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मंगलवार, 3 दिसंबर 2013

Sun temple and Dattatreya temple नीरथ का सूर्य मन्दिर व दत्तात्रेय मन्दिर

किन्नौर व लाहौल-स्पीति की बाइक यात्रा के सभी लेख के लिंक नीचे दिये है।
11- सतलुज व स्पीति के संगम (काजिंग) से नाको गाँव की झील तल
12- नाको गाँव की झील देखकर खतरनाक मलिंग नाला पार कर खरदांगपो तक
13- खरदांगपो से सुमडो (कौरिक बार्ड़र) के पास ममी वाले गियु गाँव तक (चीन की सीमा सिर्फ़ दो किमी) 
14- गियु में लामा की 500 वर्ष पुरानी ममी देखकर टाबो की मोनेस्ट्री तक
15- ताबो मोनेस्ट्री जो 1000 वर्ष पहले बनायी गयी थी।
16- ताबो से धनकर मोनेस्ट्री पहुँचने में कुदरत के एक से एक नजारे
17- धनकर गोम्पा (मठ) से काजा
18- की गोम्पा (मठ) व सड़क से जुड़ा दुनिया का सबसे ऊँचा किब्बर गाँव (अब नहीं रहा)
20- कुन्जुम दर्रे के पास (12 km) स्थित चन्द्रताल की बाइक व ट्रेकिंग यात्रा
21- चन्द्रताल मोड बातल से ग्रामफ़ू होकर रोहतांग दर्रे तक
22- रोहतांग दर्रे पर वेद व्यास कुन्ड़ जहां से व्यास नदी का आरम्भ होता है।
23- मनाली का वशिष्ट मन्दिर व गर्म पानी का स्रोत

KINNAUR, LAHUL SPITI, BIKE TRIP-03                        SANDEEP PANWAR

मनु इस यात्रा में देखने लायक स्थलों की सूची बनाकर लाया था। आज की यात्रा में सबसे पहले रामपुर से मात्र 10-12 किमी पहले नीरथ नामक गाँव में एक प्राचीन सूर्य मन्दिर देखने की बात हुई थी। श्रीखन्ड़ यात्रा में हमने यह मन्दिर देखा ही नहीं था। मन्दिर सड़क के किनारे ही है इसलिये इसके दर्शन करके ही आगे जायेंगे। यहाँ इतना प्राचीन सूर्य मन्दिर होगा, इसका हमें पता ही नहीं था। भला हो मनु का, जिसने यहाँ के बारे में जानकारी जुटायी थी। सूर्य मन्दिर के बारे में सड़क किनारे भी कोई बोर्ड़ नहीं लगाया हुआ है जिसे पढकर ही कोई पर्यटक सूर्य मन्दिर देखने आ जाये।



मन्दिर सड़क के मुकाबले गहराई में है जिस कारण सड़क से दिखाई भी नहीं देता है। मन्दिर तक पहुंचने के लिये मुश्किल से 3-4 फ़ुट चौड़ी टेड़ी-मेड़ी गली है जिसकी लम्बाई 30-40 मीटर तो रही होगी। मन्दिर के बारे में हमें सड़क पर कई लोगों से पूछना पड़ा था तब हमें मन्दिर की जानकारी मिली। हम अपनी बाइक पर सवार होकर उल्टे हाथ उस पतली सी गली में उतर गये जिस पर मन्दिर बना हुआ है। मन्दिर पर पहली नजर पड़ते ही लाल रंग का मन्दिर दिखायी दिया। इस मन्दिर की निर्माण शैली नगाड़ा शैली बतायी गयी है। यह मन्दिर उत्तर भारत का एकलौता सूर्य मन्दिर भी है।

मन्दिर के निर्माण में पत्थर व लकड़ी का मिलाजुला रुप दिखायी दिया। सैकडों वर्ष पहले के शिल्पकारों द्वारा की गयी मेहनत आज भी वैसी ही दिखायी दे रही है। मैंने बाइक से उतरते ही यहाँ के फ़ोटो लेने शुरु कर दिये थे। मन्दिर परिसर में प्रवेश करने के लिये हमें मन्दिर का आधा चक्कर लगाकर दूसरी ओर जाना पड़ा। मन्दिर के मुख्य दरवाजे पर पहुँचकर देखा कि वहाँ ताला लगा हुआ है। मन्दिर में बाहरी लोगों के ना आने के कारण इस मन्दिर की माली हालत बहुत खस्ता हो गयी है।

अगर मन्दिर की हालत खस्ता ना होती तो इसकी मरम्मत करके इसको अच्छी तरह चकाचक किया गया होता। लकड़ी के टूटे-फ़ूटे दरवाजे बाहर से ही इसकी पोल खोल रहे थे। मन्दिर के परिसर की चारदीवारी की हालत भी दयनीय स्थिति में पहुँच गयी है। मैं और मनु मन्दिर में घुसने का अन्य दरवाजा तलाशने लगे। हमें मन्दिर के पिछवाड़े की तरफ़ लोगों का एक दरवाजा खुला हुआ मिल भी गया। यहाँ से मुख्य मन्दिर एकदम सामने दिखायी दे रहा था। हमने परिसर के अन्दर घुसकर मन्दिर की फ़ोटो ली, उसके बाद हमने फ़िर से उसी तरह उस दरवाजे को बन्द कर दिया जिस हालत में हमें मिला था।

शायद कही लिखा हुआ देखा है कि महाभारत वाले पांड़व अपने अज्ञातवास काल में यहाँ कुछ समय रुके थे। प्रत्येक वर्ष शरद ऋतु के आरम्भ में यहाँ एक मेले का आयोजन किया जाता है। मन्दिर में कई शिवलिंग भी दिखायी दे रहे थे। उनकी हालत देखने से उनकी उम्र का अंदाजा लगाना आसान हो जाता है। मन्दिर के सामने वाले घर से एक महिला हमें देखकर बाहर आयी। हमने उससे मन्दिर के पुजारी के बारे मॆं पता किया उसने कहा कि पुजारी सिर्फ़ पूजा के समय ही आता है। उसने पुजारी का मोबाइल नम्बर बताया। लेकिन हमने पुजारी को फ़ोन नहीं किया।

सूर्य मन्दिर देखने के लिये हमने मात्र 10-15 मिनट का समय ही लिया होगा। मन्दिर का क्षेत्रफ़ल मुश्किल से 300 वर्ग गज में ही होगा। इस मन्दिर को देखकर व फ़ोटो लेकर, हम उसी टेड़े-मेड़े छोटे से मार्ग से सड़क पर लौट आये। मनु ने अपना पर्चा देखा, उसकी लिस्ट में अगला मन्दिर नीरथ से थोड़ा आगे दत्तनगर गाँव में ऋषि दत्तात्रेय का प्राचीन मन्दिर था। हम श्रीखन्ड़ यात्रा में जाते समय इस मन्दिर को देख कर भी अनदेखा कर आगे बढ़ गये थे। आज केवल इसे देखने रुक गये।

सड़क पर ही यह मन्दिर स्थित है। दो-तीन बन्दों से पता किया। तब मन्दिर के बारे में पता लगा। बाइक रोकी और मन्दिर देखने के लिये जाने लगे तो पता लगा कि मन्दिर का पुननिर्माण कार्य प्रगति पर है जिस कारण मन्दिर में देखने के लिये कुछ नहीं है। सनातन धर्म की शुरुआत में केवल दो धाराएँ थी पहली वेद व दूजी तंत्र की। इन दोनों धाराओं में विरोधाभ्यास है। वेद से वैष्णव की व तंत्र से शैव की शुरुआत हुई थी। दत्तात्रेय ने वेद और तंत्र का विलय किया था। इस मन्दिर में इससे ज्यादा कहने व दिखाने को कुछ नहीं था। बाहर से इसका फ़ोटो लेकर हम अपनी बाइक पर सवार हो गये। दत्तात्रेय मन्दिर से एक किमी आगे जाने पर सतलुज के उस पार एक लम्बा सा झरना दिखायी दे रहा था। कैमरा निकाला झरने का फ़ोटो लिया और आगे बढ़ गये।

रामपुर से लगभग 15 किमी पहले एक तिराहे जैसा स्थान पर एक पुल आता है जहाँ से सीधे हाथ एक मार्ग रोहडू जाता हुआ दिखायी देता है श्रीखन्ड़ यात्रा से वापसी में इस मार्ग से होकर हम चकराता सहारनपुर चले गये थे। इस तिराहे से कई किमी आगे जाने पर सतलुज का वह पुल आता है जिसे पार कर हमें निरमुन्ड़ व बागीपुल जाते है। यही मार्ग श्रीखन्ड़ यात्रा का मुख्य बिन्दु है। यहाँ लगे बोर्ड़ में उन सभी स्थलों की दूरियाँ अंकित है जो श्रीखन्ड़ जाने के मार्ग में आते है। इस पुल के पार छोले की चाट बनाने वाला एक बन्दा खड़ा रहता है, श्रीखन्ड़ जाते समय हमने यहाँ उसकी चाट चट की थी। वह बन्दा आज भी वही खड़ा हुआ दिखायी दिया।

इस पुल से रामपुर शहर की दूरी मुश्किल से 2-3  किमी ही रह जाती है। रामपुर शहर के ठीक आरम्भ होते ही एक मन्दिर है। यहाँ घुटनों के बल बैठे हुए हनुमान जी की बहुत बड़ी मूर्ति है। मन्दिर के बाहर एक बोर्ड़ लगा हुआ है जिस पर महर्षि मर्दिनी महालक्ष्मी मन्दिर लिखा हुआ है। यहाँ से रामपुर दिखायी देने लगता है। श्रीखन्ड़ यात्रा में मैंने यहाँ के कई फ़ोटो लगाये हुए है। श्रीखन्ड़ वाली यात्रा में हमें रामपुर शहर में पैट्रोल पम्प नहीं मिल पाया था। यहाँ से आगे जाने पर रामपुर का पुराना बस अड़ड़ा दिखायी दिया।

इसके पास ही सड़क किनारे सीधे हाथ यहाँ हिमाचल के वर्तमान व 8-9 बार मुख्यमन्त्री बन चुके राजा वीरभद्र सिंह का अपना निजी महल भी है। आंकड़े बताते है कि राजा वीरभद्र सिंह अपने राजवंश में 123 वे नम्बर के राजा है। 123 पीढी तक किसी एक राज परिवार का राजकाज चलना मामूली बात नहीं है इससे पता लगता है कि राजा वीरभद्र सिंह का परिवार हिमाचल में हजार वर्ष से शासन करता आ रहा है। इनका बनवाया हुआ भीमाकाली मन्दिर देखने हम आज ही सराहन जाने वाले है आज की रात वही रुकने का इरादा है। सांगला घाटी में भी इसी राजवंश का कमरु किला बताया जाता है हम छितकुल जाते समय उसे भी देखने जायेंगे।

हनुमान जी के मन्दिर पर कुछ देर फ़ोटो लेने के लिये रुक गये थे। एक अकेला बन्दा अपना टैन्ट व स्लिपिंग बैग अपनी 350 cc की बुलेट पर बाँधे हुए धीर-धीरे चलता जा रहा था। इस बन्दे को हमने नीरथ के आसपास भी देखा था। उस समय हमने उससे बातचीत नहीं की, लेकिन यहाँ हमने उसके साथ काफ़ी बातचीत की। उस बन्दे का लक्ष्य छितकुल व सांगला देखने का था। जब हमने उसे अपना कार्यक्रम बताया तो मनु की बाइक देखकर उन्होंने कहा, आप 100cc की बाइक पर कुन्जुम दर्रा पार करने जा रहे हो जबकि मैं तो 350 cc की बाइक पर भी ड़र रहा हूँ कि यह मेरा बेड़ापार करायेगी या नहीं? उस बन्दे का आज रात रामपुर रुकने का इरादा था। जब हमने कहा कि आज की रात सराहन के भीमाकाली मन्दिर जाकर रुको हम भी वही रुकेंगे।

हम रामपुर से आगे चलने लगे तो मनु बोला, जाट भाई कहाँ जा रहे हो? भीमाकाली! मैंने और राकेश ने यह देखते हुए कि दिन छिपने में अभी काफ़ी समय है इसलिये चलती बाइक पर तय कर लिया था कि आज की रात भीमाकाली रुकेंगे। मनु रामपुर से आगे जाने को राजी नहीं था। राकेश बोला लेकिन वहाँ सराहन में टैन्ट लगाने की जगह नहीं मिलेगी? देखेंगे सड़क किनारे कही तो जगह मिल जायेगी। मनु पर नींद व थकान दोनों का असर दिखने लगा था। आज मैंने सिर्फ़ 15 किमी के करीब बाइक चलायी होगी। मेरा पूरा दिन बाइक के पीछेअ बैठकर मजे में कट गया था। रामपुर को अलविदा बोलकर ज्यूरी के लिये चल दिये। ज्यूरी वह बिन्दु है जहाँ से भीमाकाली की दूरी मात्र 17 किमी रह जाती है।


दिल्ली से रिकांगपियो जाने वाली बस से भीमाकाली जाने के लिये यहाँ ज्यूरी में उतरना पडेगा। यहाँ से सीधे हाथ एक पक्की सड़क ऊपर की ओर जाती है। शाम के 5 बजने जा रहे थे। तिराहे से भीमाकाली मन्दिर के पास बना हुआ एक होटल दिखायी देता है। अगर सीधी हवाई दूरी नापी जाये तो भीमाकाली मन्दिर ज्यूरी से मात्र 2 किमी ही होगा। लेकिन ऊँचाई पर होने के कारण सड़क काफ़ी घुम कर बनायी गयी है। रामपुर से ज्यूरी की दूरी 23 किमी है। इस तरह देखा जाये तो रामपुर से भीमाकाली की दूरी 40 किमी है। हम लोग अपनी-अपनी बाइक पर सवार होकर भीमाकाली मन्दिर देखने चल दिये। रामपुर समुन्द्र तल से 1000 मीटर की ऊँचाई पर है। ज्यूरी की समुन्द्र तल से ऊँचाई 1500 मीटर है जबकि भीमाकाली मन्दिर समुन्द्र तल से 2200 मीटर की ऊँचाई पर स्थित है। (यात्रा अभी जारी है।) 






















4 टिप्‍पणियां:

  1. हिमालय या ऐसे ही पहाड़ो पर हजारो मंदिर होते है ---वहाँ के रहने वाले भी बहुत धार्मिल होते है -पर हमे ये सब नया लगता है इसलिए कितने भी पुराने मंदिर हो वो जगह आकर्षण ही लगती है। .... जहाँ जहाँ तुम जा रहे हो हम भी घूम रहे है ----

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