किन्नर कैलाश यात्रा के सभी लेख के लिंक नीचे दिये गये है।
01- दिल्ली से पोवारी तक kinner Kailash trekking
KINNER KAILASH YATRA-01 SANDEEP PANWAR
भोलेनाथ शंकर जी के कुल 5 कैलाश है जिनके नाम है मणिमहेश दो बार देखा जा
चुका है, श्रीखन्ड़ महादेव एक बार देखा गया है, किन्नर कैलाश इस यात्रा में, आदि
कैलाश अगले साल तय है, कैलाश मानसरोवर अभी कुछ तय नहीं है, इनमें से सबसे ऊँचे व
दुर्गम कैलाश किन्नर है। बीते वर्ष यहाँ का कार्यक्रम बनते-बनते रह गया था अबकी
बार जैसे ही यहाँ की यात्रा आरम्भ हुई तो किन्नर कैलाश के आधार तंगलिंग गाँव के
स्थानीय देवता ने (पता नहीं, देवता के नाम पर गाँव वाले नाटक क्यों करते है?) बोल
दिया कि अबकी बार यात्रा नहीं होगी। मैंने पहले से ही तैयारी की हुई थी कि अबकी
बार जैसे ही किन्नर कैलाश यात्रा की जानकारी मिलेगी, मैं तुरन्त चला जाऊँगा, लेकिन
जब यह समाचार मिला कि स्थानीय देवता इस साल नाराज है जिस कारण इस साल यात्रा नहीं
होगी तो सोचा कि चलो आदि कैलाश की यात्रा कर आता हूँ।
आदि कैलाश के बारे में ताजा जानकारी ली गयी तो
पता लगा कि जून में उतराखन्ड़ में हुई बर्बादी के कारण धारचूला से आगे का मार्ग अभी
तक बन्द पड़ा है। वैसे भी अगस्त माह का आखिरी सप्ताह चल रहा था। लग रहा था कि इस
साल किसी भी कैलाश के दर्शन नहीं होंगे। मैंने इस साल कैलाश दर्शन की उम्मीद लगभग
छोड़ ही दी थी कि अचानक फ़ेसबुक पर फ़्रेंड़ लिस्ट में से किसी का अपडेट दिखायी दिया।
उन्होंने बताया था कि किन्नर कैलाश यात्रा दस दिन की देरी से आरम्भ हो गयी है।
मैंने तुरन्त हिमाचल रोड़वेज की वेबसाइट खोली और दिल्ली से रिकांगपियो/रामपुर जाने
वाली बस में सीटों की खाली स्थिति देखी। सीट खाली देखकर मैंने अपनी पसन्द की सीट
बुक करनी चाही तो सीट बुक करने का लिंक दिखायी नहीं दिया।
अपना एक नया युवा साथी है राकेश बिश्नोई, जो
मूलत: रहने वाले तो बीकानेर राजस्थान के है लेकिन वर्तमान में दिल्ली के
सुल्तानपुर को अपनी शरणस्थली बनाये हुए है। तीन माह पहले ही राकेश को श्रीखण्ड़
महादेव यात्रा सर्च करते समय मेरे ब्लॉग के बारे में पता लगा तो मोबाइल पर कई बार
हमारी बाते हुई। इस यात्रा के एक माह पहले ही राकेश मेरे साथ करेरी गाँव व कांगड़ा
घूमकर आया था। उस यात्रा के बारे में इस यात्रा के बाद बताया जायेगा। राकेश ने उस
यात्रा में अपने मोबाइल से ही बस के टिकट बुक किये थे। जब मैंने राकेश से टिकट बुक
होने में परेशानी होने की बात बतायी तो राकेश बोला कि जाट भाई “क्या मुझे लेकर
नहीं जाओगे? करेरी गाँव की यात्रा में राकेश का घुमक्कड़ी के प्रति जज्बा देख चुका
था। किन्नर कैलाश की ऊँचाई 20000 फ़ीट
बतायी जाती है। इस यात्रा में मुझे अंदाजा था कि रहने व खाने की समस्या आने वाली
है।
राकेश खाने के मामले में बड़ा दीवाना है। भूख सहन
करना उसके बस में नहीं है। आलसी बिल्कुल भी नहीं, सुबह चार बजे बोल दो चलने को
तैयार, कुछ ऐसा ही जोश मनु प्रकाश त्यागी का भी है। उसमें भी आलस बिल्कुल नहीं है,
पूरी रात बाइक चला लेता है। पूरी रात बाइक चलाने में मैं खुद बचता हूँ। पूरी रात
बाइक चलाना, खतरे के खिलाड़ी को मेरा प्रणाम। श्रीखन्ड़ वाले साथी विपिन ने भी
किन्नर कैलाश जाने की इच्छा पहले ही बतायी हुई थी। लेकिन कार्यक्रम इतना अचानक बना
या कहो कि संयोग कुछ ऐसा बना कि ना विपिन से ना मनु से बात हो सकी। अपना एक और
साथी है नीरज साहब (जो बन्दा सुबह उठने को तैयार ही ना हो वह साहब ही होता है।)
श्रीखन्ड़ में नीरज साहब के नखरे देखे थे अत: दुबारा वही गलती करने की अपुन की आदत
नहीं है।
जब राकेश ने कहा कि मैं भी साथ चलूँगा तो मुझे
लगा कि अगर राकेश साथ गया तो इस यात्रा में उसकी भूख के मारे हालत देखने लायक
रहेगी। मैंने राकेश से कहा कि ठीक है चल लेना, लेकिन पहले मुझे यह तो बताओ कि मेरे
कम्प्यूटर से टिकट बुक क्यों नहीं हो रहे है? राकेश ने कहा कि हो सकता है कि आपके
ब्राउजर में कोई अपडेट पूरा ना हो जिस कारण टिकट बुक करने वाला निशान नहीं दिख रहा
है। राकेश बोला जाट भाई मैं अपने व आपके टिकट बुक कर देता हूँ। दोनों ने आपस में
बात करके शुक्रवार शाम 06:30 को दिल्ली से रामपुर तक जाने वाली हिमाचल रोड़वेज बस की टिकट
बुक कर दी।
बुधवार के दिन टिकट बुक किये थे। इस तरह कुल
मिलाकर दो दिन बाद किन्नर कैलाश की ट्रेकिंग पर जाना था। वैसे मैं अपने कार्यालय
प्रतिदिन साधारण साईकिल से ही आना-जाना करता हूँ लेकिन जिस दिन मुझे बस या ट्रेन
से कही बाहर जाना होता है उस दिन मैं कार्यालय भी बस से ही आना-जाना करता हूँ।
कारण, दिल्ली की बसों में 40 व 50 रु के दैनिक पास बनते है। उनसे आप दिन भर में
कितनी भी बस बदल सकते हो। 50 वाला
पास वातानुकूलित बसों लाल वाली व हरी बस दोनों में व 40 वाला पास केवल साधारण हरी बसों में ही चलता है।
रामपुर जाने वाली बस शाम की थी दिन में अपना
दैनिक कार्य किया गया। शाम को दिल्ली के कश्मीरी गेट महाराणा प्रताप बस अड़ड़े पहुँच
गया। अपनी आदत है कि चाहे ट्रेन से जाना हो या बस से तय समय से लगभग 30 मिनट पहले पहुँचना सही रहता है घर से लेकर स्टेशन
पहुँचने तक किसी भी कारण देर होने पर गाड़ी निकलने की सम्भावना बनी रहती है। समय से
पहले पहुँचकर यह सम्भावना समाप्त हो जाती है। बस चलने में अभी 10 मिनट बाकि थे लेकिन राकेश का अब तक कहीं
नामोनिशान नहीं था। उसको फ़ोन मिलाया तो पता लगा कि मेट्रो से बाहर आ चुका है कुछ
मिनटों में बस के पास हाजिर हो जायेगा।
बस के टिकट राकेश के पास ही थे। जिससे यह अंदेशा
हो सकता था कि यदि राकेश समय से नहीं पहुँच पाता है तो बिना टिकट मुझे भी बस छोड़नी
होगी। राकेश ने मुझे सीट की संख्या पहले ही बता दी थी। मैंने अपना बैग-पैक अपनी
सीट पर रख दिया था। बैग सीट पर रख मैं बस के बाहर खड़ा होकर राकेश का इन्तजार करने
लगा। जब मैं राकेश का इन्तजार कर रहा था तो मैंने देखा कि एक बन्धु मेरा बैग हटाकर
कही ओर रखने के लिये उठाये हुए थे। मैंने तुरन्त आवाज लगायी कि यह बैग मेरा है इसे
कहाँ लेकर जा रहे हो? उन बन्धु का जवाब सुनकर मुझे उनपर दया आयी।
उन्होंने कहा कि जिस सीट संख्या 19 पर आपने बैग रखा
है वह मेरी सीट है। हाय़- ऐसा कैसे हुआ? मैंने तो टिकट बुक करते समय ही राकेश को
बोला था कि दोनों टिकट खिड़की वाले ही बुक करना। बैग रखते समय मैंने सीट की संख्या
भी ध्यान से देखी थी। जब मैंने उन्हे उनकी सीट का नम्बर लिखा दिखाया तो उनका चेहरा
देखने लायक था। वे बन्धु अपनी वाली सीट पर बैठ गये। खिड़की वाली सीट अपनी थी। कुछ
पलों बाद राकेश भी आ पहुँचा। बस के अन्दर काफ़ी गर्मी थी जिससे हम दोनों बाहर आकर
खड़े हो गये। तभी वहाँ एक आइसक्रीम बेचने वाला आया तो मैंने एक आइसक्रीम लेकर खानी
शुरु कर दी।
बस चलने का समय हो चुका था लेकिन बस चालक ने अभी
तक अपनी सीट पर कब्जा नहीं जमाया था। लगभग 10-12 मिनट की देरी से बस चालक अपनी सीट पर काबिज हुआ। बस चालक के सीट पर
बैठते ही परिचालक के सभी सवारियों को आवाज लगायी जिसके बाद बाहर खड़ी सवारियां भी
बस के अन्दर आ गयी। हमारी बस रामपुर की ओर चलने लगी लेकिन बस चालक ने देखा कि आगे
वाली सीट पर एक बैग रखा हुआ है लेकिन उसके मालिक का कुछ अता पता नहीं है। शायद बस
चालक उस बैगे के मालिक को जानता था क्योंकि अगली सुबह ठियोग के आगे जाकर एक ढाबे
के यहाँ जब हमारी बस खड़ी थी तो उस बैग का मालिक अपना बैग लेने आ गया था। बैग का
मालिक हमारी बस के बाद चलने वाली AC बस से
रामपुर आया था।
दिल्ली से चलकर हमारी बस सुबह 4 बजे शिमला बस अडड़े पहुँची थी यहाँ हमारी रामपुर
वाली बस का चालक बदल गया था। हम चाहते तो दिल्ली से चलने वाली रिकांगपियो की सीधी
बस में बैठ सकते थे लेकिन वह बस दो घन्टे बाद जाने वाली थी। ठियोग पहुँचकर बाहर
उजाला हुआ था यही हमारी बस एक ढ़ाबे पर चाय पान के लिये रुकी थी। शिमला से नारकंड़ा
तक मार्ग काफ़ी ऊँचाई पर चलता है जिससे गर्मी के मौसम में भी ठन्ड़क का भरपूर अहसास
होता है। नारंकड़ा से आगे ढ़लान पर उतरते हुए हमारी बस सैंज नामक जगह पहुँची यहाँ से
आगे का मार्ग सतलुज के साथ-साथ चलता है। हमने सुबह रामपुर पहुँचकर वहाँ से
रिकांगपियो जाने वाली बस में बैठ कर आगे की यात्रा जारी रखी थी। रामपुर से आगे की
यात्रा पियो जाने वाली जिस बस में की थी वह बस कहने को तो लोकल ही थी लेकिन उसकी
गति मार्ग के हिसाब से ठीक ही थी।
रामपुर शिमला जिले में आता है इसी मार्ग पर आगे
जाकर ज्यूरी नामक जगह आती है यहाँ हमारी यह दूसरी वाली बस भोजन के लिये रुकी थी।
ज्यूरी में हमने शाकाहारी मोमो खाये। मांसाहार अन्ड़ाहार जैसी चीजे अपने मतलब की
नहीं होती। ज्यूरी ही वह जगह है जहाँ से सराहन का भीमाकाली मन्दिर मात्र 17 किमी दूर रह जाता है। ज्यूरी सड़क से सराहन ऊपर
पहाड़ पर दिखायी भी देता है। अगर ज्यूरी से सराहन की सीधी हवाई दूरी देखी जाये तो
मुश्किल से दो किमी भी नहीं मिलेगी। लेकिन सड़क मार्ग से जाने में पूरे 17-18 किमी चलना होता है। इस यात्रा के ठीक महीने भर
बाद हमने एक बार फ़िर इस मार्ग पर बाइक से यात्रा की थी जिसमें सराहन का भीमाकाली
मन्दिर भी देखा गया था। उसके बारे में इस यात्रा के बाद बताया जायेगा।
हमारी बस अपनी मंजिल की ओर बढ़ती रही। मैं बस में
बैठा-बैठा मार्ग पर आने वाले बोर्ड़ को देखकर तिलमिला जाता था। मार्ग में आगे जाने
पर किन्नौर जिले में आगमन का बड़ा सा दरवाजा बनाया हुआ है। यहाँ से आगे जाने पर एक
पत्थर के बड़े से सुराख में सड़क निकाली हुई है। यहाँ आगे चलकर करछम नामक जगह आयी,
यहाँ एक बाँध बनाया हुआ है पानी रोकर बिजली बनायी जाती है। यही से एक मार्ग सीधे
हाथ सतलुज नदी पार कर इस मार्ग के अन्तिम गांव छितकुल व बास्पा गाँव होते हुए
सांग्ला घाटी के लिये जाता है। यही मार्ग आगे छितकुल तक जाता है यहाँ छितकुल तक की
यात्रा भी हमने बाइक पर इस यात्रा के ठीक एक माह बाद की थी। उसका विवरण भी इस
यात्रा के बाद दिखाया जायेगा।
करछम डैम से कुछ किमी आगे चलने पर सड़क का
सत्यानाश देखा। यह सड़क भारी भूस्खलन के कारण लगभग 300-400 मी दूरी तक
बिल्कुल समाप्त ही हो चुकी है। ऊपर पहाड़ से आये भारी मलबे से सड़क खिसक कर सतलुज
में बह गयी। सतलुज नदी में गिरे मलबे में कामचलाऊ मार्ग बनाकर यातायात व्यवस्था
चालू रखी गयी है। इस खतरनाक मार्ग की हालत एक महीने बाद भी जस की तस मिली थी।
राकेश ने बताया था कि वह अप्रैल में अपनी बाइक पर यहाँ आया था तो तब भी यह इसी
हालत में थी। आगे जाने पर पोवारी नामक स्थान का बोर्ड़ दिखायी दिया। हमारी ट्रेकिंग
आरम्भ करने का स्थान आ गया था। अगले भाग में किन्नर कैलाश ट्रेकिग का विवरण बताया
जायेगा। (यात्रा अभी अगले भाग में जारी है।)
अच्छी शुरुआत है...आगे के यात्रा वृतांत का इंतज़ार रहेगा...
जवाब देंहटाएंas usual good one !
जवाब देंहटाएंराम राम जी, चलते रहो, सैर कराते रहो...धन्यवाद....
जवाब देंहटाएंभाई जी बस अड्डे पर अकेले अकेले आईसक्रीम खाई अच्छी बात नही फोन करके मुझे ही बुला लेते. . .
जवाब देंहटाएंchal pado fir himalaya ki taraf.ram ram Sandeep bhai
जवाब देंहटाएंइतना विस्तृत विवरण और इतने सुन्दर चित्र, पढ़कर आनन्द ही आ जाता है।
जवाब देंहटाएंbhayankar accident
जवाब देंहटाएंBhai kasam se aapko maanna padega
जवाब देंहटाएंBahut Sundar Shuruvaat.................Aage dekhate hain kya hota hai.....
जवाब देंहटाएंRakesh bhai ke darshan kab karwayenge ???
जवाब देंहटाएंSandeepji kai yatra aisi hi jo is janam me possible nahi hai, par aap aur Neerajbhai jaise utkrushta logo ke sahare darshan ho jate hai
जवाब देंहटाएंbahut sunder yatra jari hai ...hum sath -sath hai ..
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