पालमपुर के चाय बागान देखने के बाद जिस बस में बैठकर हम बैजनाथ की ओर आ रहे थे, उस बस वाले से हमने बैजनाथ तक का टिकट लेकर कहा कि बीड़-बिलिंग जाने के कहाँ से बस मिल सकती है? बस वाले ने कहा आपको बीड़ कब जाना है? हमने कहा कि हम तो बैजनाथ के मन्दिर में घूमने के बाद सीधे बीड़-बिलिंग के लिये ही जायेंगे। मन्दिर में कितनी देर का काम है? पहले यह देख लो। हाँ मन्दिर में पूजा-पाठ करने के चक्कर में हम नहीं थे। हमें सिर्फ़ मन्दिर देखना है और फ़ोटो लेकर वापिस चले आना है। बस वाले ने कहा यह बस भी बीड़ तक जा रही है, यदि आप 15-20 मिनट में मन्दिर देखकर आ सकते हो तो इसी बस में आगे चले जाना क्योंकि बस बैजनाथ बस अड़ड़े पर 20 मिनट रुक कर आगे जायेगी। अगली बस आपको घन्टे भर बाद मिलेंगी। हमने कंड़क्टर की सलाह पर गहन विचार के बाद निर्णय लिया कि ठीक है बस अडड़े पर बस आते ही तुरन्त मन्दिर के लिये चले जायेंगे। अपने बैग बस में अपनी सीट पर ही छोड़ देंगे, ताकि कोई सीट पर कब्जा करके ना बैठ जाये। जैसे ही बस ने बैजनाथ शहर में प्रवेश किया तो बस अड़ड़े से कुछ पहले एक बोर्ड दिखायी दिया उस पर बैजनाथ मन्दिर जाने के बारे में लिखा हुआ था। इसके जरा सा आगे चलते ही बस उल्टे हाथ मुड़कर 20 मीटर ही चली होगी कि सीधे हाथ पर बने हुए बस अड़ड़े में घुसने लगी। जैसे ही विपिन बस से उतरने लगा तो तभी कंड़क्टर बोला सामने सीधे हाथ वाले प्रवेश मार्ग से मन्दिर चले जाओ। जल्दी पहुँच जाओगे।
बाबा बैजनाथ मन्दिर, भारत में कुल तीन बाबा बैजनाथ मन्दिर है। |
विपिन मन्दिर देखने के लिये चला गया, जब बस आराम से बस स्थानक पर खड़ी हो गयी और यह निश्चित हो गया कि अब सवारी भी चढ़नी-उतरनी बन्द हो गयी है तो मैंने भी अपने बैग सीट पर छोड़ मन्दिर की ओर रुख किया। मुझे एक सवारी ने कहा कि बस अड़ड़े के गेट की बजाय तुम बस अडड़े के पीछे खाली जगह से जल्दी मन्दिर पहुँच जाओगे और यह ध्यान रखना कि बस मन्दिर के आगे से ही होकर बीड़ के लिये जायेगी। इसलिये वापसी में मन्दिर के बाहर ही खड़े हो जाना। मैं बस अड़ड़े की खाली जगह से होता हुआ सीधा मन्दिर के सामने जा निकला। बाहर से देखने में मन्दिर कोई खास नहीं लग रहा था। मन्दिर के बाहर एक सुन्दर सा बगीचा बनाया गया था। जिसमें माली ने जो मेहनत की थी वो साफ़ झलक रही थी। इस छॊटे से बगीचे में बैठने का मन तो था लेकिन हमारे पास ज्यादा समय नहीं था। विपिन मुझसे पहले मन्दिर में आ गया था इसलिये उसने अभी तक कई फ़ोटो भी ले लिये होंगे। मैं चारों ओर देखता हुआ मन्दिर की ओर बढ़ रहा था।
आगे चलकर एक बोर्ड़ दिखायी दिया जिस पर मन्दिर के खुलने-बन्द होने के बारे में समय लिखा हुआ था। मैंने इस बोर्ड़ के बराबर में लगे हुए कई बोर्ड़ और देखे जहाँ और भी जानकारी दी हुई थी। इस प्रकार लिखी हुई जानकारी से बाद में आने वाले लोंगो को बहुत लाभ होता है। हम भी कही जाते है तो ऐसी ही जानकारी की उम्मीद दूसरे से करते है। इन फ़ोटुओं से नये लोगों को बहुत लाभ होता है। जब हमने इस मन्दिर में प्रवेश किया तो उस वक्त बहुत ज्यादा भीड़ नहीं थी मुश्किल से 3-4 लोग ही वहाँ दिखायी दे रहे थे। यदि गलती से हम सोमवार को आते तो अंधेभक्तों की लम्बी लाईन यहाँ लगी मिलती। मन्दिर के बरामदे में अन्दर गर्भ गृह का फ़ोटो लेना मना है, का सूचना पट लगाया गया था जिस कारण मन्दिर के अन्दर फ़ोटो नहीं लिया उसकी कसर मन्दिर के बाहर चारो ओर के फ़ोटो लेकर पूरी कर ली। देखने में ही मन्दिर बहुत पुराना लग रहा था। हो सकता है कि यह मन्दिर हजार साल से भी पुराना हो। खैर मन्दिर कितना पुराना है उससे इस बात का फ़र्क नहीं पड़ता कि वहाँ भक्त आयेंगे या नहीं। आजकल तो 70-80 साल पुराने मन्दिर/समाधी/कब्र पर भी जमकर लाईन लगती है। कितने उदाहरण चाहिए?
बाबा बैजनाथ के नाम से कुछ विवाद भी जुड़े हुए है। जैसा कि बताया जाता है कि हिन्दू धर्म में जब शिव पुराण का निर्माण किया गया तो उसमें भगवान शिव को जैन व बौद्ध धर्म के मूर्ति रुप को अत्यधिक प्रसारित होने के कारण मुकाबला करने के लिये पुजारियों की टीम ने तैयार किया था। हिन्दू धर्म में पहले मूर्ति पूजा ने आगमन नहीं किया था। हिन्दू धर्म तो असलियत में कोई धर्म है ही नही, दुनिया क सबसे पहला धर्म सनातन धर्म है बाद में जब सनातन धर्म में पुजा-पाठ करने वाले पुजारी गैंग का एकाधिकार अत्यधिक बढ़ने लगा तो कई नये धर्म का उदय हुआ। उन नये धर्म में से जैन धर्म व बौद्ध धर्म आज तक चले आ रहे है। इन दोनों नये धर्म में मूर्ति पूजा पर ज्यादा जोर दिया गया था जिस कारण लोगों का तेजी से झुकाव इनकी ओर होने लगा। इस बात से घबरा कर सनातन धर्म के पुजारियों ने सनातन धर्म में भी मूर्ति पूजा की शुरुआत कर दी। आखिर पुजारी अपने एकाधिकार और कमाई को इतनी आसानी से कैसे दूसरे हाथों में जाने देते। देख लो आज भी पुजारियों की लूट जारी है। भोले-भाले (लालची लोग कहे तो ज्यादा उपयुक्त रहेगा) मन्दिरों में माँगने जाते है वहाँ पुजारी रुपी ठग उनसे झीनने को तैयार रहते है।
इन्ही मतलबी पुजारियों (ज्यादातर तो लालची ही है) के कारण ही लगभग 1500 साल पहले हिन्दू धर्म से निकाले गये लोगों द्धारा एक नया धर्म बना लिया गया वह धर्म आज का सबसे तथाकथित रुप से शांतिप्रिय धर्म है जिसमें कही कोई मार-काट भेद-भाव, ऊँच-नीच नहीं (?) पायी जाती है। कमाल की बात तो यह है कि जिस बात को लेकर इस धर्म का उदय हुआ था वही बात इसमें आसानी से तलाशने पर भी दिखायी नहीं देती। इसी शांति प्रिय धर्म को इस्लाम कहते है इसी धर्म की एकमात्र पुस्तक कुरान है जो इन्ही पुजारियों की मायाजाल से मुकाबला करने के लिये बनायी गयी बतायी जाती है कि अल्ला ने (1500 से पहले अल्ला कहाँ गायब था) धरती पर भेजी थी। हा हा हा बड़ा अजीब लगता है जब हर कुछ सौ सालों में एक नया धर्म पैदा कर लिया जाता है। आज के दौर में इसी सबसे शांति प्रिय धर्म के हक की जो बात करता है वो धर्म निरपेक्ष कहलाता है और गजब देखिये इसके अलावा कोई अन्य धर्म वाला खासकर हिन्दू/सनातन धर्म वाला अपने धर्म के हक की बात करे तो साम्प्रदायिक कहा जाने लगा है। ये जितने भी टाइप के ईश्वर/अल्ला/भगवान आदि बनाये गये है सब खाऊ-पीऊ लोगों की देन है। असली भगवान कही है मुझे उसपर संदेह है, क्योंकि यदि असली भगवान कही होता तो दुनिया में इतना हाय-तौबा, बलात्कार (रजामन्दी भी तो कुछ चीज है), मार-काट (मार-पीट से बात नहीं बन सकती क्या), हत्या (तोड़ा-भोड़ी करके काम चला लो) जैसे घिनौने अपराध तो कम से कम नहीं होते।
अरे इन बेकार की धर्म वाली वाले झगड़े के चक्कर में मन्दिर की असली बात पीछे रह जायेगी। पहले मन्दिर की बात करते है जब शिव पुराण सहित कई अन्य पुराण का निर्माण किया गया तो उसी समय भगवान भोले नाथ के 12 jyotirlimga ज्योतिर्लिंग भारत भर में बनाये गये थे। उन बारह में दो ज्योतिर्लिंगों पर इतिहासकार एकमत नहीं है। पहला झगड़ा नागेश्वर वाला है जिसमें से एक गुजरात में है दूसरा महाराष्ट्र में, मन्दिर की वास्तुकला के हिसाब से देखे तो महाराष्ट्र वाला असली जान पड़ता है। अब बात करते है बाबा बैजनाथ के बारे में बाबा बैजनाथ के तीन मन्दिर बने हुए है। पहला बिहार के देवघर में है दूसरा उतराखन्ड़ में अल्मोड़ा जिले के ग्वालदम के पास स्थित है। तीसरा मन्दिर यह आज वाले लेख का है इन तीनों मन्दिर की वास्तुकला व ऐतिहासिक बातों पर ध्यान दिया जाये तो अल्मोड़ा वाला बैजनाथ शिव मन्दिर सबसे बाजी मार लेता है। चूंकि मैंने यह सारे मन्दिर देखे हुए है अत: मेरे लिये यह कहना आसान है कि इस बात पर विवाद सिर्फ़ कमाई बढ़ाने के लिये ही किया जा रहा है। अपना उत्तराखन्ड़ वाला मन्दिर सबसे आगे है। मन्दिर देखकर वापिस अपनी बस की ओर चल दिये। बस का समय हो रहा है कही मन्दिर के चक्कर में बस के साथ हमारे बैग भी चले जाये। हमारी बस बीड़-बिलिंग जा रही थी। (क्रमश:)
हिमाचल की इस बस व रेल यात्रा के सभी लेख के लिंक नीचे दिये गये है। सबसे नीचे स्कारपियो वाली यात्रा के लिंक दिये है।
मन्दिर में बगीचा |
मन्दिर के बाहर की मूर्ति |
नन्दी छत के नीचे |
बड़े खुले वाले नन्दी, इनके पिछवाड़े में लोग कुछ कर रहे थे। |
मन्दिर से दिखायी देती पर्वतमाला |
हम इस दिशा से आये थे। |
नन्दी की कमर से मन्दिर |
छत वाले नन्दी की कमर से मन्दिर |
पढ लो |
बाय-बाय |
हिमाचल की इस यात्रा के सभी लेख के लिंक नीचे दिये गये है।
01. मणिमहेश यात्रा की तैयारी और नैना देवी तक पहुँचने की विवरण।
02. नैना देवी मन्दिर के दर्शन और भाखड़ा नांगल डैम/बाँध के लिये प्रस्थान।
03. भाखड़ा नांगल बांध देखकर ज्वालामुखी मन्दिर पहुँचना।
04. माँ ज्वाला जी/ज्वाला मुखी के बारे में विस्तार से दर्शन व जानकारी।
05. ज्वाला जी मन्दिर कांगड़ा से ड़लहौजी तक सड़क पर बिखरे मिले पके-पके आम।
06. डलहौजी के पंजपुला ने दिल खुश कर दिया।
07. डलहौजी से आगे काला टोप एक सुन्दरतम प्राकृतिक हरियाली से भरपूर स्थल।
08. कालाटोप से वापसी में एक विशाल पेड़ पर सभी की धमाल चौकड़ी।
09. ड़लहौजी का खजियार उर्फ़ भारत का स्विटजरलैंड़ एक हरा-भरा विशाल मैदान
10. ड़लहौजी के मैदान में आकाश मार्ग से अवतरित होना। पैराग्लाईंडिंग करना।
11. ड़लहौजी से चम्बा होते हुए भरमौर-हड़सर तक की यात्रा का विवरण।
12. हड़सर से धन्छो तक मणिमहेश की कठिन ट्रेकिंग।
13. धन्छो से भैरों घाटी तक की जानलेवा ट्रेकिंग।
14. गौरीकुन्ड़ के पवित्र कुन्ड़ के दर्शन।
15. मणिमहेश पर्वत व पवित्र झील में के दर्शन व झील के मस्त पानी में स्नान।
16. मणिमहेश से सुन्दरासी तक की वापसी यात्रा।
17. सुन्दरासी - धन्छो - हड़सर - भरमौर तक की यात्रा।
18. भरमौर की 84 मन्दिर समूह के दर्शन के साथ मणिमहेश की यात्रा का समापन।
19. चम्बा का चौगान देखने व विवाद के बाद आगे की यात्रा बस से।
02. नैना देवी मन्दिर के दर्शन और भाखड़ा नांगल डैम/बाँध के लिये प्रस्थान।
03. भाखड़ा नांगल बांध देखकर ज्वालामुखी मन्दिर पहुँचना।
04. माँ ज्वाला जी/ज्वाला मुखी के बारे में विस्तार से दर्शन व जानकारी।
05. ज्वाला जी मन्दिर कांगड़ा से ड़लहौजी तक सड़क पर बिखरे मिले पके-पके आम।
06. डलहौजी के पंजपुला ने दिल खुश कर दिया।
07. डलहौजी से आगे काला टोप एक सुन्दरतम प्राकृतिक हरियाली से भरपूर स्थल।
08. कालाटोप से वापसी में एक विशाल पेड़ पर सभी की धमाल चौकड़ी।
09. ड़लहौजी का खजियार उर्फ़ भारत का स्विटजरलैंड़ एक हरा-भरा विशाल मैदान
10. ड़लहौजी के मैदान में आकाश मार्ग से अवतरित होना। पैराग्लाईंडिंग करना।
11. ड़लहौजी से चम्बा होते हुए भरमौर-हड़सर तक की यात्रा का विवरण।
12. हड़सर से धन्छो तक मणिमहेश की कठिन ट्रेकिंग।
13. धन्छो से भैरों घाटी तक की जानलेवा ट्रेकिंग।
14. गौरीकुन्ड़ के पवित्र कुन्ड़ के दर्शन।
15. मणिमहेश पर्वत व पवित्र झील में के दर्शन व झील के मस्त पानी में स्नान।
16. मणिमहेश से सुन्दरासी तक की वापसी यात्रा।
17. सुन्दरासी - धन्छो - हड़सर - भरमौर तक की यात्रा।
18. भरमौर की 84 मन्दिर समूह के दर्शन के साथ मणिमहेश की यात्रा का समापन।
19. चम्बा का चौगान देखने व विवाद के बाद आगे की यात्रा बस से।
जय बाबा बैजनाथ
जवाब देंहटाएंजय बाबा की
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टी की चर्चा कल सोमवार (29-04-2013) के चर्चा मंच अपनी प्रतिक्रिया के लिए पधारें
जवाब देंहटाएंसूचनार्थ