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शनिवार, 27 अप्रैल 2013

Palampur Tea garden पालमपुर के चाय के बागान में घुमक्कड़ी

हिमाचल की कांगड़ा व करसोग घाटी की यात्रा 04                                                       SANDEEP PANWAR

पालमपुर स्टेशन पर ट्रेन से उतरकर कुछ दूर जाने पर पालमपुर जाने वाली सड़क मिल गयी। इस स्टेशन से पालमपुर शहर कई किमी दूरी पर था। हमें सबसे पहले रात्रि विश्राम हेतू पालमपुर शहर पहुँचना था। सड़क से पालमपुर जाने के लिये बस आटो/जुगाड़ आदि के इन्तजार में खड़े हो गये। 10-15 मिनट बाद जाकर एक बस आयी हम उस बस में सवार होकर पालमपुर पहुँच गये। बस ने हमें पालमपुर के बस अड़ड़े पर उतार दिया। पालमपुर का विशाल बस अड़ड़ा देखकर मैं दंग रह गया। इतना बड़ा बस अड़ड़ा वो भी पहाड़ों में मिलना एक करिश्में जैसा लग रहा था। कमरा देखने के पहले बस अड़ड़े पर एक चाऊमीन की दुकान पर पहुँचे, दुकान वाला दुकान बन्द करने की तैयारी करने लगा था। हमने उसे चाउमीन बनाने के लिये कहा तो वो तैयार हो गया। थोड़ी देर में ही दुकान वाले ने गर्मागर्म चाउमीन बनाकर हमारे सामने पेश कर दी। हमने बड़े सुकून से चटखारे ले ले कर चाउमीन का रात्रि भोजन किया। जब चाउमीन खाकर दुकान वाले को पैसे देने लगे तो लगे हाथ दुकान वाले से रात में रुकने का बढ़िया उचित दर की कीमत वाला ठिकाना मालूम कर लिया। दुकान वाले ने बताया था कि बस अड़ड़े से बाहर निकलते ही आपको एक गेस्ट हाऊस दिखायी देगा उसमें कमरे व डोरमेट्री में आपको आसानी सही कीमत में स्थान मिल जायेगा।

बस अड़ड़े से बाहर आते ही सामने की तरफ़ वाली दिशा में दुकान वाले का बताया गेस्ट हाऊस दिखाई दिया। अन्दर स्वागत मेज पर जाकर रात्रि आवास के लिये बात करने लगे। गेस्ट हाऊस वाला बोला "डोरमेट्री में आपको 100 रुपये प्रति पलंग मिल जायेगा। कमरा कम से कम 300 रुपये का मिलेगा।" कमरा लेकर हमें कौन सा सुहागरात मनानी थी। शरीर के लिये जरुरी 6-7 घन्टे सोकर आगे की यात्रा पर दिन निकलते ही चले जाना था। हमने अपने पहचान दिखाकर दो पलंग डोरमेट्री में ले लिये। विपिन बोला संदीप भाई यहाँ सामान रखने के लिये अलमारी तो है ही नहीं। मैंने कहा देख भाई अपुन के पास बैग में सिर्फ़ दो-तीन जोड़ी कपड़े है। पैसे व कैमरे की चिंता वाली बात है उन्हें अपने पलंग में गददे के नीचे रख कर सोयेंगे। वैसे भी यहाँ हमारे अलावा एक बन्दा ही तो है। चलो पहले नहा धोकर आते है। आज सुबह से बिना नहाये यात्रा करने में लगे पड़े है। चम्बा से पालमपुर तक बिना नहाये धोये ही चले आये। गेस्ट हाऊस वाले से नहाने का ठिकाना पता कर, नहा धोकर सोने के लिये वापिस आये। पूरी रात जमकर सोये,  ना ठन्ड़ ना गर्मी, एकदम चकाचक मस्त-सुहावना मौसम। सुबह 5 बजे का अलार्म लगाया था। जैसे ही मोबाइल का घन्टा बजा, तुरन्त उठ गये।
  
आज सुबह उठकर पालमपुर के चाय बागान देखने की योजना बनायी थी। इसलिये उजाला होने से पहले ही नहा धोकर चकाचक हो गये। होटल वाले से चाय के बागान के बारे में पता किया था, उसने बताया था कि चाय के बागान यहां से कई किमी आगे जाकर मिलेंगे। सुबह का टैम/समय था इसलिये हमने किसी बस की प्रतीक्षा में समय खराब करने की बजाय पैदल चलना ही ठीक समझा। लगभग एक किमी जाने के बाद एक बोर्ड मिला जिस पर आसपास के स्थानों की दूरी लिखी हुई थी। उससे थोड़ा आगे चलते ही एक पुराना मन्दिर दिखायी दिया। मन्दिर के अन्दर जाने की आफ़त हमने नहीं उठायी। हम अपनी मस्त चाल से चलते चले जा रहे थे। आगे जाने पर हमें सड़क किनारे उल्टॆ हाथ एक बोर्ड़ दिखायी दिया उस मार्ग पर चन्दपुर गाँव होते हुए 250 वर्ष पुराने व 5550 फ़ुट ऊँचाई पर स्थित शानदार जगह पर एक मन्दिर के बारे में बताया गया था। बाइक साथ होती तो इस स्थान को भी लपेट लेते। आगे बढ़ते हुए हम पालमपुर के मिल्ट्री स्टेशन के सामने पहुँच गये। सुरक्षा कारणों से सेना के ठिकाने का फ़ोटो नहीं लेना चाहिए, यदि ऐसा करते हुए पकड़े गये तो कानूनन जेल जाना पड़ जायेगा। हमने दूर से एक फ़ोटो लिया ताकि कानून का उल्लंघन ना हो। लगभग एक घन्टे में हमने 3 किमी की दूरी तय कर ली होगी। सेना के ठिकाने से आगे बढ़ते ही चाय के बागान दिखायी देने आरम्भ हो गये।

शुरुआत के चाय के कुछ बागान तो बेहद ही छोटे-छोटे से थे उनमें घुसने की इच्छा भी नहीं हुई आगे चलकर एक बड़ा सा चाय बागान दिखायी दिया। लेकिन उसमें घुसने की जगह ना मिली। हम उस बागान के साथ-साथ चलते रहे, काफ़ी दूर जाकर उस बागान में जाने के लिये मार्ग मिला। सुबह का समय होने के कारण रात को गिरी औस या बारिश से चाय के पौधे पूरी तरह गीले हुए पड़े थे। जैसे ही हमने उनके बीच से होकर चलना शुरु किया तो हमारी पेंट भीगनी चालू हो गयी। हम आधे घन्टे तक चाय के बागान में टहलते रहे। चाय के पौधे व उनकी पत्तियाँ जीवन में पहली बार देखी थी। मैंने सुना था कि चाय की पत्ती से ही पीने वाली चाय तैयार की जाती है, मैंने आज तक चाय तो नहीं पी है लेकिन चाय देखी बहुत है। पेड़ की पत्तियाँ हरी होती है जबकि हमें मिलने वाली चाय काले रंग की होती है। चाय के पौधे पर कुछ बीज जैसे भी लगे हुए थे। उन बीजों का क्या होता है? हमें नहीं पता था। हमें उनके बारे में बताने वाला भी वहाँ कोई नहीं था। चाय के बागान को जी भर के देखकर वहाँ पर फ़ोटो लेने का कार्यक्रम भी हुआ। हम दोनों ने आपस मॆं एक दूसरे की ढ़ेर सारी फ़ोटो लेने के बाद बागान का एक लम्बा चक्कर लगाया। बागान का चक्कर लगाने के बाद वहाँ से आगे बैजनाथ जाने का विचार किया गया था। 

हम जिस सड़क पर घूमते हुए आ रहे थे वहाँ पर हमने घन्टे भर से कोई बस नहीं देखी थी। एक घन्टा से ज्यादा हो गया और बस का पता नहीं, यह बात हमारे मन में शंका पैदा कर रही थी। हो ना हो कुछ ना कुछ तो गड़बड़ घोटाला था। हमने पैदल चलने का कार्य जारी रखा, आगे चलते हुए हमें एक स्थानीय व्यक्ति मिला हमने उससे यहाँ पालमपुर में बस ना मिलने के बारे में पूछा तो उसने कहा कि आप जिस सड़क पर आये हो बस उस सड़क पर नहीं चलती है। बसे बाई पास वाले मार्ग पर होकर मन्ड़ी की ओर जाती है। हम बाई पास से थोड़ा पीछे ही खड़े थे। कुछ देर में ही बाइ पास वाले मोड़ पर पहुंच गये। यहाँ कुछ देर खड़े रहने के उपरांत बैजनाथ जाने वाली बस मिल गयी। इस मोड़ से बैजनाथ 14-15 किमी बाकि था। बैजनाथ जाने वाली बस में सबसे आगे वाली सीट खाली पड़ी थी हम जैसे कुदरत के आशिकों को ऐसा मौका ही तो चाहिए होता है, हमने तुरन्त आगे वाली सीट पर अपना कब्जा जमा दिया। बस पालमपुर में चारों बिखरे पड़े चाय के बागानों के बीच से होती हुई बैजनाथ की ओर बढ़ती जा रही थी। दो-तीन जगह बेहद ही जानदार लोकेशन फ़ोटो लेने के दिखायी दी, लेकिन अपनी गाड़ी ना होने के कारण हमें उस लोकेशन का फ़ोटो लेने से वंचित रहना पड़ा। (क्रमश:) 

हिमाचल की इस बस व रेल यात्रा के सभी लेख के लिंक नीचे दिये गये है। सबसे नीचे स्कारपियो वाली यात्रा के लिंक दिये है।







बाइक होती तो यह भी देख लिया जाता।

भारत के सेना के ठिकाने पर पाकिस्तानी टैंक

जाट जी चाय तो पीते नहीं फ़िर चाय का स्वाद कैसे बताओगे?












हिमाचल की इस यात्रा के सभी लेख के लिंक नीचे दिये गये है।
01. मणिमहेश यात्रा की तैयारी और नैना देवी तक पहुँचने की विवरण।
02. नैना देवी मन्दिर के दर्शन और भाखड़ा नांगल डैम/बाँध के लिये प्रस्थान।
03. भाखड़ा नांगल बांध देखकर ज्वालामुखी मन्दिर पहुँचना।
04. माँ ज्वाला जी/ज्वाला मुखी के बारे में विस्तार से दर्शन व जानकारी।
05. ज्वाला जी मन्दिर कांगड़ा से ड़लहौजी तक सड़क पर बिखरे मिले पके-पके आम
06. डलहौजी के पंजपुला ने दिल खुश कर दिया। 
07. डलहौजी से आगे काला टोप एक सुन्दरतम प्राकृतिक हरियाली से भरपूर स्थल।
08. कालाटोप से वापसी में एक विशाल पेड़ पर सभी की धमाल चौकड़ी।
09. ड़लहौजी का खजियार उर्फ़ भारत का स्विटजरलैंड़ एक हरा-भरा विशाल मैदान 
10. ड़लहौजी के मैदान में आकाश मार्ग से अवतरित होना। पैराग्लाईंडिंग करना।
11. ड़लहौजी से चम्बा होते हुए भरमौर-हड़सर तक की यात्रा का विवरण।
12. हड़सर से धन्छो तक मणिमहेश की कठिन ट्रेकिंग।
13. धन्छो से भैरों घाटी तक की जानलेवा ट्रेकिंग।
14. गौरीकुन्ड़ के पवित्र कुन्ड़ के दर्शन।
15. मणिमहेश पर्वत व पवित्र झील में के दर्शन व झील के मस्त पानी में स्नान।
16. मणिमहेश से सुन्दरासी तक की वापसी यात्रा।
17. सुन्दरासी - धन्छो - हड़सर - भरमौर तक की यात्रा।
18. भरमौर की 84 मन्दिर समूह के दर्शन के साथ मणिमहेश की यात्रा का समापन।
19. चम्बा का चौगान देखने व विवाद के बाद आगे की यात्रा बस से।


3 टिप्‍पणियां:

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