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सोमवार, 2 दिसंबर 2013

Shimla-Kufri-Narkanda शिमला-कुफ़री-ठियोग-नारकंड़ा-सैंज

किन्नौर व लाहौल-स्पीति की बाइक यात्रा के सभी लेख के लिंक नीचे दिये है।
11- सतलुज व स्पीति के संगम (काजिंग) से नाको गाँव की झील तल
12- नाको गाँव की झील देखकर खतरनाक मलिंग नाला पार कर खरदांगपो तक
13- खरदांगपो से सुमडो (कौरिक बार्ड़र) के पास ममी वाले गियु गाँव तक (चीन की सीमा सिर्फ़ दो किमी) 
14- गियु में लामा की 500 वर्ष पुरानी ममी देखकर टाबो की मोनेस्ट्री तक
15- ताबो मोनेस्ट्री जो 1000 वर्ष पहले बनायी गयी थी।
16- ताबो से धनकर मोनेस्ट्री पहुँचने में कुदरत के एक से एक नजारे
17- धनकर गोम्पा (मठ) से काजा
18- की गोम्पा (मठ) व सड़क से जुड़ा दुनिया का सबसे ऊँचा किब्बर गाँव (अब नहीं रहा)
20- कुन्जुम दर्रे के पास (12 km) स्थित चन्द्रताल की बाइक व ट्रेकिंग यात्रा
21- चन्द्रताल मोड बातल से ग्रामफ़ू होकर रोहतांग दर्रे तक
22- रोहतांग दर्रे पर वेद व्यास कुन्ड़ जहां से व्यास नदी का आरम्भ होता है।
23- मनाली का वशिष्ट मन्दिर व गर्म पानी का स्रोत

KINNAUR, LAHUL SPITI, BIKE TRIP-02                          SANDEEP PANWAR

मनु एक घन्टे में अम्बाला से सोलन कैसे पहुँच सकता था? मनु अवश्य, हमसे कुछ छिपा रहा था, या तो मनु एक घन्टा पहले अम्बाला नहीं था या अब सोलन के पास नहीं है। मैंने कहा राकेश भाई मनु अपने घर पर ही तो नहीं है हमारे साथ मजाक तो नी कर रहा है? हमें अंदाजा नहीं था कि असलियत में मनु कहाँ है? फ़िर भी हमने यह मानकर कि मनु सोलन पहुँचने वाला है अपनी बाइक की गति तेज कर दी। 500cc की बाइक दो बन्दों को लेकर तेजी से चढ़ाई पर चढती जा रही थी। हमने सोलन पहुँचकर फ़िर से मनु को फ़ोन लगाया, अबकी बार मनु ने कहा कि वह शोघी पहुँचने वाला है। मनु 100cc की बाइक पर था जबकि हम बुलेट 500cc पर, मनु की रफ़्तार देख हम भौचक्के थे।


मनु एक घन्टे में अम्बाला से सोलन कैसे पहुँच सकता था? मनु अवश्य, हमसे कुछ छिपा रहा था, या तो मनु एक घन्टा पहले अम्बाला नहीं था या अब सोलन के पास नहीं है। मैंने कहा राकेश भाई मनु अपने घर पर ही तो नहीं है हमारे साथ मजाक तो नी कर रहा है? हमें अंदाजा नहीं था कि असलियत में मनु कहाँ है? फ़िर भी हमने यह मानकर कि मनु सोलन पहुँचने वाला है अपनी बाइक की गति तेज कर दी। 500cc की बाइक दो बन्दों को लेकर तेजी से चढ़ाई पर चढती जा रही थी। हमने सोलन पहुँचकर फ़िर से मनु को फ़ोन लगाया, अबकी बार मनु ने कहा कि वह शोघी पहुँचने वाला है। मनु 100cc की बाइक पर था जबकि हम बुलेट 500cc पर, मनु की रफ़्तार देख हम भौचक्के थे।

श्रीखन्ड़ वाली बाइक यात्रा में हम इसी मार्ग से गये थे, उस यात्रा में मैं बाइक चला रहा था जबकि आज बाइक मैं बाइक नहीं चला रहा था राकेश सुबह से ही बाइक चला रहा था मेरी बारी पता नहीं कब आयेगी? बाइक के पीछे बैठकर फ़ोटो लेने में बहुत आसानी रहती है। यदि हम स्वयं बाइक चला रहे हो तो पहले बाइक पूरी तरह रोकनी पड़ती है उसके बाद फ़ोटो लेने के लिये कैमरा निकालना पड़ता है फ़ोटो लेने के बाद फ़िर से बाइक स्टार्ट कर आगे बढ़ना होता है जबकि बाइक पर दो सवार होने से पीछे बैठा बन्दा फ़ोटो लेने के लिये पहले से ही घात लगाये बैठा रहता है जैसे ही कोई बढिया सी लोकेशन दिखायी दी नहीं कि तुरन्त रुको-रुको की आवाज आनी शुरु हो जाती है। मैंने कई बार राकेश को फ़ोटो लेने के चक्कर में रुकवाया था।

हमें चलते-चलते सुबह के नौ बज चुके है शिमला आने वाला है। स्कूली बच्चे अपने-अपने स्कूल जाने के लिये सड़क पर जाते हुए दिखायी देने लगे थे। बच्चों को देखकर एक गाना याद आ रहा है कि नाम हमारा होता ड़ब्लू-बबलू खाने को मिलते लड़डू और दुनिया कहती हैप्पी बर्ड़ थे टू यू। नन्हा मुन्ना राही हूँ देश का सिपाही हूँ, बोलो मेरे संग जय हिन्द, जय हिन्द। बच्चों को देखते हुए आगे बढ़ते जा रहे थे। पहाड़ में स्कूल काफ़ी दूर-दूर होते है जिस कारण बच्चों को बहुत मेहनत करनी होती है।

अचानक, राकेश ने बाइक रोकी, मैं अभी खाई की तरफ़ के नजारे देखने में व्यस्त था। बाइक रुकते ही सामने देखा। वहाँ कई गाडियाँ रुकी हुई थी। हम अभी कुछ समझ पाते कि मारो-मारो का शोर सुनाई दिया। कई लोग एक बन्दे को लात-घूसों से मारते हुए दिखायी दिये। कैमरा मेरे हाथ में ही था इसलिये मैंने उनकी एक फ़ोटो ले ली। लड़ाई करने वाले स्थानीय लोग ही थे जो आपस में किसी बात पर झगड़ रहे थे। बड़ी गाड़ी होती तो हमें वहाँ काफ़ी देर अटका रहने पड़ता, लेकिन बाइक का यही लाभ है कि हम दो फ़ुट की जगह से भी आसानी से निकल जाते है।

थोड़ा सा चलते ही शिमला का रेलवे स्टेशन आ गया। आज की यात्रा में हमें कालका से शिमला के बीच चलने वाली छोटी रेल एक बार भी दिखायी नहीं दी थी जबकि श्रीखन्ड़ वाली यात्रा में हमें दो बार छोटी रेल के दर्शन हुए थे। शिमला शहर में आजकल नया बस अड़ड़ा बना दिया गया है जो रेलवे स्टेशन से कई किमी पहले ही आता है। बस अड़ड़ा मुख्य सड़क से थोड़ा सा हटकर बना हुआ है जिस कारण दिखायी नहीं देता है। शिमला रेलवे स्टेशन से थोड़ा सा आगे चलते ही शिमला की उल्टे हाथ वाली वह सुरंग दिखायी देती है जिसे पार कर हम कुफ़री नारकंड़ा होते हुए आगे बढ़ते है।

यहाँ सुरंग में घुसने से पहले आगे आने वाली जगहों की दूरियाँ दीवार पर लिखी हुई है इस प्रकार के सूचना बोर्ड़ बाहर से आने वाले लोगों को बहुत लाभ पहुँचाते है। सुरंग में रुकने लायक जगह नहीं है इसलिये मैं सुरंगे के इस मुहाने पर ही बाइक से उतर गया। राकेश बाइक लेकर सुरंग के अगले मुहाने पर चला गया। मैंने पहले से ही ठानी हुई थी कि सुरंग के अन्दर घुसकर एक फ़ोटो लेना है। मैंने सुरंग में कई फ़ोटो लिये। सुरंग की लम्बाई मुश्किल से 100 मीटर ही होगी। पैदल चलते हुए मैंने सुरंग पार की, सुरंग पार करते ही राकेश तैयार मिला। हम एक बार फ़िर आगे कुफ़री की ओर चलने लगे।

सुरंग पार करने पर जिस मार्ग से होते हुए हम लोग चले जा रहे है यह शिमला बाई पास कहलाता है। इसी मार्ग पर आगे चलकर एक अन्य सुरंग से होकर हमें निकलना पड़ा। यह सुरंग कुछ महीनों पहले ही शुरु की गयी है। इससे पहले सभी गाडियाँ आगे से घूम कर आती थी। इस मार्ग पर आगे चलते रहने से एक तिराहा आता है जहाँ पर शिमला शहर में जाने वाला पुराना मार्ग आता है। शिमला शहर में जाने वाला मार्ग सीधे हाथ ऊपर की ओर जाता है जबकि हमें तो नारकन्ड़ा जाना था।

आगे बढ़ने पर उल्टे हाथ एक मार्ग दिखायी देता है यह मार्ग मशोबरा, तत्तापानी होते हुए करसोग की ओर ले जाता है। मैंने उस मार्ग पर करसोग तक की बस यात्रा की हुई है। मणिमहेश यात्रा से वापसी करते हुए मैं और विपिन करसोग घूमने चले आये थे। यह मार्ग तत्तापानी तक तो काफ़ी चौड़ाई लिये हुए है लेकिन उसके बाद यह सिंगल रोड़ बनकर रह जाता है। इस मार्ग पर बहुत सारी देखने लायक जगह है। जैसे-मशोबरा, नलदेहरा, तत्तापानी, महूनाग, चिन्दी आदि।

कुफ़री के आसपास पहुँचकर हमें एक गोल-गप्पे वाला दिखायी दिया। राकेश भूख से कुछ ज्यादा ही परेशान हो रहा था। यहाँ तक किसी तरह आ भी गया था लेकिन गोल गप्पे वाले को देख कर राकेश ने जुआ गिरा दिया। बाइक किनारे लगाकर हमने गोल गप्पे वाले से बर्गर बनवा लिये। यहाँ एक बात मजेदार हुई कि भूख राकेश को लगी थी लेकिन उससे ज्यादा सामान मैं खा गया। राकेश ने केवल एक बर्गर खाया जबकि मैंने दो बर्गर खाये। दोनों ने गोल-गप्पे बराबर खाये। अपनी आदत है कि जब भोजन करना ही है तो भरपेट करो, अन्यथा नाम करने से क्या? नाम करके फ़िर थोड़ी देर में भूख लग जायेगी। इसी तरह यदि किसी को कूटना है तो जमकर कूटो, नहीं तो एक थप्पड़ भी उतना ही नाम करा देगा।

बर्गर खाने के बाद हम आगे चले। चलते-चलते हम कुफ़री भी पहुँच गये। कुफ़री में सर्दियों में अच्छी खासी बर्फ़बारी होती है मैदानी इलाके के लोग यहाँ आकर जमकर धमाल-चौकड़ी करते है। हम कुफ़री रुके बिना, आगे बढ़ते रहे। कुफ़री पीछे जा चुका था एक जगह फ़ोटो लेने लायक अच्छी सी लोकेशन दिखाई दी। मैंने राकेश को कहा रुक जा भाई थोड़ी देर रुक कर आगे चलेंगे। राकेश ने सड़क किनारे बाइक खड़ी कर दी। बाइक रुकते ही सबसे पहले मैंने राकेश का फ़ोटो लिया। उसके बाद राकेश को अपना फ़ोटो लेने के लिये कहा।

जैसे ही राकेश ने कैमरा लिया तो मैंने बाइक पर बैठने के लिये अपनी टाँग बाइक की सीट के ऊपर से घुमायी तो बाइक की पिछली सीट पर रखा राकेश का हैल्मेट बाइक से नीचे गिर गया। हैल्मेट को भी ज्यादा जल्दी मची थी मैंने उसे पकड़ने की कोशिश भी की लेकिन हैल्मेट मुझसे तेज निकला। हैल्मेट सड़क से लुढक कर एक कुन्ड़ में जा गिरा। कुन्ड़ लगभग 7-8 फ़ुट गहरा था। हैल्मेट को निकालने से पहले हमने फ़ोटो लिये। उसके बाद मैं उस कुन्ड़ में कूद गया। कुन्ड़ में उतरना आसान था लेकिन उससे बाहर निकला मुश्किल था। राकेश को हैल्मेट पकड़ा कर अपना हाथ ऊपर किया। राकेश मुझे ऊपर खीचने लगा। मैंने कहा जरा सम्भाल कर, कही तुम भी नीचे कूद गये तो फ़िर हमें निकलने के लिये तीसरे को बुलाना होगा।

कुफ़री हम पार चुके थे तभी एक मोड़ पर एक याक नजर आया। बाइक याक से आगे निकल चुकी थी इसलिये बाइक मोडकर आये। याक का फ़ोटो लिया और अपनी मंजिल की ओर चलने लगे। नारकंड़ा पहुँचने तक मैंने फ़ोटो लेने के लिये कई बार बाइक रुकवायी थी। बाइक रुकते ही राकेश कई बार अपना मोबाइल निकाल कर मेरे हाथ में थमा देता कि जाट भाई मेरा फ़ोटो फ़ाडो ना।(गुजराती में फ़ोटो लेने को फ़ाड़ना भी बोलते है।) मनु से एक बार फ़िर बात हुई अबकी बार हम मनु की बतायी जगह के करीब पहुँच चुके थे। मनु से बोला गया था कि नारकंड़ा में दोपहर का भोजन कर आगे बढेंगे।

नारकंड़ा आते ही मनु की तलाश की गयी। मनु अपनी बाइक पर बैठकर हमारा इन्तजार कर रहा था। मनु व राकेश को भूख लगी थी इसलिये उन दोनों ने अपने लिये भोजन बनाने का आर्ड़र दे दिया। मैंने दो बर्गर इसलिये ही खाये थे कि दोपहर के भोजन से छुट्टी होगी। भोजन बनाने वाले ने आर्ड़र देने के बाद भोजन तैयार किया था भोजन बनाने व खाने में पौना घन्टा लग गया। सुबह से बाइक चलाये जा रहे थे पौना घन्टा रुकने पर काफ़ी आराम मिला। मैंने टैन्ट अपने पीछे रखा हुआ था। नारकन्ड़ा आते ही मनु की बाइक पर टैन्ट बान्ध दिया गया।

शिमला से नारकन्ड़ा तक लगातार चढ़ाई मिलती रहती है। कालका से शिमला तक भी चढ़ाई ही है। नारकन्ड़ा से आगे चलते ही जोरदार ढ़लान मिलती है। ढलान आते ही हमने बाइक का इन्जन बन्द कर दिया। कुछ किमी तक मैंने भी बाइक चलाकर देखी। मेरी बाइक और इस बाइक के हैन्डिल में काफ़ी असमानता दिखायी दी। जिससे शुरु-शुरु में थोड़ी सी अटपटी लगी। लेकिन धीरे-धीरे बाइक पर हाथ सैट हो गया। ढलान इतनी ज्यादा है कि हमारी बाइक की गति 40-50 तक पहुँच जाती थी। मोड़ पर नियन्त्रित करने के लिये बाइक में ब्रेक लगाने पड़ रहे थे। इस बाइक में दोनों पहिये में डिस्क ब्रेक है जिस कारण जरा सा ब्रेक लगाते ही बाइक तेजी से रुकने लगती थी।

15-20 किमी बाद सड़क की हालत काफ़ी खराब आ गयी। एक जगह रुककर कुछ फ़ोटो लिये उसके बाद राकेश फ़िर से चालक की सीट पर सवार हो गया। इसी ढलान वाले मार्ग पर एक जगह से सतलुज के पहली बार दर्शन होते है। यहाँ हम काफ़ी देर रुके रहे। कुछ फ़ोटो लिये, हाथ पैर सीधे किये, उसके बाद बिना स्टार्ट किये नीचे की ओर चलते रहे। यहाँ से सामने वाली पहाड़ी पर बनी सड़क ऐसे लग रही थी कि जैसे उस पहाड़ पर किसी ने आड़ी-तिरछी लम्बी लाईन बना दी हो।

धीरे-धीर ढ़लान कम होती जा रही थी। ढलान समाप्त होने का संकेत था कि जलोड़ी जोत वाला मार्ग आने वाला है। शिमला से रामपुर वाले मार्ग पर रामपुर से कोई 30 किमी पहले सैंज मोड़ नामक स्थान आता है यहाँ तिरहे से उल्टे हाथ जाने पर सतलुज पार करनी होती है। सतलुज पार करते ही सैंज नामक कस्बा आता है। पुल पार करने पर उल्टे हाथ होकर अन्नी होते हुए जलोड़ी जोत जाया जाता है। जलोड़ी जोत होकर कुल्लू निकला जा सकता है। जनवरी फ़रवरी में इस जोत (दर्रे) पर काफ़ी बर्फ़बारी होती है। इस जोत पर अपना वाहन खड़ा कर सीधे हाथ सरोलसर झील देखने के लिये 4-5 किमी क आसान सा ट्रेक है। जबकि यहाँ जलोड़ी जोत से उल्टे हाथ 2-3 किमी जाने पर रघुपुर फ़ोर्ट/किला नामक बेहद ही खूबसूरत स्थल है। मैं उन सभी जगह जा चुका हूँ उसके बारे में लिख भी चुका हूँ।


हमारी आज की मंजिल रामपुर या सराहन में से कोई एक होने वाली थी। मनु ने बताया था कि वह रात को ही मुरादनगर से चल दिया था। मैं स्वयं रात को बाइक चलाने से बचता हूँ लेकिन मनु ने गजब कर दिया था। बीच-बीच में चाय की दुकनों पर मनु ने एक दो घन्टा की झपकी भी ले ली थी। लेकिन इतनी लम्बी यात्रा में एक दो घन्टे की झपकी ऊँट के मुँह में जीरा वाली बात साबित होती है। मनु इस यात्रा में देखने लायक स्थलों की सूची बनाकर लाया था। आज की यात्रा में नीरथ नामक जगह पर एक प्राचीन सूर्य मन्दिर देखने की बात हुई थी। इसी मन्दिर के पास दतात्रेय नामक मन्दिर भी बताया गया था दोनों मन्दिर सड़क से सटे हुए है। श्रीखन्ड़ यात्रा में हमने इन दोनों मन्दिरों को देखा ही नहीं था। चलिये अगली बार इन दोनों मन्दिरों के दर्शन करा दिये जायेंगे। (यात्रा जारी है) 




















6 टिप्‍पणियां:

  1. साँप सी सड़कें, घुमावदार खेत, सुन्दर चित्र।

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  2. लेकिन गोल गप्पे वाले को देख कर राकेश ने जुआ गिरा दिया। बाइक किनारे लगाकर हमने गोल गप्पे वाले से बर्गर बनवा लिये। "भाई जी मजाक तो नी कर रहे हो"

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