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गुरुवार, 11 अप्रैल 2013

Naina Devi Temple नैना देवी मन्दिर से ज्वाला जी तक

हिमाचल स्कारपियो-बस वाली यात्रा-02                                                                   SANDEEP PANWAR

इस यात्रा के पहले लेख में आपको यहाँ हिमाचल के बिलासपुर जिले में माता नैना देवी मन्दिर तक पहुँचने की कहानी के बारे में विस्तार से बताया गया था। अब उससे आगे.....  हमने नैना मन्दिर पहुँचने के बाद अपने महाराष्ट्र वाले दोस्तों को तलाश करना शुरु किया। चूंकि यह कस्बा कोई बहुत ज्यादा बड़ा नहीं है इसलिये हमें उन्हे तलाश करने में ज्यादा समय नहीं लगा। संतोष तिड़के व उसके दोस्त दो बाइक पर ही महाराष्ट्र से यहाँ नैना देवी तक तीन दिन में ही आ गये थे। पहले दिन वे चारों मेरे साथ मेरे घर पर ही रुके थे। अगले दिन हमारा कार्यक्रम बाइक से साथ ही हिमाचल यात्रा पर जाने का था लेकिन अचानक स्कारपियो से जाने के कारण सिर्फ़ महाराष्ट्र वाली बाइके ही इस यात्रा में आ पायी थी। नैना देवी पहुँचने के बाद हमने उनकी बाइक वहाँ के होटलों में देखनी शुरु की थी, हमने लगभग चार-पाँच होटल ही देखें होंगे कि उनकी बाइक दिखायी दे गयी। होटल वालों ने बताया कि वे घन्टा भर से ऊपर गये है अब तो आते ही होंगे।

जय हो प्रभु

यही मुख्य मन्दिर है।


दीवार पर बने मन्दिर।

बाँध लो मन्नत का धागा। रिश्वत दे दी थी ना।

यहाँ हमें कुछ देर प्रतीक्षा करने के बाद बाइक वाले दोस्त भी मिल गये उन्होंने बताया कि वे दर्शन कर व खाना खाकर आ चुके है। दोस्तों के आने से पहले हमने भी एक होटल वाले से बात कर नहाने की तैयारी शुरु भी कर दी थी। इसलिये जल्दी ही हमने नहाना धोना आदि जरुरी नित्य-क्रिया निपट कर पद यात्रा पर पहाड़ चढ़ने की तैयारी करनी शुरु की। यहाँ आरम्भ में ज्यादा चढ़ाई नहीं दिख रही थी मेरे अंदाज से ज्यादा से ज्यादा लगभग एक-सवा किमी की चढ़ाई है। यह मन्दिर जिन पहाडियों में बना हुआ है अन्जान लोग तो इन्हें ही हिमालय की पहाड़ियाँ समझ बैठते है जबकि यह पर्वत श्रेणी शिवालिक पर्वत श्रेणी के अन्तर्गत ही आती है। यह मन्दिर ऊँचाई में लगभग 2820 फ़ुट यानि 940 मीटर के आसपास ही है। यह मन्दिर दिल्ली से लगभग 350 किमी की दूरी पर है इस मन्दिर के नजदीक एक अन्य मन्दिर है जिसे चिन्तपूर्णी माता के नाम से जाना जाता है इस यात्रा में हम वहाँ  नहीं गये थे। यहाँ से हम सीधे ज्वाला जी मन्दिर गये थे। 

अन्दर जाने का मुख्य द्धार।

इस पीपल के पेड़ की भी कुछ माया है।

बैसाखी के सहारे जाने वाले दिलदार भी है।


इस मन्दिर के बनने के पीछे भी वही भगवान शंकर भोले नाथ और सती के शव के अंग भंग वाली कहानी बतायी गयी है। विष्णु ने अपने चक्र से सती के टुकड़े कर दिये थे। शंकर जी सती के शव को लेकर तांड़व करते हुए यहाँ से वहाँ भटक रहे थे। खैर कहानी आदि कुछ भी हो, मुझे उससे कभी कुछ लेना देना नहीं होता है। ऐसी कई पुराण आदि पुस्तके बतायी जाती है मैं उनकी सच्चाई पर विश्वास नहीं करता हूँ। यह सभी पुराण प्राचीन व सशक्त जैन धर्म व उससे मिलते जुलते बौध धर्म का मुकाबला करने के लिये पन्ड़े पुजारियों के गैंग की सोची समझी रणनीति का हिस्सा थी। ऐसा ही कुछ हाल 1400 साल पुरानी कुरान का भी है। उसके बारे में ठीक इन्ही पुराण की तरह जमकर बात फ़ैलायी गयी है कि यह अल्ला ने धरती पर भेजा था। मुझे तो आश्चर्य होता है कि यह कुरान वाला अल्ला या पुराण वाले देवी देवता आखिर इससे पहले कहाँ छिपे हुए थे? इतिहास खंगालिये और देखिए सबसे पहला धर्म कौन सा है? चलिये मैं इन सब अंधविश्वास की बातों से दूर रहकर अपनी घुमक्कड़ी पर ही वापिस आता हूँ।  

वो ऊपर नैना देवी मन्दिर।

अरे डैम भी दिखता है यहाँ से।

मैदानी भाग।
हम लगभग 20 मिनट में ही मन्दिर तक पहुँच गये थे। जिस समय हमारा आगमन इस मन्दिर में  हुआ उस समय वहाँ बहुत ज्यादा भीड़ नहीं थी इसलिये जल्दी ही हमारे मूर्ति दर्शन भी हो गये। यह मन्दिर नौ देवी के मन्दिर में तो गिना ही जाता है इसके यह 52 या 51 (शायद 51) शक्तिपीठ में गिना जाता है। मैं अब तक सभी 9 देवी, सभी 12 ज्योतिर्लिंग, भारत सभी 4 धाम के दर्शन कर चुका हूँ। हर जगह लूट खसोट के अलावा कुछ नहीं मिला है। उतराखन्ड़ के चार धाम के दर्शन तो मैंने बाइक पर किये है व बस में भी। यहाँ इस मन्दिर में देखने लायक कई अन्य मन्दिर व मूर्तियाँ थी। हमें जो अच्छी लगी देखी, जो अच्छी नहीं लगी उसे दूर से देख कर आगे चलते रहे। ऊपर पहाड़ से नीचे घाटी का नजारा बड़ा सुहावना दिखाई दे रहा था। पहाड़ पर मेरे आने की असली वजह यही नजारे होते है। मेरे इन कारणों में ये मन्दिर आदि एक बहाना मात्र होता है। मुझे मन्दिर के अन्दर भिखारी और बाहर पुजारी की हालत पर हमेशा आश्चर्य होता है। और उन सबसे बड़ा आश्चर्य हम जैसे लोग है ही जो यहाँ‘ भगवान को रिश्वत देकर अपना काम करवाने के मकसद के ज्यादा जाते है। रिश्वत वाले भक्तों की संख्या हर स्थल पर अधिकतम संख्या में आती है। यह साल दर साल जनसंख्या के अनुपात में बढ़ती ही जा रही है।

सीढियां नहीं खेत है।

यही कारण तो मेरा बहाना है।

मन्दिर दर्शन करने के उपराँत नीचे जाने की बारी आ गयी थी। अबकी बार मैंने पुराने वाले छोटे मार्ग से उतरने का फ़ैसला किया मेरे साथ ऊपर तक तो कई बन्दे आये थे लेकिन नीचे साथ एक ही बन्दा आया था। यहाँ मनु प्रकाश त्यागी ने बोला था कि संदीप भाई आज तो यात्रा की शुरुआत ही है आज ही घुटने तुड़वाकर मानोगे। खैर जब मेरे व एक अन्य के अलावा बाकि सब नये वाले आसान मार्ग से ही वापिस गये थे। मैंने इस मार्ग को इसलिये चुना था ताकि इस पुराने मार्ग की कठिनता देख ली जाये। बताया जाता है कि कुछ साल पहले यहाँ पर नवरात्र में भगदड़ मचने से सैंकड़ों लोग मारे गये थे। अरे हाँ मैं खुले आम इन मौतों पर इन नकली भगवान पर लानत भेजता हूँ कि काहे के भगवान है जो अपने भक्तों को ऐसी बुरी मौत देते है। मेरे ब्लॉग को कुछ मुस्लिम भी पढ़ते है ऐसा ही कुछ दर्दनाक वाक्या हर दो-चार साल में मुल्लों के सबसे पवित्र माने जाने मक्का मदीना में शैतान वाली जगह पर घट ही जाता है तब मुझ जैसे कई लोग सोचते है कि सच में ये अल्ला, भगवान, देवी, देवता आदि कुछ है भी या नहीं। मुझे तो लगता है कि ऐसा कुछ भी नहीं है। आश्चर्य तो तब होता है जब इन धर्म के ठेकेदारों के चेले उल्टे-सीधे उदाहरण देकर अपनी बात सही साबित करने में लगे रहते है।

बताओ 1  नम्बरी व 2 नम्बरी का फ़ोटो किसने लिया होगा।

आजा भाई आजा।

सब तरह की सुविधा है।

सीढियाँ उतरते समय मैं सावधानी से नीचे आया था। अन्य सभी उसी मार्ग से वापिस उतर गये जिससे यहाँ तक पहुँचे थे। हमें उन सबका इन्तजार करना पड़ा। नीचे आते ही हम सब एक ब्रेड़ पकौड़े की दुकान में घुस गये। सुबह के 9 बजने वाले थे इसलिये सबको भूख लगी थी। हम सबने वहाँ 2-2 ब्रेड़ पकौड़े खाये। हमारे साथ गाड़ी वाले तीन बन्दों में से कोई भी मन्दिर में ऊपर तक नहीं आया था। तीनों बन्दे थे, राजेश सहरावत, उनका लड़का मोहित सहरावत और गाड़ी चालक बलवान। खा पीकर हम वहाँ से अपनी अगली मंजिल ज्वाला देवी की ओर चल दिये। बाइक वालों दोस्तों को मैंने ज्वालामुखी वाले मार्ग के बारे में बता दिया था। उन्हे हमने लगभग एक घन्टा पहले ही अगली मंजिल के रवाना कर दिया था। ज्वाला देवी जाते समय मार्ग में हमें भाखड़ा नाँगल बाँध भी दिखाई दे रहा था। असली आनन्द तो तब आया था जब हम इस बाँध के साथ-साथ 20 किमी चल रहे थे। बाकि अगले भाग में (क्रमश:)

टोपी वाले को व इस दोनों को आप जानते ही है।

भूख लगी है तो आप भी आईये।

हिमाचल की इस यात्रा के सभी लेख के लिंक नीचे दिये गये है।
01. मणिमहेश यात्रा की तैयारी और नैना देवी तक पहुँचने की विवरण।
02. नैना देवी मन्दिर के दर्शन और भाखड़ा नांगल डैम/बाँध के लिये प्रस्थान।
03. भाखड़ा नांगल बांध देखकर ज्वालामुखी मन्दिर पहुँचना।
04. माँ ज्वाला जी/ज्वाला मुखी के बारे में विस्तार से दर्शन व जानकारी।
05. ज्वाला जी मन्दिर कांगड़ा से ड़लहौजी तक सड़क पर बिखरे मिले पके-पके आम
06. डलहौजी के पंजपुला ने दिल खुश कर दिया। 
07. डलहौजी से आगे काला टोप एक सुन्दरतम प्राकृतिक हरियाली से भरपूर स्थल।
08. कालाटोप से वापसी में एक विशाल पेड़ पर सभी की धमाल चौकड़ी।
09. ड़लहौजी का खजियार उर्फ़ भारत का स्विटजरलैंड़ एक हरा-भरा विशाल मैदान 
10. ड़लहौजी के मैदान में आकाश मार्ग से अवतरित होना। पैराग्लाईंडिंग करना।
11. ड़लहौजी से चम्बा होते हुए भरमौर-हड़सर तक की यात्रा का विवरण।
12. हड़सर से धन्छो तक मणिमहेश की कठिन ट्रेकिंग।
13. धन्छो से भैरों घाटी तक की जानलेवा ट्रेकिंग।
14. गौरीकुन्ड़ के पवित्र कुन्ड़ के दर्शन।
15. मणिमहेश पर्वत व पवित्र झील में के दर्शन व झील के मस्त पानी में स्नान।
16. मणिमहेश से सुन्दरासी तक की वापसी यात्रा।
17. सुन्दरासी - धन्छो - हड़सर - भरमौर तक की यात्रा।
18. भरमौर की 84 मन्दिर समूह के दर्शन के साथ मणिमहेश की यात्रा का समापन।
19. चम्बा का चौगान देखने व विवाद के बाद आगे की यात्रा बस से।
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9 टिप्‍पणियां:

  1. श्रद्धा का अपार पहाड़, सुन्दर चित्र

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  2. संदीप जी जय माता की, नववर्ष की बहुत बधाई, पहले नवरात्रों को ही माता नैना देवी के दर्शन करके मन खुश हो गया धन्यवाद...

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  3. ब्रेड पकोडे को जानलेवा हैं....:)

    नव वर्ष विक्रमी सम्वत 2070 की हार्दिक शुभकामनायें.

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  4. मैं तो नंगल डैम ही देख पाया था समय कम था और दौरा सरकारी | चलो आज संदीप भाई ने नैना देवी के दर्शन करा दिए |

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  5. जय माँ नैना देवी....बहुत अच्छा लगा आपके साथ शक्तिपीठ के दर्शन करके...| नैनादेवी हिमाचल की समुंद्रतल से ऊँचाई करीब 3600 फुट (1200 मीटर क करीब) के आसपास हैं न कि 10000 फुट...|

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  6. नैनादेवी के दर्शन---चलचित्र देखते-देखते हो गये
    धन्यवाद

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  7. aastha par bhi vishwas rakhe . sradha se yatra ka ek aalag hi aanand aayega

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  8. वेद पुराण असत्य नही है इसका मै प्रमाण दे सकता हूँ बस इन्हे समझना सबके बस की बात नही।

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