगे। अब चाहे किसी के पास कैमरा हो या ना हो। काजिंग की चढाई में कम से कम 10-11 बैन्ड़ तो रहे होंगे। सरचू से आगे गाटा लूप वाली चढाई में इससे ज्यादा लूप है लेकिन चढाई के मामले में यह भी कम नहीं है। यहाँ के लूप काफ़ी लम्बी दूरी तय करते हुए पहाड़ के ऊपर पहुँचा देते है।

नीचे से ऊपर की सड़क दिखायी नहीं देती है लेकिन जैसे ही एक बैन्ड़ का चक्कर लगाकर पहले वाले बैन्ड़ के ऊपर आते तो नीचे की सारी सड़क दिखायी देने लगती थी। तीन चार लूप चढने के बाद बारिश में ही फ़ोटो लेने शुरु कर दिये। इसके बाद जितने भी लूप पूरे होते थे प्रत्येक लूप के मोड़ से नीचे के सीन का फ़ोटो ले लिया जाता था। राकेश को कैमरे से फ़ोटो लेने से ही सब्र नहीं होता था। जहाँ भी हम फ़ोटो लेने के लिये रुकते, महाराज वही अपना मोबाइल निकाल कर फ़ोटो लेने के लिये कहता था। राकेश अपना मोबाइल कैमरे से फ़ोटो लिये जाने के बाद आगे करता था कि जाट एक फ़ोटो मोबाइल से भी ले दो ना।

राकेश ने एक बार भी कैमरे से पहले मोबाइल से फ़ोटो लेने के लिये नहीं कहा था। राकेश को कई बार समझा दिया था कि कैमरे से तुम्हारा फ़ोटो ले तो लिया है फ़िर मोबाइल से लेने की क्या आवश्यकता है? क्या तुम्हे लगता है कि मैं तुम्हे कैमरे के फ़ोटो नहीं देने वाला? अब राकेश बारिश के कारण अपने फ़ोटो लेने के लिये मोबाइल निकाल नहीं पा रहा था। इस बात पर राकेश के साथ टसन लेने में मजा आ रहा था। मैंने कैमरे को बारिश से बचाते हुए, पन्नी में छिपाया हुआ था। राकेश भाई अपना मोबाइल निकालो ना, आपका एक-आध फ़ोटो आपके मोबाइल से भी ले लेता हूँ। राकेश चुपचाप सुनता रहता।

काजिंग के लूप बेहद लम्बे है जिस कारण एक लूप पूरा करने में बाइक एक किमी से भी ज्यादा चल लेती थी। कांजिग की चढाई पूरा करने में हमारी बाइक लगभग 6 किमी चली होगी। स्पीति नदी की धारा नीचे छूट गयी थी। हम कुछ देर पहले सतलुज के किनारे चल रहे थे काजिंग पूरा करने में हम कितना चढ चुके थे? इस बात का पता हमें उस बोर्ड़ को देखकर चला। जिस पर काजिंग की अधिकतम ऊँचाई 2900 मीटर लिखी थी। जबकि न्यूनतम ऊँचाई 2600 मीटर है 2600 मी से 2900 मीटर पहुँचाने में मात्र 6 किमी बाइक चली। लेह वाली यात्रा के गाटा लूप में कुल दूरी 9 किमी आती है जिसमें 4200 मीटर से 4600 मीटर तक पहुँचा जाता है। काजिंग के बोर्ड़ से आगे का मार्ग लगभग समतल दिख रहा था। सड़क पूह से ही मस्त चली आ रही थी। अगर पूह से पहले वाली सड़क यहाँ तक रही होती तो पिछवाड़े का तबला बन जाता। आज बैग में वजन बढ गया था बैग का वजन 7-8 किलो पहुँच गया था। कंधे पर वजन महसूस हो रहा था लेकिन परेशान होने वाली बात नहीं थी।

काजिंग से आगे जाने पर लियो गांव दिखायी देने लगता है। एक मोड़ से यह साफ़ दिखायी देता है। हमने इस गाँव के कई किमी दूर से फ़ोटो लिये। हमने आपस में बातचीत की और अंदाजा लगाने लगे कि क्या हम उस गाँव से होकर जायेंगे? हमारी बाइक लेह जैसी रेगिस्तानी जगह से होकर निकल रही थी। अगर इस यात्रा की तुलना लेह से की जाये तो यह यात्रा लेह पर भारी पड़ती दिखायी देती है। लेह वाली यात्रा में खतरनाक पहाड़ नहीं आते है जबकि इस यात्रा में हर दिन खतरनाक पहाडों से कई बार निकलना पड़ा है।

लियो गाँव की ओर बढते जा रहे थे। लियो अभी 6.6 किमी दूर बाकि रह गया था। लियो गाँव वाला मार्ग व यंगथाँग वाला मार्ग एक ही है जो सीधा चला जाता है। हमें उन दोनों में से किसी भी गाँव में नहीं जाना था। भले ही वहाँ कोई देखने लायक जगह रही हो? (होती तो जरुर जाते?) यहाँ से नाको का मार्ग सीधे हाथ बोले तो दाँये हाथ की ओर अलग होता है। मनु की बाइक पीछे रह गयी थी। इसलिये यहाँ रुककर मनु का इन्तजार किया गया। अभी दोपहर के बारह बजने वाले थे। नाको की दूरी मात्र 13 किमी बची थी। नाको पहुँचने में अधिक से अधिक आधा घन्टा लगना था।

इस तिराहे पर एक महिला बस की प्रतीक्षा में खड़ी हुई थी। बाइक से उतरकर हमने आसपास अच्छी तरह देख लिया था लेकिन हमें कोई गाँव या आबादी दिखायी नहीं दी। जब तक मनु हमारे पास नहीं आया तब तक उस महिला से बाते करते रहे। मनु के आते ही राकेश चलने लगा तो मनु नाराज होकर बोला ये क्या बात हुई? कुछ देर मुझे भी तो यहाँ के नजारे देखने दो। राकेश ने बाइक रोक दी। अबकी बार मनु को आगे जाने दिया। जब मनु काफ़ी दूर चला गया तो राकेश भी बाइक लेकर चल दिया।

कुछ देर बाद हमारी बाइक एक छोटे से गाँव के बीच से होते हुए निकली। इस गाँव में थोड़ी सी हरियाली दिखायी दी। किन्नौर के पहाड़ों पर सूखा रेगिस्तान देखते हुए काफ़ी देर हो गयी थी। हरियाली देखकर आँखों को काफ़ी आराम पहुँचा। चढाई पर मनु की बाइक कमजोर पड़ती थी जिससे हमारी बाइक मनु से आगे निकल जाती थी। एक मोड़ पर नाको की दूरी एक किमी लिखी देखी। वहाँ लगे बोर्ड़ को देखकर पता लगा कि नाको मुख्य सड़क से उल्टी दिशा में एक किमी जाने पर आयेगा। सामने हैलीपैड़ दिखायी दे रहा था। हैलीपैड़ देखकर याद आया कि पहाडों में हैलीपैड़ आपातकालीन स्थिति में बहुत लाभदायक होते है। सर्दियों मॆं भारी बर्फ़बारी के दिनों में हैलीकाप्टर सेवा इन दुर्गम इलाकों में आने-जाने की एकमात्र सुविधा होती है। इन दुर्गम पहाडों में हैली पैड़ कुछ ज्यादा ही दिखायी देने लगे है।

इस मोड़ को देखकर बाइक रोक दी। कुछ देर बाद मनु भी आ गया। नाको इस मोड़ पर एकदम नजदीक आने के बाद ही दिखायी देता है। नाको में एक झील बतायी गयी है। जिस मस्त मार्ग पर हम अपनी बाइक दौड़ा रहे है अपने एक सीनियर ब्लॉगर ड़ाक्टर दराल यहाँ जाने का सपना ना जाने कितने वर्षों से पाले बैठे है लेकिन उनकी किस्मत अभी उन्हे यहाँ ले जाने को तैयार नहीं है। घुमक्कड़ी व परिवार के मामले किस्मत हो तो अपुन जैसी। हम तो यहाँ घूम आये, ड़ाक्टर साहब ना जाने कब यहाँ जायेंगे?


मनु भी आ गया है हम नाको गाँव चलते है बोर्ड बता रहा है कि गाँव मॆं या आसपास ही नाको की झील भी है। अगले लेख में आपको नाको झील व नाको गाँव से आगे मलिंग नाला पार करते हुए सुमडो तक की यात्रा करायी जायेगी। मलिंग नाला बहुत भयंकर है उसमें बड़ी से बड़ी गाड़ी फ़ँस जाती है। ऊपर से बड़े-बड़े पत्थर सड़क पर गिरते है। यह हमारा कहना नहीं है बल्कि नाको गाँव के लोगों ने हमें ऐसा बताया था। मोड़ के किनारे कुछ पत्थर रखे हुए थे जिन पर तिब्बती/लद्दाखी/ अन्य भाषा में कुछ लिखा हुआ था। लिखा होगा कुछ भी अपने लिये तो वो भाषा काला अक्षर भैंस बराबर ठहरा। मनु आगे निकल गया। उसको आगे भेजकर, उसको पीछे छोड़ने में मजा आता था। हमारी बाइक आगे निकलते देख मनु जल भुन जाता होगा। (यात्रा अभी जारी है।)






















4 टिप्‍पणियां:

  1. सच में, इतनी तेज ढलानों में ब्रेक दुरुस्त होना चाहिये।

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  2. मनु कि हिम्मत कि दाद देनी चाहिए कमसे कम वो तुम्हारी बाईक कि बराबरी तो कर रहा था इस खतरनाक जगह पर ---और संदीप कमसे कम उस भाग्यवान केमरे का टक्कन तो दिखा देते जो बार बार आपातकाल स्थिति से बच जाता था ----हा हा हा हा
    और डोंटवरी संदीप ,डॉ दराल साहेब और हम साथ ही वहाँ जायेगे हा हा हा हा

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  3. प्रिय महोदय, यात्रा सिर्फ बाइक से सैर सपाटा भर नहीं है। जिस लोक में आप जाते हैं हैं, उससे खुद को जुड़ने, महसूस करने की भी एक यात्रा होती है। स्पीति का सतलुज में मिलकर राम नाम सत्य हो गया... बेहद आपत्तिजनक लाइनें हैं। इससे पता चलता है कि आप स्पीति की पवित्र घाटी में गए जरूर, लेकिन बस बाइक का धुआं ही उड़ा आए हैं।

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