KHAJURAHO-ORCHA-JHANSI-13 SANDEEP PANWAR, Jatdevta
इस यात्रा के सभी लेख के लिंक यहाँ है।
01-दिल्ली से खजुराहो तक की यात्रा का वर्णन
02-खजुराहो के पश्चिमी समूह के विवादास्पद (sexy) मन्दिर समूह के दर्शन
03-खजुराहो के चतुर्भुज व दूल्हा देव मन्दिर की सैर।
04-खजुराहो के जैन समूह मन्दिर परिसर में पार्श्वनाथ, आदिनाथ मन्दिर के दर्शन।
05-खजुराहो के वामन व ज्वारी मन्दिर
06-खजुराहो से ओरछा तक सवारी रेलगाडी की मजेदार यात्रा।
07-ओरछा-किले में लाईट व साऊंड शो के यादगार पल
08-ओरछा के प्राचीन दरवाजे व बेतवा का कंचना घाट
09-ओरछा का चतुर्भुज मन्दिर व राजा राम मन्दिर
10- ओरछा का जहाँगीर महल मुगल व बुन्देल दोस्ती की निशानी
11- ओरछा राय प्रवीण महल व झांसी किले की ओर प्रस्थान
12- झांसी की रानी लक्ष्मीबाई का झांसी का किला।
13- झांसी से दिल्ली आते समय प्लेटफ़ार्म पर जोरदार विवाद
इस यात्रा के सभी लेख के लिंक यहाँ है।
01-दिल्ली से खजुराहो तक की यात्रा का वर्णन
02-खजुराहो के पश्चिमी समूह के विवादास्पद (sexy) मन्दिर समूह के दर्शन
03-खजुराहो के चतुर्भुज व दूल्हा देव मन्दिर की सैर।
04-खजुराहो के जैन समूह मन्दिर परिसर में पार्श्वनाथ, आदिनाथ मन्दिर के दर्शन।
05-खजुराहो के वामन व ज्वारी मन्दिर
06-खजुराहो से ओरछा तक सवारी रेलगाडी की मजेदार यात्रा।
07-ओरछा-किले में लाईट व साऊंड शो के यादगार पल
08-ओरछा के प्राचीन दरवाजे व बेतवा का कंचना घाट
09-ओरछा का चतुर्भुज मन्दिर व राजा राम मन्दिर
10- ओरछा का जहाँगीर महल मुगल व बुन्देल दोस्ती की निशानी
11- ओरछा राय प्रवीण महल व झांसी किले की ओर प्रस्थान
12- झांसी की रानी लक्ष्मीबाई का झांसी का किला।
13- झांसी से दिल्ली आते समय प्लेटफ़ार्म पर जोरदार विवाद
आज का लेख
इस यात्रा का आखिरी लेख है। आज के लेख में दिनांक 28-04-2014 को की गयी यात्रा के बारे में बताया जा रहा है। यदि आपको इस
यात्रा श्रृंखला के बारे में शुरु से पढना है तो ऊपर दिये गये लिंक पर क्लिक करे। इस
यात्रा में अभी तक आपने खजुराहो, ओरछा, व झांसी किले की शानदार यात्रा के बारे में
देखा व जाना। अब उससे आगे। झांसी का किला देखने के बाद, किले से बाहर निकला तो
किले की दीवार के पास एक लडका खाने की कोई वस्तु बेच रहा था। मुझे मालूम नहीं था
कि उसका नाम क्या है? उसने नाम बताया भी था लेकिन अब याद नहीं आ रहा है। यह वस्तु
देखने में पतले-पतले पापड की चूरे जैसे लग रही थी। अरे भाई यह खाने में कैसी लगती
है? उसने जवाब दिया, “नमकीन जैसी लगेगी।“ ठीक है दस रुपये की बना दे। उसने दस रु
की पापड के चूरे जैसी चीज मुझे दे दी। नमकीन चीज खाता हुआ किले के सामने वाली सडक
पर आ गया। यहाँ से झांसी के रेलवे स्टेशन जाने के लिये तिपहिया ऑटो मिल जाते है।
तिपहिया की
प्रतीक्षा में खडा हुआ सोच ही रहा था कि यहाँ से स्टेशन तक का मार्ग कहाँ से
जायेगा? वैसे भी स्टेशन ज्यादा दूर नहीं है चलो पैदल चलता हूँ। तभी मेरी नजर सडक
किनारे खडे कोल्ड ड्रिंक वाले पर चली गयी। भले ही शाम का समय हो रहा था लेकिन मौसम
में अभी भी काफ़ी गर्मी थी। मेरी पानी की बोतल काफ़ी देर पहले खाली होकर बैग में
आराम फ़र्मा रही है। प्यास तो थी लेकिन इतनी ज्यादा भी नही थी कि एक आध घन्टा बिन
पानी के रह ना पाऊँ। कोल्ड ड्रिंक वाले को देखकर प्यास यकायक बढ गयी। मैंने कोल्ड
ड्रिंक वाले से सबसे बडा गिलास नीम्बू पानी बनाने को कहा। वो बोला, सोडा डालू या
साधा पानी। चल भाई सोडा डाल दे। सोडे के कितने रु ज्यादा देने होंगे। सोडा डालने
के 5 रु ज्यादा देने होंगे। उसने बडा गिलास दस
रु का बताया था। अब 15 रु देने पडेंगे।
नीम्बू पानी
वाले ने एक गिलास नीम्बू सोडा बनाकर दे दिया। उसने काँच के गिलास की जगह प्लास्टिक
वाले गिलास में नीम्बू पानी दिया था। उसका दिया गिलास इतना छोटा था जिससे मुझे लगा
कि इसने गलती से छोटा गिलास दे दिया है। मैंने उसे कहा कि मैंने तुम्हे सबसे बडा
गिलास कहा था। कोल्ड ड्रिंक वाला बोला, यही बडा गिलास है। अगर यह बडा गिलास है तो
छोटा गिलास किसे कहते हो? मेरी बात का उसने कोई जवाब नहीं दिया। देता भी कैसे?
उसके पास उससे छोटा गिलास हो ही नहीं सकता था क्योंकि उसने जो गिलास दिया था वह
प्लास्टिक के गिलासों में सबसे छोटा होता है उसके बाद यदि इससे भी छोटा गिलास लेना
हो तो चाय वाला कप बोलना पडता है।
मैंने कोल्ड
ड्रिंक का एक घूंट भी नहीं पिया था कि एक ऑटो आकर रुका। उसने रेलवे स्टेशन की आवाज
लगायी तो मैंने उसे रुकने को कहा। ऑटो देखकर पैदल वाली बात उडन छू हो गयी। मैं
कोल्ड ड्रिंक वाले गिलास को घूँट-घूँट कर पीना चाहता था लेकिन ऑटो के आने से मामला
खटाई में पड गया। मैंने कोल्ड ड्रिंक वाले को फ़टाफ़ट 15 रु दिये। रु देते ही सोडे का गिलास लेकर
ऑटो में बैठ गया। मैं यह सोचकर ऑटो में बैठा था कि सोडे का गिलास ऑटो में बैठकर पी
लूँगा। ऑटो में बैठकर हिचकोले लगने लगे जिससे वह गिलास सम्भालना मुश्किल हो गया।
आखिरकार ऑटो वाले को रोक दे, कहना पडा। जैसे ही ऑटो रुका मैंने वह गिलास खाली कर
दिया। चल भाई, अब जैसा मर्जी भगा। अब मुझे कोई दिक्कत नहीं होने वाली। अब तक ऑटो
किले वाली सडक की उतराई उतर चुका था। अब ऑटो सीधा भागा जा रहा था। किले के ऊपर से
जो सडक दिखायी दे रही थी ऑटो उसी पर दौडा जा रहा था।
किले से रेलवे
स्टॆशन की दूरी मात्र 3 किमी ही है। जिस
सडक पर ऑटो दौडा जा रहा था आगे चलकर यह सडक एक बडी सडक में मिल गयी। यह सडक एक
तिराहे जैसी जगह पहुँची। यहाँ इस तिराहे से ऑटो सीधे हाथ मुड गया। इस सडक की चौडाई
काफ़ी थी जिस पर बडा ट्रेफ़िक चल रहा था। मेरे साथ ऑटो में तीन सवारियाँ ओर बैठी हुई
थी। इनमें से दो को रेलवे स्टॆशन तक जाना था जबकि तीसरा रेलवे स्टॆशन से पहले ही
उतर गया। बडी वाली सडक पर ऑटो ने मुश्किल से आधा किमी यात्रा की होगी कि ऑटो चालक
ने ऑटो को उल्टे हाथ एक पतली सडक पर मोड दिया। यह पतली सडक शार्टकट जैसी लग रही
थी। इस सडक पर चलते हुए झांसी के कैन्ट इलाके में पहुँच गये। कैन्ट इलाके में
प्रवेश करते ही सडक की चौडाई अचानक बढ गयी। सैन्य क्षेत्र में वाहनों या इन्सानों
की ज्यादा भीड भाड नहीं होती है। हरियाली भरपूर होती है।
कैन्ट इलाके
में सडक किनारे पार्क में लगाये एक इन्जन पर नजर गयी। ऑटो तेजी से दौड रहा था। मैं
चाहकर भी ऑटो से उतर नहीं सकता था। इन्जन यहाँ पार्क में लगा है जिससे यह तो
निश्चित है कि रेलवे स्टॆशन भी ज्यादा दूरी पर नहीं होगा। चलो पहले स्टेशन चलता
हूँ वहाँ जाकर यह भी पता लग जायेगा कि स्टेशन यहाँ से कितना दूर है? अगर स्टेशन एक
किमी भी हुआ तो यहाँ वापिस जरुर आऊँगा और इस इन्जन का फ़ोटो लेकर चला जाऊँगा। इन्जन
से आगे बढते ही एक चौराहा आया। इस चौराहे वाले गोलचक्कर के बीचो-बीच बनाये गये
पार्क में मूर्तियों की लम्बी लाईन लगी हुई है। मूर्तियों की ऐसी ही लाईन मैंने नई
दिल्ली के तालकटोरा रोड पर उस तिराहे पर देखी है जहाँ से धौला कुआँ जाया जाता है।
इन्जन के
अलावा मूर्तियों की लाइन वाह अब वापिस आने के दो बहाने हो गये है। मुझे यहाँ हर
हालत में वापिस आना ही पडेगा। गोलचक्कर पार करने के 500-600 मीटर बाद ही रेलवे स्टेशन आ गया। अरे
यह तो अच्छा है। मुझे ज्यादा पैदल नहीं चलना पडेगा। ऑटो वाले ने मुझे स्टेशन के
बाहर उतार दिया। उसको 10 रुपये देने के बाद मैंने उसी इन्जन
की ओर वापिस चलना शुरु कर दिया। थोडी देर बाद उस इन्जन के पास पहुँच गया। सबसे पहले
इन्जन का फ़ोटो लिया। इस प्रकार के पुराने इन्जन भारत में कई जगह लगाये गये है।
जोधपुर स्टेशन के ठीक बाहर भी ऐसा ही इन्जन देखा था।
इन्जन का
फ़ोटो लेने के बाद गोलचक्कर वापिस आया। यहाँ गोल चक्कर के बीचोबीच बने सुन्दर से
पार्क में मूर्तियों की लाईन देखकर लग रहा है जैसे ये मूर्तियाँ ना होकर कोई रैली
निकल रही हो। अरे हाँ याद आया कि झांसी के आसपास देखने लायक कुछ अन्य स्थल और भी
है जो बुन्देलखन्ड की दूसरी यात्रा में देखने की कोशिश रहेगी। इन सम्भावित स्थलों
में रानी लक्ष्मी बाई का महल है, जो झांसी के किले से मात्र आधा किमी दूरी पर है। राजा
गंगाधर राव की समाधी है जो किले से तीन किमी दूरी पर है। बरुआसागर जिसकी दूरी केवल
18 किमी है। यहाँ एक मठ बताया गया है। अबकी
बार इन्हे भी देखा जायेगा। किसी भी इलाके में एक बार की यात्रा से अपुन का मन कहाँ
भरता है?
गोलचक्कर की
मूर्तियों के फ़ोटो लेने के उपरांत वापिस रेलवे स्टेशन आ गया। मेरी ट्रेन आने में
अभी दो घन्टे से ज्यादा का समय था। झांसी की रानी लक्ष्मी बाई की घोडे पर सवार
मूर्ति रेलवे स्टेशन के ठीक बाहर लगायी गयी है। मैं किले में ऐसी मूर्ति होने की
सम्भावना तलाशता रहा लेकिन मूर्ति मिल ना सकी। शाम हो चुकी थी। दिल्ली पहुँचने में
सुबह हो जायेगी। दिन में दोपहर के समय मुकेश चन्द्न पाण्डेय के कन्ट्रोल रुम में
दाल चावल खाये थे। चावल का भोजन हल्का माना जाता है। जाहिर है रात को भूख लगने की
पूरी सम्भावना है। रात में भूख मुझे तंग करे, उससे बढिया है ट्रेन में घुसने से
पहले ही पेट पूजा कर ली जाये।
स्टेशन के
बाहर “जनता खाना” नाम से एक बोर्ड लगा देखा। मन में विचार आया कि जनता खाना कैसा
होता है? आज यह देख लिया जाये। जनता खाना वाले काऊंटर पर पहुँचकर देखा कि वहाँ
जनता खाना जैसा कुछ भी नहीं है। जनता खाने के नाम पर टोकन देने की प्रक्रिया से
गुजरना पडता है। काऊंटर वाले से खाने की थाली के बारे में पता किया तो उसने बताया
कि कौन सी थाली चाहिए? कौन सी मतलब? 60 रु वाली, 70 रु वाली, 80 रु
वाली। इन तीनों में क्या फ़र्क है? मेरे प्रश्न पर उसने ऊपर की ओर इशारा किया।
दीवार पर लगे बोर्ड से पता लगा कि 60 वाली थाली में 4 रोटी व 2 सब्जी, 70 वाली में 4 रोटी के साथ 1 गिलास रायता और 80 वाली में 4 रोटी, रायता के साथ मिठाई का पीस
मिलेगा। ठीक है तो 60 वाली थाली चाहिए। टोकन वाले ने 60 रु वाली थाली का टोकन दे दिया।
टोकन देकर
भोजन मिल गया। अपनी थाली में भोजन लेकर एक खाली मेज पर बैठ गया। यहाँ भोजन करने
वालों की काफ़ी भीड थी। दो-तीन लोग अपने हाथ में भोजन की थाली लेकर मेज खाली होने
की इन्तजार कर रहे थे। इसे तुक्का कहो या किस्मत, जैसे ही मैं अपनी थाली लेकर
बैठने के लिये आया तो एक बन्दा खाना खाकर खडा हो गया। यहाँ एक गडबड थी। भोजन करने
वाले बन्दे अपनी झूठी थाली को मेज पर ही छोड कर जा रहे थे। इन झूठी थालियों के
कारण मेज पर जगह कम पड रही थी। थाली उठाने वाले लडके को आवाज लगायी तो उसने तीन
झूठी थाली उठायी, जिसके बाद मेज पर काफ़ी जगह हो गयी। मेज खाली होने पर आराम से
भोजन किया गया।
थाली में जो
कटोरी बनी होती है उसमें एक चम्चा सब्जी मुश्किल से आ पाती है। अपुन ठहरे देशी
शाकाहारी जाट, सब्जियों के जानी दुश्मन। अपुन मांसाहारी या अन्डाहारी नहीं है। एक
चम्चा सब्जी एक रोटी के साथ सटक गया। दूसरी सब्जी दूसरी रोटी के साथ समाप्त हो
गयी। अब सब्जी लेने के लिये वही जाना होगा जहाँ पर टोकन देकर थाली ली थी। इतनी देर
में मेरी कुर्सी पर कब्जा हो जायेगा। कुर्सी गवाँने के चक्कर में कांग्रेसी बावले
हुए जा रहे है। हमारे देश में सारा तमाशा कुर्सी का हो रहा है। जहाँ देखो लम्बी
लाईन है। नौकरी हो छोकरी हर जगह लम्बी लाईन दिखायी देती है। मुझे कांग्रेसी नहीं
बनना है।
मेरी कुर्सी
पर कोई कब्जा ना करे। इस समाधान के लिये मैने अपना बैग कुर्सी के ऊपर रख लिया। बैग
में 23000 हजार का कैमरा है। कोई बैग लेकर भाग
गया तो? बैग चोरी होने से ज्यादा चिन्ता उन फ़ोटुओ की है। जो इस यात्रा में लिये
गये है। अगर यात्राओं के फ़ोटो ही गायब हो जाये तो यहाँ बैठकर घन्टा बजाना पडेगा।
दुबारा सब्जी लेने गया जरुर लेकिन मेरा ध्यान मेरे बैग पर ही रहा। वापिस आकर बाकि
बची दो रोटियाँ भी निपटा दी गयी। रात का भोजन तो हो गया। अभी पानी की बोतल भी भरनी
है। हाथ मुंह भी धोना है। भोजन करने वाली मेज के ठीक पीछे ठन्डे पानी की मशीन लगी
थी। हाथ मुँह धोकर पानी की बोतल भी भर ली। पीने के पानी की बोतल भरने के उपरांत
प्लेटफ़ार्म की ओर चल दिया।
प्लेटफ़ार्म
पर एक खाली सीट की तलाश में काफ़ी दूर तक जाना पडा। ट्रेन आने में पूरे डेढ घन्टे
बाकि थे। यहाँ बैठे सभी लोग, अपनी-अपनी धुन में लगे हुए थे। कुछ लोग आराम से फ़र्श
पर लेटे हुए थे तो कुछ कुर्सी पर बैठे ऊंघ रहे थे। गर्मी के दिन थे इसलिये पंखे
वाली जगह तलाश की थी। दिक्कत यह थी कि पंखा कुर्सी से थोडा सा आगे था। जूते निकाल
कर एक तरफ़ रख दिये ताकि पैरो को ठन्डक का अहसास हो सके। मेरे बराबर में दो बन्दे आकर
बैठ गये। वो दोनों मुझसे बात करने लगे। कुछ देर तक हल्की-फ़ुल्की चर्चा होती रही।
लेकिन आखिरकार बात अपने शीर्ष राजनीति पर पहुँच ही गयी। झांसी में लोकसभा चुनाव के
प्रचार का अन्तिम दिन है। परसों चुनाव के लिये वोटिंग हो जायेगी। किले की ओर आते
समय एक उम्मीदवार को पैदल प्रचार करते हुए देखा था।
बातों-बातों
में भारतीय जनता पार्टी के प्रधान मन्त्री पद के उम्मीदवार नरेन्द्र मोदी जी की
बात चल गयी। उन दो बन्दों में एक बन्दा मोदी से चिढने वाला था। वह खुजली वाले
भक्त निकला। वह पक्का शेखुलर (दोगला) था जो यह मानने को तैयार नहीं था कि दोगले
लोगों के चक्कर में इस देश का सत्यानाश निश्चित है। मुझे इस प्रकार के दोगले लोगों
से अच्छे वो लोग लगते है जो अपने धर्म के सच्चे हिमायती होते है। फ़िर वो चाहे
हिन्दू हो या मुस्लिम, सिख हो या इसाई। सच्चे लोग कम से कम अपनी कौम के लिये
जयचन्द तो साबित नहीं होते है। हिन्दुओं में जयचन्द भरे पडे है। मैं जयचन्द टाईप
लोगों को अपने दोस्त भी नहीं बनाना चाहता क्योंकि किसी ने कहा है दोगले बन्दे से
दोस्ती बनाये रखने से अच्छा है कि असली दुश्मन से सामना किया जाये। कम से कम यह तो
पता रहता है कि सामना किस से है? दोगले हमेशा आसतीन के साँप निकलते है।
मैंने यह
बात कही ही थी कि वो महाशय बिफ़र गये। बोले कि अगर मोदी प्रधान मन्त्री बनेगा तो
देश में कत्लेआम होगा। मैंने तुरन्त कहा, “आपको कैसे पता?” वह बोला, गुजरात में
देखा है। मैंने फ़िर टोका, “आप गये हो गुजरात।“ अब गया हो तो बोले भी। मैंने कहा
मैं गया हूँ एक सप्ताह घूमता भी रहा था। गोधरा शहर में हिन्दू लोगों से भरी ट्रेन
की दो बोगियों को दंगाई समुदाय ने जला दिया था जिसकी प्रतिक्रिया में एक दिन
मारकाट मची थी। कितने लोग मरे थे? यह भी उस दोगले को नहीं मालूम था। मैंने कहा
लगभग 1100 लोग ऊपर वाले को प्यारे हो गये जिसमें
से 300 के करीब लोग उस समाज से भी शामिल थे जिन्हे बिकाऊ
मीडिया कभी नहीं बतायेगा। बाकि जो बचे वे उस समुदाय से थे जिन्हे आजकल दंगाई
समुदाय का खिताब मिल गया है। वह बात बदलने लगा।
मैंने उससे
पूछा कि इन्दिरा के मरने पर कितने लोग मरे थे? उसको यह भी नहीं पता था। अरे हाँ
पहले यह बता दूँ कि जब इन्दिरा मारी गयी तो उस समय मोदी जी का कही नाम निशान भी
नहीं था। उस दंगे में केवल 5500 लोग
मारे गये थे। दंगा महीने भर चला था। आजादी के बाद से अब तक ऐसे दर्जनों लोग
दंगे हुए है जिनमें कई हजार लोग मारे गये है। उनके बारे में कुछ जानते हो। वह आदमी
उठकर जाने लगा तो मैने कहा जाते-जाते यह तो बता दो कि चुनाव में प्रचार के समय
पप्पू ने कुछ षडयन्त्र रचने पर ही कहा होगा कि यदि मोदी प्रधान मन्त्री बनेगा तो 22000
लोग मारे जायेंगे।
वैसे भी इस
देश में रोज हजारों लोग अपने आप मर जाते है। पप्पू किन लोगों के मरने की बात कर
रहा है? चलो मान लो कि मोदी ने ऐसा कोई प्लान बनाया है तो तुम्हे कैसे पता लगा?
याद रखना बिन सबूत के किसी पर आरोप लगाना नहीं चाहिए, नहीं तो बाद में कोर्ट में
माँगी माँगकर पीछा छुडाना पडता है। अगर यह खांग्रेसियों की कोई कुटिल चाल है तो
मैं उम्मीद करता हूँ कि पिछवाडे तक का जोर लगाने पर भी कामयाब नहीं हो पायेंगे।
अगर फ़िर भी हो गये तो इस देश का नाम नहीं बच पायेगा।
मेरी बात का
जवाब ना देकर बोला कि तुम तो बे सिर पैर की बात करने लगे हो। हमारी ट्रेन आ रही
है। वे दोनों वहाँ से उठकर चले गये। मेरी ट्रेन आने में कुछ मिनट बाकि थे लेकिन
अभी तक ट्रेन के आने की उदघोषणा नहीं हुई थी। कुछ ट्रेन काफ़ी देरी से चल रही थी एक
तो 9 घन्टे लेट थी। अरे बाप रे इतनी लेट। मेरी
ट्रेन के आने का समय बीत चुका था। उदघोषक ने बताया कि मेरी वाली ट्रेन एक घन्टा
देरी से चल रही है। अगर मेरी ट्रेन ज्यादा लेट हो जाती तो सुबह डयूटी जाना सम्भव
नहीं हो पाता। उन लोगों के जाने के बाद एक युवक मेरे पास आकर बैठ गया। उसने मुझसे
पूछा कि आप कहाँ जा रहे हो? दिल्ली। उससे बातों में पता लगा कि जिस ट्रेन से मैं
कल खजुराहो गया था आज सुबह उसके इन्जन में बरुआ सागर स्टेशन के पास आग लग गयी थी।
फ़िर तो ट्रेन कई घन्टे देरी से खजुराहो पहुँच पायी होगी।
अपनी ट्रेन
की प्रतीक्षा के दौरान मैंने देखा कि लगेज वाले डिब्बे में से सामान उतारते समय
रेलवे कर्मचारी सामान को बडी लापरवाही से उलटा पुल्टा करते है। यहाँ इस डिब्बे में
सब्जी की कुछ बोरियाँ निकालने के लिये उन्होंने लगभग आधा सामान उल्ट-पल्ट कर रख
दिया था। इस उल्टा पुल्टी के चक्कर में दो कार्टून बिखर गये। उन कार्टूनों में
जूते जैसे डिब्बे निकल कर बिखर भी गये। उन डिब्बों को लापरवाही से एक कोने में
उठाकर फ़ैंक दिया गया। मैंने कैमरा निकालकर उनका फ़ोटो लिया।
मुझे फ़ोटो
लेता देख एक बन्दा बोला। आप रिपोर्टर हो। हाँ हूँ क्यों? कौन से अखबार में हो?
हिन्दुस्तान अखबार हिन्दी का। उसके बाद उसने कुछ नहीं पूछा। मैं बचपन से ही हिन्दी
का हिन्दुस्तान पढता आ रहा हूँ आज भी हमारे घर हिन्दुस्तान अखबार ही आता है। मेरे
पास हिन्दुस्तान अखबार की बीस साल पुरानी कटिंग भीए रखी हुई है। इसके अलवा अन्य
अखबार बकवास लगते है। एक दो बार बाहर घुमक्कडी करते समय अन्य अखबार भी लेकर देख्ये
गये है लेकिन सब बेकार लगे।
मेरी ट्रेन
एक घन्टा देरी से आ गयी। अपनी सीट पर जाकर डॆरा जमा दिया। थोडी देर बाद ट्रेन चल
पडी। कुछ देर में टीटी भी आ गया। उसको अपना आधार कार्ड दिखाया तो वह अपनी बुक में
चैक का निशान लगाकर चलता बना। रात को बढिया नीन्द आयी। दिल्ली तक यात्रा मस्त रही।
सुबह निजामुद्दीन जाकर आँख खुली। रिंग रोड से बाहरी मुद्रिका नामक बस मिली जिसने
मुझे लोनी मोड गोल चक्कर पर उतार दिया। जहाँ से घर पहुँचने में ज्यादा देर नहीं
लगती है। सुबह सवेरे घर पहुँचा। नहाया धोया और कार्यालय जाने की तैयारी करने लगा।
नहा धोकर साईकिल उठायी और कार्यालय चल दिया।
इस यात्रा
के बाद दो यात्रा की जा चुकी है। एक छोटी है तो दूजी लम्बी। एक पुरानी यात्रा के
लेख भी तैयार हो गये है। पुरानी यात्रा बाइक यात्रा है जिसमें मेरे साथ श्रीमति जी
पहाडों में घूमने गयी थी। (यात्रा समाप्त हुई)
भाई आप रूद्रनाथ भी तो गए थे.उसका लेख क्यो नही लिखा.
जवाब देंहटाएंखुजली भक्त की खुजली मिटा दी
जवाब देंहटाएं