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बुधवार, 30 अक्तूबर 2013

Shimla- Jakhu Temple शिमला की सबसे ऊँची चोटी व सबसे ऊँची मूर्ति के जाखू हनुमान मन्दिर

किन्नर कैलाश यात्रा के सभी लेख के लिंक नीचे दिये गये है।

KINNER KAILASH TREKKING-10                                         SANDEEP PANWAR

शिमला आने के बाद मेरे साथ बैठी सवरियों ने बताया कि यही उतर जाओ। बस से उस जगह उतर गया जहाँ से जाखू मन्दिर पैदल जाने का मार्ग सबसे कम है। आड़े-तिरछे मोड़ चढ़ते हुए मैं रिज के पास चर्च के सामने पहुँच गया यहाँ से आगे का मार्ग मुझे मालूम था। क्योंकि मैं शिमला वाली ट्राय ट्रेन की यात्रा करते हुए शिमला की सबसे ऊँची चोटी जिसकी ऊँचाई 2455 मीटर(8000 फ़ु) है जाखू मन्दिर पहले भी सन 2007 में आ चुका था। जैसा कि मैं बता चुका हूँ कि मैं पहले भी यहाँ आ चुका हूँ तो दूसरी बार क्यों? मेरी आदत है कि मैं लगभग हर जगह कम से कम दो बार तो अवश्य जाता ही रहा हूँ। जब मैं चर्च के सामने पहुँचा तो मुझे अपनी कई साल पहले की वह यात्रा याद हो आयी, उस यात्रा के दौरान शिमला जैसा छोड़ कर गया था आज भी ज्यादातर वैसा ही दिखायी दे रहा था। चर्च के सामने ही एक पुस्तकालय अर्थात लाइब्रेरी है इसी के बराबर से होकर ऊपर जाने वाला मार्ग जाखू पर्वत पर बने हनुमान मन्दिर जाता है। जब मैं पहली बार यहाँ आया था तो उस वर्ष तक जाखू मन्दिर में हनुमान जी की 108 फ़ुट ऊँची महाविशाल मूर्ति का निर्माण कार्य नहीं हुआ था। जहाँ तक मुझे याद पड़ता है उस यात्रा के समय इसका कार्य भी आरम्भ नहीं हुआ था। यह विशाल मूर्ति शिमला के रिज व अन्य कई स्थलों से साफ़-साफ़ दिखायी देती है।






पुस्तकालय के सामने से ही जोरदार चढाई आरम्भ हो जाती है। यहाँ से पचास मीटर चलते ही जाखू मन्दिर के बारे में जानकारी देता हुआ एक बोर्ड़ लगा हुआ है। जब मैंने अपना कैमरा निकाल कर इसका फ़ोटो लेना चाहा तो एक जवान लड़की उसके सामने आकर खड़ी हो गयी। लड़की ने अपने दोनों कानों में इयरफ़ोन लगाये हुए है। चलो कुछ देर तक मोबाइल पर बात कर लड़की यहाँ से हट जायेगी, तब मैं इस बोर्ड़ का फ़ोटो ले लूँगा। लड़की भी पता नहीं घर-बार से फ़्री होकर आयी थी, जो वहाँ से टस से मस नहीं हुई। मैंने कोशिश की कि जूम करके बोर्ड़ का फ़ोटो आ जाये लेकिन लड़की का चेहरा फ़ोटो में आ रहा था। फ़ोटो मैंने ले लिया था जिसमें लड़की का फ़ोटो भी आ चुका था। मुझे लड़की से ज्यादा मतलब बोर्ड़ में था। खैर कुछ मिनट बाद लड़की वहाँ से हटी तो मैंने बोर्ड का फ़ोटो ले लिया था। अरे हाँ घर आकर उस लड़की का फ़ोटो डिलिट कर दिया गया था। घर आकर घरवाली को फ़ोटो दिखाया तो कहने लगी अच्छा अब पता लगा कि तुम घूमने जाते हो जा लड़कियों को घूरने। मैंने कहा साथ चला कर, जब अपनी साथ होगी तो परायी को नहीं घूरना पड़ेगा। घरवाली ने ट्रेकिंग पर साथ जाने से मना कर दिया बोली कि तुम्हारी ट्रेकिंग तुम्हे मुबारक।

लड़की हट चुकी थी बोर्ड़ खाली हो चुका था फ़ोटो ले लिया गया था फ़िर मैं वहाँ क्यों खड़ा हूँ चलो आगे चलते है। पुस्तकालय/रिज/चर्च से शुरु हुई यह जोरदार चढाई ऊपर जाखू मन्दिर तक लगातार बनी रहती है। जाखू मन्दिर की रिज मैदान से दूरी पूरे डेढ किमी बतायी जाती है लेकिन चढ़ाई इतनी मजेदार है कि लगता है कि जैसे 3 km दूरी तय करनी पड़ती हो। शुरु का आधा मार्ग आबादी के बीच से होकर जाता है जिसके दोनों ओर अंग्रेजों के समय काल के घर इस मार्ग की शोभा बढा रहे है। कुछ भी कहो अंग्रेज थे बढिया। आज देश के नेता बिना काम कराये रुपया/धन लूटते है जबकि अंगेज उसी रुपये/धन को अपने देश लेकर जाते थे जो यहाँ लगाने के बाद बच जाता था। अंग्रेजी काल की बनी हुई बहुत सारी इमारते ऐसी है जो आज भी शान से खड़ी हुई है जबकि आजादी के बाद बनायी गयी इमारते तोड़कर नई बनाने की नौबत आ चुकी है। जाखू मन्दिर को देखकर मुझे सरकुन्ड़ा देवी की याद हो आयी उसमें भी इसी तरह छोटी सी दूरी पैदल चलनी पड़ती है लेकिन वो छोटी सी दूरी वहाँ जाने वाले को उसकी हैसियत बता देती है कि बेटा पहाड़ पर चढ़ने की तेरी कितनी औकात है?

मैं अपना रकसैक और मैट लादे ऊपर चढ़ता जा रहा था मेरे सामने तीन बन्दे व दो बन्दी भी ऊपर जाखू मन्दिर ही जा रहे थे। मैं अपना सामान लादे उनके पीछे-पीछे चलता रहा। मैं सोच रहा था कि अपना सामान किसी दुकान पर रख दूँ क्योंकि ऊपर इस सामान को ढो कर ले जाने का क्या लाभ? लेकिन कमबख्त किसी दुकान वाले ने उस समय तक अपनी दुकान नहीं खोली थी। एक दुकान मिली भी लेकिन वो अभी दुकान खोल ही रहा था उसे दुकान खोलते देख मैंने सामान रखने का अपना विचार त्याग दिया कि यदि मैंने इससे सामान रखने को बोला तो सोचेगा कि गाँव बसा नी भिखारी पहले आ गया। मैं मेहनत की खाना पसन्द करता हूँ भिखारी वाली आदत अपने खून में ही नहीं है इसलिये मैं धीरे-धीरे उपर बढ़्ता रहा। मुझसे आगे चले रहे लोग एक-एक करके बैठने लगे। एक किमी जाने तक आगे चल रहे 5 लोगों में से एक भी चलता हुआ दिखाई नहीं दिया। सब थकान में बैठने लगे थे यदि इन लोगों को श्रीखन्ड़ महादेव या किन्नर कैलाश जाने को कह दे तो लगता है कि यही से वापिस भाग जायेंगे। चल अकेला, चल अकेला, तेरा साथ पीछे छूटा चल अकेला।

जब आबादी समाप्त होकर जंगल आरम्भ होने वाला था तो छपाक-छपाक की आवाज सुनकर मेरी मुन्ड़ी उधर घूम गयी। वहाँ का सीन देखकर तबीयत तरोताजा हो गयी। जाखू अभी आधा किमी से ज्यादा दूरी पर बचा था लेकिन जाखू के बन्दर एक घर की छत पर बारिश के पानी के भरने से बने तालाब नुमा जगह में कूदकर स्नान करने में लगे थे। मैं एकटक खड़ा उन्हे निहारता रहा। जब उन्हे निहारते हुए काफ़ी देर हो गयी तो मेरा ध्यान भंग हुआ कि अरे अभी आगे भी जाना है मैं फ़िर से आगे चल दिया। आज व कई साल पहले की यात्रा में एक फ़र्क दिखायी दिया कि पहली यात्रा में इस मार्ग पर पत्थर की सीढियाँ नहीं बनी हुई थी जबकि आज देखा तो वहाँ सीढियाँ बनी हुई मिली। अभी तक मैं सड़क पर चलता हुआ आ रहा था पत्थर की सीढियाँ देख उनपर चलना शुरु कर दिया। सीढियों पर आसानी से चलते हुए मैं मन्दिर की ओर चलता चला गया।

मन्दिर से कई सौ मीटर पहले से ही नीले-नीले फ़ूलों से भरा जंगल आ गया। इन नीले फ़ूलों को देखकर ऊटी की याद हो आयी। ऊटी में एक खास दिनों में सारे पहाड़ नीले-नील जामुनी फ़ूलों से भर जाते है। सड़क के आसपास काफ़ी बन्दर बैठे हुए थे मेरे गले में कैमरा लटका हुआ था। खाने का कोई सामान मेरे पास नहीं था यहाँ के बन्दरों की बिगड़ी आदत के बारे में अच्छी तरह मालूम है कि यह कैसे लोगों से उनका सामान छीन कर भाग जाते है। सामान छीनने वाली मजेदार घटना मेरे सामने पहली यात्रा में हुई थी उसके बारे में अलग से एक लेख में बताया जायेगा। धीरे-धीरे मन्दिर नजदीक आता जा रहा था मन्दिर के पास पहुँचने के बाद एक महिला कुछ बेचती हुई दिखायी दी। जब मैं उसके पास पहुँचा तो वो बोली कि मन्दिर में चढ़ाने के लिये प्रसाद ले जाओ। क्यों? प्रसाद चढाने से भगवान खुश होते है। प्रसाद चढाये बिना भगवान मन्दिर छोड़कर भाग जायेंगे। मेरा यह अटपटा जवाब सुनकर बोली बन्दरों के लिये ही कुछ लेते जाओ। पुण्य़ मिलेगा। मुझे पुण्य़ नहीं चाहिए जब मैं कोई पाप नहीं करता तो पुण्य क्यों कमाऊं। मेरी बात सुनकर वह कुछ बरड़-बरड़ करने लगी। मैंने कहा कि भगवान को गाली दे रही हो या अपनी किस्मत को कोस रही हो कि आज तो बोहनी खराब हो गयी।

थोड़ा और आगे जाने पर एक अन्य वयक्ति सामान बेचता हुआ मिला यह शायद उस महिला का पति ही होगा। दोनों के मिलते जुलते हाव-भाव देख लगा कि शायद ही नहीं पक्का उसका पति ही होगा। अब मन्दिर का दरवाजा लगभग सामने ही था उसने भी उस महिला वाले बाते दोहरायी तो उसे भी वैसा ही जवाब मिला जैसा उस महिला को मिला था। इस पाप-पुण्य के चक्कर में दुनिया का उल्लू बनाकर लोग अपना व्यपार करने में लगे हुए है। अगर पाप-पुण्य का कुछ ड़र हिसाब-किताब होता तो कोई किसी की हत्या नहीं करता, कोई किसी से धोखा नहीं करता। कोई किसी महिला की इज्जत पर हमला नहीं करता। आजकल तो लोग अपने माँ-बाप की इज्जत नहीं करते, ये लगे है पाप पुण्य कमाने मॆं। यह तो कुछ वही बात हुई कि किसी को गोली मार कर सॉरी बोल दो।
सामने ही मन्दिर का प्रवेश मार्ग दिखाई दे रहा था इसके ठीक सामने एक बोर्ड़ दिखायी दिया उस पर श्री सिद्ध बाबा बालक नाथ मन्दिर लिखा था। यहाँ से आगे का मार्ग लोहे की चददरों से पूरी तरह ढका हुआ है इस मार्ग को देख वैष्णों देवी की याद हो आयी। जैसे ही इस छपे हुए मार्ग का समापन हुआ तो मेरे सामने महाविशाल मूर्ति थी। मैं इस मूर्ति के चरणों के सामने खड़ा था। इसके सामने मेरी 5 feet 8 इन्च की क्या हैसियत थी? इस भीमकाय मूर्ति के सामने तो 100 फ़ुट लम्बे चीड़ के पेड़ भी बौने साबित हो रहे थे। मैं ठगा सा खड़ा इस मूर्ति को देखता रहा। मूर्ति को वापसी में भी देखूँगा जब यहाँ के फ़ोटो लेने आऊँगा। अभी तो पहले हनुमान जी के मन्दिर में हनुमान जी की मुख्य मूर्ति को राम-राम बोलकर आता हूँ पहले राम का नाम उसके बाद फ़ोटो लेने का काम।

मन्दिर में दर्शन करने से पहले अपनी चप्पले निकाल कर एक किनारे रख दी। अपना रकसैक उतार कर एक पेड़ के नीचे रख दिया। मैं अपना रकसैक रखकर मन्दिर में गया उस समय ज्यादा भीड़-भाड़ नहीं थी। उस समय दो परिवार पुजारी महोदय के साथ वयस्त थे। अपुन ठहरे अलग किस्म के भक्त, मैं सीधा भगवान की मूर्ति के सामने हनुमान जी मूर्ति को राम-राम किया और कहा देखो फ़िर आ गया। मुझे अच्छी तरह पता है कि पत्थर की मूर्ति में भगवान नहीं होते है लेकिन यह मूर्तियाँ हमें उस परमात्मा की याद दिलाती है जिसे हममें से किसी ने नहीं देखा है। मुझे बहुत कम लोग ऐसे मिले है जो उस अनदेखे परमात्मा की इज्जत बिना लालच करते है। मुझे भगवान से कुछ माँगना नहीं होता। यदि भगवान मांगने से देने लगते तो इस दुनिया में कोई काम-धाम नहीं करता? सब एक दूसरे से बड़े मंगते होते। भगवान तो हम लोगों ने अपनी मानसिक शांति के लिये बनाये है। अब कौन इसका कैसा प्रयोग करता है यह उसकी स्थिति पर निर्भर करता है।
मन्दिर के बाहर आते ही अपना कैमरा चालू कर दिया। मन्दिर के अन्दर जाते समय वहाँ खड़े खाकी धारी ने कहा था कि अन्दर फ़ोटो मत लेना। ठीक है भाई, अन्दर का फ़ोटो नहीं लेना है बाहर तो कोई रोक नहीं है ना, नहीं बाहर आप कितने भी फ़ोटो ले लीजिए। मैंने मन्दिर प्रांगन के जमकर फ़ोटो लिये है उसमें से कुछ फ़ोटो इस लेख में लगाये गये है। चलिये आप फ़ोटो देखिये। अरे-अरे यह बैग किसका है? बन्दर मेरे बैग के पेछे पड़े थे। बैग में कई किलो वजन था बैग में स्लिपिंग बैग के साथ कपड़े, दो किलो सेब, व अन्य जरुरी सामान भरा हुआ था। बैग का वजन कम से कम 10-12 किलो तो होगा ही। बन्दरों के बस की वह बैग उठाना नहीं था। बन्दरों को शायद सेब की महक आ रही होगी जिसके चक्कर में वे बैग पर चिपके पड़े थे लेकिन उन्हे बैग का झन्झट समझ नहीं आ रहा था। एक आदमी बोला किसका बैग है, मैं चुप रहा। वर्दी वाला बोला किसी अंग्रेज का होगा, लेकिन अंग्रेज कहाँ गया बैग छोड़कर। मैंने मन मन ही कहा कि देशी हिन्दी अंग्रेज का बैग है अभी फ़ोटो लेने दो। जब मैं फ़ोटो लेने के बाद बन्दरों की ओर बढा तो बन्दरों से वहाँ से दौड़ लगा दी।

मन्दिर के बाहर एक छोटी सी कहानी लिखा हुआ बोर्ड़ था उसके अनुसार रामायण काल में लंका युद्ध के समय मूर्छित लक्ष्मण के लिये संजीवनी बूटी लेने जाते समय हनुमान की नजर जाखू पर्वत पर तपस्या रत यक्ष ऋषि पर गयी। हनुमान जी ने यक्ष ऋषि से संजीवनी बूटी के बारे में जानने के लिये यहाँ उतर गये। हनुमान के वेग के कारण जाखू पर्वत आधा धंस गया। इसके अनुसार जहाँ हनुमान जी के चरण पड़े थे उस जगह एक कमरे बनाकर उनकी याद में सुरक्षित रखा गया है। हनुमान जी ने वापसी में लौटते समय मिलकर जाने का वचन दिया और संजीवनी की खोज में चले गये। कहते है कि कालनेमी के कुचक्र में अधिक समय लगने से हनुमान जी छोटे मार्ग से वापिस लौट गये। इधर यक्ष ऋषि व्याकुल हो गये। हनुमान जी अपना वचन पूरा करने के लिये ऋषि के पास वापिस आये। हनुमान जी के जाने के बाद उनकी याद में एक मूर्ति के बारे में कहा गया है कि यह हनुमान जी के जाने के बाद अपने आप प्रकट हुई थी।


मन्दिर के फ़ोटो लेने के बाद मैंने अपना बैग उठाया और वहाँ से चलने लगा। यहाँ आते समय मैंने एक भी फ़ोटो नहीं लिया था इसलिये वापसी में पूरे मार्ग के फ़ोटो जी भर के लिये। अब यहाँ से दिल्ली तक उतराई ही उतराई थी लेकिन मुझे सिर्फ़ रेलवे स्टेशन तक ही जाना था उसके बाद शिमला की छोटी ट्रेन में बैठ कर कालका जाना था। धीरे-धीरे मस्ती भरी चाल चलता हुआ मैं शिमला के रिज मैदान तक आ पहुँचा। अगले लेख में शिमला के रिज मैदान, शिमला की चर्च, रिज से रेलवे स्टेशन की यात्रा के बारे में बताया जायेगा। (यात्रा अभी जारी है।)  




























6 टिप्‍पणियां:

  1. शानदार फोटोज़ व मस्त विवरण ...

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  2. सन्दीप भाई राम-राम.शिमला तो ४-५बार हम भी गए लेकिन जाखु मन्दिर के दर्शन न हो पाए चलो जी ये आपने करा दिए.इसी साल अप्रैल माह मे हम भी ऊटी घुम आए बहुत सुन्दर जगह पर भाई नीले फूल हमे भी न दिखाई दिए.
    आपकी यात्रा मे उस जगह का सारा विवरण उपलब्ध होता है

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  3. जय हनुमान ज्ञान गुण सागर.......बहुत ही सुन्दर.....

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  4. जब में शिमला गई थी तब ये जाखू मंदिर एकदम अलग था अब तो इसका स्वरुप ही बदल गया है और तब ये हनुमानजी भी नहीं थे-- लगता है मुझे भी दोबारा जाना पड़ेगा

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